Published on Oct 03, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत और मिस्र के बीच द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती मेना क्षेत्र में बेहतर बहुपक्षीय सहयोग की दिशा में ले जा सकती है.

मेना (MENA) क्षेत्र के साथ सैन्य सहयोग में भारत-मिस्र संबंध की भूमिका

अपनी सैन्य कूटनीति के बड़े फ्रेमवर्क के भीतरभारत कुछ प्रमुख मध्य पूर्व एवं उत्तर अफ्रीकी (MENA) देशों के साथ अपने समग्र सैन्यसुरक्षा/रक्षा संबंधों का वर्तमान में विस्तार कर रहा हैतकनीक हस्तांतरण और संयुक्तसहकार्य (ज्वाइंटकोलैबरेशनकार्यक्रमों समेत इस तरह के सहयोग का निर्माणदेश की विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के रूप में उभरा हैइस क्षेत्र में संबंधों की ऊर्ध्वगामी दिशा इज़राइलओमानसऊदी अरबसंयुक्त अरब अमीरात (यूएई), जॉर्डनबहरीन और क़तर जैसे देशों के साथ तेज़ी से बढ़ती साझेदारियों में व्यापक रूप से दिखायी पड़ती हैइन देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का सैन्यसुरक्षा आयाम महत्वपूर्ण होता जा रहा हैऔर यह तेलऊर्जा व सामाजिकआर्थिक क्षेत्रों में सहयोग के संगसंग एक और विशिष्टता के रूप में शायद उभरेगाइसी तरहभारत उत्तरी अफ्रीका में समान रूप से महत्वूपर्ण एक देशमिस्र (जिसे इस क्षेत्र में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति रखने वाले देशों में से एक के बतौरव्यापक रूप से जाना जाता हैके साथ अपना सेनासेसेना का सहयोग मज़बूत बनाने के लिए कुछ रणनीतिक क़दम उठा रहा हैइस सालदोनों देश अपने राजनयिक संबंध स्थापित होने के 75वें साल का जश्न मना रहे हैं.

भारत उत्तरी अफ्रीका में समान रूप से महत्वूपर्ण एक देश, मिस्र  के साथ अपना सेना-से-सेना का सहयोग मज़बूत बनाने के लिए कुछ रणनीतिक क़दम उठा रहा है. इस साल, दोनों देश अपने राजनयिक संबंध स्थापित होने के 75वें साल का जश्न मना रहे हैं.

मिस्र उन देशों में है जिसके साथ भारत के लगातार सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए हैंबशर्ते कि बीच में आये ठंडेपन की एक छोटी अवधि को छोड़ देंख़ासकर 1970 के दशक के उत्तरार्ध सेजब काहिरा ने सोवियत की अगुवाई वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के क़रीब जाना शुरू कियाहालांकिशीत युद्ध के उत्तरार्ध के दौरान आये इस बदलाव से कोई बड़ा मसला पैदा नहीं हुआजोअन्यथादोनों देशों (जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य थेके बीच संबंधों पर विपरीत प्रभाव डाल सकता थाइस तरह के बदलावों और अलगअलग दौर के भूराजनीतिक परिदृश्यों के बीचउनके सहयोग का एक पहलू जो निर्बाध रहावह रक्षा संबंधी सहयोग थाजिसमें दोनों पक्ष एक संतुलन बनाये रखने में सक्षम थेइस तरह की बुनियाद के साथमौजूद परिदृश्य मेंरक्षा/सैन्यसुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों की सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयास साफ़ दिखते हैंइन संबंधों को सितंबर 2016 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अलसिसी की राजकीय यात्रा से प्रोत्साहन मिलाजिसने कई मोर्चों पर आपसी संलग्नता को मज़बूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर मुहैया करायाइस आलोक में, 19-20 सितंबर 2022 कोभारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की काहिरा की दोदिवसीय आधिकारिक यात्रा के दौरानरक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिए भारतमिस्र के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया जानाएक महत्वपूर्ण विकास हैजिसे ‘मील के पत्थर’ के रूप में भी देखा गया हैदोनों पक्षों द्वारा किया गया यह रणनीतिक निर्णय रक्षासंबंधी संलग्नताओं को और प्रोत्साहित करेगा

