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ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं के इस्तेमाल में परिपक्वता का सुबूत पेश किया है. इस सफलता को दूरगामी अवधि में आत्मनिर्भरता में तब्दील करने के लिए लगातार फंडिंग, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संस्थागत सुधारों की आवश्यकता होगी.
Image Source: Getty
पहलगाम के आतंकी हमले का बदला लेने और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति भारत की दबंग स्थिति को दोबारा स्थापित करने के लिए 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया गया था. ये ऑपरेशन भारत के रक्षा उद्योग के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार, भारत में बने रक्षा उपकरणों ने आक्रामक और रक्षात्मक दोनों ही तरह के अभियानों में बड़ी अहम भूमिका अदा की. वैसे तो ब्रह्मोस और स्काई स्ट्राइकर जैसे घातक हथियारों ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और सैन्य अड्डों को नष्ट कर दिया. वहीं, इंटीग्रेटेड एयर कॉम्बैट ऐंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS), आकाशतीर, आकाश और ड्रोन डिकेक्ट, डेटर ऐंक डेस्ट्रॉय (D4) जैसे रक्षात्मक उपकरणों ने भारत की धरती और आसामान को पाकिस्तान के मिसाइलों और ड्रोन हमलों से सुरक्षित बनाने में अपनी ताक़त को साबित किया.
स्वदेश में ही डिज़ाइन और निर्मित किए गए इन हथियारों के प्रभावशाली प्रदर्शन ने भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को वो आत्मविश्वास दिया है, जिसकी उसे सख़्त ज़रूरत थी और जो पहले मौजूद नहीं था. अपने उत्पादन के आकार, दायरे और विस्तार के बावजूद, पहले के दौर में भारत के रक्षा उद्योग को विदेशी हथियारों के साये तले संचालन करना पड़ता था. यहां ये बात समझनी होगी कि आयातित हथियारों जैसे कि रफ़ाल या फिर उससे जुड़े हथियारों के पैकेज (मीटियोर और SCALP मिसाइलें और हैमर बम) या फिर S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ने ऑपरेशन सिंदूर में बहुत अहम भूमिका अदा की थी. लेकिन, स्वदेशी हथियारों और सिस्टम ने काफ़ी नाम कमाया. 12 मई को राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े गर्व से इस उपलब्धि का बखान किया था.
भारत में बने हथियारों की इस सफलता के लिए तमाम सरकारों द्वारा कई दशकों तक घरेलू हथियार उत्पादन क्षमता के निर्माण और उनको पालने पोसने को श्रेय दिया जा सकता है, ताकि सैन्य बलों की लगातार बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके.
भारत में बने हथियारों की इस सफलता के लिए तमाम सरकारों द्वारा कई दशकों तक घरेलू हथियार उत्पादन क्षमता के निर्माण और उनको पालने पोसने को श्रेय दिया जा सकता है, ताकि सैन्य बलों की लगातार बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके. 2014 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए मेक इन इंडिया अभियान ने इस अहम सेक्टर को बहुत प्रोत्साहन दिया है, ख़ास तौर से निजी कंपनियों को भी इस मुहिम से जोड़ा है और अब ये कंपनियां भारत के हथियार उत्पादन के सेक्टर का अहम हिस्सा बन गई हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा के इस अहम तत्व को बरसों से पालने-पोसने का परिणाम इस बात के तौर पर देखा जा सकता है कि भारत का हथियारों का उत्पादन और निर्यात किस तरह लगातार बढ़ रहा है. भारत का रक्षा उत्पादन जो 2016-17 में 74, 054 करोड़ रुपए था वो लगभग दोगुना होकर 2024-25 में 1,46,000 करोड़ रुपए पहुंच गया है. इस उत्पादन में से लगभग 32,000 करोड़ रूपए (22 प्रतिशत) का योगदान निजी क्षेत्र ने दिया है. भारत की निजी कंपनियों के लिए ये कोई मामूली उपलब्धि नहीं है. क्योंकि, अभी ज़्यादा पुरानी बात नहीं इस सदी की शुरुआत तक भी निजी क्षेत्र को हथियार बनाने की इजाज़त नहीं थी.
उत्पादन बढ़ाने के साथ साथ भारत का रक्षा उद्योग अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी पैठ बना रहा है. 2016-17 में देश का रक्षा निर्यात जहां केवल 1522 करोड़ रुपए था, वो 2024-25 में 16 गुना बढ़कर 23,622 करोड़ पहुंच गया है. जैसा कि रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने हाल ही में कहा भी कि, ‘भारत की लगभग 100 कंपनियां आज 100 से ज़्यादा देशों को निर्यात कर रही हैं.’ भारत के रक्षा निर्यात में अब तमाम तरह के हथियार और प्लेटफॉर्म हैं. इनमें ब्रह्मोस, पिनाक रॉकेट लॉन्चर, डोर्नियर विमान, बख़्तरबंद वाहन, समुद्र में गश्त लगाने वाली नौकाएं, तोपें और गोला बारूद शामिल हैं.
अगर ये आंकड़े और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चार दिनों में भारत की सैन्य क्षमता के प्रदर्शन को जोड़कर देखा जाए, तो ये कहा जा सकता है कि भारत का रक्षा उद्योग अब परवान चढ़ गया है. फिर भी, ये उपलब्धियां और समय सुस्ताने के लिए नहीं हैं. भारत सरकार और देश के रक्षा तंत्र को आगे चलकर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. क्योंकि भारत के दुश्मन बहुत तेज़ रफ़्तार से अपनी क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहे हैं और अपने ज़ख़ीरे में लगातार नई और उभरती हुई तकनीकों को शामिल कर रहे हैं.
