पूरी दुनिया में पिछले हफ्तों के दौरान इजराइल पर आतंकवादी हमले और अस्पताल में बमबारी से सैकड़ों लोगों की मौत की ख़बरें छाई हुई थीं, ऐसे में मध्य और पूर्वी यूरोप में 15 अक्टूबर को हुए आम चुनाव पर ध्यान नहीं जाना लाज़िमी था. कुछ भी हो, लेकिन पोलैंड में हुए आम चुनाव की अनदेखी करना संभव नहीं था, क्योंकि इस चुनाव का प्रभाव सिर्फ़ पोलैंड तक ही सीमित नहीं था, बल्कि पोलैंड के बाहर भी था. इतना ही नहीं, पोलैंड के चुनाव यूरोप के साथ-साथ पूरी दुनिया में लोकतंत्र के भविष्य को लेकर भी बेहद महत्वपूर्ण थे.
पोलैंड में हुए आम चुनाव की अनदेखी करना संभव नहीं था, क्योंकि इस चुनाव का प्रभाव सिर्फ़ पोलैंड तक ही सीमित नहीं था, बल्कि पोलैंड के बाहर भी था.
पोलैंड के अस्तित्व से जुड़ा चुनाव
पोलैंड के इस चुनाव में वर्ष 2015 से सत्ता पर काबिज यूरोपियन यूनियन की विरोधी दक्षिणपंथी लॉ एंड जस्टिस (PiS) पार्टी को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा है. पीआईएस के आठ वर्षों के शासन के दौरान पोलैंड में लोकतंत्र को ज़बरदस्त नुक़सान पहुंचा और इस पार्टी ने अपनी नीतियों से देश को तानाशाही एवं गैर-उदारवाद यानी कट्टरवाद के दलदल में धकेल दिया. विपक्षी मोर्चे की अगुवाई करने वाले डोनाल्ड टस्क (पोलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री और यूरोपीय परिषद के पूर्व अध्यक्ष) के उदारवादी सिविक प्लेटफॉर्म ने चुनाव में कुल वोट का 30.7 प्रतिशत वोट हासिल किया है और संसद में 157 सीटें जीतीं हैं. डोनाल्ड टस्क के सेंटर-राइट थर्ड वे पार्टी के साथ पौलेंड में गठबंधन सरकार बनाने की संभावना है. चुनाव में थर्ड वे को 14.4 प्रतिशत वोट मिला है और उसने 65 सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि न्यू लेफ्ट पार्टी के पास 8.6 प्रतिशत वोट है और उसने 26 सीटें जीती हैं. देखा जाए तो संसद की 460 सीटों में से तीनों विपक्षी पार्टियों ने कुल मिलाकर 248 सीटें जीतीं हैं. भले ही सत्तारूढ़ पीआईएस ने इस कड़े चुनाव में 34 प्रतिशत वोट के साथ जनता का सबसे अधिक समर्थन हासिल करते हुए 194 सीटों पर परचम लहराया है. लेकिन 7.2 प्रतिशत वोट और 18 सीटें जीतने वाले धुर दक्षिणपंथी कॉन्फेडरेशन के साथ उसका गठबंधन संसद में बहुमत हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
पोलैंड में वर्तमान चुनाव परिणाम उन परिस्थितियों में आए हैं, जब चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण चरम पर था और लोगों को आकर्षित करने के लिए ज़बरदस्त तरीक़े से अभियान चलाया गया था. इतना ही नहीं सरकारी मीडिया, संस्थानों और विभिन्न संसाधनों पर सत्तारूढ़ पार्टी के नियंत्रण के देखते हुए हालात उसी के पक्ष में थे. पोलैंड में यूरोप के इलेक्शन ऑब्ज़र्वेशन मिशन में ऑर्गेनाइजेशन फॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन के मुताबिक़ पोलैंड के चुनाव को “गैर बराबरी के मैदान” पर होने वाला चुनाव बताया गया था. सत्तारूढ़ पार्टी ने चुनावों के अतिरिक्त इमिग्रेशन के मुद्दे पर विभिन्न सवालों के साथ एक जनमत संग्रह भी किया था, जाहिर है कि यह कहीं न कहीं यूरोपियन यूनियन (EU) पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. इसके साथ ही इससे यूरोपियन यूनियन का विरोध करने वालों का विस्तार होगा. इस जनमत संग्रह का असर यह हुआ कि चुनाव के दौरान वोट डालने वालों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ और ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ों के छोटे कस्बों में लोग मतदान के लिए उमड़ पड़े, जहां पर पीआईएस का ज़बरदस्त जनाधार है.
