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केंद्रीय बजट 2024 में रूफ़टॉप सोलर पर ध्यान ने रिहायशी क्षेत्र में मज़बूत प्रोत्साहन मुहैया कराया है. MSME के द्वारा सौर ऊर्जा के फायदों का इस्तेमाल करने को सक्षम बनाने के लिए एक लक्ष्य आधारित योजना की भी आवश्यकता है.
नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ भारत के बदलाव में रूफ़टॉप सोलर (छत पर सौर ऊर्जा की प्रणाली) की सुस्त रफ्तार एक रुकावट बनी हुई है. वैसे तो केंद्र सरकार ने 2022 तक 40 गीगावॉट (GW) सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन रूफ़टॉप सोलर की मौजूदा स्थापित क्षमता 15 GW से कम है. ये कुल स्थापित सौर ऊर्जा की क्षमता के 20 प्रतिशत से भी कम है. ये सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने वाले दूसरे देशों जैसे कि जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के ठीक उलट है जहां रूफ़टॉप पर स्थापित क्षमता अन्य तरीकों के लगभग बराबर है.
MSME के द्वारा बिजली खपत का पैटर्न रूफ़टॉप को अपनाने के हिसाब से अनुकूल हो सकता है. इसके अलावा वो इन तकनीक़ों को अपनाकर बहुत अधिक आर्थिक लाभ भी हासिल कर सकते हैं.
व्यावसायिक और औद्योगिक (C&I) बिजली उपभोक्ताओं का वर्तमान में लगभग 80 प्रतिशत रूफ़टॉप सौर ऊर्जा में योगदान है. इसमें मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों का सबसे ज़्यादा हिस्सा है. माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज़ (MSME), जिनका भारत के सकल मूल्य वर्धन (ग्रॉस वैल्यू एडेड) में लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है, ने बहुत सीमित तौर पर इसे अपनाया है. भारत में लगभग 6 करोड़ 30 लाख MSME हैं, जो कि औद्योगिक ऊर्जा की मांग में 30 प्रतिशत का योगदान देते हैं, ये देखते हुए बेहद ज़रूरी है कि केंद्रीय नीतिगत उद्देश्य के रूप में इस सेक्टर में तेज़ी से रूफ़टॉप सोलर को अपनाया जाए.
MSME के द्वारा बिजली खपत का पैटर्न रूफ़टॉप को अपनाने के हिसाब से अनुकूल हो सकता है. इसके अलावा वो इन तकनीक़ों को अपनाकर बहुत अधिक आर्थिक लाभ भी हासिल कर सकते हैं. ये बातें पिछले दिनों ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के द्वारा लगभग 6,500 औद्योगिक बिजली के उपभोक्ताओं पर करवाए गए एक सर्वे में उजागर हुई हैं. सबसे पहले, कुल ऑपरेशनल (संचालन) लागत में बिजली की लागत का हिस्सा (5-20 प्रतिशत के बीच) अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी कंपनियों की तुलना में MSME के लिए ज़्यादा है. इसलिए रूफ़टॉप सोलर की तरफ बदलाव उत्पादन लागत कम करने का एक महत्वपूर्ण ज़रिय़ा हो सकता है क्योंकि ग्रिड बिजली पर खर्च कम हो जाएगा और अतिरिक्त यूनिट वापस बिजली कंपनी को बेचा जा सकता है.
दूसरा, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में MSME ज़्यादातर दिन के समय में बिजली का उपयोग करते हैं जब पर्याप्त सूरज की रोशनी उपलब्ध होती है. ORF के अध्ययन के अनुसार MSME की बिजली खपत का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे के बीच इस्तेमाल होता है. इसलिए संचालन के तौर-तरीकों में बहुत ज़्यादा बदलाव के बिना और महंगे बैटरी स्टोरेज सिस्टम में अधिक निवेश की आवश्यकता के बिना रूफ़टॉप सोलर सिस्टम प्रभावी ढंग से उनकी बिजली की मांग को पूरा कर सकता है.
