Author : Sushant Sareen

Published on Dec 30, 2023 Updated 0 Hours ago

2024 में भी पाकिस्तान बहुत से संकटों से घिरा रहने वाला है और उसके पास इनसे निकलने का कोई स्पष्ट रास्ता भी नहीं दिख रहा है.

पाकिस्तान: लगातार बनी हुई अस्थिरता

ये लेखव्हाट टू एक्सपेक्ट इन 2024सीरीज़ का एक हिस्सा है.


प्रस्तावना

1947 में स्थापना के बाद से ही पाकिस्तान में ये विलाप लगातार चलता रहा है कि मुल्क दोराहे पर खड़ा है. हर नए साल को आर या पार का साल क़रार दिया जाता है. 2024 भी इससे अलग नहीं रहने वाला है. हां, ये बदलाव ज़रूर है कि इस बार पाकिस्तान मेंबननेसे ज़्यादाबिगड़ जानेका ख़तरे पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है. इसकी बड़ी वजह यही है कि पाकिस्तान इस बार उस मुहाने पर खड़ा है, जिसे मुसीबतों की बाढ़ कहा जा रहा है और इसलिए क्योंकि इनमें से पाकिस्तान के सामने खड़ी हर चुनौती- फिर चाहे वो राजनीतिक हो, आर्थिक, सुरक्षा संबंधी या संस्थागत- उसके अस्तित्व के लिए संकट बन गई है. 2024 में भी ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान के पास संकटों की इस बाढ़ से निकलने की कोई स्पष्ट योजना या रणनीति है. इसका मतलब ये है कि गुज़रे हुए वर्षों की तरह, 2024 में भी पाकिस्तान के नेता, ढांचागत समस्याओं के फ़ौरी समाधान की तलाश में रहेंगे. दूसरे शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान के सियासतदान आसान रास्ते का चुनाव करेंगे, जिससे पाकिस्तान के दोराहे पर खड़े होने का सिंड्रोम बना ही रहेगा.

चुनाव और उसके बाद को लेकर अनिश्चितता

पाकिस्तान में आम चुनाव 8 फरवरी 2024 को होने हैं. लेकिन, ये आशंका भी लगातार बनी हुई है कि क्या चुनाव तय समय पर होंगे या फिर उन्हें टाल दिया जाएगा. आम चुनावों को लेकर जो उत्साह और उत्तेजना आम तौर पर दिखती है, वो इस बार ग़ायब है. शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि जो शख़्स निश्चित रूप से सबसे लोकप्रिय सियासी नेता है- यानी इमरान ख़ान- उन्हें चुनाव मैदान से दूर रखा जा रहा है और उनके आने वाले लंबे समय तक जेल में ही बने रहने की आशंका है. इस बात को लेकर आम सहमति है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को फौज का समर्थन हासिल है और पूरी संभावना है कि चुनाव में वो ही विजेता बनकर उभरेंगे. लेकिन, ये अंदाज़ा भी लगाया जा रहा है कि नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करने से दूर रहेगी और फिर उसे उसी तरह की गठबंधन सरकार बनानी होगी, जो उस गठबंधन सरकार से कुछ ख़ास अलग नहीं होगी, जिसने अप्रैल 2022 में इमरान ख़ान की हुकूमत की जगह ली थी. गठबंधन के साझीदारों के ज़रिए पर्दे के पीछे से फ़ौज इस नई हुकूमत को कठपुतली की तरह चलाएगी और सरकार में शामिल सारे दल फौज के रहम--करम पर चलेंगे. बहुत सावधानी से तैयार की गई इस राजनीतिक योजना में एक ही दिक़्क़त है कि अगर नवाज़ शरीफ़ अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब रहते हैं, या फिर अगर इमरान ख़ान की पार्टी, फौजी तंत्र और उसके सियासी साझीदारों के तय किए गए इस सियासी समीकरण में खलल डालने में कामयाब होती है, तब क्या होगा?

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को फौज का समर्थन हासिल है और पूरी संभावना है कि चुनाव में वो ही विजेता बनकर उभरेंगे. 