पोलैंड में वर्तमान चुनाव परिणाम उन परिस्थितियों में आए हैं, जब चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण चरम पर था और लोगों को आकर्षित करने के लिए ज़बरदस्त तरीक़े से अभियान चलाया गया था.
पीआईएस ने जिस तरह से अपने सामाजिक रूढ़िवादी एजेंडे को बढ़ावा दिया और देश की अदालतों समेत पोलैंड के तमाम लोकतांत्रिक संस्थानों पर अपना कब्ज़ा जमाया, उससे देखा जाए तो तमाम तरह की क़ानूनी पेचीदगियां उत्पन्न हो गई हैं. जैसे कि यूरोपीय आयोग ने इन हालातों के बदलने तक, यानी कि पुरानी स्थिति में वापस नहीं लाने तक 36 बिलियन यूरो के महामारी रिकवरी फंड पर रोक लगा दी. पीआईएस की सरकार के अंतर्गत पोलैंड में ग़रीबी और बेरोज़गारी में कमी दर्ज़ की गई है, साथ ही अर्थव्यवस्था में 50 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. इसके बावज़ूद कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के दुष्प्रभावों की वजह से पोलैंड यूरोप के कुछ ऐसे देशों में शामिल है, जहां वर्ष 2022 के दौरान सबसे ज़्यादा मुद्रास्फ़ीति दर, यानी 18 प्रतिशत से अधिक मुद्रास्फ़ीति दर देखने को मिली थी. पीआईएस के अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेकर वीजा देने जैसे कथित घोटालों ने भी उसके समर्थकों पर नकारात्मक असर डाला और यह पार्टी से मतदाताओं के मोहभंग की वजह भी बना.
इसी सबका नतीज़ा है कि इस बार के चुनाव में रिकॉर्ड 74.4 प्रतिशत मतदान हुआ है, जो कि वर्ष 1989 के पोलैंड के ऐतिहासिक चुनाव में हुए सर्वाधिक 63 प्रतिशत के मतदान से भी ज़्यादा था. 1989 के चुनाव में मतदाताओं ने रिकॉर्ड वोटिंग कर कम्युनिज़्म को ख़ारिज़ करने का काम किया था, जबकि 2023 के चुनाव में देखा जाए तो देश के अस्तित्व के लिए मतदाताओं ने वोटिंग की. साथ ही इस बार मतदाताओं ने एक उदारवादी यूरोपीय लोकतांत्रिक देश के रूप में पोलैंड का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए वोटिंग की. ज़ाहिर है कि पोलैंड यूरोपियन यूनियन का पांचवा सबसे बड़ा देश है और इसकी GDP 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. ऐसे में यूरोप समर्थक प्रगतिशील पार्टियों की यह क़रीबी जीत, कहीं न कहीं पोलैंड को एक बार फिर यूरोप की मुख्यधारा में वापस लाने का बेहतरीन मौक़ा है.
पोलैंड में चलेगा बदलाव का दौर
डोनाल्ड टस्क की अगुवाई में पोलैंड की नई सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में यूरोपियन यूनियन फंड पर लगी रोक को हटवाना शामिल होगा, साथ ही पूर्व सरकार द्वारा थोपे गए कई गैर-उदारवादी सुधारों को भी पलटना होगा. इसमें न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता को बहाल करना और गर्भपात एवं LGBTQ+ से संबंधित अधिकारों को फिर से बहाल करना शामिल है. हालांकि पीआईएस की सरकार ने पोलैंड में इतना कुछ गड़बड़ कर दिया है कि उसे दुरुस्त करना आसान काम नहीं है. फिर भी, इस बदलाव की शुरुआत सत्ता हस्तांतरण से होगी. इस प्रक्रिया में भी पोलैंड के पीआईएस-गठबंधन के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा द्वारा परेशानियां खड़ी करने की संभावना है, जो कि फिलहाल वर्ष 2025 तक पद पर बने रहेंगे. ज़ाहिर तौर पर राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा द्वारा सबसे पहले सबसे अधिक वोट प्रतिशत वाली पार्टी, अर्थात पीआईएस को ही सरकार बनाने का निमंत्रण दिया जाएगा. इस सबके अलावा डोनाल्ड टस्क की अगुवाई वाले गठबंधन के भीतर वैचारिक मतभेदों की वजह से भी निर्णय लेने में दिक़्क़तें आ सकती हैं.
