Author : Dhaval Desai

Published on Oct 11, 2019 Updated 0 Hours ago

आज बेस्ट को मिल रही आर्थिक मदद का ज़्यादातर हिस्सा क़र्ज़ चुकाने और तनख़्वाह बांटने में ही चला जाता है. ऐसे में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले अगर जनता को लुभाने वाले क़दम उठाए जाएंगे, तो मुंबई की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के इस अहम हिस्से के लिए नुक़सानदेह ही साबित होगा.

बेस्ट के आर्थिक स्वास्थ्य लाभ की राह में लोक-लुभावन नीतियों के गड्ढे हैं

हाल ही में बृहन मुंबई महानगर निगम ने 5 सौ करोड़ रुपए की 140 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी. ये क़दम महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख कर उठाए गए हैं. मुंबई महानगर निगम की सिविक स्टैंडिंग कमेटी का ये फ़ैसला जल्दबाज़ी में लिया गया मालूम होता है. बीएमसी में शिवसेना का राज है. विपक्षी पार्टियों ने इस फ़ैसले को हड़बड़ी में उठाया गया चुनावी क़दम बताते हुए इसकी निंदा की. 227 सदस्यों वाली बीएमसी में विपक्ष के नेता ने सत्ताधारी दल पर आरोप लगाया कि उसने ऐसे फ़ैसले लेने से पहले चर्चा करना भी ज़रूरी नहीं समझा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ठेंगा दिखा दिया, जबकि जनहित का ये फ़ैसला मुंबई महानगर शहर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हालांकि ज़्यादातर रक़म को सड़कों की मरम्मत करने के लिए हरी झंडी दी गई है. लेकिन, कुल 5 अरब की रक़म का 72 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा यानी क़रीब 4 अरब रुपए मुंबई की बदहाल सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था यानी बेस्ट की मदद में ख़र्च किया जाएगा.

इस फ़ैसले के बाद एक और एलान हआ कि बेस्ट के कर्मचारियों की तनख़्वाह बढ़ाई जाएगी और उन्हें दिवाली का बोनस भी दिया जाएगा. ये वो कर्मचारी हैं जो शिवसेना और बीजेपी की अगुवाई वाले मज़दूर संगठनों से जुड़े हुए हैं. ऐसे वक़्त में जब बृहन मुंबई महानगर निगम घाटे में चल रही बेस्ट को पूरी तरह डूबने से बचाने में जी जान से जुटा है, तो ऐसे क़दम को शाहख़र्ची ही कहा जाएगा. जनता को लुभाने की ये कोशिश क़रीब 3 करोड़ की आबादी वाली मुंबई के लोगों पर बहुत भारी पड़ने ली है. क्योंकि मुंबई के लोग स्थानीय स्तर पर यातायात के लिए काफ़ी हद तक बेस्ट की बस सेवा पर ही निर्भर हैं.

बेस्ट के कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का जो फ़ैसला किया गया है, उससे हर कर्मचारी की तनख़्वाह पांच से दस हज़ार रुपए प्रति महीने बढ़ेगी. इसका फ़ायदा बेस्ट के 40 हज़ार में से केवल दस हज़ार कर्मचारियों को ही होगा. जबकि बेस्ट को इसके लिए क़रीब 118 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ अगले पांच सालों में उठाना पड़ेगा. बेस्ट के कर्मचारी संगठन ऐसे भेदभाव भरे फ़ैसले से सख़्त नाराज़ हैं. बेस्ट की कर्मचारी यूनियन ने 9 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का एलान किया है. क्योंकि तनख़्वाह बढ़ाने के इस फ़ैसले का फ़ायदा बेस्ट के सभी कर्मचारियों को नहीं मिलेगा. वहीं, दूसरी तरफ़ बेस्ट के प्रबंधन ने इस शर्त पर सभी दर्जों का किराया बढ़ाने का इरादा जताया है कि बेस्ट के सभी कर्मचारी उसी तरह के समझौता पत्र पर दस्तख़त करें, जैसे समझौता पत्र पर शिवसेना और बीजेपी से जुड़े कर्मचारी संगठनों ने हस्ताक्षर किए हैं. अगर ऐसा होता है तो वेतन बढ़ाने से बेस्ट के ख़ज़ाने पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ चार गुना तक बढ़ जाएगा. अगले पांच साल में बेस्ट को इस मद के लिए क़रीब 400 करोड़ रुपए ख़र्च करने होंगे.

