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सुरक्षा के तमाम आयामों को लेकर अपनी थीम की वजह से पोलैंड, यूरोपीय संघ की अध्यक्षता के लिए बिल्कुल सही हक़दार है.
Image Source: Getty
1 जनवरी 2025 को पोलैंड ने यूरोपीय संघ (EU) की परिषद की अध्यक्षता संभाल ली. यूरोपीय संघ की अध्यक्षता के चक्र वाली व्यवस्था के तहत अध्यक्षता हर छह महीने बाद बदल जाती है. पोलैंड के कमान संभालने के साथ ही इस साल से उसके, डेनमार्क और साइप्रस की अध्यक्षता के त्रियुग का आग़ाज़ हुआ है. पोलैंड, 30 जून तक EU की परिषद का अध्यक्ष रहेगा. इस दौरान पोलैंड, अपने राष्ट्रीय हितों के साथ तालमेल मिलाते हुए यूरोपीय संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा.
इससे पहले हंगरी की अध्यक्षता का दौर बेहद विवादास्पद रहा था. EU के अधिकारियों ने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में कई बैठकों का बहिष्कार किया था. इस विवादित दौर के बाद पोलैंड की अध्यक्षता के काफ़ी अलग रहने की संभावना जताई जा रही है. हंगरी, यूरोपीय संघ का ऐसा पहला अध्यक्ष था, जो EU के क़ानून के राज से जुड़े प्रतिबंधों के बीच अध्यक्ष बना था. यूरोपीय एकता को लेकर सशंकित हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने EU को नाराज़ करते हुए, अपनी अध्यक्षता के दौरान ‘शांति बहाली’ के लिए रूस और यूक्रेन का दौरा भी किया था. वहीं दूसरी तरफ़, 2023 में पोलैंड के संसदीय चुनावों में यूरोपीय एकता के समर्थक डॉनल्ड टस्क ने राष्ट्रवादी और यूरोपीय एकता पर ऐतराज़ करने वाली लॉ ऐंड जस्टिस पार्टी (PiS) के ऊपर जीत हासिल की थी, जो लगभग आठ साल से पोलैंड पर राज कर रही थी. डॉनल्ड टस्क की जीत ने पोलैंड को एक बार फिर से यूरोप की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया है. रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ अपनी अग्रणी भूमिका की वजह से पोलैंड की छवि इस मामले में पहले ही काफ़ी मज़बूत दिख रही थी. डॉनल्ड टस्क 2014 से 2019 के दौरान यूरोपीय संघ की परिषद के अध्यक्ष रहे थे. वहीं, 2011 में जब पोलैंड पहली बार EU का अध्यक्ष बना था, तब वो देश के प्रधानमंत्री थे. उनका ये अनुभव ये सुनिश्चित करेगा कि पोलैंड की अध्यक्षता के दौरान यूरोपीय संघ की कमान मज़बूत हाथों में होगी.
पोलैंड के कमान संभालने के साथ ही इस साल से उसके, डेनमार्क और साइप्रस की अध्यक्षता के त्रियुग का आग़ाज़ हुआ है. पोलैंड, 30 जून तक EU की परिषद का अध्यक्ष रहेगा.
पोलैंड उस वक़्त अध्यक्ष बना है, जब यूरोप एक अहम मकाम पर खड़ा है. रूस और यूक्रेन की जंग अब अपने चौथे साल में दाख़िल होने जा रही है. वहीं, अटलांटिक महासागर के उस पार ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की वजह से अनिश्चितताओं के बादल मंडरा रहे हैं. इसी बीच यूरोपीय आयोग का नया विधायी ढांचा भी बहुत जल्दी ही लागू होने वाला है.
डॉनल्ड टस्क ने ज़ोर देकर कहा है कि यूरोपीय संघ को ‘पोलैंड की सोच’ अपनाने की ज़रूरत है, जिससे वो ‘न केवल अस्तित्व की लड़ाई लड़ सके, बल्कि आक्रामक रुख़ भी दिखा सकेगा.’ पोलैंड की अध्यक्षता की व्यापक थीम ‘यूरोप, सुरक्षा!’ है. इसके तहत सुरक्षा को सात खांचों में बांटा गया है: बाहरी ख़तरों से सुरक्षा, अंदरूनी सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य में सुरक्षा और सूचना की सुरक्षा. यानी पोलैंड की थीम में सुरक्षा के वो तमाम आयाम शामिल हैं, जो सैन्य क्षेत्र से कहीं आगे की बात करते हैं.
