कोविड 19 महामारी की वजह से उपजी आर्थिक मंदी ने विश्व के 85 – 115 मिलियन लोगों को ग़रीबी और बेरोज़गारी की ओर धकेल दिया है और उम्मीद की जाती है कि 2021 तक ये आंकड़ा 150 मिलियन तक पहुँच सकता है – जो कि, पिछले 20 वर्षों मे उपजी विश्व स्तर पर पहली अत्यंत दयनीय गरीबी का दौर है. संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल पल्स इनिशिएटिव द्वारा किए गए क्रॉस-नेशनल अध्ययन में इन आर्थिक संकेतों मे परिवर्तन और रेकॉर्डेड अपराध में सम्बद्ध परिवर्तन के मध्य एक सम्बन्ध दिखाया गया है. समकालीन समाज में, तनाव प्रेरित अपराध के पीछे लोगों की दयनीय आर्थिक दशा एक प्रमुख कारण है. उच्च श्रेणी की बेरोज़गारी अक्सर ख़राब काम करने की श्रेणी के साथ ही सरकारों द्वारा सामाजिक ख़र्च में की गई कटौती होती है – पिछले चंद महीनों में भारत ने कई दफा ये दृश्य देखा है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य 16 (SDG 16) के अंतर्गत एक लंबे वक्त तक के लिए शांति के प्रति प्रतिबद्धता, न्याय एवं मज़बूत संगठन जिसमें की प्रभावी, पारदर्शी और संगठन के प्रति ज़िम्मेवार जैसी ज़रूरी विषय समाहित है, जो की सतत विकास के इस लंबी दौड़ के अहम तथ्य है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य 16 (SDG 16) के अंतर्गत एक लंबे वक्त तक के लिए शांति के प्रति प्रतिबद्धता, न्याय एवं मज़बूत संगठन जिसमें की प्रभावी, पारदर्शी और संगठन के प्रति ज़िम्मेवार जैसी ज़रूरी विषय समाहित है, जो की सतत विकास के इस लंबी दौड़ के अहम तथ्य है. हालांकि, इस महामारी की वजह से पहले से ही विश्व में कई सरकारें काफी दबाव में है जिस वजह से उनकी इच्छित परिणाम दे पाने की शक्ति काफी प्रभावित हो रही है. घरेलू हिंसा, कामगार, श्रम विवाद, सामाजिक सुरक्षा के फ़ायदे और व्यापारिक दिवालियापन जैसी घटनाओं में ख़तरनाक वृद्धि हुई है. लॉकडाउन के वक्त़ के कठोर प्रतिबंध की वजह से न्याय प्रणाली में सीमित कार्यशीलता, ने स्थिति को और भी जटिल कर दिया है. हालांकि, न्याय प्रणाली इस महामारी से निपटने की भरपूर कोशिश कर रही है, न्याय के नियम और मानव अधिकार इस परिवर्तनकारी परिवर्तन को प्राप्त करने की कुंजी है. कोविड-19 के प्रति मिली प्रतिक्रिया को SDG 16 के लेंस के आधार पर फ्रेम किया जाना चाहिए क्यूंकि 2030 तक सतत विकास (SDG 16) के लक्ष्य को प्राप्त कर पाने हेतु एक प्रभावशाली पब्लिक स्वास्थ्य (सकारात्मक) रिस्पांस प्राप्त करने की एकमात्र कुंजी यही है.
व्यक्तिगत अपराध
1978-2005 के बीच यूनाइटेड स्टेट्स के 400 से भी ज्य़ादा काउंटी ज़िलों में, बेरोज़गारी प्रेरित आपराधिक प्रेरणा और अवसर और उसके परिणाम के ऊपर किए गए एक सर्वेक्षण में बेरोज़गारी दर और सम्पत्ति की चोरी से जुड़ा अपराध, मोटर व्हीकल की चोरी के बीच एक स्थिर संबंध है. ठीक उसी तरह से भारत में भी नौकरी की कमी ने कई लोगों को आपराधिक गतिविधियों में धकेल दिया है, और इस दौरान देश की बेरोज़गारी दर भी लॉकडाउन के बाद के 7 प्रतिशत से लेकर पिछले साल अप्रैल महीने तक सीधे 27.11 प्रतिशत तक पहुँच चुका है. सम्पूर्ण तौर पर ये कहा जा सकता है कि जनवरी 2020 में, श्रम बल भागेदरी भी 43 प्रतिशत से नवंबर आते आते 40 प्रतिशत तक घट चुकी थी, जो ये साफ़ तौर पर इस बात की ओर इशारा करती है कि, ज़्यादातर लोग रोज़गार बाजार से दूर ही रह रहे हैं, जो कि इस बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या का प्रमुख कारण है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी 2020 के मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के शुरुआती 68 दिनों के दरम्यान गूगल सर्च ट्रेंड के अनुसार, भारत मे, “घरेलू हिंसा” और “घरेलू हिंसा हेल्पलाइन” अपने चरम पर था, जहां मार्च के पहले सप्ताह से अप्रैल के अंतिम सप्ताह के दौरान, घरेलू हिंसा से ग्रस्त लोगों की मदद की गुहार और राहत आश्रय से संबंधित कॉल्स मे 100 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.
