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Published on Sep 04, 2024 Updated 4 Hours ago

एमपॉक्स का प्रकोप वैक्सीन के लिए तुरंत आवश्यकता को उजागर करता है. भारत की बायोE3 नीति वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने और दुनिया में स्वास्थ्य से जुड़े प्रयासों का समर्थन करने के लिए महत्वपूर्ण है.

Mpox का क़हर: भारत के लिए वैक्सीन के निर्माण का सही समय

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जिस समय दुनिया एमपॉक्स (जिसे पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था) के नए प्रकोप से जूझ रही है, जिसकी वजह से ख़बरों के मुताबिक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो (DRC) में 600 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है, उस समय भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा मज़बूत करने और अफ्रीकी महादेश को वैक्सीन की सप्लाई करने के लिए वैक्सीन के उत्पादन की सख्त ज़रूरत है. अफ्रीका में Mpox के 17,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं जबकि स्वीडन, पाकिस्तान, फिलीपींस और थाईलैंड में भी कुछ मामलों की पहचान हुई है. चूंकि केंद्रीय कैबिनेट ने अच्छे प्रदर्शन वाले बायोमैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की नीति बायोटेक्नोलॉजी फॉर इकोनॉमी, एनवायरमेंट एंड एम्प्लॉयमेंट (बायोE3) का एलान किया है, ऐसे में भारत के द्वारा अपने टीका उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता इससे ज़्यादा कभी नहीं थी. 

अगस्त के आखिर में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बिना किसी झिझक के एमपॉक्स को अंतर्राष्ट्रीय चिंता वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) घोषित किया. ऐसा दो साल में दूसरी बार हुआ. ये 2014 और 2018 में इबोला प्रकोप के दौरान WHO की प्रतिक्रिया से हटकर थी.

तीन महामारियों का इतिहास

अगस्त के आखिर में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बिना किसी झिझक के एमपॉक्स को अंतर्राष्ट्रीय चिंता वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) घोषित किया. ऐसा दो साल में दूसरी बार हुआ. ये 2014 और 2018 में इबोला प्रकोप के दौरान WHO की प्रतिक्रिया से हटकर थी. WHO की घोषणा की वजह से बीमारी को लेकर पूरी दुनिया में चिंता उत्पन्न हो गई. Mpox एक स्व-सीमित (सेल्फ-लिमिटिंग) वायरल संक्रमण है जो कुपोषित बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों समेत आबादी के कुछ विशेष समूहों में परेशानी पैदा कर सकता है. इसका संक्रमण यौन संपर्क, संक्रमित व्यक्ति की त्वचा एवं दूषित सतहों के साथ संपर्क और वर्टिकल ट्रांसमिशन यानी मां से पेट के बच्चे के माध्यम से होता है. महामारी विज्ञान के डेटा के आधार पर वर्तमान प्रकोप के संबंध में एक चिंताजनक बात है बीमार लोगों की बढ़ती संख्या, विशेष रूप से बच्चों में. इसके अलावा अधिक संक्रमण दर की आशंका के साथ कई वेरिएंट का होना, बीमारी की गंभीरता और सीमित वैक्सीन की सप्लाई भी चिंता की बातें हैं. 