ऐसे वक़्त में जब बृहन मुंबई महानगर निगम घाटे में चल रही बेस्ट को पूरी तरह डूबने से बचाने में जी जान से जुटा है, तो ऐसे क़दम को शाहख़र्ची ही कहा जाएगा.

 कर्मचारी संगठनों की ऐसी ब्लैकमेलिंग और सियासी फ़ायदे के लिए राजनेताओं का उनको बढ़ावा देना, बेस्ट के लिए एक अभिशाप साबित हुआ है. बेस्ट के मैनेजमेंट के और नुक़सान पहुंचाने वाले फ़ैसलों ने इसे और भी क्षति पहुंचाई है. हाल के दिनों तक बेस्ट ज़बरदस्त वित्तीय संकट की गिरफ़्त में थी. इसके हालात साल 2003 से लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं. क्योंकि उस साल से बेस्ट को अपने बिजली विभाग से मिलने वाली सब्सिडी बंद हो गई थी. रोज़ाना क़रीब 23.5 करोड़ रुपए के नुक़सान के चलते बेस्ट को अपनी बसों का बेड़ा घटाना पड़ा है. 2013 से 2018 के बीच बेस्ट की बसों की संख्या 4,200 से घटकर 3,300 ही रह गई. इसी दौरान बसों में केवल 30 फ़ीसद मुसाफ़िर आने की वजह से बेस्ट ने 18 फ़ीसद रूट पर बसें चलानी बंद भी कर दीं. आख़िरकार बेस्ट को अपनी घटती मांग की चुनौतियों से निपटना पड़ रहा था. आज बेस्ट के पास केवल 3,201 बसें ही बची हैं. इस में से 2,621 सिंगल डेकर बसे हैं. 429 मिनी बस हैं. 6 इलेक्ट्रिक बसें हैं. 25 एसी बसें हैं और 120 डबल डेकर बसें हैं. इन में से 1,847 बसें सीएनजी से चलती हैं. जबकि 1348 डीज़ल से और 6 बसें बिजली से चलती हैं. बेस्ट की ये बसें 410 रूटों पर चलती हैं. इन में से361 मुंबई शहर की सीमाओं के भीतर हैं. जबकि 22 रूट नवी मुंबई में हैं. 14 रूट थाणे में हैं और 13 रूट मीरा-भायंदर नगर निगम के इलाक़े में आते हैं.

जनवरी 2018 तक बेस्ट के रोज़ाना के यात्रियों की तादाद घट कर 19.3 लाख रह गई थी. जबकि 2017 के मध्य तक बेस्ट में रोज़ सफ़र करने वाले यात्रियों की संख्या 30 लाख थी. 2016-17 में बेस्ट को टिकटों की बिक्री से 1181 करोड़ रुपए की आमदनी हो रही थी. जो 130 करोड़ घट कर 2017-18 में केवल 1051 करोड़ रह गई थी. यानी बेस्ट की टिकट बिक्री की आमदनी 11 करोड़ रुपए प्रति महीने की दर से घटती गई. मेट्रो के लिए चल रहे निर्माण कार्य की वजह से लोगों को अपनी मंज़िलों तक पहुंचने में ज़्यादा वक़्त भी लग रहा था. पिछले एक दशक में बेस्ट की बसों की रफ़्तार पीक ऑवर में घट कर आधी रह गई है. 2008 में ये औसत रफ़्तार 16 किलोमीटर प्रति घंटे थी. लेकिन, 2018 के आते-आते बेस्ट की बसों की पीक ऑवर रफ़्तार केवल 9 किलोमीटर प्रति घंटे ही रह गई थी.

