Author : Aditi Madan

Published on May 11, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत में झुलसाती गर्मी की मौजूदा स्थिति लोगों की सेहत पर बदलते जलवायु के असर का समाधान करने की ज़रूरत के लिए ख़तरे की घंटी है.

भारत में हीट वेव के असर और उससे राहत की रणनीतियों को समझिए

भारत के कुछ हिस्से इस वक़्त हीट वेव  (झुलसाती गर्मी) का सामना कर रहे हैं जो 2023 में समय से काफ़ी पहले गई है. 18 अप्रैल 2023 को भारत के 60 प्रतिशत हिस्सों या 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सामान्य से ज़्यादा तापमान रिकॉर्ड किया गया. आधिकारिक तौर पर हीट वेव  का ऐलान उस वक़्त किया जाता है जब तापमान सामान्य से कम-से-कम 4.5 डिग्री ज़्यादा होकर मैदानों में न्यूनतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय इलाक़ों में न्यूनतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी इलाक़ों में न्यूनतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

केंद्र और राज्य सरकारों का हीट वेव  को लेकर एक प्रतिक्रिया पर केंद्रित दृष्टिकोण था जबकि जोखिम को कम करने पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता था. राज्य सरकारों को स्थानीय आपदाओं (हीट वेव  को स्थानीय आपदा घोषित किया गया था) का समाधान करने के लिए स्टेट डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स यानी राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) के 10 प्रतिशत का आवंटन करने की मंज़ूरी थी.


वैसे तो हीट वेव  की वजह से भारत में 1992 से 2015 के बीच बड़ी संख्या (कुल मिलाकर 24,223) में लोगों की जान गई है लेकिन झुलसती गर्मी की तरफ़ लोगों का उतना ध्यान नहीं गया है जितना कि दूसरे नाटकीय आपदाओं जैसे कि बाढ़ और भूकंप की तरफ़ गया है. हाल के समय तक हीट वेव  की तरफ़ आपदा के रूप में ध्यान देने की तो राष्ट्रीय स्तर की रणनीति थी, ही नज़रिया. 2015 से पहले हीट वेव  की वजह से मौतों और बीमारियों को राष्ट्रीय स्तर पर ख़तरे के रूप में उचित मान्यता नहीं दी गई थी. केंद्र और राज्य सरकारों का हीट वेव  को लेकर एक प्रतिक्रिया पर केंद्रित दृष्टिकोण था जबकि जोखिम को कम करने पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता था. राज्य सरकारों को स्थानीय आपदाओं (हीट वेव  को स्थानीय आपदा घोषित किया गया था) का समाधान करने के लिए स्टेट डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स यानी राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) के 10 प्रतिशत का आवंटन करने की मंज़ूरी थी

भारत उन देशों में से है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित है. भारत जनसंख्या के ज़्यादा घनत्व, पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी और स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच की वजह से ख़ास तौर पर हीट वेव  के असर को लेकर असुरक्षित है. वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन नेटवर्क के एक ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि 2022 में भारत और पाकिस्तान में समय से पहले और असामान्य हीट वेव  जलवायु परिवर्तन के सीधे असर की वजह से 30 गुना ज़्यादा संभव हो पाया. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़ भारत पहले ही हीट वेव  से महत्वपूर्ण तौर पर प्रभावित हो चुका है जिसका नतीजा बिजली की कमी, धूल और वायु प्रदूषण के ज़्यादा स्तर और उत्तरी क्षेत्र में ग्लेशियर के पिघलने में तेज़ी के रूप में सामने आया है

ज़बरदस्त गर्मी के दौरान कुछ ख़ास समूहों के लोग जो कि ज़्यादा असुरक्षित है, जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाएं, धूप में काम करने वाले लोग, लंबे समय से बीमारी का सामना कर रहे लोग, सामाजिक या भौगोलिक रूप से अलग-थलग लोग और कुछ नस्लीय और जातीय उप समूह (ख़ास तौर पर कम सामाजिक-आर्थिक दर्जा वाले), बीमारी और मृत्यु की ज़्यादा दर का अनुभव करते हैं. इस तथ्य का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हीट वेव  के शिकार ज्यादातर लोग असंगठित क्षेत्रों की ग़रीब और असुरक्षित जनसंख्या है. इनमें मज़दूर, स्ट्रीट वेंडर, ईंट के भट्टे पर काम करने वाले, कंस्ट्रक्शन मज़दूर, रिक्शा चलाने वाले, डिलीवरी एग्जीक्यूटिव, गिग वर्कर, इत्यादि शामिल हैं. इन लोगों को अपनी आर्थिक परिस्थितियों और पैसे कमाने की वजह से मजबूर होकर धूप में काम करना पड़ता है. चूंकि वो बाहर रहने से परहेज नहीं कर सकते, इसलिए वो हीट वेव  के ख़तरों को लेकर ख़ास तौर पर असुरक्षित हैं