सुरक्षा के बाहरी आयाम में यूक्रेन की लगातार सहायता करने के साथ साथ यूरोप के रक्षा उद्योग के विस्तार के लिए घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ाना भी शामिल है. इसमें यूरोपीय देशों के रक्षा की मदद में व्यय को बढ़ाना भी आता है. 2023 में यूरोपीय संघ का रक्षा व्यय 279 अरब यूरो पहुंच गया था, जो 2022 की तुलना में दस प्रतिशत अधिक है. लेकिन, रक्षा क्षेत्र में बढ़त बनाए रखने को लेकर मारियो द्राघी की रिपोर्ट के मुताबिक़ यूरोप को अगले एक दशक में 500 अरब यूरो की अतिरिक्त रक़म की ज़रूरत है. एक अहम प्राथमिकता, ईस्ट शील्ड रक्षा के मूलभूत ढांचे के विकास के ज़रिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के पूर्वी मोर्चे को ताक़तवर बनाने की भी है. पोलैंड चाहता है कि EU के सदस्य देश भी इसमें आर्थिक योगदान दें. 2025 से 2027 के दौरान यूरोपीय संघ के सैन्य और रक्षा उद्योग में पूंजी निवेश के लिए यूरोपियन डिफेंस इंडस्ट्री प्रोग्राम (EDIP) जैसी पहलें, फंड के मामले में कमी की शिकार हैं, और पोलैंड का तर्क है कि यूरोपीय संघ को रक्षा क्षेत्र के व्यय के लिए साझा यूरो बॉन्ड का इस्तेमाल करना चाहिए. बाहरी सुरक्षा में EU की सरहदों के सामने खड़ी चुनौतियों और ‘अप्रवास को हथियार बनाने’ जैसे मिले जुले ख़तरे से निपटना भी शामिल है.
आज जब यूरोप, अमेरिका के अपने निर्यात पर ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ से निपटने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है, और दूसरे प्रमुख व्यापारिक साझीदार चीन के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं, तो ऐसे में उसके लिए आर्थिक सुरक्षा काफ़ी अहम हो जाती है.
आज जब यूरोप, अमेरिका के अपने निर्यात पर ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ से निपटने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है, और दूसरे प्रमुख व्यापारिक साझीदार चीन के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं, तो ऐसे में उसके लिए आर्थिक सुरक्षा काफ़ी अहम हो जाती है. इसमें एकीकृत बाज़ार को और मज़बूती देने और सीमा के आर-पार व्यापार में आने वाली बाधाओं को ख़त्म करने को एक अहम प्राथमिकता के तौर पर रेखांकित किया गया है.
खाद्य सुरक्षा के मामले में पोलैंड की योजना का ज़ोर ‘यूरोप के कृषि क्षेत्र को मुक़ाबले के लायक़ और लचीला बनाने’ पर है. इस मामले में किसानों की मदद के लिए साझा कृषि नीति अपनाने और मूल्य संवर्धन श्रृंखला में उनकी स्थिति को मज़बूत बनाने और ग्रामीण इलाक़ों के विकास को रेखांकित किया गया है. पोलैंड का इरादा इस मामले में भविष्य में यूरोपीय संघ के विस्तार की चुनौतियों से भी निपटना है.
पोलैंड, ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूती देने के लिए रूस के ऊर्जा संसाधनों पर निर्भरता को और कम करके और अपने स्रोतों में विविधता लाने की बात करता है. इसके तहत यूरोपीय नागरिकों और कारोबारियों के लिए लागत कम करने के साथ साथ आयातित तकनीकों, कल-पुर्ज़ों और अहम कच्चे माल पर निर्भरता को और कम करने पर भी ज़ोर दिया गया है. पोलैंड, ऊर्जा और जलवायु को लेकर अधिक लचीली नीति की वकालत करता है, जिसके तहत ‘सज़ा और जवाबदेही के बजाय इनाम और प्रोत्साहन पर ज़्यादा ज़ोर’ होगा.
सूचना की सुरक्षा के दायरे में साइबर सुरक्षा को और मज़बूत करे के साथ साथ ग़लत सूचना और सूचना की हेराफेरी से निपटना शामिल है. स्वास्थ्य सुरक्षा के संदर्भ में पोलैंड का ज़ोर मानसिक सेहत की चुनौतियों से निपटने, स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटल परिवर्तन और यूरोप के दवा निर्माण को ताक़तवर बनाने पर है.
