Author : Pushan Das

Published on Mar 26, 2019 Updated 0 Hours ago
मिग-21: एक विरासत जिसकी मियाद पूरी हो चुकी है

1962 के मध्य तक, पाकिस्तान को 12 सुपरसोनिक स्टार्टफाइटर्स दिए गए थे और ऐसे में भारत के लिए यह बहुत जरूरी हो गया था कि वह इन विमानों की “बराबरी” और मुकाबला कर सकने वाले विमान प्राप्त करे। भारत में सरकार और देश के ​भीतर पाकिस्तान के एफ-104 विमानों की बराबरी करने के​ लिए मैक 1.5 या 2 स्पीड में सक्षम सुपरसोनिक लड़ाकू विमान हासिल करने की इच्छा बढ़ने लगी थी। उस समय मीडिया मिग-21 की दो स्क्वाड्रनों की संभावित खरीद के बारे में खबरें दे रहा था।

जुलाई 1962 में, वायु सेना के शीर्ष अधिकारियों का एक दल उस सुपरसोनिक लड़ाकू विमान का आकलन करने ब्रिटेन गया, जिसे ब्रिटिश, मिग-21 के विकल्प के तौर पर भारत के सामने प्रस्तुत करने के इच्छुक मालूम हो रहे थे। जिस विमान का मूल्यांकन किया जाना था उसका नाम इंग्लिश इलेक्ट्रिक (बीएसी) लाइट्निंग था। हालांकि उस समय की नीति के अनुरूप और यदि किसी ने भारत की वर्तमान नीति के प्रति ऐहतियात बरती होती, तो रिपोर्ट्स इस ओर ​इशारा करती हैं कि भारत सरकार ने एयर वाइस मार्शल हरजिंदर सिंह की अगुवाई में गए इस मिशन को हिदायत दी थी कि वह ब्रिटेन को समझाए कि भारत की दिलचस्पी विदेश में निर्मित विमान खरीदने की जगह भारत में उनका निर्माण करने की है। इसका मतलब यह था कि भारत अपनी कामचलाऊ जरूरते पूरी करने के लिए ब्रिटेन से लाइट्निंग हासिल करने में दिलचस्पी तभी दिखाएगा, जब इसके परिणामस्वरूप भारत में इन विमानों का निर्माण होगा।

कुल मिलाकर इस बात का निचोड़ यही है कि 1963 में अप्रैल के मध्य तक, भारत सरकार मिग एयरफ्रेम फैक्टरी लगाने की जगह के तौर पर नासिक और मिग इंजन प्लांट लगाने की जगह के तौर पर कोरापुट का चयन कर चुकी थी। ऐसे समय में जब भारत मुद्रा की गंभीर कमी से जूझ रहा था, सोवियत संघ ने उसे बेहद अनुकूल शर्तों पर सैन्य हार्डवेयर खरीदने की इजाजत दे दी और उत्पादन कार्य 1985 तक जारी रहा और कुल मिलाकर 900 से ज्यादा एयरफ्रेम हासिल किए गए।

वायु रक्षा के बारे में भारतीय चिंतन की अव्यवस्था 1962 के मध्य में बहुत अच्छे से व्यक्त हुईजो हैरतंगेज रूप से आज तक जारी हैजब सरकार ग्राउंड कंट्रोल सिस्टमउचित एयरफील्ड्स या राडार स्थापना के अभाव के बारे में ज्यादा सोच​विचार किए बगैर संभवततात्कालिक जरूरते पूरी करने के लिए बहुत कम तादाद में विमान खरीदना चाहती है। 2016 में इतिहास ने अपने आपको दोहराया थाजब सरकार ने संक्षिप्त दसॉ राफेल खरीदने का फैसला किया था

अपनी तमाम आलोचनाओं और भारतीय वायु सेना में दुर्घटनाओं की अधिकता वाले परिचालन संबंधी इतिहास के बावजूद मिग-21 अपनी अनदेखी करने वालों का प्रबल विरोधी बना हुआ है। बड़े आकार वाले विमानों की तुलना में मिग-21 छोटे आकार वाले, तेज रफ्तार वाले और छोटे रेडियस में आमतौर पर ज्यादा कौशल के साथ मुड़ने में समर्थ होते हैं। इतना ही नहीं, जब तक मिग विमान अपने पीछे सफेद लकीर (भाप के निशान) न छोड़ रहे हों और लो राडार विजिबिलिटी पर न हो तब तक प्रत्यक्ष रूप से उनका पता लगाना मुश्किल होता है।