एक संभावित साझेदारी

कुछ केंद्रीय कारक हैं जिन्होंने समग्र भारतमिस्र सहयोग के विस्तार में योगदान दिया हैउनमें ये शामिल हैं : अलक़ायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड सीरिया (आईएसआईएसजैसे आतंकी संगठनों के अवशेषों और संबद्ध व्यक्तियों या समूहों (जो सिनाई व मेना क्षेत्र तथा भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय हैंजैसे गैरराज्य कर्ताओं से उपज रहे ख़तरे को दोनों देशों द्वारा साझा ढंग से महसूस करनाहिंसक चरमपंथ तथा कट्टरपंथीकरण (रैडिकलाइजेशनकी परिघटनासीमापार आतंकवादऔर धन शोधनये कुछ ऐसे कारक हैं जो हाल के दिनों में दोनों देशों के सैन्यसुरक्षा प्रतिष्ठानों को क़रीब लेकर आयेइसके साथसाथमिस्र की सरकार ने रक्षासैन्य आधुनिकीकरण और हथियारों के आयात के लिए स्रोतों के विविधीकरण की प्रक्रिया भी शुरू की हैजिसका स्वदेश निर्मित प्रणालियों और हथियारों के निर्यात के वास्ते भारत की ग्राहकों की बढ़ती तलाश के साथ अच्छा संयोग बैठता हैइसके लिएमध्य पूर्वअफ्रीका क्षेत्रअमेरिकादक्षिण व दक्षिणपूर्व एशियाई क्षेत्र भारत के लाभप्रद बाज़ार बन सकते हैंसिर्फ़ ख़रीदारविक्रेता के संबंध से परे जाकरनयी दिल्ली अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ औद्योगिक सहयोग विकसित करने के अवसर भी तलाश रहा है, जिसमें मिस्र की रक्षा/सुरक्षा फर्म्स के साथ संलग्नता संभावनाशील लगती हैख़ासकर पूर्ववर्णित एमओयू को देखते हुए.

भारत और मिस्र के लिएसैन्यसुरक्षा/रक्षा सहयोग को मज़बूत करना कोई बहुत कठिन काम नहीं होना चाहिएऐसा इसलिए कि महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संस्थानिक प्रणालियां पहले से स्थापित हैंइनमें संयुक्त रक्षा समिति (जेडीसी) (जो समग्र रक्षा सहयोग की निगरानी करती है), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसएऔर डिप्टी एनएसए के स्तर पर सुरक्षा वार्ताऔर आतंकवाद पर बना संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजीशामिल हैंउदाहरण के लिएमिस्र के राष्ट्रपति की 2016 की पूर्ववर्णित भारत यात्रा के दौरानदोनों पक्षों ने आतंकवाद की मुसीबत और समान सुरक्षा चुनौतियों – चरपमंथ और कट्टरपंथीकरण से मिलकर निपटने पर सहमति जतायीजिसके बाद साइबर सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुईअबरक्षा एमओयू के ज़रियेभारत और मिस्र सशस्त्र बलों के संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास की बारंबारता बढ़ानेआतंकवाद/उग्रवादविरोधी सहयोग को मज़बूत करने के साथसाथ, ‘सैन्य प्लेटफार्मों और उपकरणों के सहउत्पादनरखरखाव’ के अपेक्षाकृत नये क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैंउल्लेखनीय है कि भारतीय वायुसेना (आईएएफऔर उसकी समकक्षमिस्री वायुसेना (ईएएफने अपनी तरह की पहली अंत:क्रिया (लड़ाकू हथियार स्कूलों के बीच) – टैक्टिकल लीडरशिप प्रोग्राम – का आयोजन जुलाई 2022 में मिस्र में कियाइस दौरान उन्होंने ‘जटिलबहुविमान मिशनों की भागीदारी वाले बड़े सैन्य बल संघर्षों के विषय में विचारों’ का आदानप्रदान कियाइससे पहलेइन दोनों वायुसेनाओं ने अक्तूबर 2021 के आख़िर में, ‘डेज़र्ट वॉरियर’ नामक दोदिवसीय अभ्यास में हिस्सा लियाइस तरह के कार्यनीतिक (टैक्टिकलअभ्यास हवाई युद्ध से जुड़े उनके अनुभवों और संबंधित वायुसेनाओं द्वारा अपनाये गये सर्वोत्तम तौरतरीक़ों को साझा करने का मौक़ा देते हैं.

