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भारत में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने शहरी सेवाओं पर काफी बोझ डाल दिया है. कोढ़ में खाज वाली स्थिति ये है कि खराब परिवहन प्रबंधन ने सड़कों पर भीड़ और वायु प्रदूषण को बढ़ा दिया है. पार्किंग की जगहों की भी कमी हो रही है. शहर में रहने वालों की आमदनी और उनकी क्रय शक्ति लगातार बढ़ रही है. इसने हालात को और बिगाड़ दिया है. लोग सार्वजनिक परिवहन के विकल्पों को अपनाने की बजाए निजी वाहनों से यात्रा करना पसंद कर रहे हैं.
एक समस्या ये भी है कि सरकार ने सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के विकास और सुधार में निवेश करने पर कम ध्यान दिया है. सरकार अक्सर ऐसी नीतियां बनाती है, जिसमें निजी वाहनों के लिए सड़कों और राजमार्गों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण और विस्तार को प्राथमिकता दी जाती है. सरकार की कोशिश शहरी नागरिकों की मांगों को पूरा करने की होती है. इस स्थिति ने एक ऐसा दुष्चक्र पैदा कर दिया है, जहां निजी वाहनों के स्वामित्व में वृद्धि ने शहरों में टिकाऊ और समावेशी परिवहन प्रणालियों के विकास को रोक दिया है.
शहरी परिवहन मॉडल की हिस्सेदारी के आंकड़ों की राष्ट्रव्यापी समीक्षा से पता चलता है कि 36 प्रतिशत भारतीय काम करने के लिए पैदल या साइकिल से जाते हैं, जबकि 30 प्रतिशत "अपने कार्यस्थलों के करीब होने की वज़ह से" यात्रा नहीं करते हैं.
शहरी परिवहन मॉडल की हिस्सेदारी के आंकड़ों की राष्ट्रव्यापी समीक्षा से पता चलता है कि 36 प्रतिशत भारतीय काम करने के लिए पैदल या साइकिल से जाते हैं, जबकि 30 प्रतिशत "अपने कार्यस्थलों के करीब होने की वज़ह से" यात्रा नहीं करते हैं. इसके अलावा 18 फीसदी लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते हैं. 16 प्रतिशत निजी वाहनों का उपयोग करते हैं. इन 16 फीसदी में से 3 प्रतिशत लोग कारों का जबकि 13 प्रतिशत दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल करते हैं. आंकड़ों से ये बात भी सामने आई है कि करीब 54 प्रतिशत लोग आवागमन के कम से कम एक हिस्से के लिए गैर-मोटर चालित परिवहन (एनएमटी) पर निर्भर हैं. भारतीय शहरों में एनएमटी की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी का श्रेय उनके अपेक्षाकृत सुगठित शहरी स्वरूप, जनसंख्या के उच्च घनत्व और मिश्रित भूमि-उपयोग को दिया जा सकता है. इसकी वज़ह से घर के पास ही कार्यस्थल होते हैं, जिससे यात्रा की दूरी कम हो जाती है, लेकिन एनएमटी के बुनियादी ढांचे के विकास की उपेक्षा की गई है. जिसका नतीजा ये हुआ कि पैदल चलने वालों और साइकिल से यात्रा करने वालों के साथ सड़क दुर्घटनाओं की दर में वृद्धि हुई है.
भारतीय शहरों में गैर-मोटर चालित परिवहन की अभी क्या स्थिति है?
भारतीय शहरों में गैर-मोटर चालित परिवहन मॉडल की पर्याप्त हिस्सेदारी के बावजूद इसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें से सबसे बड़ी चिंताएं सुरक्षा संबंधी हैं. भारतीय शहरों की सड़कें पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए असुरक्षित हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) द्वारा जारी 2022 के दुर्घटना आंकड़ों के मुताबिक कार सवारों की तुलना में पैदल यात्रियों को ज़्यादा बार घातक हादसों का सामना करना पड़ता है. 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में 32,825 पैदल यात्रियों की मौत हुई. ये 2021 की तुलना में 12.7 प्रतिशत ज़्यादा है. इसके अलावा 2022 में 4,836 साइकिल चालकों ने अपनी जान गंवाई, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 2.8 प्रतिशत अधिक है. ये आंकड़े पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के लिए सुरक्षित और पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी को तो दिखाते ही हैं, साथ ही ये भी बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमज़ोर माने जाने वाले एनएमटी उपयोगकर्ताओं के प्रति सरकार और प्रशासन भी उतनी संवेदनशीलता नहीं रखते हैं.
