Author : B. Rahul Kamath

Published on Nov 22, 2021 Commentaries 0 Hours ago

पोलैंड और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते मतभेदों ने पूर्वी यूरोप में पश्चिमी यूरोप पर केंद्रित मूल्यों को लेकर उठ रहे सवाल और तीखे हो गए हैं.

क्या पोलैंड, यूरोपीय संघ से अलग हो सकता है?

पोलैंड की सरकार ने लंबे सोच-विचार के बाद, 8 अक्टूबर को अपने संवैधानिक ट्राइब्यूनल की रिपोर्ट को प्रकाशित किया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ के कुछ क़ानूनों के ऊपर अब पोलैंड के संविधान को तरज़ीह दी जाएगी. ट्राइब्यूनल ने यूरोपीय संघ की संधि (TEU) के चार ख़ास अनुच्छेदों को पोलैंड में लागू करने को लेकर सवाल उठाए हैं. ये अनुच्छेद 1, 2, 4(3) और 19 हैं. अनुच्छेद 1 यूरोपीय संघ की बुनियाद तय करता है. वहीं, अनुच्छेद 2 उसके बुनियादी मूल्यों जैसे कि क़ानून के राज, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और मानव अधिकारों के सम्मान को स्थापित करता है. इसी तरह अनुच्छेद 4 (3) इस संधि के तहत किए जाने वाले कामों में एक दूसरे का सम्मान करते हुए, सहयोग की बात कही गई है. वहीं, अनुच्छेद 19 यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (CJEU) को इस बात का अधिकार देता है कि वो यूरोपीय संघ की संधि की व्याख्या और उससे जुड़े क़ानूनों को लागू करने पर नज़र रखे. लेकिन, यूरोपीय संघ की संधि के इन अनुच्छेदों से मेल न खाने की बात कहकर असल में पोलैंड की सरकार ने ये कहा है कि उसके यहां यूरोपीय संघ के क़ानून लागू नहीं किए जा सकते हैं. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लिएन ने पोलैंड के इस फ़ैसले को लेकर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि पोलैंड के ट्राइब्यूनल के फ़ैसले से उस क़ानूनी ढांचे के लिए ही ख़तरा पैदा हो गया है, जिस पर यूरोपीय संघ का अस्तित्व टिका है. उर्सुला लिएन ने ये भी कहा कि इससे पोलैंड में क़ानून के राज, मानव अधिकारों का सम्मान और LGBTQ अधिकारों की रक्षा के लिए भी ख़तरा पैदा हो गया है.

पोलैंड, यूरोपीय संघ से तो अलग नहीं हो रहा है. लेकिन, उसने निश्चित रूप से संघ के अन्य देशों के सामने ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिस पर चलकर कोई और देश अलग होने की दिशा में बढ़ सकता है.

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने ये भी कहा कि आयोग ‘अपनी पूरी ताक़त’ से यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के अधिकार क्षेत्र को लागू करने की कोशिश करेगा. वहीं, पोलैंड के प्रधानमंत्री मातेउश मोराविएस्की ने इस क़दम से पोलैंड की न्यायिक व्यवस्था में यूरोपीय क़ानूनों की दख़लंदाज़ी रोकने के लिए एक दीवार खड़ी कर दी है. इससे पिछले साल मार्च में उठाए गए उनके क़दम और भी पुख़्ता हो गए हैं. पोलैंड के संवैधानिक ट्राइब्यूनल द्वारा यूरोपीय संघ के क़ानूनों पर पोलैंड के राष्ट्रीय संविधान को तरज़ीह देने के फ़ैसले ने पोलैंड और यूरोपीय संघ की दरार को और भी गहरा कर दिया है. इससे ये चर्चा और तेज़ हो गई है कि क्या पोलैंड क़ानूनी तौर पर 27 देशों वाले यूरोपीय संघ से अलग होने (Polexit) की दिशा में बढ़ रहा है. फ्रांस के यूरोपीय मामलों के मंत्री क्लीमें बुनो ने आशंका जताई है कि पोलैंड बस नाम के लिए यूरोपीय संघ का सदस्य रह गया है. असल में तो वो संघ से वैसे ही अलग हो चुका है, जैसे यूरोपीय महाद्वीप के कई अन्य देश हैं. उन्होंने इससे क्षेत्रीय और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने की आशंका जताई है.

