Author : Shivam Shekhawat

Published on Jun 06, 2023 Updated 0 Hours ago
थोक के भाव नेताओं का इस्तीफ़ा: क्या PTI का अंत क़रीब है?

ये लेख पाकिस्तान: दी अनरेवलिंग सीरीज़ का हिस्सा है.


पाकिस्तान में 9 मई को आगज़नी और सेना के ठिकानों को जान-बूझकर निशाना बनाने की घटना और इसमें शामिल लोगों पर कार्रवाई की वजह से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) पार्टी काफ़ी दबाव में है. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं जैसे कि सिंध के पूर्व गवर्नर इमरान इस्माइल, शिरीन मज़ारी, आदि को गिरफ़्तार कर लिया गया जबकि कुछ नेता गिरफ़्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड हो गए. इसके अलावा, PTI के कई नेताओं ने इस्तीफ़ा दे दिया और ये सिलसिला जारी है. PTI के कार्यकर्ताओं और उनके नेताओं पर कड़ी कार्रवाई ने इमरान ख़ान की मुश्किलों में इज़ाफ़ा कर दिया है और पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष की आशंका पैदा कर दी है. 

राजनीति से पहले देश? 

9 मई की हिंसा पर दुख जताते हुए पूर्व मंत्रियों जैसे कि डॉ. हिशम इनामुल्ला, आमिर कियानी और मलिक अमीन असलम के साथ-साथ पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्यों जैसे कि करीम बख्श गबोल, संजय गंगवानी, आदि ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है. पार्टी छोड़ने के अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए उन्होंने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया कि सेना पर हमले उनके लिए आख़िरी सीमा थी क्योंकि ये देश के हितों के ख़िलाफ़ है और इसकी वजह से उन्हें मजबूर होकर पार्टी से ख़ुद को अलग करना पड़ रहा है. कुछ नेताओँ ने PTI अध्यक्ष इमरान ख़ान के द्वारा हमलों की निंदा नहीं करने को लेकर अपनी मायूसी का इज़हार किया. उनके मुताबिक़ पार्टी अब अपनी असली लड़ाई से भटक गई है और कुछ ख़ास नेताओं के असर में आकर ग़लत दिशा की तरफ़ जा रही है. सेना के दबाव में मजबूर होकर इस्तीफ़े की बात से ध्यान हटाने के लिए सभी नेताओं ने ये बात ज़ोर-शोर से कही कि उनके फ़ैसले के पीछे कोई बाहरी दबाव नहीं है. 

सेना पर हमले की निंदा करने की बढ़ रही मांग के जवाब में इमरान ख़ान ने दोहराया कि अपनी ही देश की सेना का विरोध करना 'बेवकूफ़ी भरी हरकत' है क्योंकि इससे कोई अच्छा नतीजा नहीं निकल सकता है. इमरान के मुताबिक़ इस अराजकता का फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ताधारी गठबंधन को होगा जिसकी बुनियादी दिलचस्पी  PTI और सेना के बीच मतभेद को बढ़ाना है. इमरान ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वो एक स्वतंत्र आयोग बनाकर पूरी साज़िश का पता लगाए. उन्होंने भरोसा दिया कि अगर उनकी पार्टी का कोई कार्यकर्ता किसी हिंसक गतिविधि में शामिल पाया जाता है तो वो अपना रुख़ बदल लेंगे. दक्षिण पंजाब के कई नेताओं ने भी हिंसक गतिविधियों की आलोचना की. देर से अपनी आलोचना का बचाव करते हुए इमरान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) की सरकार ने इंटरनेट सेवाओं को सस्पेंड कर दिया था जिसकी वजह से देश को लेकर उनकी पार्टी की ज़िम्मेदारी के बारे में सवाल खड़ा करने के मक़सद से 'संगठित ढंग से दुष्प्रचार' किया गया. 