वर्तमान में एक साथ तीन Mpox महामारी फैल रही है और हर महामारी का अलग वायरल वेरिएंट है. क्लेड Ia स्ट्रेन के मामले DRC में कई वर्षों से बढ़ रहे हैं और ये बच्चों को अधिक प्रभावित करता है. क्लेड Ib और क्लेड II स्ट्रेन के मामले क्रमश: अफ्रीका के अलग-अलग क्षेत्रों और नाइजीरिया में देखे गए हैं जो गंदगी की स्थिति से नज़दीकी संपर्क और यौन संपर्क के ज़रिए फैल रहे हैं. DRC और नाइजीरिया के मौजूदा आंकड़े संकेत देते हैं कि क्लेड I से मृत्यु दर लगभग 10 प्रतिशत है जबकि क्लेड II से 3.6 प्रतिशत. हालांकि, रिसर्चर्स का दावा है कि ये तय करने के लिए आंकड़े पर्याप्त नहीं है कि कौन सा वेरिएंट ज़्यादा ख़तरनाक है क्योंकि सेहत के नतीजे पहले की स्वास्थ्य की स्थिति और हेल्थकेयर सेवाओं की क्वालिटी पर निर्भर हैं. ये साफ नहीं है कि बीमारी की गंभीरता में अंतर अलग-अलग स्ट्रेन की तीव्रता के कारण है या संक्रमण के रास्ते की वजह से. इसके अलावा एक चिंताजनक रुझान ये है कि इस साल DRC के लगभग आधे एमपॉक्स मामलों ने बच्चों को प्रभावित किया है और दुनिया भर में इस बीमारी से जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें से कम-से-कम 463 बच्चे थे. बच्चों में संक्रमण होने का एक संभावित कारण पहले से मौजूद पोषण की कमी या ख़राब रोग प्रतिरोधक क्षमता है. बच्चों की इस स्थिति के पीछे उनका संघर्ष के क्षेत्रों में पालन-पोषण और विस्थापन है. वो पहले से ही कुपोषण और दूसरी बीमारियों जैसे कि पोलियो और कोलरा के ख़तरे का सामना कर रहे हैं.  

इस तरह की बीमारियों का विस्फोट अब क्यों हो रहा है? 

महामारी के प्रकोप की बढ़ती घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार एक कारण है ज़ूनोटिक (पशुओं से फैलने वाली बीमारी) प्रसार की घटनाएं. Mpox के भंडार का मेज़बान अज्ञात है लेकिन ये कतरने वाले जानवर (चूहा, गिलहरी आदि) हो सकते हैं और पशुओं से इंसान के बीच इसके कई मेज़बान हैं. बढ़ते शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और जंगली जानवरों के मांस की खपत लोगों को कतरने वाले जानवरों के काफी नज़दीक लाती है जिससे ज़ूनोटिक प्रसार की घटनाएं होती हैं. बार-बार होने वाला एमपॉक्स का विस्फोट ज़ूनोटिक प्रकोप को बढ़ाने वाले कारणों पर ध्यान देने के उद्देश्य से स्वास्थ्य सुरक्षा के पहलुओं की आवश्यकता और संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए “वन हेल्थ” के दृष्टिकोण की ज़रूरत दिखाता है. 

इसके अलावा, समय-समय पर एमपॉक्स के प्रकोप के उभार को स्मॉलपॉक्स (चेचक) के ख़िलाफ़ घटती प्रतिरोधक क्षमता से जोड़ा गया है. स्मॉलपॉक्स के वायरस में Mpox की तरह मॉलिकुलर विशेषता है. चेचक के ख़िलाफ़ टीकाकरण एक हद तक एमपॉक्स के विरुद्ध प्रतिरोधी सुरक्षा प्रदान करता है. रिसर्चर्स का अनुमान है कि चूंकि चेचक के ख़िलाफ़ टीकाकरण का अभियान 1980 में बंद हो गया था, ऐसे में आबादी के एक बड़े हिस्से के पास अब चेचक (और Mpox) के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी सुरक्षा नहीं है और इस तरह हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक प्रतिरक्षा) में गिरावट आ रही है. इसी के मुताबिक रेगुलेटरी एजेंसियों के द्वारा वर्तमान में मंज़ूर की गई Mpox वैक्सीन- JYNNEOS, ACAM200 और LC16- को शुरुआत में स्मॉलपॉक्स के लिए विकसित किया गया था. JYNNEOS और ACAM200 को तीसरी पीढ़ी के सुरक्षित टीके के रूप में माना जाता है जो एमपॉक्स के ख़िलाफ़ रक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं. WHO के द्वारा इन्हें आपात स्थिति में इस्तेमाल की श्रेणी में रखा गया है. WHO ने एमपॉक्स का मुकाबला करने के लिए लक्ष्य आधारित टीकाकरण की रणनीति की सिफारिश की है. इसके तहत जो लोग सबसे असुरक्षित हैं या जिन्हें बीमारी होने का सबसे ज़्यादा ख़तरा है, उनका टीकाकरण होना चाहिए. 