बिहार में दर्ज एफ.आई.आर. के आधार पर बढ़े हुए आपराधिक गतिविधिओं पर किए गए एक शोध के अनुसार, वो राज्य जहां भारत भर में सबसे कम पुलिस दर है, उनमें कोविड 19 लॉकडाउन के पहले के दौरान, और लॉकडाउन के उपरांत के अपराध दर में आए बदलाव का अध्ययन किया गया. परिणाम बतलाते हैं क- जहां कुछेक इलाकों को उच्च प्रतिबंधित रेड ज़ोन और बाकी अन्य को निम्न प्रतिबंधित ऑरेंज ज़ोन और ग्रीन ज़ोन के तौर पर चिन्हित किया गया – वहाँ, जैसे-जैसे लॉकडाउन एक फेज़ से दूसरे फेज़ मे बदलता गया, वहाँ- रेड ज़ोन में जो की अधिसंख्य मे नौकरी छूटने और व्यापारों के बंद होने की घटनाएं सबसे ज्य़ादा हुई, वहाँ आर्थिक रूप से प्रेरित अपराधों में काफी वृद्धि दर्ज की गई.
आर्थिक दबाव से इतर, देखा गया है कि आश्रय स्थल आदेश की वजह से बुलाए गए लोगों की सामाजिक रोकथाम से उपजी वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य समस्या ने भी लोगों के भीतर आपराधिक मनोवृत्ति का सृजन किया है. कोविड-19 महामारी के दौरान, कोविड काल के दरम्यान, लोगों द्वारा अपने-अपने घर पर ज्य़ादा वक्त़ गुज़ारे जाने की वजह से घरेलू हिंसा और बाल शोषण की गुंजाइश बढ़ गई है. महामारी ने कमजोर सामाजिक वर्ग ख़ासकर LGBTQ वर्ग, बुज़ुर्ग और वो जो की गहरी दरिद्रता से घिरे हुए हैं, उन जैसे लोगों के प्रति हिंसा की संभावना को काफी प्रबल बनाती है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी 2020 के मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के शुरुआती 68 दिनों के दरम्यान गूगल सर्च ट्रेंड के अनुसार, भारत मे, “घरेलू हिंसा” और “घरेलू हिंसा हेल्पलाइन” अपने चरम पर था, जहां मार्च के पहले सप्ताह से अप्रैल के अंतिम सप्ताह के दौरान, घरेलू हिंसा से ग्रस्त लोगों की मदद की गुहार और राहत आश्रय से संबंधित कॉल्स मे 100 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. भारत मे दर्ज की गई कुल 14.3 प्रतिशत घरेलू हिंसा के मामले, भी 10 सालों मे शीर्ष पर है.
संगठित अपराध
संगठित अपराध अपने स्वभाव अनुसार अत्यंत अनुकूलनीय है, जो उसने संकट जैसे की शीत युद्ध की समाप्ति या फिर, 2009 की वैश्विक मंदी से उपजे अपने दीर्घावधिक फ़ायदे ढूंढ पाने की क्षमता पहले ही साबित कर चुका है. अंतर-सरकारी संगठन जो देश के भीतर किसी भी प्रकार की काले धन को सफ़ेद करने और आतंकी वित्त-पोषण जैसे अपराधों से निपटने के लिए नियुक्त वित्तीय कार्यवाही कार्य दल (FATF) ने हाल ही में घर पर से काम करने की प्रवृत्ति और ऑनलाइन सेल्स से जुड़े किसी भी प्रकार के धन शोधन विरोधी अपराध में बढ़ोत्तरी होने की आशंका व्यक्त की है. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि, “ डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म के ऊपर बढ़ी हुई निर्भरता की वजह से वित्तीय ठगी के मामलों में काफी वृद्धि दर्ज की गई है.”
