चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। चूंकि चीन के कुल ऊर्जा मिश्रण का 73 फीसदी ताप विद्युत उत्पादन से हासिल होता है, इसलिए चीन विश्व भर में कार्बन का सबसे बड़ा उत्सर्जनकर्ता भी है। हालांकि, चीन ने ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं जिनके बल पर वहां कार्बन का उत्सर्जन भविष्य में काफी कम हो जाएगा। चीन में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन निरंतर बढ़ता जा रहा है। ताजा आंकड़े इस बात के गवाह हैं। चीन में अक्षय स्रोतों से उत्पन्न बिजली का अनुपात वर्ष 2008 के 17 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2014 में 23 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया। यही नहीं, चीन ने सौर संयंत्र और विंड फार्म के महत्वपूर्ण कलपुर्जों का उत्पादन करने के उद्देश्य से अपनी दुर्जेय विनिर्माण क्षमताओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है।
चीन की सरकार के प्रयास केवल अपने देश में ही नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने तक सीमित नहीं हैं। चीनी सरकार ने एक ऐसे वैश्विक ग्रिड का निर्माण करने की भी योजना बनाई है, जो विशेष रूप से नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा को कुशलतापूर्वक संप्रेषित (ट्रांसमिट) करने में सक्षम होगा।
चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर)’ पहल के साथ जोड़कर देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन वैश्विक अक्षय ऊर्जा की सप्लाई चेन पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रहा है।
चीन ने अक्षय ऊर्जा की दुनिया में अपना पहला कदम नब्बे के दशक के उत्तरार्द्ध में तब रखा था जब सौर पैनलों की घरेलू मांग पूरी करने में असमर्थ होने पर जर्मनी ने सौर पैनलों के उत्पादन का कार्य चीनी जनवादी गणराज्य (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) को सौंप दिया (आउटसोर्स) था। जर्मन तकनीक, पूंजी और विशेषज्ञता का उपयोग करके चीनी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर सौर पैनलों का विनिर्माण शुरू कर दिया, जिसमें सरकार द्वारा उदारतापूर्वक दिए गए टैक्स क्रेडिट से काफी मदद मिली। साइंटिफिक अमेरिकन के अनुसार, केंद्र सरकार ने इन कंपनियों को तकरीबन 47 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि भी मुहैया कराई, ताकि सौर पैनल निर्माताओं को अपनी क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सके। इन नीतियों का वांछित प्रभाव पड़ा है जिसकी पुष्टि ताजा आंकड़ों से होती है। आज शीर्ष छह वैश्विक सौर पैनल निर्माता चीइनीज ही हैं और दुनिया भर में निर्मित होने वाले समस्त सौर पैनलों का 64 प्रतिशत चीन से ही आता है।
चीन ने पवन ऊर्जा के लिए टर्बाइनों के निर्माण पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है। चीन में बड़े पैमाने पर विंड टर्बाइनों के निर्माण को बढ़ावा वर्ष 2005 के अक्षय ऊर्जा कानून से मिला, जो घरेलू स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की मांग बढ़ाने में सहायक साबित हुआ। इसके अलावा, राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग ने भी एक फरमान जारी किया कि पवन परियोजना में लगने वाले कम से कम 70 फीसदी उपकरण निश्चित तौर पर देश में ही विकसित किए जाने चाहिए। इसके परिणामस्वरूप विंड टर्बाइनों के निर्माण में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई और इसके साथ ही पवन ऊर्जा प्रणाली लगाने वाली घरेलू कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी वर्ष 2004 के 25 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2010 में 90 फीसदी हो गई।
विनिर्माण क्षमता में व्यापक वृद्धि और केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए गए प्रोत्साहनों के फलस्वरूप वर्ष 2011 तक बाजार में अधिशेष (सरप्लस) की स्थिति बन गई और ऐसे में निर्माताओं ने अंतरराष्ट्रीय बाजार की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। यह इसी का नतीजा है कि दुनिया में शीर्ष दस पवन टर्बाइन निर्माताओं में से पांच अब चाइनीज ही हैं।
