Author : Rouhin Deb

Published on Oct 29, 2021 Updated 0 Hours ago

पूर्वोत्तर क्षेत्र को नुक़सान पहुंचाने वाले लंबे संघर्ष को ख़त्म करने की दिशा में असम का मिशन बसुंधरा एक छोटी सी कोशिश है.

मिशन बसुंधरा यानी असम को टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) 16 के क़रीब ले जाना

स्वतंत्रता के समय से पूर्वोत्तर भारत अपने कई मुद्दों की वजह से अत्यधिक हिंसा की चपेट में रहा है. सबसे महत्वपूर्ण अंतर्निहित विषयों में से एक जो इस क्षेत्र में इनमें से कई मुद्दों की जड़ में है, वो है “ज़मीन का स्वामित्व”. जातीय संघर्ष का इतिहास कम-से-कम एक सदी पुराना है. इस संघर्ष का मूल कारण ज़मीन, इससे जुड़े जंगल के संसाधन, कथित अतिक्रमण और जातीय मतभेद जैसे पुराने मुद्दे हैं. हाल का असम-मिज़ोरम संघर्ष, जिसमें छह पुलिस कर्मियों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे, भी लगातार संघर्ष का नतीजा है जो पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमा पर कई दशकों से चल रहा है. इन पुराने अंतर्राज्यीय सीमा विवादों के मूल में मुख्य रूप से जल्दबाज़ी में सीमा निर्धारण और अविभाजित असम से नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम का गठन है. एक और बड़ा मुद्दा जिससे ख़ास तौर पर असम और आम तौर पर पूर्वोत्तर जूझ रहा है, वो है विदेशी प्रवासियों के द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से ज़मीन का सुनियोजित अतिक्रमण. इसकी वजह से राज्य में भूमिहीन मूल निवासियों की बड़ी संख्या हो गई है. एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ असम की 3.4 करोड़ की आबादी में से 90 प्रतिशत मूल निवासियों के पास ज़मीन के स्वामित्व का स्थायी दस्तावेज़ या ज़मीन का पट्टा नहीं है. इसके अलावा क़रीब-क़रीब 8 लाख मूल निवासी परिवार पूरी तरह भूमिहीन हैं. असम में पिछले दिनों शुरू किया गया ‘मिशन बसुंधरा’ ज़मीन से जुड़े इन मुद्दों का समाधान करने की कोशिश है जो बार-बार उठ खड़े होते हैं और जिनकी वजह से लोगों के जीवन और उनकी आजीविका का नुक़सान होता है.

असम में पिछले दिनों शुरू किया गया ‘मिशन बसुंधरा’ ज़मीन से जुड़े इन मुद्दों का समाधान करने की कोशिश है जो बार-बार उठ खड़े होते हैं और जिनकी वजह से लोगों के जीवन और उनकी आजीविका का नुक़सान होता है. 

मिशन बसुंधरा क्या है?

इस अनूठी योजना का उद्देश्य भू राजस्व सेवाओं को सरल बनाना और ज़मीन से जुड़े कामों के लिए लोगों की आसान पहुंच को सुनिश्चित करना है. सरकार इस मिशन के ज़रिए हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों को लेकर बेहद प्रयत्नशील रही है. अवैध अतिक्रमण की वजह से अपनी ज़मीन गंवाने वाले मूल निवासियों के लिए ज़मीन का अधिकार हासिल करना और इस प्रक्रिया में ये सुनिश्चित करना कि किसी बिचौलिए को शामिल किए बिना समाज के सबसे निचले तबके के लोग भी ज़मीन से जुड़े अपने काम करा सकें- ये दो मुख्य उद्देश रहे हैं जिसे सरकार इस कार्यक्रम के ज़रिए हासिल करने जा रही है.

225 करोड़ रुपये के बजट से सोचा गया ये कार्यक्रम तेज़ रफ़्तार से ज़मीन के रिकॉर्ड को दुरुस्त और अपडेट करेगा. इस कार्यक्रम के तहत नौ सेवाएं ऑनलाइन प्रदान की जाएंगी जिनमें उत्तराधिकार के अधिकार के द्वारा दाखिल-खारिज, बैनामा पंजीयन के बाद दाखिल-खारिज, अविवादित मामलों का बंटवारा, सालाना पट्टा से नियत समय के पट्टा में परिवर्तन, ज़मीन का फिर से वर्गीकरण, असम भूमि और राजस्व अधिनियम 1886 के नियम 116 के तहत उन लोगों का नाम हटाना जिनके पास अब ज़मीन नहीं है, नियत समय के पट्टा को प्रमाण-पत्र का आवंटन, उत्तराधिकार डाटा का अपडेशन/सुधार और पट्टेदार के मोबाइल नंबर को अपडेट करना शामिल हैं. मिशन के तहत असम के उन 672 गांवों का बहुभुज सर्वेक्षण भी होगा जिनमें ज़मीन के स्वामित्व और उसकी क़ीमत का रिकॉर्ड नही है. साथ ही जिन 18,789 गांवों में ज़मीन के स्वामित्व और उसकी क़ीमत का रिकॉर्ड है, उनका फिर से सर्वेक्षण भी होगा. इसके अलावा डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत नक्शों का संपूर्ण डिजिटाइज़ेशन और एकीकरण भी होगा जिससे एक साथ सटीक रियल टाइम लैंड रिकॉर्ड मिल सकेगा