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सिर्फ़ वर्ष 2021 मे ही विश्व को साइबर क्राइम की वजह से अमेरिकी डॉलर 6 ट्रिलियन तक का नुकसान होगा. साथ ही, भारत मे उत्पन्न साइबर हमला जो की 2019 के Q9 मे 854,782 दर्ज की गई थी वो 2020 के प्रथम क्वार्टर में लगभग दोगुना, जो अनुमान के अनुसार 2,299,682 तक पहुँच चुकी थी.
वित्तीय कार्यवाही कार्यदल (FATF) ने पहले ही साइबर क्राइम के बढ़ने की पूरी संभावना व्यक्त की है. इसके अंतर्गत अति उत्साही लोगों को, एंटी कोरोना वायरस के उपचार संबंधी लिंक्स पर क्लिक करके उनके मोबाइल, और उनके रिमोट कंट्रोल को हैक करके, गैजेट्स के भीतर उपलब्ध महत्वपूर्ण डेटा और जानकारी के एवज़ में रैनसम वेयर ( रकम वसूली) वसूलते हैं. इसके अलावा, ये अपराधी किसी सरकारी अधिकारियों का रूप धर कर, या फिर व्यक्तिगत अथवा वित्तीय जानकारी प्राप्त करने के लिए और भी अन्य प्रकार के फिशिंग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही कोविड-19 पीड़ित लोगों के सेवार्थ चैरिटी के नाम पर धन उगाहने और नॉवेल कोविड में इसके इस्तेमाल के उद्देश्य से इस फंड को किसी झूठी और बेनाम कॉम्पनियों में निवेश के नाम पर भी काफी फ्रॉड किए गए हैं. इंटरपोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, फ़रवरी और मार्च 2020 के दौरान वैश्विक स्तर पर हाई रिस्क वेबसाइट के रजिस्ट्रेशन में 788 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी पाई गई है, जबकी एक साइबर सिक्योरिटी फ़र्म ने सिर्फ़ मार्च 2020 में ही 600 प्रतिशत से भी ज्य़ादा फिशिंग मेल के पाए जाने की शिकायत दर्ज की है. यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सिर्फ़ वर्ष 2021 मे ही विश्व को साइबर क्राइम की वजह से अमेरिकी डॉलर 6 ट्रिलियन तक का नुकसान होगा. साथ ही, भारत मे उत्पन्न साइबर हमला जो की 2019 के Q9 मे 854,782 दर्ज की गई थी वो 2020 के प्रथम क्वार्टर में लगभग दोगुना, जो अनुमान के अनुसार 2,299,682 तक पहुँच चुकी थी. इस बढ़ते हुए साइबर क्राइम पर रोक लगाने के लिए दिल्ली पुलिस ने 1300 अतिरिक्त पुलिस बल को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया है.
विभिन्न व्यापारिक सेक्टर में, उपजे अत्यधिक वित्तीय दबाव की वजह से दिवालियापन की ओर बढ़ रहे वैध व्यवसाय जैसे पर्यटन, उत्पाद उद्योग और खाद्य इंडस्ट्री आदि, ने कई ऐसे क्राइम सिंडिकेट्स उत्पन्न कर दिए हैं जो इन टूटे या रुग्ण अथवा बीमार उद्योगों के पुनर्गठन के नाम पर डायरेक्ट अथवा इनडायरेक्ट लोन लेकर देश की वैद्य अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर पाने की दुश्चेष्टा में हैं. व्याप्त आर्थिक अनिश्चितता के माहौल में जहां लोग इस वक्त़ अपने पैसे को इस आर्थिक सिस्टम में निवेश करने से कतरा रहे हैं, इस स्थिति में ज्य़ादातर आपराधिक संगठन बहुत तेज़ी से नकदी-प्रधान अनियमित वित्तीय बाजारों का प्रचार-प्रसार करते हुए, बेरोज़गारों की दुर्दशा को भुनाने की कोशिश करते हुए, व्यवसाय के लिए ज़रूरी, कर्ज़ आधारित वित्तीय-कोष बनाने की कोशिश करेंगे और उस आधार पर अपने आधार को और मज़बूती प्रदान करने के लिए जरूरी नए सदस्यों की भर्ती करेंगे. हालांकि, भारत में इस दौरान प्रवासी लोगों के लिए चलाई गए स्पेशल ट्रेनों से, यू.एस. ($) डॉलर 2,20,000 मूल्य के अवैद्य विदेशी तंबाकू के स्मगलिंग की रिपोर्ट आयी है. लॉकडाउन और लगाए गए पाबंदियों की वजह से संगठित आपराधिक गिरोहों द्वारा किए जाने वाले अवैध कार्यों, जैसे नशीली दवाएं, हथियार और मानव तस्करी जैसे क्रियाकलापों में कमी आई है. 2019 मे जहां अवैध तस्करी द्वारा भारत मे 120 टन सोना लाया गया, वहीं महामारी की वजह से बाधित एवं सीमित परिवहन की सेवा की वजह से सोना की तस्करी प्रतिमाह मात्र दो टन सोना तक सीमित रह गई है.