उसका कार्यक्रम अटलांटिक के उस पार के देशों के साथ रिश्तों को मज़बूत बनाने पर भी ज़ोर देता है और यूरोपीय संघ के तमाम देशों में पोलैंड ऐसा कर पाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है. नेटो को लेकर ट्रंप का धिक्कार वाला भाव और 24 घंटे में युद्ध को संभवत: रूस के लिए मुफ़ीद शर्तों पर ख़त्म कराने का उनका वादा, पोलैंड के लिए चिंता की बात है. हालांकि, युद्ध में यूक्रेन का कट्टर समर्थक होने के बावजूद पोलैंड, एक मामले में ट्रंप से सहमत है और वो ये कि यूरोप को अपना रक्षा व्यय बढ़ाना चाहिए. ख़ुद पोलैंड इस मामले में मिसाल क़ायम करके अगुवाईकर रहा है. इस समय पोलैंड अपनी GDP का 4 प्रतिशत रक्षा पर ख़र्च कर रहा है, जो नेटो के दो प्रतिशत की सीमा से कहीं ज़्यादा है. इसके अलावा, 2025 में पोलैंड अपना रक्षा व्यय और बढ़ाकर 4.7 प्रतिशत करने का इरादा रखता है. यही नहीं, पोलैंड अपने रक्षा बजट का 35 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी हथियार ख़रीदने के लिए रखता है. इस तरह, वो अमेरिकी हथियार ख़रीदने के मामले में पांच सबसे बड़े आयातक देशों में से है. ऐसा करके पोलैंड ट्रंप के ‘अमेरिकी हथियार ख़रीदने’ पर ज़ोर देने वाली शर्त को भी पूरा करता है.
अपनी अन्य प्राथमिकताओं में पोलैंड, यूरोपीय संघ को रूस पर और प्रतिबंध लगाने को प्रोत्साहित करेगा. फरवरी 2025 में प्रतिबंधों की 16वीं किस्त को मंज़ूरी दिए जाने की उम्मीद है. दिसंबर 2023 में यूरोपीय संघ ने यूक्रेन और मॉलदोवा के साथ सदस्यता को लेकर बातचीत के दरवाज़े खोले थे. इसलिए पोलैंड, EU के विस्तार पर भी ज़ोर देगा.
इसमें एक अड़ंगा पोलैंड में राष्ट्रपति के चुनाव हैं, जो मई 2025 में होने वाले हैं. देश के कट्टर दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी दक्षिणपंथी इसे देश के भविष्य के लिए सबसे अहम चुनाव के तौर पर पेश कर रहे हैं. चुनाव की वजह से ग्रीन डील, EU और मर्कोसुर के व्यापार समझौते और यूक्रेन के साथ अनाज के आयात के समझौते जैसी EU की कई अहम पहलों से पोलैंड का ध्यान भटकेगा. पोलैंड के वोटर यूक्रेन से अनाज के आयात के पक्ष में नहीं हैं. हालांकि, यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों जैसे कि फ्रांस और स्पेन ने अपनी अध्यक्षता के दौरान चुनावों का सामना किया है और ये साबित किया है कि यूरोपीय संघ की महत्वाकांक्षा और घरेलू राजनीतिक दबावों के बीच संतुलन बनाया जा सकता है.
नवंबर 2024 में 8 नॉर्डिक और बाल्टिक देशों (NB8) की बैठक में भाग लेकर पोलैंड ने दिखाया है कि वो उन नॉर्डिक और बाल्टिक देशों के साथ नज़दीकी बढ़ा रहा है, जो रूस को लेकर उसी की तरह फिक्रमंद हैं.
यूक्रेन पर रूस के हमले ने रूस की आक्रामकता और पश्चिमी यूरोप की रूस पर निर्भरता को लेकर पोलैंड की चेतावनियों को सही साबित किया था. इससे पोलैंड की विश्वसनीयता बढ़ी है. पोलैंड के EU मामलों के मंत्री एडम स्लापका के मुताबिक़, पोलैंड अब पश्चिम के सामने खड़ी ‘सबसे बड़ी चुनौती का विशेषज्ञ’ बन गया है.
चूंकि, पारंपरिक केंद्रों यानी फ्रांस और जर्मनी में सियासी उथल-पुथल की वजह EU की ताक़त का पलड़ा अब पूरब की ओर झुक रहा है. ऐसे में पोलैंड के लिए यूरोपीय संघ की अध्यक्षता, ख़ुद को यूरोप में सत्ता के एक प्रमुख केंद्र के तौर पर अपनी भूमिका को मज़बूत बनाने का अवसर है. यही नहीं, पोलैंड की सत्ता में डॉनल्ड टस्क की वापसी ने भी वीमर त्रिकोण को पुनर्जीवित करने की संभावना जगा दी है. वहीं, नवंबर 2024 में 8 नॉर्डिक और बाल्टिक देशों (NB8) की बैठक में भाग लेकर पोलैंड ने दिखाया है कि वो उन नॉर्डिक और बाल्टिक देशों के साथ नज़दीकी बढ़ा रहा है, जो रूस को लेकर उसी की तरह फिक्रमंद हैं.
पोलैंड को एक चुनौतीपूर्ण माहौल का सामना करना होगा. लेकिन, यूरोपीय संघ की कमान संभालने के लिए वो सबसे अच्छी स्थिति में है. उसकी अध्यक्षता एक दूरगामी सोच, ठोस क़दमों पर आधारित नेतृत्व और सदस्य देशों को एकजुट करने वाली है.
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Shairee Malhotra is Deputy Director - Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. Her areas of work include Indian foreign policy with a focus on ...
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