पाकिस्तान में आम चुनावों से सियासी स्थिरता आने की संभावना कम ही है. फौज और सियासी दलों के बीच तनाव क़ायम रहने की आशंका है. स्पेशल इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन काउंसिल (SIFC) के गठन के ज़रिए पाकिस्तानी फ़ौज ने ख़ुद को मुल्क के नीति निर्माण से लेकर उन्हें लागू करने तक के हर कोने में घुसा लिया है. इसने किसी असैन्य सरकार के लिए राजनीतिक और नीगितत क्षेत्र के दायरे को सीमित कर दिया है. अगर SIFC, उम्मीद के मुताबिक़ काम करती है, तो इससे चुनी हुई सरकार महज़ रबर स्टैंप बनकर रह जाएगी; वहीं अगर इस परिषद को बेकार कर दिया जाता है, तो इससे फौज और असैन्य सरकार के रिश्तों में कड़वाहट जाएगी. नवाज़ शरीफ़ तो ख़ास तौर से फौज के दबदबे को नापसंद करते रहे हैं और वो सेना के आर्थिक मामलों में दखल देने और उनकी विदेश नीति की पहलों को कमज़ोर करने का विरोध करेंगे. अगर फौज और असैन्य सरकार के रिश्ते ख़राब होते हैं, तो गठबंधन के साझीदार, फौज का इशारा पाते ही अपनी मांगें बढ़ाकर नवाज़ शरीफ़ के लिए हुकूमत चलाना दुश्वार कर देंगे और उनकी सरकार को अस्थिर बना देंगे. वैसे भी आने वाली सरकार के जनादेश पर सवालिया निशान लगते रहेंगे, क्योंकि इमरान ख़ान और उनकी पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ (PTI) पार्टी को चुनाव में बराबर का मौक़ा नहीं दिया जाने वाला है. ऐसे में ज़ाहिर है कि तहरीक--इंसाफ़ भी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करती रहेगी.

आर्थिक चुनौतियां

हाल के हफ़्तों में आर्थिक आंकड़ों में थोड़ा उछाल भले आया हो, मगर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 2024 में संकटों से घिरी रहने वाली है. GDP विकास दर महज़ 2 प्रतिशत रहने की संभावना है, भले ही उसकी आबादी की विकास दर 2.55 फ़ीसद रहने का अंदाज़ा लगाया गया है. महंगाई दर 20 प्रतिशत से ऊपर ही रहेगी और 2024 के अंत तक डॉलर के मुक़ाबले पाकिस्तानी रुपए का मूल्य गिरकर 350 PKR पहुंचने की आशंका है. पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ लौटाने का जितना बोझ है, उसे देखते हुए आने वाले साल में भी भुगतान का संकट बने रहने की आशंका है. जिस तरह सरकार चलाने के लिए उधार पर उधार लिया जा रहा है, उससे पाकिस्तान की क़र्ज़ की समस्या के बेक़ाबू होने का ही डर है. वित्तीय हालात नाज़ुक ही बने रहेंगे क्योंकि पाकिस्तान की संघीय सरकार की आमदनी इतनी नहीं होगी कि वो पुराने क़र्ज़ों को चुका सके. पाकिस्तान, क़र्ज़ को इधर उधर करके, लौटाने में रियायतें हासिल करके और राहत का जुगाड़ करके कुछ फ़ायदा उठाने की कोशिशें ज़रूर करेगा. जब तक कोई ऐसा बड़ा भू-राजनीतिक बदलाव नहीं आता, जिसका फ़ायदा उठाकर पाकिस्तान अपनी क़ीमत पर वैश्विक ताक़तों से कुछ लाभ ले सके, तब तक उसकी मदद के लिए कोई बड़े राहत पैकेज मिलने की उम्मीद कम ही है. पाकिस्तान, अपने ख़ज़ाने के घाटे को कम करने के लिए कुछ सरकारी कंपनियों को बेचकर कुच पैसे जुटाने की पुरज़ोर कोशिश ज़रूर करेगा. लेकिन, ये पूरी तरह फटे हुए टाट में आधा अधूरा पैबंद लगाने जैसा ही होगा.

 हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में जिस तरह सरकार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी से जल्दी बहाल करने को कहा गया है, उससे पाकिस्तान को अपनी इज़्ज़त बचाने का रास्ता मिल सकता है, वो भी तब अगर वो चाहेगा तो. 

पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ और व्यावहारिक बनाने के लिए बड़े संरचनात्मक सुधार करने होंगे. लेकिन, ऐसे सुधारों की जो राजनीतिक और प्रशासनिक क़ीमत चुकानी होगी, उसे अदा करने के लिए कोई तैयार नहीं है. नई सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 24वीं बार सहायता लेने के लिए समझौता करना होगा. मदद के बदले में IMF कुछ कड़ी मगर ज़रूरी शर्तें रखेगा, जिससे पाकिस्तान की पहले से ख़राब चली रही माली हालत और बिगड़ेगी. लेकिन, चहुंमुखी आर्थिक सुधारों की उम्मीद दिख नहीं रही है. ज़्यादा से ज़्यादा ये होगा कि कुछ अधकचरे सुधार लागू किए जाएंगे, यहां वहां काट-छांट की जाएगी, ताकि IMF की मांगों और राजनीतिक मजबूरियों के बीच संतुलन साधा जा सके. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और क़तर से कुछ निवेश होने की उम्मीदें दिख रही हैं. लेकिन, ये देश वाक़ई में पाकिस्तान में निवेश करेंगे, और वो निवेश किस तरह का, किस क्षेत्र या फिर किन शर्तों पर होगा, इन्हें लेकर बड़ा सवालिया निशान लगा रहेगा. किसी भी सूरत में निवेश की ये संभावनाएं पाकिस्तान की आर्थिक बीमारी का कोई इलाज नहीं हैं. काफ़ी कुछ तो इस बात पर भी निर्भर करेगा कि पाकिस्तान की अगली सरकार में अर्थव्यवस्था की बागडोर किसके हाथ में होगी. इस बात को लेकर वास्तविक चिंताएं हैं कि अगर आर्थिक नीतियों को सीधे तौर पर या पर्दे के पीछे से नवाज़ शरीफ़ के रिश्तेदार और ख़ुद को गर्व से जादुई अर्थशास्त्री कहने वाले इसहाक़ डार ही चलाएंगे, तब तो अर्थव्यवस्था का गर्त में जाना तय है. और हां, अगर कोई बड़ा विदेशी या अंदरूनी झटका लगा, तो इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डूब सकती है.

उल्टा पड़ता जिहादी दांव

2024 में आतंकवाद का ख़तरा पाकिस्तान में कैंसर की तरह फैलता रहेगा. पाकिस्तान के जो जिहादी सामरिक हथियार थे, वो अब उसके ही ख़िलाफ़ हो गए हैं. ऐसे में 2024 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों की तादाद और उनकी शिद्दत दोनों ही बढ़ने की डराने वाली आशंका दिख रही है. पाकिस्तान को इन जिहादी हमलों की नई लहर से निपटने के लिए कुछ मुश्किल विकल्पों का चुनाव करना होगा, क्योंकि अब उसे इनकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है. अफ़ग़ान तालिबान, पाकिस्तान से सीधा सैन्य टकराव लेने से बचेंगे. मगर, वो तहरीक़--तालिबान पाकिस्तान (TTP) और उससे जुड़े संगठनों को अपने यहां से उखाड़ फेंकने की पाकिस्तान की मांग पूरी करेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है. पाकिस्तान तो बहुत चाह रहा है कि वो TTP पर सीमा पार जाकर हमले करके इस जिहादी जंग को अफ़ग़ानिस्तान तक ले जाए. लेकिन, इससे तालिबान को पाकिस्तान पर पलटवार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. आप इसे जिस नज़र से भी देखें, पाकिस्तान को जिहादियों के साथ दबदबे की जंग लड़नी ही पड़ेगी. ये ऐसा युद्ध है जिसकी भारी आर्थिक क़ीमत चुकानी होगी. निवेशकों का भरोसा टूटेगा. पहले से लगभग ख़ाली खज़ाने पर बोझ बढ़ेगा और कनेक्टिविटी का क्षेत्रीय केंद्र बनने का ख़्वाब भी चूर-चूर हो जाएगा.