कोविड 19 कोष के दुरुपयोग से निपटने के लिए बहुराष्ट्रीय और बहुक्षेत्रीय सहयोग की ज़रूरत है, ताकि किसी भी प्रकार के ऐसे संगठित अपराध जिसका उद्देश्य वैध, पूंजी एवं आर्थिक बाज़ार में अपना प्रभुत्व कायम करने का हो, उसपर उचित लगाम लगाई जा सके.
ये चंद ऐसे उदाहरण है जहां इन आपराधिक सिंडीकेट ने, मेडिकल सप्लाई में अनियमितताओं का फ़ायदा उठाते हुए, मौजूदा आपूर्ति श्रृंखला में नकली एवं घटिया सुरक्षा उपकरण जैसे मास्क, सैनेटाइज़र आदि का वितरण कर रही है, जो कि भारतीय शहरों मे इस्तेमाल करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर कर रही है. 2020 मे इंटरपोल द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय ऑपरेशन के दौरान यू.एस. डॉलर 14 मिलियन की कीमत के बराबर 4 मिलियन से भी ज्यादा खतरनाक फर्मास्युटिकल दवा उत्पाद जब्त किए है. इसके अलावा, विश्व के कई वंचित क्षेत्रों मे इंटरनेट के मध्यम से कोविड-19 के नकली टीके बेचे जा रहे हैं और मार्च 2021 में, चीन से साउथ अफ्रीका में कोविड-19 के 2400 नकली ख़ुराक बेची गई है. महामारी के दौरान संपत्ति से संबंधित अपराध में भी बढ़ी वृद्धि हुई है, जो आपराधिक पृष्टभूमि के व्यक्तियों में प्रसिद्ध एक प्रचलित फार्मूला है, जिसके तहत रियल एस्टेट को सामने रख कर अवैध फन्डिंग की जाती है,
विश्व के वंचित क्षेत्रों में इंटरनेट की मदद से नकली कोविड के टीकों की बिक्री
कोविड 19 कोष के दुरुपयोग से निपटने के लिए बहुराष्ट्रीय और बहुक्षेत्रीय सहयोग की ज़रूरत है, ताकि किसी भी प्रकार के ऐसे संगठित अपराध जिसका उद्देश्य वैध, पूंजी एवं आर्थिक बाज़ार में अपना प्रभुत्व कायम करने का हो, उसपर उचित लगाम लगाई जा सके. हर प्रकार के राष्ट्रीय और सीमा-पार संपत्ति और आर्थिक लेन-देन मे होने वाले भ्रष्टाचार और धन की हेराफेरी के लिए लाभकारी स्वामित्व पंजीकरण हेतु एक मजबूत तंत्र बनाए जाने की आवश्यकता है, जिसकी मदद से वैश्विक आर्थिक व्यवस्था मे किसी भी प्रकार के संगठित अपराध के घुसपैठ की संभावना को रोका जा सके, कालाबाज़ारी मे संलिप्त खिलाड़ियों को रोक पाने की दिशा में काफी लंबे वक्त़ तक मददगार होने के लिए एक तीव्र और अच्छी तरह से लक्षित उत्तेजना प्रतिक्रिया, की ज़रूरत है, ख़ासकर तब जब की वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था, अपने परिभाषित तनावपूर्ण आर्थिक दौर से गुज़र रहा है.
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