मिशन के तहत असम के उन 672 गांवों का बहुभुज सर्वेक्षण भी होगा जिनमें ज़मीन के स्वामित्व और उसकी क़ीमत का रिकॉर्ड नही है. साथ ही जिन 18,789 गांवों में ज़मीन के स्वामित्व और उसकी क़ीमत का रिकॉर्ड है, उनका फिर से सर्वेक्षण भी होगा. 

इससे क्या हासिल हो सकता है?

मिशन बसुंधरा का सफल क्रियान्वयन राज्य में शांति, न्याय और एसडीजी 16 के लिए संस्थागत प्रक्रिया में सीधे तौर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. जिन गांवों में ज़मीन के स्वामित्व और उसकी क़ीमत का रिकॉर्ड नहीं है, उनका सर्वेक्षण न सिर्फ़ सरकार को राज्य के भूमिहीन मूल निवासियों को ज़मीन का अनुदान देने में सक्षम बनाएगा बल्कि राज्य में ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से कब्ज़ा की गई ज़मीनों, जिनमें से ज़्यादातर कब्ज़ा अवैध प्रवासी नागरिकों द्वारा किया गया है, की पहचान करने में भी मदद करेगा. इससे वर्षों के संघर्ष को ख़त्म किया जा सकेगा और शांति और स्थायित्व आएगा. इसके अलावा मैप के डिजिटाइज़ेशन से विवादित अंतर्राज्यीय ज़मीन सीमाओं के मामले में स्पष्टता लाया जा सकेगा. इससे भी संघर्ष ख़त्म करने और शांति-स्थायित्व लाने मे मदद मिलेगी. आख़िरी लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि सेवाओं का डिजिटाइज़ेशन महत्वपूर्ण रूप से भ्रष्टाचार को कम करेगा जो कि पूरे राज्य के अंचल कार्यालयों में बहुत ज़्यादा है.

सरकार पहले से ही सिस्टम से बिचौलियों को ख़त्म करने के लिए सख़्त क़दम उठा रही है और इस मुहिम के तहत एक सांकेतिक क़दम में ज़मीन की अवैध दलाली करने वाले 500 आरोपियों को एक दिन में गिरफ़्तार किया गया है जो इशारा करता है कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा. डिजिटाइज़ेशन, भ्रष्टाचार से लड़ाई, राज्यों के बीच शांति और राज्य के भीतर शांति- ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां मिशन बसुंधरा महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.

डिजिटाइज़ेशन, भ्रष्टाचार से लड़ाई, राज्यों के बीच शांति और राज्य के भीतर शांति- ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां मिशन बसुंधरा महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. 

एसडीजी 16 पर सीधा असर डालने के अलावा ये कार्यक्रम भूमिहीन मूल निवासियों को ज़मीन का अधिकार देकर एसडीजी 1 यानी ग़रीबी ख़त्म करने और एसडीजी 2 यानी भुखमरी मिटाने में भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है. डॉ. मलांचा चक्रबर्ती की एक ताज़ा रिसर्च भी इस दलील का समर्थन करती है कि एसडीजी 2 के लक्ष्यों को हासिल करने में शांति, न्याय और मज़बूत संस्थानों को बढ़ावा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

 पूर्वोत्तर के राज्य अपनी लगभग 98 प्रतिशत सीमा दूसरे देशों के साथ साझा करते हैं. अवैध अप्रवासन और मूल निवासी आदिवासियों की ज़मीनों पर ग़ैर-क़ानूनी अतिक्रमण ऐसे मुद्दे हैं जो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में पाए जाते हैं. 

निष्कर्ष

पूर्वोत्तर के राज्य अपनी लगभग 98 प्रतिशत सीमा दूसरे देशों के साथ साझा करते हैं. अवैध अप्रवासन और मूल निवासी आदिवासियों की ज़मीनों पर ग़ैर-क़ानूनी अतिक्रमण ऐसे मुद्दे हैं जो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में पाए जाते हैं. अंतर्राज्यीय सीमा तनाव भी अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, मेघालय, असम और नगालैंड जैसे राज्यों में मौजूद हैं. इसलिए मिशन बसुंधरा जैसी पहल को सिर्फ़ असम तक सीमित नहीं करना चाहिए बल्कि अंतर्राज्यीय विवादों को ख़त्म करने के साथ-साथ ग़ैर-क़ानूनी अतिक्रमण का शिकार बने ज़मीन के बड़े हिस्से की पहचान और उसके फिर से वितरण में मदद करने के लिए पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के द्वारा अपनाया जाना चाहिए.

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