Author : Sushant Sareen

Published on Jul 24, 2023 Updated 0 Hours ago

IMF के साथ स्टैंड-बाय समझौते ने पाकिस्तान को फिलहाल दिवालिया होने से बचा लिया है. मगर ये राहत अस्थायी है, अनंत काल के लिए नहीं.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ‘स्टैंड बाय’ मोड़ पर: आर्थिक स्थिरता या अस्थायी राहत?

ये लेख हमारी सीरीज़,पाकिस्तान:दि अनरैवेलिंग का एक हिस्सा है.


पाकिस्तान सरकार और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के बीच तीन अरब डॉलर के स्टैंड बाय समझौते (SBA) को बहुत बड़ी उपलब्धि बताकर पाकिस्तान में इसका जश्न मनाया जा रहा है. हालांकि, अभी ये साफ़ नहीं है कि ये समझौता (SBA) IMF की तरफ़ से पाकिस्तान को की शहबाज़ शरीफ़ की अगुवाई वाली हाइब्रिड 2.0 सरकार को दिया गया ईद का तोहफ़ा है, या फिर उसे बलि का बकरा बनाया गया है. ये समझौता अपने आप में इस बात का सबूत है कि IMF का एनहैंस्ड फंडिंग फैसिलिटी (EFF) कार्यक्रम नाकामी के साथ ख़त्म हो गया है. तो अब EFF को बचाने के बजाय, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने नौ महीने का स्टैंड बाय समझौता किया है, जो पाकिस्तान का 23वां IMF कार्यक्रम है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को देखते हुए, इस बात की पूरी संभावना है कि अगले साल वो IMF के 24वें कार्यक्रम में शामिल होगा. एक तरह से ये पाकिस्तान में ज़रूरी सुधार करा पाने में ख़ुद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की नाकामी का सबूत है; वहीं दूसरी तरफ़ ये इस बात की भी मिसाल है कि पाकिस्तान किस तरह से वार्ता करता है: हालात को ऐसे कगार पर ले जाओ जहां, कोई अच्छा तो कुछ बुरा वाले हालात बन जाएं, और अगर कोई दांव काम नहीं करता, तो अपने घुटनों पर आ जाओ, सारी शर्तें मान लो और फिर जो कुछ मिले वो लेकर अगले मौक़े का इंतज़ार करो.

हालात को ऐसे कगार पर ले जाओ जहां, कोई अच्छा तो कुछ बुरा वाले हालात बन जाएं, और अगर कोई दांव काम नहीं करता, तो अपने घुटनों पर आ जाओ, सारी शर्तें मान लो और फिर जो कुछ मिले वो लेकर अगले मौक़े का इंतज़ार करो.

राहत अस्थायी

इस स्टैंड बाय समझौते से एक बात तो हुई है कि पाकिस्तान के अपने विदेशी क़र्ज़ समय पर चुकाने में नाकाम रहने का ख़तरा टल गया है. लेकिन, ये राहत अस्थायी है, अनंतकाल के लिए नहीं. हो सकता है कि पाकिस्तान ने फ़िलहाल दिवालिया होने के ख़तरे को कुछ वक़्त के लिए टाल दिया है. लेकिन, उसे ये रियायत आसान शर्तों पर नहीं हासिल हुई है. शहबाज़ सरकार को संशोधित बजट के ज़रिए पहले 215 अरब पाकिस्तानी रुपए (PKR) के अतिरिक्त टैक्स लगाने पड़े हैं, जिसे अवामी असेंबली ने पारित कर दिया है. इसी तरह, स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान ने नीतिगत ब्याज दर में भी एक फ़ीसद का इज़ाफ़ा करते हुए इसे 22 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है. हैरानी की बात ये है कि वैसे तो ब्याज दर केवल एक प्रतिशत बढ़ाई गई है. मगर, इस साल पाकिस्तान को जो क़र्ज़ चुकाने हैं, उनकी रक़म जस की तस है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़, ब्याज दर में एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी से क़र्ज़ के बोझ में 200 से 225 अरब पाकिस्तानी रुपए का इज़ाफ़ा हो गया है. अब चूंकि महंगाई की दर नीचे नहीं आ रही है, तो स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान (SBP) को ब्याज दर और बढ़ानी पड़ सकती है, ताकि IMF के कार्यक्रम बिना किसी बाधा के चलते रहें. 