भारतीय शहरों में एनएमटी के लिए बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता एक गंभीर चिंता का मुद्दा बनी हुई है. भारत के शहरों में समर्पित पैदल यात्री फुटपाथों और साइकिल ट्रैक्स की काफ़ी कमी है. अगर पैदल यात्रियों और साइकिल चलाने वालों के लिए कहीं समर्पित बुनियादी ढांचा मौजूद है, तो उसका रख-रखाव बहुत ही खराब है. ईज ऑफ मूविंग इंडेक्स 2022 के हिस्से के रूप में एनएमटी बुनियादी ढांचे का जब एक से पांच के पैमाने गुणात्मक विश्लेषण किया गया तो ये सामने आया कि फुटपाथों की मौजूदा चौड़ाई और स्थिति के संबंध में औसत धारणा स्कोर 5 में से 2.8 था. इसी तरह, फुट ओवर ब्रिज और सबवे जैसी समर्पित सुरक्षित पैदल यात्री क्रॉसिंग सुविधाओं की उपलब्धता और स्ट्रीट लाइटिंग की पर्याप्तता के लिए धारणा स्कोर 2.8 था. साइकिलिंग के लिए बुनियादी ढांचे के संदर्भ में शहरों में साइकिल ट्रैक की पर्याप्तता के लिए धारणा स्कोर 3.0 था. इसके विपरीत, ट्रांजिट हब पर साइकिल पार्किंग प्रावधानों की पर्याप्तता के लिए स्कोर उससे थोड़ा कम यानी 2.9 था. इस स्टडी के नतीजे एनएमटी उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षा और उपयोगिता बढ़ाने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे और रखरखाव की फौरी ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं.
भारत के शहरों में समर्पित पैदल यात्री फुटपाथों और साइकिल ट्रैक्स की काफ़ी कमी है. अगर पैदल यात्रियों और साइकिल चलाने वालों के लिए कहीं समर्पित बुनियादी ढांचा मौजूद है, तो उसका रख-रखाव बहुत ही खराब है.
इतना ही नहीं, एनएमटी के बुनियादी ढांचे और उपयोग से संबंधित आंकड़ों के संग्रह और विश्लेषण में काफी अंतर हैं. आंकड़ों में भी काफ़ी विसंगतियां और कमियां हैं. विभिन्न एजेंसियां एक ही शहर के लिए अलग-अलग आंकड़े रिपोर्ट कर रही हैं. शहरों के स्तर पर यातायात को लेकर जो अध्ययन हुए हैं या हो रहे हैं, उनमें भी आम तौर पर मोटर चालित परिवहन मांग में वृद्धि की भविष्यवाणी पर उसी के ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. इन अध्ययनों में अक्सर एनएमटी यात्रा मांग के घटक की उपेक्षा की जाती है. इसके अलावा दुर्घटनाओं को लेकर पुलिस जो आंकड़े इकट्ठा करती है, उसे भी अक्सर गलत तरीके से पेश किया जाता है. इसमें गहन जांच का अभाव होता है. इसका नतीजा ये होता है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए जो नीतियां बनाई गई हैं, उनका कार्यान्वयन कमज़ोर बना हुआ है. 2006 से पहले की परिवहन नीतियां मुख्य रूप से मोटर चालित परिवहन में निवेश पर ही केंद्रित थीं.
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए) ने राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (एनयूटीपी) जैसी अलग-अलग पहलों के माध्यम से एनएमटी को बढ़ावा देने का काम किया है. ये मंत्रालय एनएमटी को लास्ट-माइल कनेक्टर और छोटी यात्राओं के लिए परिवहन के एक स्वतंत्र साधन के रूप में देखता है. टिकाऊ आवास के लिए राष्ट्रीय मिशन और एमओएचयूए के सर्विस लेवल बेंचमार्क (SLBs) एनएमटी को व्यापक शहरी परिवहन ढांचे में एकीकृत करने और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और उसके प्रदर्शन के आकलन करने पर ज़ोर देते हैं. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) जैसे कार्यक्रमों और 12वीं पंचवर्षीय योजना की सिफारिशों ने भी एनएमटी घटकों का समर्थन किया है. इनमें कहा गया है कि एनएमटी घटकों को वित्तीय मदद से जोड़कर और पैदल चलने और साइकिल चलाने के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए समर्पित धनराशि रखी जाए. स्मार्ट सिटी मिशन ने एनएमटी परिवहन के इकोसिस्टम को बढ़ावा देने और बेहतर बनाने के लिए साइकिल फॉर चेंज और ट्रांसपोर्ट फॉर ऑल समेत कुछ पहल की हैं. इन नीतियों और प्रयासों के बावजूद, कार्यान्वयन में समय-समय पर होने वाले अंतराल, अपर्याप्त मल्टी-मॉडल एकीकरण और परिवहन निधि के अनुपातहीन आवंटन के कारण सीमित सफलता मिली है. ये नीतियां एनएमटी के विकास पर भारी परिवहन के बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देना जारी रखती हैं.