मई 2019 की शुरुआत में बृहनमुंबई महानगर निगम ने तय किया था कि वो मुंबई की परिवहन व्यवस्था की ख़स्ता हालत को दुरुस्त करने के लिए कुछ कड़े क़दम उठाएगी. इसके लिए एमसीजीएम, बेस्ट के सालाना बजट का अपने बजट में विलय करने पर विचार कर रही है. इसके अलावा देश के सबसे अमीर नगर निगम यानी एमसीजीएम ने ये भी एलान किया कि वो हर महीने बेस्ट के ख़ज़ाने को एक अरब रुपए की मदद दिया करेगी. इसके अलावा बेस्ट की बसों में यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लक्ष्य निर्धारित कर के उन्हें हासिल करने की कोशिश की गई. 6 जुलाई 2019 को एमसीजीएम ने बेस्ट की बसों के किराए में बदलाव का एलान किया. अब बेस्ट की बसों में न्यूनतम भाड़ा 2 किलोमीटर के लिए आठ रुपए से घटाकर पांच किलोमीटर तक के सफ़र के लिए केवल पांच रुपए कर दिया गया. इसके पीछे मक़सद ये था कि बेस्ट से दूर जा चुके मुसाफ़िरों को वापस उस से जोड़ा जाए. ख़ास तौर से उप नगरीय इलाक़ों के मुसाफ़िरों को घर और दफ़्तर आने जाने के दौरान बेस्ट की बसों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. ताकि वो शेयर ऑटो और कैब के बजाय बेस्ट की बसों से सफ़र करें. लंबी दूरी के किराए में भी काफ़ी कमी की गई थी. 13 रुपए वाले दर्जे का किराया घटा कर 10 रुपए कर दिया गया, जिस में 5 से 10 किलोमीटर तक का सफर किया जा सकता है. इसी तरह 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तक का सफ़र अब 19 रुपए से घटाकर 15 रुपए कर दिया गया था. 15 किलोमीटर से ज़्यादा दूरी पर जाने अब पहले के 25 रुपए के बजाय केवल 20 रुपए का ही टिकट लेना पड़ता है. किराया घटाने का फ़ायदा तुरंत होता दिखा. बेस्ट की बसों के मुसाफ़िरों की संख्या केवल एक दिन में ही पांच लाख तक बढ़ गई. अगले दस दिनों में रोज़ाना के टिकटों की बिक्री, 6 जुलाई से पहले के मुक़ाबले 47 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी देखी गई. 6 जुलाई को जहां 17 लाख टिकट बिके थे. वहीं 15 जुलाई को ये संख्या 25 लाख पहुंच गई. ये सिलसिला जारी है और 18 सितंबर 2019 को बेस्ट के मुसाफ़िरों की संख्या बढ़कर 30 लाख के पार पहुंच गई थी. जो किराया घटाए जाने के दिन से पहले के मुक़ाबले 65 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है.

बेस्ट ने तय किया है कि वो सभी बसों को वेट लीज़ मॉडल पर लेगी. ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है. लंदन और दक्षिण कोरिया में सार्वजनिक परिवहन के लिए बसें वेट लीज़ पर ही ली जाती हैं. इसके तहत बेस्ट जो बसें किराए पर लेगी, उनके लिए ड्राइवर, वो कंपनी ख़ुद ही मुहैया कराएगी, जिसे ठेका मिलेगा. जबकि कंडक्टर बेस्ट की तरफ़ से होगा.