रूस के विरुद्ध पश्चिमी गठबंधन में पोलैंड एक अग्रणी देश है. इसके साथ ही राजनीतिक तौर पर समर्थन देने के लिहाज़ से और सैन्य साज़ो-सामान की आपूर्ति करने के मामले में सबसे नज़दीकी एवं विश्वसनीय सहयोगियों में से एक है. पोलैंड में दस लाख से अधिक यूक्रेनी शरणार्थी निवास कर रहे हैं, साथ ही पश्चिमी देशों की ओर से यूक्रेन तक हथियार एवं दूसरी सहायता पहुंचाने के लिए पोलैंड एक महत्वपूर्ण ट्रांज़िट हब बन गया है. हालांकि, वारसॉ और कीव के संबंधों में उस वक़्त तनाव पैदा हो गया था, जब चुनाव के दौरान किसानों का वोट हासिल करने के लिए यूक्रेनी अनाज खाद्यान्न के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इतना ही नहीं चुनाव के दौरान यूक्रेन को सैन्य मदद रोकने एवं यूक्रेनी शरणार्थियों को दिए जाने वाले सहयोग को कम करने की भी बातें की गईं थीं. उम्मीद है कि वारसॉ में गठित होने वाली नई सरकार द्वारा यूक्रेन के साथ तनावों को दूर करने लिए कोशिशें की जाएंगी, साथ ही कीव को समर्थन जारी रखने की भी संभावना है. यह लगातार तेज़ी के साथ कमज़ोर होते जा रहे पश्चिमी देशों के गठबंधन के लिए अच्छी खबर है.
पोलैंड में दस लाख से अधिक यूक्रेनी शरणार्थी निवास कर रहे हैं, साथ ही पश्चिमी देशों की ओर से यूक्रेन तक हथियार एवं दूसरी सहायता पहुंचाने के लिए पोलैंड एक महत्वपूर्ण ट्रांज़िट हब बन गया है.
ब्रुसेल्स की ख़ुशी का माहौल
पोलैंड के वर्तमान चुनावी नतीज़े तमाम राजनीतिक अनिश्चितताओं और उठापटक के बावज़ूद यूरोपियन यूनियन के साथ न केवल उसके संबंधों को नई तरह से परिभाषित करने वाले सिद्ध होंगे, बल्कि उसकी विश्वसनीयता को भी बहाल करेंगे. यूरोपियन यूनियन और नाटो में फिलहाल पोलैंड अलग-थलग पड़ा हुआ है, लेकिन इस बार के चुनावी परिणाम वारसॉ को यूरोपीय संघ एवं नाटो के पावर सेंटर के रूप में स्थापित होने का अवसर प्रदान करते हैं, ज़ाहिर है कि वर्तमान में यूरोप की शक्ति का केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रहा है. पोलैंड में जब एक प्रगतिशील सरकार का गठन होगा, तो निश्चित तौर पर वह यूरोपियन यूनियन का विरोध करने वाले बुडापेस्ट-वारसॉ गठबंधन से नाता तोड़ देगी. यह एक ऐसा गठजोड़ है, जो यूरोपीय संघ की बुनियाद को नुक़ासन पहुंचा रहा है. यूरोपियन यूनियन नियम-क़ानून से संचालित होने वाला संगठन है और इस गठबंधन ने EU के माइग्रेशन जैसे मुद्दों का समाधान तलाशने के रास्ते में रुकावटें पैदा करने का काम किया है.
आख़िरकार, पोलैंड में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों ने इस विश्वास को सशक्त करने का काम किया है कि लोकलुभावनवाद और कट्टरवाद की विचारधाराएं चाहे कितनी भी मज़बूत क्यों न हों, लेकिन उन्हें परास्त किया जा सकता है. इसके साथ ही यह चुनाव इस बात का भी प्रतीक हैं कि एक-एक वोट बेहद क़ीमती होता है. ऐसे में ब्रुसेल्स में लोगों का ख़ुशी से झूमना लाज़िमी है.
शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में एसोसिएट फेल हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.