मिसाल के तौर पर 2022 के मार्च महीने में दिल्ली जिस तरह की हीट वेव  की चपेट में आई थी, उसकी वजह से गर्मी के मौसम के दौरान बहुत से लोगों का रोज़गार अस्त-व्यस्त हो गया. इसके अलावा, ख़बरों के मुताबिक़ 16 अप्रैल 2023 को लू लगने से 13 लोगों की जान चली गई. लंबे समय तक ज़्यादा तापमान में रहने से सिर्फ़ थकावट और लू का सामना करना पड़ता है बल्कि कई तरह की बीमारियां भी बढ़ जाती हैं. अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन 2013 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़ गर्मी से जुड़े स्वास्थ्य के जोखिम उस वक़्त और गंभीर हो जाते हैं जब वायु प्रदूषण, नमी का ज़्यादा स्तर और एयर कंडिशनिंग की अपर्याप्त उपलब्धता जैसी स्थिति रहती है

इसके अलावा कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के द्वारा कराए गए एक अध्ययन से पता चला है कि गर्मी के असर की वजह से देश का 90 प्रतिशत हिस्सा रोज़गार की क्षमता में कमी, फसल के कम उत्पादन, वेक्टर जनित बीमारियों के फैलाव में बढ़ोतरी और शहरी निरंतरता (अर्बन सस्टेनेबिलिटी) में ख़राबी का आसानी से अनुभव कर सकता है. हीट वेव  की वजह से कम समय के लिए ज़्यादा आबादी पर घातक असर पड़ सकता है. इसकी वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आपातकाल की नौबत सकती है, ज़्यादा लोगों की मौत हो सकती है और सामाजिक-आर्थिक असर के मामले में डोमिनो प्रभाव (एक घटना की वजह से दूसरी घटना) पड़ सकता है यानी काम की क्षमता और श्रम की उत्पादकता में कमी. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 1995 में गर्मी के कारण थकान की वजह से लगभग 4.3 प्रतिशत कामकाजी घंटे के नुक़सान को झेला और 2030 तक ये नुक़सान बढ़कर 5.8 प्रतिशत होने की आशंका है

एक अध्ययन के मुताबिक़ गर्मी से जुड़े स्वास्थ्य के जोखिम उस वक़्त और गंभीर हो जाते हैं जब वायु प्रदूषण, नमी का ज़्यादा स्तर और एयर कंडिशनिंग की अपर्याप्त उपलब्धता जैसी स्थिति रहती है.

हटवानी-कोवाक्स (2016) के एक रिसर्च लेख के मुताबिक़ हीट वेव  के नकारात्मक असर पर केंद्रित अध्ययनों ने मुख्य रूप से स्वास्थ्य से जुड़े नतीजों पर ध्यान दिया है, इसकी तुलना में कुछ ही अध्ययनों ने बिजली और पानी की मांग पर हीट वेव  के असर को लेकर छानबीन की है. हीट वेव  के दौरान एयर कंडीशनर का इस्तेमाल बिजली की मांग में काफ़ी बढ़ोतरी कर सकता है जिसकी वजह से बिजली गुल हो सकती है. साथ ही बिजली की बढ़ती क़ीमत लोगों की मुश्किलों में बढ़ोतरी कर सकती है, लोग पर्याप्त ढंग से अपने घरों को गरम या ठंडा रखने का बोझ नहीं उठा पाएंगे. इसके अलावा एयर कंडीशनर का व्यापक इस्तेमाल अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट के असर को बिगाड़ सकता है और इस बात की चिंता है कि एयर कंडीशनर पर निर्भरता की आदत लग सकती है. इसके अलावा, हीट वेव  के दौरान ज़रूरत से ज़्यादा पानी के इस्तेमाल से शहरों में पानी की क़िल्लत की समस्या में बढ़ोतरी हो सकती है, ख़ास तौर पर उन शहरों में जहां पहले से ही जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी के प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियां हैं