मध्य पूर्व, अफ्रीका क्षेत्र, अमेरिका, दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र भारत के लाभप्रद बाज़ार बन सकते हैं. सिर्फ़ ख़रीदार-विक्रेता के संबंध से परे जाकर, नयी दिल्ली अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ औद्योगिक सहयोग विकसित करने के अवसर भी तलाश रहा है

इसके अलावाफ़ारस की खाड़ी व लाल सागर में और इर्दगिर्द बढ़ती जटिलताओं के बीचभारतीय और मिस्री नौसेनाओं के बीच मौजूदा नौसैनिक सहयोग संतोषजनक हैजिसमें विस्तार के लिए और संभावनाएं भी हैंमिस्र की लोकेशन रणनीतिक हैदूसरे शब्दों में कहें तो यह अफ्रीकाएशिया और यूरोप के तीनमुहाने पर हैऔर यह मिस्र की नौसेना के साथ मज़बूत सहयोग निर्मित करना भारत जैसों देशों के लिए एक लाभ की स्थिति प्रदान करता हैये बात समुद्री व्यापार और सुरक्षासंबंधी सहयोगदोनों के लिए सही हैबीते कुछ सालों के दौरान समुद्री (मैरिटाइमसाझेदारी अभ्यासों के नियमित आयोजन ने दोनों नौसेनाओं के बीच अंतरसंचालनीयता बढ़ाने में गहरी दिलचस्पी प्रदर्शित की हैयह समुद्री डकैतीमानव तस्करीहथियारों की तस्करी समेत किसी भी साझा समुद्री ख़तरे के ख़िलाफ़ संयुक्त अभियानोंऔर मानवीय सहायता से संबंधित मामलों में संयुक्त रूप से काम करने के लिए संभावनाओं को विस्तृत कर सकता है

बृहत्तर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसे बढ़ावा देने के लिएभारत और मिस्र को इस क्षेत्र से और इससे परेपरस्पर हितों वालेसमान सोच वाले देशों को इसमें शामिल करने की संभावना तलाशनी चाहिएसंयुक्त नौसैनिक अभ्यासों/क़वायदों का आयोजन ओमानीअमीरातीऔर सऊदी नौसेनाओं के साथ भी किया जा सकता हैक्योंकि इन देशों की भारत और मिस्र की नौसेनाओं के साथ उसी तरह की द्विपक्षीय गतिविधियां हैंइसके अलावाजैसेजैसे भारतमिस्र सैन्य संबंध आगे बढ़ते हैंसमन्वय व सहयोग स्थापित करने के लिए फ्रांसीसी नौसेना का भी स्वागत किया जा सकता हैयह न सिर्फ़ मेना क्षेत्र मेंबल्कि भूमध्य सागर और हिंद महासागर क्षेत्र में भी समुद्री सुरक्षा बनाये रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगाहाल के दिनों मेंपेरिस और काहिरा अपने सुरक्षारक्षा सहयोग को तेज़ी से बढ़ा रहे हैंजिसमें मुख्य रूप से बड़े हथियार व्यापार और आतंकवादविरोधी अभियानों (जैसा कि भारत और फ्रांस के बीच मामला हैपर ध्यान केंद्रित हैनिर्बाध समुद्री पोत परिवहन सुनिश्चित करने और विभिन्न समुद्री ख़तरों से निपटने के लिए फ्रांस ऊपर वर्णित समुद्रों में अपनी नौसैनिक मौजूदगी बढ़ाना चाहता हैइसके अलावाफ्रांस द्वारा मुक्त और खुले हिंदप्रशांत’ को बढ़ावा दिये जाने को देखते हुएवह भारत और मिस्र के साथ साझेदारी बनाना शायद पसंद करेगाहिंदप्रशांत रणनीति के निर्माण के लिए सुएज़ नहर के महत्व से ये तीनों देश वाक़िफ़ हैंइन रणनीतिक हितों में गहरी एकरूपता को अंततएक नये विकास के रूप में सामने आना चाहिएचाहे यह जल्दी हो या फिर देर से