किराए में इस बदलाव के अलावा बेस्ट की बसों की दशा सुधारने पर भी काम किया गया. उनकी संख्या बढ़ाई गई. बेस्ट ने मध्य जून में ही किराए पर 1,250 बसें लेने का फ़ैसला किया. इसके अलावा 450 एसी, नॉन एसी और मिनी बसें ख़रीदने के टेंडर जारी हो गए. साथ ही बेस्ट ने अगस्त में 80 इलेक्ट्रिक बसें ख़रीदने के फ़ैसले पर भी मुहर लगा दी. बिजली से चलने वाली बसों की ख़रीदने में केंद्र सरकार 60 फ़ीसद रक़म का बोझ उठाएगी. इन 1,250 बसों को किराए पर लेने के अलावा शिव सेना ने प्रस्ताव रखा है कि 1,000 बसें और ख़रीदी जाएं. इन में से 500 बसें एसी मिनी सीएनजी होंगी तो बाक़ी की 500 एसी मिनी डीज़ल बसें होंगी, जिन्हें क़रीब 26.22 अरब रुपयों में ख़रीदा जाएगा.

एक किफ़ायती फ़ैसले में बेस्ट ने तय किया है कि वो सभी बसों को वेट लीज़ मॉडल पर लेगी. ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है. लंदन और दक्षिण कोरिया में सार्वजनिक परिवहन के लिए बसें वेट लीज़ पर ही ली जाती हैं. इसके तहत बेस्ट जो बसें किराए पर लेगी, उनके लिए ड्राइवर, वो कंपनी ख़ुद ही मुहैया कराएगी, जिसे ठेका मिलेगा. जबकि कंडक्टर बेस्ट की तरफ़ से होगा. एक हज़ार अतिरिक्त बसें लीज़ पर लेने के शिवसेना के प्रस्ताव पर अमल के लिए ड्राइवर ही बस कंडक्टर का भी रोल निभाएंगे. इससे बेस्ट को और कर्मचारियों को नौकरी पर रखने की ज़रूरत नहीं होगी. और इन बसों में बेस्ट का कोई कर्मचारी नहीं होगा. इससे बेस्ट कम किराए में ज़्यादा मुसाफ़िरों को उनकी मंज़िलों तक पहुंचाने का लक्ष्य हासिल कर सकेगी. और अपना बसों का बेड़ा भी दुरुस्त कर सकेगी. बेस्ट का ऐसी बसें ख़रीदने का फ़ैसला, जो सस्ते और साफ़ ईंधन से चलती हैं, उसके बसें चलाने के ख़र्च को कम से कम 20 फ़ीसद तक घटा देगा. इन प्रस्तावों से उस बुनियादी सिद्धांत का पालन करने में आसानी होगी, जिसके मुताबिक़ एक बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अगर सही तादाद में व सस्ती और अच्छी सुविधाओं के साथ मुहैया कराई जाए, तो वो हर निजी परिवहन व्यवस्था पर भारी पड़ती है. इसके लिए ज़रूरी है कि बसों की संख्या और उनका आकार सही हों ताकि वो मांग को पूरी करने में सक्षम हों. और सड़कें भी अच्छी हों.

हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि पूरी दुनिया में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के तहत तभी आवाजाही का सही विकल्प उपलब्ध करा पाती हैं, जब वो अपना ख़र्च ख़ुद उठा सकें. पिछले चार महीने में जो अभूतपूर्व क़दम उठाए गए हैं, उनसे बेस्ट को वित्तीय स्थिति बेहतर करने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिली है. लेकिन, अभी भी कुछ सवाल अनसुलझे हैं. अगस्त 2019 तक सरकार से मिली 916 करोड़ रुपए की मदद का एक बड़ा हिस्सा पुराने क़र्ज़ चुकाने और बढ़ी हुई तनख़्वाहें बांटने में ही ख़र्च हो गया. इस स्थिति को देखते हुए अगर कर्मचारी संघों को ख़ुश करने के लिए कोई और लोक लुभावन फ़ैसला लिया जाता है, तो इससे बेस्ट के दूरगामी हितों को भी नुक़सान होगा और इसके कर्मचारियों को भी नुक़सान ही होगा. सबसे ख़राब बात तो ये होगी कि कर्मचारियों का एक तबक़ा अगर असंतुष्ट रहता है, तो उनकी कोई भी हड़ताल बेस्ट के मुसाफ़िरों की तेज़ी से बढ़ती संख्या पर बुरा असर ही डालेगी.

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