Author : Anchal Vohra

Published on Jun 21, 2021 Updated 0 Hours ago

लेबनान के इतिहास में शायद ही ऐसी कोई हत्या या बमबारी का मामला हो, जिसमें आरोपी को सज़ा हुई हो

लेबनान: राजधानी बेरूत में बम विस्फोट के 10 महीने बाद भी इंसाफ़ की नाउम्मीदी बरकरार!

पिछले साल 4 अगस्त को बेरूत के बंदरगाह पर असुरक्षित रूप से जमा किये गए 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट का विस्फोट हुआ और शहर के कई ऐतिहासिक इलाके तबाह हो गए. इस बम ब्लास्ट में कम से कम 200 लोगों की मौत हो गई, हजारों घायल हो गए और सैकड़ों-हजारों रातोंरात बेघर हो गए.

लेबनान हद से ज़्यादा महंगाई और कोरोना वायरस महामारी के कारण बिगड़ी हुई बेरोज़गारी के हालाता और राजनीतिक संकट से जूझ रहा था. इस धमाके से हुई तबाही के कारण कम से कम अरबों डॉलर के नुकसान होने का अनुमान लगाया गया जिसने देश की पहले से कमज़ोर अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी.

लेबनान की मीडिया ने इस घटना के बाद, ऐसे कई लीक हुई दस्तावेज़ों का हवाला दिया, जिसके आधार पर ये साबित हो गया कि देश के सर्वोच्च कार्यालयों- जिसमें राष्ट्रपति,पीएम,सेना के अधिकारियों और न्यायाधीशों को विस्फोटक से होने वाले ख़तरों के बारे में पता था. उन्हें पहले से इस बात की जानकारी दी गई थी कि रिहायशी इलाकों के पास इन विस्फोटकों को स्टोर करना असुरक्षित है, लेकिन फिर भी उन्होंने इसे वहां से हटाने के लिये समय रहते कोई कदम नहीं उठाया.

अधिकारियों, अमीरों पर आरोप

विस्फोट के कुछ दिनों बाद वहां के लोग लेबनान की सड़कों पर इकट्ठा हुए और मांग किया कि देश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों समेत, सरकार में शामिल उच्च अभिजात्य वर्ग को इस घटना के दोषी ठहराया जाये. लेबनान के अब तक के इतिहास में शायद ही ऐसी कोई हत्या या बमबारी का मामला हुआ हो, जिसे अपराधी को सज़ा देने के साथ सुलझाया गया हो. यहां की न्यायपालिका पर संप्रदाय से जुड़े राजनीतिक दलों का दबदबा है जिस कारण देश के लोगों का यहां की न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति गहरा अविश्वास है. इसलिए, उन्होंने इस घटना की जांच के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पैनल से जांच की मांग की है.

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हालांकि, लेबनान की सरकार ने, इस मामले की जांच के लिए एक आंतरिक जाँच के आदेश दिये थे , लेकिन जैसी की उम्मीद थी इस जांच पैनल ने अभी तक कोई ख़ास काम नहीं किया है.

पूर्व सैन्य अभियोजक, फदी सावन को दो अन्य न्यायाधीशों के ऊपर मुकदमे में जांच न्यायाधीश के रूप में चुना गया था. ऐसा करने के पीछे की वजह दोनों जांच अधिकारियों का के रवैया ज़्यादा आज़ाद ख़्याल होने और राजनीतिक वर्ग को लेकर उदासीनता के कारण किया गया था.

हालांकि, फदी सावन ने इसके बाद भी विस्फोट के लिये प्रधानमंत्री हसन दीयाब के साथ-साथ तीन अन्य मंत्रियों सहित 30 से अधिक लोगों पर आरोप लगाया था. लेकिन चारों ने संदिग्धों के रूप में पूछताछ के लिए पेश होने से इनकार कर दिया था, और बदले में, उनमें से दो ने देश की सर्वोच्च अदालत- “लेबनान कोर्ट ऑफ़ कैसेशन” में अपील कर  न्यायाधीश सावन को उनके पद से हटाने की मांग की.

उन्होंने मुताबिक सांसदों को एक किस्म की छूट हासिल है, और वे तभी पूछताछ के लिये बुलाये जा सकते हैं, जब की संसद में उनके खिलाफ़ 2/3 मत दिये जाएं. लेकिन देश के स्वतंत्र कानूनी विशेषज्ञों ने इस व्याख्या को चुनौती देते हुए कहा है कि इन मंत्रियों को इस तरह की छूट ऐसे गंभीर अपराध के सिलसिले में नहीं मिल सकती है. खासकर तब जब इस विस्फोट से बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की मौत हो गई हो.

लेबनान की सबसे प्रमुख और सम्मानित कानूनी सहायता संगठन ‘लीगल एजेंडा’ ने इस बारे में लंबा स्पष्टीकरण जारी किया और बताया कि आखिर क्यों ऐसे मामलों में मंत्री भी नियमित अदालती कार्रवाई के दायरे में आते हैं.