रिसर्चर्स का अनुमान है कि चूंकि चेचक के ख़िलाफ़ टीकाकरण का अभियान 1980 में बंद हो गया था, ऐसे में आबादी के एक बड़े हिस्से के पास अब चेचक (और Mpox) के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी सुरक्षा नहीं है और इस तरह हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक प्रतिरक्षा) में गिरावट आ रही है.

वैक्सीन के लिए अफ्रीका की अपील 

वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस समय आवश्यकता वैक्सीन के उत्पादन की है ताकि भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और अफ्रीका महाद्वीप में असुरक्षित आबादी की रक्षा करने के लिए उपयुक्त मात्रा में वैक्सीन की डोज़ सप्लाई की जा सके. अफ्रीका में सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने WHO के द्वारा आपातकाल घोषित करने से एक दिन पहले क्षेत्रीय और महाद्वीपीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का एलान किया. ये महाद्वीप में सार्वजनिक स्वास्थ्य की असमानताओं और इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता को दिखाने वाला हो सकता है. भारत और अफ्रीका के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और G20 में अफ्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्यता दिलाने में भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई. इसके अलावा भारत अफ्रीका को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाला देश है जिसका सबूत कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं के निर्यात और विशेष रूप से पिछले दिनों मलेरिया वैक्सीन के आवंटन से मिलता है. मौजूदा स्वास्थ्य आपातकाल को हल करने के लिए अलग-अलग देशों- अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और जापान- ने अफ्रीका को Mpox वैक्सीन की डोज़ मुहैया कराने का वादा किया है. ख़बरों से संकेत मिलता है कि मौजूदा प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए 10 मिलियन डोज़ ज़रूरी है लेकिन इसके पांचवें हिस्से का ही अभी तक वादा किया गया है. इसके अलावा, अफ्रीकन वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग एक्सेलेरेटर प्रोग्राम के तहत अफ्रीका की वैक्सीन उत्पादन क्षमताओं के लिए 1 अरब अमेरिकी डॉलर के आवंटन के बावजूद ये प्रोग्राम एमपॉक्स वैक्सीन का उत्पादन नहीं करता है. फिर भी मौजूदा संकट की स्थिति का समाधान करने के लिए आपातकालीन उपयोग सूची में WHO की रुचि की अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट) ने वितरण के उद्देश्य से वैक्सीन ख़रीदने के लिए GAVI (ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्यूनाइज़ेशन) और UNICEF को प्रेरित करने की दिशा में एक तौर-तरीका निर्धारित किया है. 

बायोE3 और वैक्सीन उत्पादन 

Mpox महामारी वैक्सीन उत्पादन में शामिल होने के उद्देश्य से भारत के लिए विशाल अवसर पेश करती है. वैसे तो भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इस बीमारी के भारत में फैलने की आशंका कम है लेकिन भारत में इसका आख़िरी मामला इस साल मार्च में सामने आया था और 2022 में एमपॉक्स के प्रकोप के दौरान 30 मामलों की पुष्टि हुई थी. इससे ये संकेत मिलता है कि एमपॉक्स वैक्सीन का घरेलू उत्पादन भारत के स्वास्थ्य सुरक्षा के उपायों को पूरा करेगा. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने Mpox का मुकाबला करने के लिए mRNA वैक्सीन के उत्पादन में नोवावैक्स के साथ काम करने की अपनी इच्छा जताई है. नोवावैक्स और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ SII और ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन के साथ भारत बायोटेक जैसे अंतर्राष्ट्रीय तालमेल का नतीजा मलेरिया की वैक्सीन के उत्पादन के रूप में निकला जिसे बाद में अफ्रीका को निर्यात किया गया. कुछ इसी तरह से भारत की वैक्सीन कूटनीति की पहल के हिस्से के रूप में अफ्रीका को Mpox वैक्सीन के उत्पादन और वितरण के लिए कदम उठाए जा सकते हैं. वैश्विक साझेदारों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर सुनिश्चित करने और जैविक संसाधनों को साझा करने से वैक्सीन के स्थायी  उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इससे स्वास्थ्य सेवा अधिक सुलभ और न्यायसंगत बनेगी.