भारत सरकार और देश के रक्षा तंत्र को आगे चलकर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. क्योंकि भारत के दुश्मन बहुत तेज़ रफ़्तार से अपनी क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहे हैं और अपने ज़ख़ीरे में लगातार नई और उभरती हुई तकनीकों को शामिल कर रहे हैं.
अपनी ओर से भारत भी अपनी रक्षा शक्ति का आधुनिकीकरण कर रहा है और इसके लिए स्वदेशी विकास और उत्पादन पर ज़ोर भी बढ़ता जा रहा है. रक्षा ख़रीद के नियमों में नियमित रूप से सुधार हो रहा है. हाल ही में रक्षा मंत्री ने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के प्रोटोटाइप को लागू करने के मॉडल को मंज़ूरी दी है. इसके अलावा, DRDO-BEL को S-400 की तरह के मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम का विकास करने को हरी झंडी दी गई है. यही नहीं, कई और परियोजनाओं पर भी काम चल रहा है जो विकास और उत्पादन के अलग अलग स्तर पर हैं. ये सही दिशा में उठाए गए अहम क़दम हैं.
हालांकि, इन क़दमों को मज़बूती देने के लिए पर्याप्त संसाधनों और मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है, जो हथियार उत्पादन के बड़े कार्यक्रम को प्रेरणा देने का काम करे. बहुत लंबे समय से भारत का रक्षा स्वदेशीकरण का कार्यक्रम संसाधनों की कमी और विशेष रूप से रिसर्च और विकास (R&D) के सेक्टर में अभावों से जूझता रहा है. DRDO के मुताबिक़ भारत का रक्षा और विकास का बजट, रक्षा मंत्रालय के कुल बजट के 4 फ़ीसद से भी कम है. वहीं ख़ुद रक्षा बजट भी 2025-26 के बजट में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के दो प्रतिशत से भी कम है. एक छोटे से रक्षा बजट में R&D की मामूली सी रक़म का मतलब है अहम परियोजनाओं के पास संसाधन की कमी है.
रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को तेज़ी देने के लिए मध्यम अवधि में रक्षा बजट को GDP का कम से कम 2.5 प्रतिशत करने और बाद में उसको 3 प्रतिशत तक ले जाने की आवश्यकता है. इसी तरह रिसर्च और विकास के बजट को भी मौजूदा स्तर से कम से कम दोगुना किया जाना चाहिए. ऐसा करने के साथ साथ डिफेंस सेक्टर के R&D बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र को आवंटित किया जाना चाहिए, जिसका एलान वित्त मंत्री ने अपने 2022-23 के बजट में किया था. इससे रक्षा उद्योग से जुड़ी स्टार्ट-अप और छोटे एवं मध्यम दर्जे की कंपनियों को ज़रूरी प्रोत्साहन मिलेगा और रक्षा उद्योग के इनोवेशन कर पाने की क्षमता का दोहन हो सकेगा.
भारत के स्वदेशीकरण के प्रयासों को तेज़ी देने के लिए घरेलू रिसर्च और विकास परियोजनाओं के प्रति ज़्यादा राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी. ख़ास तौर से उन परियोजनाओं को जो अहम रक्षा तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भरता के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं.
भारत के स्वदेशीकरण के प्रयासों को तेज़ी देने के लिए घरेलू रिसर्च और विकास परियोजनाओं के प्रति ज़्यादा राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी. ख़ास तौर से उन परियोजनाओं को जो अहम रक्षा तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भरता के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं. मेक इन इंडिया की पहल निश्चित रूप से रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के प्रति अधिक राजनीतिक प्रतिबद्धता को ही दर्शाता है. इसको संस्थागत बनाने की ज़रूरत है. इसके लिए सरकार को तमाम भागीदारों के साथ सलाह मशविरे के बाद रिसर्च और विकास के ऐसे चुनिंदा कार्यक्रमों की सूची तैयार करने की ज़रूत है, जिनकी निगरानी और मार्गदर्शन प्रधानमंत्री के स्तर पर किया जा सके. इस लिस्ट में जिन कार्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिए उनमें AMCA, स्टेल्थ एयरक्राफ्ट बनाने के लिए नई पीढ़ी के इंजन का विकास, हाइपरसोनिक मिसाइलें, लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और लंबी दूरी के लड़ाकू और निगरानी ड्रोन शामिल हैं.
इससे पहले प्रधानमंत्री के स्तर पर नज़र रखने के बहुत शानदार परिणाम देखने को मिले हैं. ये बात भारत के अंतरिक्ष और परमाणु पनडुब्बी के कार्यक्रमों से साबित होती है. इसी तरह रक्षा के स्वदेशीकरण के लिए मिशन केंद्रित कार्यक्रम भी चलाए जाने चाहिए, जिनकी निगरानी सीधे प्रधानमंत्री करें. इससे इन कार्यक्रमों में तेज़ी आएगी. ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की रक्षा औद्योगिक क्षमता को पूरी तरह साबित करके शाबासी बटोरने में मदद की है. कामयाबी के इस लम्हे का इस्तेमाल एक मज़बूत स्वदेशी हथियार उद्योग बनाने के लिए किया जाना चाहिए.
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