स्मार्ट सिटी मिशन ने एनएमटी परिवहन के इकोसिस्टम को बढ़ावा देने और बेहतर बनाने के लिए साइकिल फॉर चेंज और ट्रांसपोर्ट फॉर ऑल समेत कुछ पहल की हैं.
आगे के लिए क्या रास्ता?
इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए ये ज़रूरी है कि बुनियादी ढांचे का विकास एनएमटी उपयोग के वास्तविक स्तर के अनुरूप किया जाए. अब तक शहरी विकास के लिए जो भी योजनाएं बनाईं जाती थीं, उनमें परंपरागत रूप से इस बात को प्राथमिकता दी जाती थी कि मोटर चालित वाहनों का परिवहन बेरोकटोक जारी रहे. ऐसे में अब ज़रूरत इस बात की है कि एनएमटी का समर्थन करने और उसे बढ़ाने वाला वातावरण बनाया जाए. इसके लिए सड़कों को दोबारा डिज़ाइन करने की आवश्यकता है, जिससे समर्पित पैदल पथ और साइकिल लेन को इसमें शामिल किया जा सके. परिवहन और विकास नीति संस्थान द्वारा शहरी नियोजन के लिए आईआरसी 103 और "बेहतर सड़कें, बेहतर शहर-स्ट्रीट डिज़ाइन" जैसे जो दिशानिर्देश बनाए गए हैं, ये पैदल और साइकिल पथ उनका पालन करते हैं. इसके अलावा शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के मौजूदा संस्थागत ढांचे के भीतर समर्पित एनएमटी सेल स्थापित करना चाहिए. इस एनएमटी सेल का काम संशोधित सड़क बुनियादी ढांचे के प्रभावी मूल्यांकन, डिज़ाइन, निर्माण और कार्यान्वयन को सुनिश्चित करवाना होगा.
समावेशी और उपयोगकर्ता के अनुकूल बुनियादी ढांचे के विकास को सुनिश्चित करने के लिए परिवहन के आधारभूत निर्माण का सामाजिक और तकनीकी ऑडिट करना महत्वपूर्ण है, खासकर लिंग (पुरुष-महिलाएं और थर्ड जेंडर) और वृद्धावस्था समूहों के नज़रिए ये मूल्यांकन ज़रूरी है. इस तरह के ऑडिट से इन जनसांख्यिकीय समूहों के लिए उनके दैनिक जीवन में वर्तमान परिवहन बुनियादी ढांचे की पहुंच और उसके इस्तेमाल का आकलन करने में मदद मिलेगी. हालांकि, ऐसा ऑडिट करने में कई चुनौतियां शामिल हैं. इसमें मैन्युअल डेटा कलेक्शन और विश्लेषण, मुद्दों की पहचान करना, उन्हें प्राथमिकता देना और संसाधनों का आवंटन शामिल है.
उन्नत तकनीकों और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल ऑडिट की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में मदद कर सकता है. उदाहरण के लिए, शहरों के भीतर "एनएमटी बुनियादी ढांचे" पर ध्यान केंद्रित करने वाले सोशल मीडिया अभियानों को सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए ऑनलाइन सर्वेक्षणों के साथ मिलाया जा सकता है. इससे शहर के निवासियों के सामने रोज़मर्रा के जीवन में पेश आने वाले मुद्दों और चुनौतियों पर आंकड़ों के सही संग्रह की सुविधा मिल सकती है. इसके अलावा जियोग्राफिक इंफोर्मेशन सिस्टम(जीआईएस), ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और सेंसर जैसी प्रौद्योगिकियों को पैदल चलने और साइकलिंग की व्यवहार्यता का ऑडिट करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे शहरी माहौल में एनएमटी का उपयोग करने वालों का नज़रिया समझने में मदद मिलती है. ये आखिरकार शहरों को एनएमटी उपयोग और बुनियादी ढांचे का एक स्पष्ट आधारभूत मूल्यांकन स्थापित करने में सक्षम करेगा. अधिकारियों को भी इससे प्रभावी रणनीतियां बनाने में मदद मिलेगी.
शहरों के विकास की नीतियां बनाने वालों को फौरन अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए. एनएमटी और सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए.
शहरों के विकास की नीतियां बनाने वालों को फौरन अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए. एनएमटी और सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए. ये रणनीतिक बदलाव ना सिर्फ़ निजी वाहनों के अत्यधिक इस्तेमाल से पैदा होने वाली समस्याओं को कम करेगा बल्कि ज़्यादा टिकाऊ, समावेशी और रहने योग्य शहरी वातावरण के विकास को भी बढ़ावा देगा. एकीकृत परिवहन सेवाओं के निर्माण में निवेश करने से संतुलित परिवहन नेटवर्क के निर्माण में योगदान मिलेगा. ये पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक कुशलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सभी निवासियों की ज़रूरतों को पूरा करेगा.
नंदन द्वाडा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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