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इस बीमारी के भारत में फैलने की आशंका कम है लेकिन भारत में इसका आख़िरी मामला इस साल मार्च में सामने आया था और 2022 में एमपॉक्स के प्रकोप के दौरान 30 मामलों की पुष्टि हुई थी. इससे ये संकेत मिलता है कि एमपॉक्स वैक्सीन का घरेलू उत्पादन भारत के स्वास्थ्य सुरक्षा के उपायों को पूरा करेगा. 

पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट के द्वारा बायोE3 के तहत अधिक प्रदर्शन वाली बायोमैन्युफैक्चरिंग नीति तैयार करने का फैसला 10,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करेगा. वैक्सीन उत्पादन का रणनीतिक कार्यान्वयन भारत की जैव अर्थव्यवस्था (बायोइकोनॉमी) को बढ़ावा दे सकता है जो पिछले 10 वर्षों में तेज़ी से बढ़कर 10 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 130 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई है और भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ावा दे सकती है. इसके अलावा भारतीय टीका निर्माता संघ ने पिछले दिनों अफ्रीका के स्वास्थ्य सेवा तंत्र का समर्थन करने और वैश्विक स्तर पर व्यावहारिक बने रहने के उद्देश्य से नियामक एजेंसियों के साथ अनुपालन (कम्प्लायंस) सुनिश्चित करने के भारत के प्रयास को दोहराया है. सार्वजनिक-निजी साझेदारी में बढ़ोतरी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से वैक्सीन उत्पादन को बढ़ाने से प्रक्रिया तेज़ होगी और वैश्विक स्वास्थ्य पहल में भारत की सक्रिय भूमिका का प्रदर्शन होगा. 

जब तक वैक्सीन की लगातार सप्लाई उपलब्ध नहीं होती है, तब तक लोगों से अनुरोध है कि वो संक्रमण को रोकने और एमपॉक्स के प्रसार को काबू में करने के लिए सोच-समझकर सेहत से जुड़ी आदतों को अपनाएं. इसके अलावा, संभावित रूप से अलग-अलग गंभीरता के साथ वायरस के कई स्ट्रेन और बच्चों को अधिक ख़तरे को देखते हुए जैव सुरक्षा ढांचे को निगरानी और पता लगाने के महत्व पर विचार करने की आवश्यकता है जो बाद में प्रकोप का पता लगाने और महामारी विज्ञान से जुड़ा अध्ययन करने में मदद करेगा. सामूहिक रूप से Mpox का हालिया प्रकोप भारत के बायोटेक और फार्मा उद्योगों के सामने भारत में बीमारी फैलने की स्थिति में अपने स्वास्थ्य सुरक्षा को मज़बूत करने और रक्षा की सख्त ज़रूरत वाले एक महाद्वीप में वैक्सीन की सप्लाई करने के उद्देश्य से ज़रूरी वैक्सीन के उत्पादन का नेतृत्व करने के लिए एक अवसर प्रदान करता है. चूंकि भारत का सपना 2047 तक विकसित देश बनने का है, ऐसे में उसे बायोE3 के तहत सक्रिय कदम उठाने की ज़रूरत है ताकि स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और भारत एक ज़िम्मेदार वैश्विक स्वास्थ्य शक्ति बना रहे. 


लक्ष्मी रामकृष्णन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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