वैसे तो MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर सिस्टम को अपनाने के पक्ष में दलील दमदार है लेकिन इसके बावजूद इन कंपनियों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ बदलाव प्राथमिकताओं की सूची में नीचे है.
अंत में, बिजली की कटौती के कारण MSME के काम-काज में रुकावट जारी है और मजबूर होकर कई MSME को बैकअप पावर के लिए डीज़ल जेनरेटर का इस्तेमाल करना पड़ता है. डीज़ल जेनरेटर पर ये निर्भरता न केवल वायु प्रदूषण में योगदान करती है बल्कि इसका नतीजा संचालन के खर्च में बढ़ोतरी के रूप में भी निकलता है. इस बात पर विचार करते हुए कि सबसे ज़्यादा बिजली कटौती दिन के समय के दौरान होती है, रूफ़टॉप सोलर में डीज़ल जेनरेटर सेट पर निर्भरता कम करने की बहुत ज़्यादा संभावना है. ये बिजली की विश्वसनीयता और किफायत- दोनों को बढ़ाकर MSME को फायदा पहुंचाएगा.
वैसे तो MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर सिस्टम को अपनाने के पक्ष में दलील दमदार है लेकिन इसके बावजूद इन कंपनियों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ बदलाव प्राथमिकताओं की सूची में नीचे है. ग्रिड इलेक्ट्रिसिटी की जगह रूफ़टॉप सोलर का इस्तेमाल करने में तकनीक़ी और आर्थिक व्यवहार्यता (फिज़िबिलिटी) के आकलन के लिए MSME की क्षमता और संसाधन सीमित हैं. इसके परिणामस्वरूप ये सामान्य सोच है कि रूफ़टॉप सोलर लागत के मामले में फायदेमंद नहीं है क्योंकि शुरुआत में ज़्यादा निवेश करना पड़ता है. ये धारणा उन पर्याप्त सबूतों के बावजूद है जो संकेत देते हैं कि लंबे समय में रूफ़टॉप सोलर ग्रिड बिजली की तुलना में अधिक किफायती विकल्प के तौर पर उभरता है. इसकी वजह ये है कि शुरुआती लागत की भरपाई हो जाने के बाद रूफ़टॉप सोलर का इस्तेमाल करने की लागत बहुत कम है. MSME की तरफ से कम दिलचस्पी तो है ही, वहीं रूफ़टॉप सोलर और नेट मीटरिंग के लिए कानूनी आवश्यकताओं के संबंध में जागरूकता की कमी की वजह से रुकावट और बढ़ जाती है.
हालांकि MSME के लिए सबसे बड़ी चुनौती वित्त व्यवस्था (फाइनेंसिंग) के साथ परेशानी बनी हुई है. कई MSME औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं और कर्ज के मामले में उनकी विश्वसनीयता ख़राब है. साथ ही उन्होंने पहले से ही बहुत ज़्यादा कर्ज़ ले रखा है. इस कारण से वित्तीय संस्थान MSME को कर्ज़ देने के लिए तैयार नहीं हैं या केवल बहुत ज़्यादा ब्याज दर पर ही कर्ज़ मुहैया कराते हैं. डेवलपर इन कंपनियों तक ऑपरेशनल कॉस्ट-बेस्ड (OPEX) अपनाने के मॉडल का विस्तार करने में भी सावधानी बरतते हैं जो उपभोक्ताओं को रूफ़टॉप सोलर की अधिक शुरुआती लागत को उत्पाद की लागत पूरे जीवनकाल तक फैलाने की अनुमति देते हैं. इस क्षेत्र में अधिक स्वीकृति के उद्देश्य से MSME के लिए लक्षित वित्तीय साधनों (टारगेटेड फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स) की पहचान करना प्रमुख सुविधा होगी.