पोलैंड के फ़ैसले से पूरे यूरोप में सदमे की लहर दौड़ गई है. बहुत से लोगों को लग रहा है कि ये यूरोपीय संघ के लिए ख़तरे की घंटी है. वहीं, कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं ने पोलैंड के इस क़दम का ख़ुशी से स्वागत किया है. 

पोलैंड के फ़ैसले से पूरा यूरोप सदमे में

यूरोपीय आयोग ने कोविड-19 महामारी से उबरने के लिए पोलैंड (और हंगरी) को दी जा रही 23 अरब यूरो की मदद और 34 अरब यूरो के क़र्ज़ पर रोक लगा दी है. इसकी मुख्य वजह पोलैंड के संवैधानिक ट्राइब्यूनल का फ़ैसला और क़ानून का राज लागू करने का वादा तोड़ना रही है. इस समय पोलैंड की सरकार को यूरोपीय संघ से मिलने वाली इस रक़म की सख़्त ज़रूरत है. क्योंकि वहां 2023 में चुनाव होने वाले हैं और सत्ताधारी पार्टी इस फंड का इस्तेमाल करके अपनी लोकप्रियता भी बढ़ा सकती है और ऊर्जा और सुरक्षा के मामलों में यूरोपीय संघ से समन्वय में भी इज़ाफ़ा कर सकती है. लेकिन, पोलैंड के फ़ैसले ने यूरोपीय संघ के नेताओं को आशंकित कर दिया है. उन्हें डर है कि पूर्वी यूरोपीय देशों में लोकतंत्र कमज़ोर पड़ेगा क्योंकि पोलैंड और हंगरी जैसे देशों ने पहले ही क़ानून के राज के सिद्धांत को तोड़ते हुए ऐसे विवादित क़ानून पास किए हैं, जिससे अप्रवासियों के प्रवेश और मीडिया की स्वतंत्रता पर लगाम लगाई जा सके. ऐसे में पोलैंड द्वारा यूरोपीय संघ के क़ानूनों पर अपने संविधान को प्राथमिकता देने से यूरोपीय संघ के अन्य देश भी अपने राष्ट्रीय क़ानूनों को प्राथमिकता देने वाले क़दम उठा सकते है. इससे पहले आयरलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रीय और यूरोपीय क़ानूनों के बीच टकराव का इशारा दिया था. लेकिन तब, आयरलैंड की सरकार ने अपने देश के क़ानूनों पर यूरोपीय संघ के सिद्धांतों को तरज़ीह दी थी. लेकिन, पोलैंड के फ़ैसले से पूरे यूरोप में सदमे की लहर दौड़ गई है. बहुत से लोगों को लग रहा है कि ये यूरोपीय संघ के लिए ख़तरे की घंटी है. वहीं, कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं ने पोलैंड के इस क़दम का ख़ुशी से स्वागत किया है. फ्रांस के पूर्व समाजवादी मंत्री और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रह चुके आर्नो मोंटेबो ने पोलैंड के फ़ैसले का स्वागत किया और मांग की कि फ्रांस भी अपने राष्ट्रीय क़ानूनों को यूरोपीय क़ानूनों पर तरज़ीह देने के लिए क़दन उठाए. इसी तरह, ल रिपब्लिकंस पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ज़ैवियर बरत्रां ने प्रस्ताव रखा है कि फ्रांस के संविधान में बदलाव किया जाए, जिससे यूरोप के हितों पर फ्रांस के हितों की रक्षा की जा सके. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों, यूरोपीय संघ में मज़बूती से विश्वास रखते हैं. उन्हें 2022 में होने वाले फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में इस मामले में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि, यूरोपीय संघ की संस्थाओं में फ्रांस की जनता का विश्वास इस वक़्त बेहद कम है. आज की तारीख़ में केवल 36 फ़ीसद फ्रेंच नागरिक यूरोपीय संघ में आस्था रखते हैं.