वैसे तो चीन ने वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के ‘अपस्ट्रीम सेगमेट’ का बड़ा अंश सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है, लेकिन वह महज कच्चा माल का स्रोत होने से संतुष्ट नहीं है। गत अक्टूबर महीने में स्टेट ग्रिड के हाल ही में सेवानिवृत्त अध्यक्ष लियू झेंया ने वैश्विक पावर ग्रिड के निर्माण की व्यवहार्यता पर संयुक्त राष्ट्र में भाषण दिया था। श्री झेंया ने दरअसल एक ऐसे पावर ग्रिड की परिकल्पना की है जो दुनिया के दूर-दराज के हिस्सों जैसे कि अंटार्कटिका स्थित पवन चक्कियों और अफ्रीका स्थित सौर पैनलों से बिजली हासिल करके उसे दुनिया के सभी भागों में संप्रेषित (ट्रांसमिट) करेगा। चीन ने अपने प्रस्ताव में बिजली संप्रेषित करने के लिए ‘हाई वोल्टेज डायरेक्ट करेंट’ प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की बात कही है जिसमें वितरण के दौरान विद्युत का कम से कम नुकसान होगा। इस प्रस्ताव में यह बात रेखांकित की गई है कि वैश्विक पावर ग्रिड का निर्माण हो जाने पर अक्षय ऊर्जा से जुड़ी एक बड़ी समस्या यानी रुक-रुक कर ऊर्जा हासिल होने की समस्या को सुलझाने में मदद मिल सकती है। वैश्विक पावर ग्रिड बन जाने पर व्यापक बिजली संचयन वाली बैटरियों का इंतजाम करने या उन क्षेत्रों में कोयला अथवा प्राकृतिक गैस संयंत्रों का उपयोग करने की जरूरत संभवत: नहीं रह जाएगी जहां सूरज की चमचमाती किरणें पर्याप्त रूप से नहीं पहुंच पाती हैं या तेज हवाएं पर्याप्त मात्रा में नहीं बहती हैं।
वैश्विक पावर ग्रिड अत्यंत महत्वाकांक्षी है और कई विशेषज्ञ तो इसे दूर की कौड़ी मानते हैं।
वैश्विक पावर ग्रिड अत्यंत महत्वाकांक्षी है और कई विशेषज्ञ तो इसे दूर की कौड़ी मानते हैं। इस तरह की परियोजना पर 25 ट्रिलियन से लेकर 50 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की लागत आने का अनुमान है। यही नहीं, इस तरह का पावर ग्रिड बनाने से जुड़े भू-राजनीतिक मुद्दों को अब तक सुलझाया भी नहीं गया है। हालांकि, ध्यान देने योग्य बात यह है कि चीन द्वारा प्रस्तावित एक और विस्तृत नेटवर्क को शुरू में बहुत महंगा और भू-राजनीतिक दृष्टि से अव्यावहारिक होने के चलते असंगत माना गया था। वर्ष 2013 में चीन द्वारा प्रस्तावित ओबीओआर (वन बेल्ट, वन रोड) नेटवर्क के अंतर्गत अंतर्देशीय चीन से लेकर फ्रांस तक फैले एक महाद्वीपीय कनेक्शन और तटीय चीन से शुरू होकर केन्या एवं इटली तक पहुंचने वाले समुद्री कनेक्शन की परिकल्पना की गई है। इस परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। यही नहीं, चीन ने मध्य एशियाई देशों के साथ पांच द्विपक्षीय सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और इसके साथ ही पूर्वी चीन एवं ईरान के बीच एक ट्रेन कनेक्शन तथा इंडोनेशिया में एक हाई-स्पीड रेल परियोजना सहित विभिन्न परियोजनाओं की शुरुआत हो गई है। अत: वैश्विक पावर ग्रिड परियोजना वास्तव में पहुंच से उतनी दूर भी नहीं है, जैसा कि कई विशेषज्ञ मानते हैं।
चीन की आर्थिक एवं विदेश नीति की चार असंबद्ध दिशाओं पर गौर करने पर यह साफ जाहिर हो जाता है कि वह दुनिया की ऊर्जा का एक अपरिहार्य स्रोत बनने की महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ रहा है। चीन की विनिर्माण नीतियों के फलस्वरूप सौर पैनलों की कीमतें वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2013 तक की अवधि में 80 फीसदी गिर चुकी हैं । यही नहीं, यूरोप और अमेरिका अपने घरेलू उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए विंड टर्बाइनों पर भारी-भरकम आयात शुल्क लगाने पर विवश हो गए हैं। किसी भी अन्य राष्ट्र के लिए चीन की विनिर्माण क्षमता की बराबरी करना संभव नजर नहीं आ रहा है।
ओबीओआर (वन बेल्ट वन रोड) नेटवर्क के बनकर तैयार हो जाने से चीन को अपनी वस्तुओं को उन रास्तों से ढुलाई करने में बड़ी आसानी होगी जो उसके द्वारा निर्मित किए जाएंगे और जो उनके नियंत्रण में होंगे। इसी तरह वैश्विक पावर ग्रिड, जिसके लिए चीन पहले ही ग्लोबल एनर्जी इंटरकनेक्शन डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (गीडको) नामक एक विकास संगठन बना चुका है, से चीन को अक्षय ऊर्जा की सप्लाई चेन के ‘डाउनस्ट्रीम सेगमेंट’ को अपने नियंत्रण में रखने में मदद मिलेगी। यह पूरी तरह से संभव नजर आ रहा है कि अगले 30 वर्षों में चीन दुनिया भर में ज्यादातर अक्षय ऊर्जा के उत्पादन एवं संप्रेषण पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लेगा।
अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा से एक सबसे बड़ा फायदा यह बताया जा रहा है कि इससे वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की समस्या का समाधान हो जाएगा। यदि वाकई ऐसा हो गया तो दुनिया के तेल उत्पादक देशों का वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति पर वर्चस्व बरकरार नहीं रह पाएगा और वे अपनी शर्तों पर कीमतें तय नहीं कर पाएंगे। हालांकि, चीन यदि अपने दूरदर्शी विजन के बल पर अक्षय ऊर्जा की सप्लाई चेन के सभी भागों पर अपना एकाधिकार जमाने की अपनी योजनाओं को लागू करने में सक्षम हो जाता है तो वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के इससे भी बड़ी समस्या का रूप धारण कर लेने का अंदेशा है। दरअसल, वैसी स्थिति में वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को कई राष्ट्रों के एक गुट के बजाय महज एक देश यानी चीन अपनी मनमर्जी से तय करने लगेगा।
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