वास्तव मेंभारतीय मंत्री की पूर्ववर्णित यात्रा सही वक़्त पर और महत्वपूर्ण हैक्योंकि यह एक ऐसे मोड़ पर हुई है जब सरकार अपनी रक्षा सामग्री के निर्यात और रक्षा औद्योगिक सहयोग के निर्माण के लिए वर्तमान में साझेदार तलाश रही हैबीते कुछ सालों मेंभारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में शामिल हो गया हैऔर वह मुख्यतया ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसी नयी पहलक़दमियों के ज़रियेआगामी वर्षों में इस स्थिति को पलटने के लिए प्रयास कर रहा हैइसलिएफोकस साफ़ तौर पर घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर है. 2016-20 के दौरान वैश्विक हथियार निर्यात में 0.2 फ़ीसद हिस्सेदारी के साथभारत दुनिया में रक्षा सामग्री का 24वां सबसे बड़ा निर्यातक थाऔर निर्यात की मात्रा बढ़ने की उम्मीद की जाती है.  

मिस्र के साथ रक्षा संबंधों में निरंतर वृद्धि में भारतीय रक्षा कंपनियों (राज्यस्वामित्व वाली या निजीकी उपस्थिति बढ़ाने की क्षमता मौजूद हैचूंकि तकनीक सहयोग को फलीभूत होने में समय लगता हैइसलिए दोनों देशों के बीच अभी और अधिक रक्षा व्यापार होने की काफ़ी संभाव्यता हैयह भारत के रक्षा उद्योगों के लिए लाभप्रद हो सकता हैजो रडारगश्ती जहाज़हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए), हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर (एलसीएच), मिसाइल प्रणालियोंइलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों (ईडब्ल्यूएस), टैंक और सैन्य वाहन समेत कई चीज़ों की तेज़ी से डिजाइनिंग और विनिर्माण कर रहे हैंअभी जो स्थिति हैमिस्र ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइलों (रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसितके साथ ही साथ भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित आकाश मिसाइल प्रणाली को ख़रीदने में अपनी दिलचस्पी का इज़हार कर चुका हैकाहिरा ने इसी तरह की दिलचस्पी का संकेत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा विकसितएक इंजन वाले एलएसी तेजस’ की ख़रीद के लिए दिया हैलंबी अवधि मेंइन बड़ी हथियार प्रणालियों का निर्यात भारत के दर्जे को बढ़ाकर हथियार निर्यातक के रूप में कर सकता हैसाथ ही हथियारनिर्यात से आने वाले राजस्व को बढ़ाने में मदद कर सकता हैजो न सिर्फ़ भारत की आर्थिक वृद्धिबल्कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडीकार्यक्रमों को धन मुहैया कराने के लिए भी अहम है. 2017-21 के दौरान दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक होने के नातेऔर अपने हथियार आपूर्तिकर्ता स्रोतों का विविधीकरण जारी रखने के साथमिस्र उपलब्ध निर्यातकों को तलाशता रहेगाऔर भारतएक दोस्ताना साझेदार के रूप मेंउसकी कुछ रक्षा आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है.

भारत और मिस्र व्यापक सैन्य-सुरक्षा साझेदारियां स्थापित करने के लिए एक आपसी तालमेल बना रहे हैं. आर्थिक और रणनीतिक हितों की बढ़ती एकरूपता इस दिशा में संबंधों के विस्तार में योगदान देगी. भारत की बढ़ती तकनीकी विशेषज्ञता मिस्र की एक आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग खड़ा करने की मुहिम में एक मुख्य स्रोत भी बन सकती है.

ज़ाहिर हैभारत और मिस्र व्यापक सैन्यसुरक्षा साझेदारियां स्थापित करने के लिए एक आपसी तालमेल बना रहे हैंआर्थिक और रणनीतिक हितों की बढ़ती एकरूपता इस दिशा में संबंधों के विस्तार में योगदान देगीभारत की बढ़ती तकनीकी विशेषज्ञता मिस्र की एक आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग खड़ा करने की मुहिम में एक मुख्य स्रोत भी बन सकती है. इस बीचकुछ मध्य पूर्वी देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखने का फ़ायदा उठाते हुएभारत और मिस्र को सुरक्षा के मोर्चे पर त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारियां बनाने पर विचार करना चाहिएअंत मेंदोनों पक्षों द्वारा प्रदर्शित इस पर्याप्त राजनीतिक सद्भावना को भविष्य में सैन्यसुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में परिणत होना चाहिए.

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