पोलैंड को यूरोपीय संघ से यूं ही बाहर नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस बात का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है. लेकिन, अगर यूरोपीय संघ को ये लगता है कि पोलैंड की हरकतें उसके ख़िलाफ़ है, तो फिर संघ उस पर प्रतिबंध ज़रूर लगा सकता है. 

पोलैंड को यूरोपीय संघ से यूं ही बाहर नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस बात का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है. लेकिन, अगर यूरोपीय संघ को ये लगता है कि पोलैंड की हरकतें उसके ख़िलाफ़ है, तो फिर संघ उस पर प्रतिबंध ज़रूर लगा सकता है. हालांकि, पोलैंड के ट्राइब्यूनल के फ़ैसले ने ब्रिटेन के बाद एक और देश के यूरोपीय संघ छोड़ने की आशंकाओं को फिर से हवा दे दी है. पोलैंड की मौजूदा सरकार की अगुवाई लॉ ऐंड जस्टिस पार्टी (PiS) कर रही है. ये पार्टी हमेशा यूरोपीय संघ के प्रति अपने लगाव का इज़हार करती रही है, और राष्ट्रीय क़ानूनों को प्राथमिकता देने के विवाद के बावजूद, इसके नेताओं ने कभी भी यूरोपीय संघ से अलग होने का ज़िक्र तक नहीं किया. हालांकि, अपने संविधान को तरज़ीह देने के अलावा न्यायिक सुधारों, मीडिया की आज़ादी और LGBTQ अधिकारों को लेकर यूरोपीय मूल्यों और पोलैंड के बीच टकराव रहे हैं. पोलैंड के प्रधानमंत्री मोराविएस्की ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट में पोलैंड के यूरोपीय संघ छोड़ने की आशंकाओं पर तस्वीर साफ़ की थी. उन्होंने लिखा था कि, ‘यूरोपीय संघ में पोलैंड और मध्य यूरोपीय देशों का प्रवेश पिछले एक दशक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है… पोलैंड की जगह यूरोपीय देशों के परिवार में ही है और आगे भी रहेगी.’ पोलैंड, शीत युद्ध के ख़ात्मे के बाद से ही यूरोपीय संघ का कट्टर समर्थक रहा है और आज भी उसके 80 फ़ीसद से ज़्यादा नागरिक आर्थिक फ़ायदों और राजनीतिक स्थिरता के चलते यूरोपीय संघ की सदस्यता के समर्थक हैं. ट्राइब्यूनल के फ़ैसले के ख़िलाफ़, पोलैंड के क़रीब एक लाख नागरिकों ने वार्सा में इकट्ठे होकर अपना विरोध जताया था. उन्हें डर है कि कहीं इससे पोलैंड के यूरोपीय संघ से बाहर होने की राह न खुल जाए.

कितना फ़ायदेमंद निर्णय

वार्सा में हुई रैली में यूरोपीय परिषद के पूर्व अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने ‘पोलैंड के यूरोप में बने रहने’ के संघर्ष के लिए एकजुट होने की अपील की थी. प्रदर्शनकारियों ने एक सुर से ‘हम यूरोपीय हैं’ और ‘हम संघ में ही रहेंगे’ के नारे लगाकर सत्ताधारी PiS को अपनी प्राथमिकता साफ़ शब्दों में बता दी थी. पोलैंड के कुल निर्यात में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 73 फ़ीसद है और उसका 88 प्रतिशत FDI यूरोपीय संघ से ही आता है. इसके अलावा पोलैंड के हज़ारों कामगार, संघ के अन्य देशों में काम करने के लिए जाते हैं. इसके अलावा यूरोपीय परिषद द्वारा पोलैंड को मिलने वाले अगली पीढ़ी के फंड में देरी से पोलैंड को ऊर्जा, खनन उद्योग और मूलभूत ढांचे जैसे अहम क्षेत्रों के लिए मिलने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कम होगा. पोलैंड के हज़ारों कामगार उसके खनन उद्योग में काम करते हैं. इसलिए, पोलैंड का यूरोपीय संघ से अलग होने की सोचना बहुत नुक़सानदेह हो सकता है. उसके इसके लिए भारी आर्थिक क़ीमत चुकानी होगी और राजनीतिक अस्थिरता फैलने का भी डर है.