इन मुद्दों का समाधान अपने-आप या समय बीतने के साथ नहीं होगा. रूफ़टॉप सोलर को अपनाने के उद्देश्य से सही परिस्थिति बनाने के लिए MSME को लक्षित समर्थन की ज़रूरत होगी. वर्तमान में रूफ़टॉप सोलर के लिए सब्सिडी केवल आवासीय उपभोक्ताओं को प्रदान की जाती है. वैसे तो सभी व्यावसायिक और औद्योगिक (C&I) उपभोक्ताओं को सब्सिडी देना संभव नहीं है लेकिन MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर अपनाने की दिशा में किसी तरह का आर्थिक प्रोत्साहन मुहैया कराने की तत्काल ज़रूरत है. उदाहरण के लिए, नेशनल सोलर रूफ़टॉप स्कीम के तहत केवल एक निश्चित स्तर तक कनेक्टेड लोड वाले C&I उपभोक्ताओं को सब्सिडी दी जा सकती है. इससे ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि छोटी कंपनियों को ही सब्सिडी का फायदा मिले जो रूफ़टॉप सोलर को अपनाने में सबसे ज़्यादा चुनौती का सामना करते हैं.
MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर को अपनाने की सफल मिसाल बनाने की भी आवश्यकता है जो दिखा सकें कि कैसे ये एंटरप्राइज तकनीक़ी और वित्तीय- दोनों तरह की बाधाओं से पार पा सकते हैं. इस संबंध में एक क्लस्टर (समूह) आधारित दृष्टिकोण उपयोगी साबित हो सकता है. भारत में लगभग 400 औद्योगिक MSME क्लस्टर हैं जो एक ही जगह पर किसी ख़ास सेक्टर के भीतर काम करने वाली कंपनियों को इकट्ठा करते हैं. एक राष्ट्रीय क्लस्टर आधारित MSME रूफ़टॉप सोलर कार्यक्रम को 10-20 क्लस्टर में लागू किया जा सकता है. इसमें वो उद्योग शामिल होंगे जो रूफ़टॉप सोलर को अपनाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में होंगे. इसी तरह का एक कार्यक्रम ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के द्वारा ऊर्जा कार्यक्षमता में सुधार के मक़सद से पर्याप्त सफलता के साथ पहले ही लागू किया जा चुका है.
MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर को अपनाने की सफल मिसाल बनाने की भी आवश्यकता है जो दिखा सकें कि कैसे ये एंटरप्राइज तकनीक़ी और वित्तीय- दोनों तरह की बाधाओं से पार पा सकते हैं.
क्लस्टर आधारित कार्यक्रम ख़ास तौर पर तीन क्षेत्रों पर ध्यान दे सकता है: i) प्रोजेक्ट की शुरुआत और क्षमता निर्माण की पहल जो MSME को उनके काम-काज के पैटर्न के आधार पर सही रूफ़टॉप सोलर तकनीक़ों की पहचान और वित्तीय निहितार्थ के आकलन में मदद कर सकती है; ii) सोलर डेवलपर के लिए समग्र मांग और इन इकाइयों तक ऑपरेशनल कॉस्ट-बेस्ड (OPEX) आधारित बिज़नेस मॉडल का विस्तार करने के लिए डिस्कॉम (वितरण कंपनी) या राज्य सरकार के माध्यम से वित्तीय गारंटी मुहैया कराना; और iii) कर्ज़ लेने में MSME की साख बनाने में मदद करना एवं औद्योगिक इकाइयों को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और राष्ट्रीय विकास बैंक से जोड़ना जो ख़ास तौर पर रूफ़टॉप सोलर के लिए कम ब्याज दर पर कर्ज़ प्रदान कर सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा पिछले दिनों प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना (PSY) की घोषणा, जिसका उद्देश्य 1 करोड़ घरों में रूफ़टॉप सोलर की स्थापना करना है, ने आवासीय सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए कंपनियों, उपभोक्ताओं और निवेशकों के बीच उत्साह पैदा कर दिया है. इसी तरह की एक योजना MSME के द्वारा रूफ़टॉप सोलर को अपनाने के लिए नई ऊर्जा का संचार करने और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी के द्वारा सौर ऊर्जा के फायदों का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अब ज़रूरी है.
प्रोमित मुखर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Promit Mookherjee was an Associate Fellow at the Centre for Economy and Growth in Delhi. His primary research interests include sustainable mobility, techno-economics of low ...
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