लेकिन, पाकिस्तान के लिए बुरी ख़बरें और भी हैं. IMF बिजली की दरें बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है. ख़बरों के मुताबिक़ पाकिस्तान को बिजली की दरों को 24 से 32 रुपए यानी क़रीब आठ रुपए प्रति यूनिट बढ़ाना होगा. इसमें दूसरे चार्ज, सरचार्ज, चुंगियों और करों को जोड़ लें तो बिजली भयंकर रूप से महंगी हो जाएगी. मगर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष बिजली की दरें बढ़ाने पर अड़ा हुआ है, क्योंकि पाकिस्तान में सर्कुलर क़र्ज़ 2.6 ख़रब रुपए के नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त स्तर तक पहुंच जाने से बिजली का अर्थशास्त्र बिल्कुल भी टिकाऊ नहीं रह गया है. बिजली की दरों के अलावा, पाकिस्तान को पेट्रोलियम पर भी क़रीब 10 पाकिस्तानी रुपए प्रति लीटर टैक्स बढ़ाना होगा. साफ़ है कि इस बढ़े हुए बोझ को पाकिस्तानी समाज के ग़रीब तबक़ों और वेतनभोगी वर्ग को ज़्यादा उठाना पड़ेगा. हां, पाकिस्तान के अमीरों पर इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है.

वित्त मंत्री इसहाक़ डार के भविष्य पर सवालिया निशान ज़रूर लगा रहेगा.

अब ये कहने की ज़रूरत नहीं है कि स्टैंड बाय समझौते से पाकिस्तान की मुसीबतों का अंत नहीं होने वाला है. एक जुलाई से शुरू हुए वित्त वर्ष में पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचने के लिए 32 अरब डॉलर की रक़म चाहिए होगी. इसमें से 25 अरब डॉलर तो क़र्ज़ लौटाने के लिए चाहिए और लगभग 7 अरब डॉलर, चालू खाते का घाटा पूरा करने के लिए चाहिए. IMF के साथ हुए समझौते से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय देनदारों से पाकिस्तान को कुछ और रक़म मिलने का रास्ता खुल गया है. लेकिन, पाकिस्तान के आर्थिक हालात नाज़ुक बने रहेंगे. ये लगभग तय है कि अगले साल पाकिस्तान को IMF के साथ एक और लंबे कार्यक्रम का समझौता करना ही होगा. उस कार्यक्रम की शर्तें, पिछले कार्यक्रम से भी सख़्त होने की पूरी संभावना है.

SBA को बड़ी उपलब्धि के तौर पर भुनाएंगे शहबाज़ शरीफ़ 

सियासी तौर पर SBA को शहबाज़ शरीफ़ की सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर भुनाएगी और कहेगी कि उसने मुल्क को दिवालिया होने से बचा लिया. वैसे तो ये सच है कि स्टैंड बाय समझौते की की क़ीमत, पाकिस्तान के दिवालिया हो जाने की तुलना में बहुत कम है. लेकिन, पाकिस्तान के अवाम के बीच ये तर्क काम नहीं आने वाला है, ख़ास तौर से जब ये पाकिस्तान का चुनावी साल है. फिर भी, चूंकि इमरान ख़ान के तौर पर मौजूद विपक्ष को सियासी अखाड़े से लगभग निकाल बाहर किया गया है, इसलिए मौजूदा हुकूमत का सत्ता में लौटना लगभग तय है. हालांकि, पाकिस्तान की अगली सरकार का चेहरा और स्वरूप चाहे अलग होंगे, मगर ये काफ़ी हद तक मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन जैसा ही होगा और शायद इसमें कुछ और साझीदार जुड़ जाएं (जैसे कि वो लोग जिन्होंने इमरान ख़ान से अलग होकर एक नई पार्टी बना ली है).

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ आख़िरी मौके पर हुए समझौते ने शायद पाकिस्तानी फौज के मजबूरी में सत्ता की कमान अपने हाथ में लेने और शहबाज़ शरीफ़ जैसे मोहरों के ज़रिए हुकूमत करने के बजाय, सीधे राज चलाने की आशंका को दूर कर दिया है. हालांकि, वित्त मंत्री इसहाक़ डार के भविष्य पर सवालिया निशान ज़रूर लगा रहेगा, क्योंकि उन्होंने अपने अक्खड़ रवैये, अनाप-शनाप आर्थिक नीतियों, जैसे कि रुपए को बनावटी तरीक़े से बढ़ा चढ़ाकर और सबसे लड़ने भिड़ने की अपनी आदत से हालात इतने ख़राब बना दिए, और मुल्क को दिवालिया होने के कगार पर पहुंचा दिया. भले ही वो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के नज़दीकी रिश्तेदार ही क्यों न हों, अगर अगली ‘चुनी हुई सरकार’ में उनको फिर से वित्त मंत्री बनाया जाता है, तो ये हैरानी वाली बात ही होगी.

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