भारत के साथ रिश्ते सुधरेंगे?

चूंकि भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों में आने वाले साल के मध्य तक चुनाव हो चुके होंगे. तो, ये उम्मीद लगाई जा रही है कि भारत के साथ संवाद के लिए नए सिरे से प्रयास किए जाएंगे. निश्चित रूप से पाकिस्तान को अपने उस रुख़ से पीछे हटना होगा कि जब तक भारत, जम्मू और कश्मीर में किए गए संवैधानिक सुधारों को वापस नहीं लेता, तब तक कोई बातचीत नहीं हो सकती. लेकिन, हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में जिस तरह सरकार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी से जल्दी बहाल करने को कहा गया है, उससे पाकिस्तान को अपनी इज़्ज़त बचाने का रास्ता मिल सकता है, वो भी तब अगर वो चाहेगा तो. बात शुरू करने के लिए पाकिस्तान को भारत के साथ पूरे कूटनीतिक संबंध बहाल करने होंगे. दोनों देशों के लिए आपस में बातचीत करने के पीछे अपने अपने कारण हैं: इस वक़्त पाकिस्तान अपनी पश्चिमी सीमा पर जिहादी ताक़तों से जंग लड़ रहा है. ऐसे में वो नहीं चाहेगा कि पूरब में भी उसके लिए एक मोर्चा खुले. वहीं भारत चूंकि अपनी उत्तरी और पूर्वी सीमा पर आक्रामक हो रहे चीन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, तो वो पश्चिमी मोर्चे को शांत रखना चाहेगा. अगर दोनों देशों के बीच संवाद दोबारा शुरू होता है, तो जो ज़्यादा से ज़्यादा उम्मीद लगाई जा सकती है, वो ये है कि दोनों देशों के बीच व्यापार फिर से शुरू हो सकता है. भारत, पाकिस्तान के उत्पादों पर लगाए गए भारी व्यापार कर को हटा लेगा वहीं, पाकिस्तान को भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा देना होगा. दोनों ही मोर्चों पर राजनीतिक और पर्दे के पीछे होने वाली बातचीत भी दोबारा शुरू हो सकती है. लेकिन, अगर पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मसले को बातचीत शुरू करने की शर्त बनाएगा, तो कूटनीतिक तनातनी बनी रहेगी.

निष्कर्ष

2024 को लेकर पाकिस्तान में कोई ख़ास उम्मीद नहीं दिखती. बल्कि पिछले कुछ वर्षों के मुक़ाबले ये ज़्यादा मुश्किल साल रहने वाला है या यूं कहें कि एक साथ कई मोर्चों पर बात आर या पार की रहने वाली है. पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों के बीच कुछ संतुलन साधने की कोशिश ज़रूर करेगा. लेकिन, अगर अमेरिका और चीन के संबंध तनावपूर्ण रहते हैं, तो उसके लिए ये काम भी आसान नहीं रहने वाला है. चीन, पाकिस्तान के साथ अपने सामरिक और राजनीतिक रिश्तों को और गहराई देना जारी रखेगा. लेकिन, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, पाकिस्तान के दिवालियेपन के संकट की वजह से अटका रहेगा, क्योंकि इसने चीन के निवेशों के टिकाऊ और उपयोगी बने रहने पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते तो बने रहेंगे, लेकिन इनमें ज़ोर सुरक्षा पर ही ज़्यादा होगा. मध्य पूर्व में पाकिस्तान को उम्मीद है कि अरब देश उसकी माली हालत सुधारने में कुछ मदद करेंगे. लेकिन, वहां से अरबों डॉलर का निवेश होगा, ये उम्मीद लगाना बेमानी है. कुल मिलाकर, 2024 में पाकिस्तान के लिए जश्न मनाने के लिए कुछ ख़ास नहीं होगा.

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