1996 में, सरकार ने 125 मिग-21 बाइसन विमानों को उन्नत बनाने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी,जिसमें 50 अन्य विमानों को बड़े एयरफ्रेम, हथियार और वैमानिकी ओवरहॉल साथ ही साथ स्वदेश में विकसित संघटकों के साथ उन्नत बनाने का विकल्प भी था। इनमें हाई-आॅफ-बोरसाइट आर-73 आर्चर हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के साथ हेलमेट माउंटेड क्यूइंग सिस्टम का समावेशन शामिल था। यह एक ऐसा संयोजन था जिसने भारतीय मिग-21 विमान को उससे कहीं ज्यादा आधुनिक विमान के मुकाबले भयानक विरोधी बना दिया। 2004 में, भारत और अमेरिका की वायु सेनाओं के बीच हुए कोप इंडिया अभ्यासों के दौरान उन्नत मिग-21 विमान अमेरिकी एफ-15 विमानों के साथ क्लोज कॉम्बैट में घातक विरोधी साबित हुआ। यहां से सीधे 2019 की बात करें, तो बालाकोट हवाई हमले के बाद इसी समावेशन की बदौलत भारतीय वायु सेना ने एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया।

21वीं सदी में क्लोज कॉम्बैट की भूमिका और अनुकूल परिदृश्यों में मिग विमान भले ही कितने ही कारगर क्यों न रहे हों, लेकिन अब मिग-21 और मिग-27 विमानों के विरासत वाले बेड़े को फौरन बदले जाने की जरूरत है। निकट भविष्य में होने वाली इनकी क्षमता में कमी के कारण भारतीय वायु सेना को 4.5 जेनरेशन फाइटर्स हासिल करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने को मजबूर किया है, जिनकी राजकोष को भारी कीमत चुकानी होगी। भारतीय वायुसेना द्वारा राफेल प्राप्त किए जाने और देश में निर्मित तेजस का समावेशन किए जाने को किसी स्पष्ट ऑपरेशनल क्षमता में परिवर्तित होने में वक्त लगेगा। तेजस को अब तक विकास, समावेशन और स्थापित गुणवत्ता जैसे मसलों का सामना करना पड़ रहा है, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स विमान उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य को पूरा करने से कोसों दूर है।

मिग-21 और 27 जैसे विरासत वाले विमानों की जगह 4.5 जेनरेशन वाले लड़ाकू विमानों को हासिल करने का दबाव ऐसे समय पर बनाया जा रहा हैजब एयरफ्रेम बदलने की जरूरत पूरी करने के लिए सैन्य बजट में एयरफ्रेम खरीदने में समर्थ नहीं है।

इसको जहन में रखते हुए, भारत के लिए उपयुक्त यही होगा कि वह लड़ाई से संबंधित अपनी जरूरतें पूरी करने और अपने बेड़े में एकरूपता लाने के लिए व्यापक विकल्पों पर विचार करे। एक संभावित विकल्प यह है कि प्रौद्योगिकीय रूप से उन्नत अतिरिक्त एसयू-30 एमकेआई को हासिल किया जाए तथा विमान में हवा में उड़ान के दौरान ईंधन भरने और विमान की पूर्व चेतावनी प्रणाली और कंट्रोल सिस्टम्स (एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) जैसी क्षमताओं से युक्त स्वदेशी तकनीक वाले तेजस के विकास में तेजी लाई जाए। हालांकि अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।

टुकड़ों-टुकड़ों में 36 राफेल और एफ-16 के समान क्षमताओं से युक्त अन्य संभावित विमान या साब ग्रिपेन हासिल करना भारतीय वायु सेना के बेड़े में एकरूपता लाने के विपरीत है। दो या तीन प्रकार के विमान हासिल करने की जगह केवल एक ही प्रकार के विमान हासिल करने से उनके संचालन, एकीकरण और प्रशिक्षण लागत में कमी आएगी और उन्हें खरीदने की सामर्थ्य में सुधार होगा। मिग-21 जैसे विमान की परिचालन-संबंधी क्षमता का लाभ उठाने में भारतीय वायुसेना की सफलता (बेशक डिजाइन द्वारा नहीं) संख्या और उसके भिन्न रूपों में उसकी प्राप्ति में निहित है। यह कुछ ऐसा है जिस पर मिग-21 के दौर के बाद भारत की हवाई लड़ाई की क्षमता में और ज्यादा पूंजी लगाने की योजना बना रही सरकार और भारतीय वायु सेना निर्भर कर सकते हैं।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.