राहत के उपाय 

हीट वेव  के संभावित असर को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने इसकी गंभीरता को कम करने के लिए कई उपाय किए हैं. उदाहरण के लिए, नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) ने राज्य सरकारों और दूसरे भागीदारों को हीट वेव  से निपटने की योजना को विकसित करने के लिए नेशनल गाइड लाइन ऑन हीट वेव  मैनेजमेंट (हीट वेव  प्रबंधन पर राष्ट्रीय गाइडलाइन) तैयार की है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हीट वेव  के दौरान तैयारी और जवाबी उपाय की ज़रूरत को लेकर सलाह (एडवाइज़री) जारी की है. सरकार ने कुछ शहरों में एक हीट हेल्थ एक्शन प्लान (HHAP) की भी शुरुआत की है जबकि श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया है कि वो आने वाले समय में हीट वेव  की स्थिति को देखते हुए अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों और कामगारों के लिए तैयारी और असरदार ढंग से निपटने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए. उदाहरण के लिए, केंद्र ने एक एडवाइज़री जारी कर अलग-अलग क्षेत्रों में मज़दूरों और कामगारों के लिए कामकाज का समय बदलने को कहा. ये उपाय लोगों की सेहत पर हीट वेव  के असर को कम करने और जलवायु परिवर्तन के ख़राब असर से निपटने के लिए लोगों को तैयार करने के मक़सद से अहम हैं

सिर्फ़ सरकार ही क़दम नहीं उठा रही है. भारत के लोगों ने भी अपने ऊपर बढ़ते हीट वेव  के असर को कम करने के लिए हाल के दिनों में जीवनशैली में बदलाव के रूप में कुछ तौर-तरीक़े अपनाए हैं. उदाहरण के लिए, भारत में बहुत से लोग अब ठंडा और आरामदेह रहने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण जैसे कि पंखे और एयर कंडीशनर लगा रहे हैं. हीट वेव  के दौरान बार-बार बिजली गुल होने की वजह से ऐसा करना ज़रूर हो गया है. इसके अलावा कुछ लोग गर्मी प्रतिरोधी (हीट रेसिस्टेंट) बिल्डिंग मैटेरियल जैसे कि ठंडी छत और थर्मल इन्सुलेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि घरों के भीतर के तापमान को कम किया जा सके. पेड़-पौधे छांव मुहैया करा सकते हैं और अपने इर्द-गिर्द की हवा को ठंडा रखने में मदद कर सकते हैं. भारत में कुछ लोग अपने आस-पास ज़्यादा पेड़-पौधे लगा रहे हैं ताकि ज़्यादा ठंडा और ख़ुशनुमा वातावरण बनाया जा सके. भारत में कुछ शहरों ने हीट वेव  के दौरान पब्लिक कूलिंग सेंटर स्थापित किए हैं जहां जाकर लोग ख़ुद को ठंडा कर सकते हैं और गर्मी से जुड़ी बीमारियों से बच सकते हैं. कामकाज की कुछ जगहों पर कंपनियां दिन के सबसे गर्म हिस्से से परहेज करने के लिए जल्दी काम शुरू करके काम-काज के समय में बदलाव कर रही हैं

भारत में हीट वेव  की मौजूदा स्थिति लोगों की सेहत पर बदलते जलवायु के असर का समाधान करने की ज़रूरत के लिए एक ख़तरे की घंटी है. बार-बार हीट वेव  आना और उसकी गंभीरता सबसे असुरक्षित आबादी के लिए महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी करती है और सरकार एवं आवश्यक हिस्सेदारों के लिए ये महत्वपूर्ण है कि हीट वेव  के असर को कम करने के लिए तैयारी की दिशा में कार्रवाई करें. एक महत्वपूर्ण रणनीति है हीट वेव  के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (पहले चेतावनी देने की प्रणाली) में सुधार करना क्योंकि इससे लोगों को रोकथाम के उपाय करने में मदद मिल सकती है जैसे कि अधिक पानी पीना और दिन के सबसे गर्म समय के दौरान बाहर की गतिविधियों से परहेज करना. इसके अलावा विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) के एक लेख के मुताबिक़ सरकार को हीट वेव  के दौरान राहत मुहैया कराने के लिए अधिक कूलिंग शेल्टर (यानी ठंडे आश्रय स्थल) और ग्रीन स्पेस (हरी-भरी जगह) बनाने पर निवेश करना चाहिए. ये शहरी क्षेत्रों में ख़ास तौर पर होने चाहिए. हीट वेव  से जोखिम और और ऐसे समय के दौरान सुरक्षित रहने के उपायों को लेकर जागरूकता अभियान ज़रूरी है. इन उपायों में जीवनशैली में बदलाव को बढ़ावा देना जैसे कि हल्के रंग के, ढीले-ढाले कपड़ों का इस्तेमाल, तरल पदार्थ ज़्यादा पीना और छांव वाले क्षेत्रों में बार-बार आराम करना शामिल हैं.


डॉ. अदिति मदान इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में एसोसिएट फेलो और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ास्टर मैनेजमेंट (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान) में एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर हैं.

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