मंत्रियों पर मुक़दमा

लीगल एजेंडा के संस्थापक, निज़ार सघीह ने एक खुले पत्र में लिखकर बताया था कि  सावन ने संविधान में अनुच्छेद 70 का सहारा लिया, “जो मंत्रियों पर मुक़दमा चलाने से संबंधित है,” एक तरह से जो उन्हें संसद से अभियोग प्राप्त किए बिना मुक़दमा शुरू करने की अनुमति देता है.

इस जांच के ठप होने जाने की एक और वजह देश में कोरोना वायरस की महामारी को रोकने के लिए लगाया गया लंबा लॉकडाउन था.

लेबनान की सबसे प्रमुख और सम्मानित कानूनी सहायता संगठन ‘लीगल एजेंडा’ ने इस बारे में लंबा स्पष्टीकरण जारी किया और बताया कि आखिर क्यों ऐसे मामलों में मंत्री भी नियमित अदालती कार्रवाई के दायरे में आते हैं.

“इन विवेचनों में से पहला यह था कि, न्यायपालिका को अभी भी मंत्रियों पर आपराधिक कृत्यों के लिए मुकदमा चलाने का अधिकार है,चाहे वो एक मंत्री के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारियों को निभा रहे हों, लेकिन उनके कृत्य में संसद शामिल नहीं हो. इस उद्देश्य के लिए, कोर्ट ऑफ कैसेशन काफी हद तक अनुच्छेद 70 के फ्रांसिसी अनुवाद पर निर्भर था(यानी, संविधान का मूल पाठ जो कि अरबी में अनुवादित और बाद में 1990 में संशोधित किया गया था), जिसके मुताबिक उच्च देशद्रोह या सरकारी कर्तव्यों के उल्लंघन के लिए, संसद के पास मंत्रियों को दोषी ठहराने का “अधिकार है”. ये “सगहीः द्वारा लिखा गया था.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, इस मामले में कम रैंकिंग वाले अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है, जबकि देश में भ्रष्टाचार  के लिए बदनाम सत्तारूढ़ व्यवस्था के शीर्ष नेताओं को लगातार बचाया जा रहा है.

“सावन ने पिछले साल अगस्त महीने से अब तक 37 लोगों के खिलाफ़ आरोप लगाए हैं, जिनमें से 25 को हिरासत में लिया गया है, हिरासत में लिये जाने के बाद इन लोगों के कुछ बुनियादी अधिकार भी छीन लिये गए हैं. हिरासत में लिए गए लोग ज्य़ादातर निम्न, मध्यम स्तर के सीमा शुल्क, बंदरगाह और सुरक्षा अधिकारी हैं; ह्यूमन राइट्स वॉच [एचआरडब्ल्यू] के एक बयान में यह भी कहा गया था कि, उनके परिवारों और वकीलों का आरोप था कि न्यायिक अधिकारियों ने अभी तक उनके खिलाफ़ कोई निश्चित आरोप या सबूत पेश नहीं किए हैं.

18 फरवरी को अदालत ने मंत्रियों के पक्ष में आदेश दिया था और सावन को ‘कानून संदेह’ के आरोप पर उनके पद से हटा दिया गया था. अदालत ने ऐसा करते हुए इस बात का हवाला दिया था कि ब्लास्ट में चूंकि सावन का घर भी नष्ट हुआ था इसलिए जांच प्रक्रिया के दौरान उनकी तटस्थता सवालों के घेरे में आ गई है.

अपराध की जांच और तब और भी जटिल हो गई थी, जब लेबनान के एक पत्रकार ने इस बात का खुलासा किया था कि, ब्रिटेन की जिस कंपनी ने विस्फोटक खरीदा था वो एक शेल्फ कंपनी थी और उसने सीरिया के दो व्यवसायियों के साथ अपने पता साझा किया था.

अपराध की जांच और तब और भी जटिल हो गई थी, जब लेबनान के एक पत्रकार ने इस बात का खुलासा किया था कि, ब्रिटेन की जिस कंपनी ने विस्फोटक खरीदा था वो एक शेल्फ कंपनी थी और उसने सीरिया के दो व्यवसायियों के साथ अपने पता साझा किया था. 

इससे विस्फोट में सीरियाई हाथ होने पर सवाल खड़े हो गए और ये लोगों ने ये पूछना शुरू कर दिया था कि क्या विस्फोटकों का इस्तेमाल विद्रोहियों के खिलाफ़ युद्ध में बशर अल-असद की सरकार के फायदे के लिये था. हालांकि, कानूनी तौर पर, अभी ये साफ़ नहीं है कि जांच न्यायाधीश सीरियाई व्यवसायियों के खिलाफ़ भी आरोपों की जांच करेंगे या नहीं.

इस विस्फोट में जिन लोगों ने अपने घरों और कारोबार को खोया था वे लेबनान की सरकार से किसी तरह की मुआवज़े का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं, और लगातार कहते आ रहे हैं कि उन्हें सरकार से एक पैसे की भी उम्मीद नहीं है. जिनके पास सुविधा है वे नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू कर रहे हैं और जो नहीं कर सकते हैं वे किसी भी तरह देश छोड़कर जा रहे हैं.

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