 पोलैंड के कुल निर्यात में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 73 फ़ीसद है और उसका 88 प्रतिशत FDI यूरोपीय संघ से ही आता है. इसके अलावा पोलैंड के हज़ारों कामगार, संघ के अन्य देशों में काम करने के लिए जाते हैं. 

2015 के बाद से ही PiS, पोलैंड के लोकतांत्रिक और न्यायिक ढांचे को कमज़ोर करने के साथ-साथ, कई मसलों पर यूरोपीय संघ से टकराव मोल लेती रही है. PiS ने अपने क़ानूनी संशोधनों पर कोर्ट की मुहर लगवाने के लिए अदालतों में अपनी पसंद के जज नियुक्त किए हैं और पार्टी, देश के प्रशासन में व्यापक स्तर पर बदलाव करने की कोशिश कर रही है. उसके बाद से ही PiS ने मीडिया के अधिकार सीमित किए हैं. पोलैंड के कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के हिसाब से गर्भपात पर रोक लगा दी है. पोलैंड में क़रीब 2 लाख महिलाओं ने क़ानूनी तौर पर गर्भपात कराया है, या फिर वो एबॉर्शन कराने दूसरे देशों में गई हैं. PiS क़ानूनी तौर पर गोद लेने की यूरोपीय संघ की व्यवस्था का भी विरोध करने की तैयारी में हैं. इन्हीं कारणों से पोलैंड के यूरोपीय संघ से अलग होने के विचार को बल मिले हैं.

अब आगे क्या?

अब पोलैंड एक और न्यायिक तूफ़ान का सामना करने की तैयारी में है. क्योंकि, यूरोपीय संघ द्वारा दिए जाने वाले फंड में कटौती के फ़ैसले को पोलैंड की सरकार यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (CJEU) में चुनौती देने की तैयारी कर रही है. नए उपायों से यूरोपीय संघ को किसी भी सदस्य देश में क़ानून के राज को कमज़ोर किए जाने पर उसके ख़िलाफ़ क़दम उठाने का मौक़ा मिलता है. पोलैंड और हंगरी को डर है कि उन्हें यूरोपीय संघ से मिलने वाली ये रक़म बंद हो सकती है. इसलिए अब ये क़ानूनी लड़ाई यूरोपीय कोर्ट में लड़ी जा रही है. पोलैंड और हंगरी को लगता है कि यूरोपीय संघ के बजट के आवंटन का ये तरीक़ा ग़लत है. इसके अलावा CJEU ने पोलैंड पर पांच लाख यूरो प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भी लगाया है. ये जुर्माना, पोलैंड द्वारा चेक-पोलैंड सीमा पर स्थित टुरोव खदान से लिग्नाइट के खनन के चलते लगाया गया है. पोलैंड ने अपने क़दमों यूरोपीय संघ की चिंताओं में इज़ाफ़ा कर दिया है. जबकि यूरोपीय संघ पहले ही प्राकृतिक गैस के भंडारण की क्षमता और पूरे यूरोप में बिजली के बढ़ते दामों की चुनौती का सामना कर रहा है. यूरोप में बढ़ते जनवाद, तमाम देशों में दक्षिणपंथ के उभार और यूरोप की राजनीति से एंगेला मर्केल की विदाई ने फ्रांस के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. क्योंकि अब, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों को यूरोपीय मूल्यों के रक्षक का कांटों भरा ताज पहनना पड़ेगा. हालांकि 2022 में होने वाले फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव, यूरोपीय संघ के प्रशासन के लिए ऐतिहासिक हो सकते हैं. क्योंकि यूरोप के तमाम देशों में दक्षिणपंथी दलों की बढ़ती ताक़त के चलते एकजुट यूरोप और हर देश के अलग विचारों के बीच वैसे ही मतभेद बढ़ने की आशंका है, जैसे अभी पोलैंड और यूरोपीय संघ के बीच के रिश्ते दिख रहे हैं. पोलैंड, यूरोपीय संघ से तो अलग नहीं हो रहा है. लेकिन, उसने निश्चित रूप से संघ के अन्य देशों के सामने ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिस पर चलकर कोई और देश अलग होने की दिशा में बढ़ सकता है.

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