पाकिस्तान के अख़बार डॉन के मुताबिक, जिसको PTI के नेताओं ने ख़ुद साझा किया है, पार्टी छोड़ने वाले ज़्यादातर नेता साफ़ तौर पर कमज़ोर हैं. चुनाव लड़ने के लिए टिकट हासिल करने में उनकी नाकामी और पार्टी नेतृत्व के साथ उनके पहले से अनिश्चित संबंध ने उन्हें दबाव का आसान टारगेट बना दिया. पार्टी के स्थानीय नेतृत्व को इस बात की जानकारी है कि हुकूमत उन्हें दलबदलू बनने के लिए मजबूर करने के मक़सद से और भी ज़्यादा लाचार करने वाले तौर-तरीक़े अपना सकती है. पार्टी नेतृत्व ये भी कहता है कि एक तरफ़ जहां पुलिस ने PTI के कई नेताओं और उनके परिवार के लोगों को पकड़ने में तेज़ी दिखाई है वहीं कियानी जैसे नेताओं को हिरासत में लेने के मामले में काफ़ी सुस्त रही. बाद में कियानी जैसे नेताओं ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया जो इस बात का संकेत है कि उन्हें हुकूमत की तरफ़ से तरजीह मिल रही है. सिंध में भी PTI के कुछ नेताओं ने शिकायत की कि उन्हें प्रांतीय सरकार की तरफ़ से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है. वैसे तो ज़्यादातर नेताओं ने ये दलील दी कि स्थिति इस तेज़ी से हिंसा की ओर बढ़ी कि वो समझ नहीं पाए लेकिन इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है कि पार्टी को सेना पर हमले की योजना के बारे में पता था और अब वो अपने ख़िलाफ़ ग़ुस्से को देखते हुए इस्तीफ़ा देकर पीछा छुड़ा रहे हैं. 

पार्टी नेताओं के इस्तीफ़े को लेकर इमरान ख़ान ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है. इमरान ख़ान ने एक तरफ़ जहां इस्तीफ़ा देने वाले पार्टी नेताओं के लिए हमदर्दी जताई है, वहीं दूसरी तरफ़ जो पार्टी में बने हुए हैं उनके इरादे की तारीफ़ की है. उन्होंने लोगों से कहा है कि वो इस्तीफ़ा देने वाले नेताओं की आलोचना नहीं करें. अपने ख़ास गार्जियन वाले अंदाज़ में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पार्टी छोड़ने वाले नेताओं को बहुत ज़्यादा दबाव का सामना करना पड़ा होगा और पाकिस्तान की सत्ता पर सेना की गहरी पकड़ ने उनके सबसे क़रीबी नेताओं को भी इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार कर लिया होगा. वैसे तो उन्होंने इस्तीफ़ा देने वाले नेताओं को फिर से पार्टी में शामिल करने की संभावना को लेकर झिझक दिखाई है लेकिन उन्होंने भरोसा जताया है कि उनकी पार्टी में इस हालात का सामना करने की ताक़त है. इमरान ख़ान के मुताबिक़ कुछ ‘बदमाशों’ ने उस दिन प्रदर्शन में शामिल होकर प्रदर्शनकारियों को गुमराह किया. इन ‘एजेंसी के लोगों’ को सत्ताधारी गठबंधन और सेना की तरफ़ से इस इरादे के साथ भेजा गया था कि वो PTI को ‘टुकड़ों’ में बांट दें और उनके संघर्ष को दबा दें. 

नेशनल असेंबली में वापसी 

एक अन्य दिलचस्प घटनाक्रम में लाहौर हाई कोर्ट ने PTI के 72 मेंबर ऑफ नेशनल असेंबली (MNA) के इस्तीफ़े को सस्पेंड कर दिया और उन्हें अपना इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए व्यक्तिगत रूप से स्पीकर के सामने पेश होने का हुक्म दिया. ये उस अर्ज़ी के संदर्भ में था जिसके तहत PTI के कुछ नेताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि PTI के मेंबर ऑफ नेशनल असेंबली के इस्तीफ़े को रद्द कर दिया जाए और नेशनल असेंबली से इस बारे में नोटिफिकेशन (अधिसूचना) को वापस ले लिया जाए. वैसे तो आदेश को सिंध और लाहौर के हाई कोर्ट ने फरवरी में सस्पेंड कर दिया था लेकिन इसके बावजूद उन्हें संसद में दाखिल होने की इजाज़त नहीं मिली थी. इस्तीफ़े के बाद से विपक्ष व्यावहारिक रूप से नेशनल असेंबली से ग़ायब हो गया है. PTI के नेताओं ने अपना इस्तीफ़ा इसलिए दिया था कि सरकार आम चुनाव कराने के लिए मजबूर हो जाए लेकिन उनका ये दांव काम नहीं आया. प्रमुख पदों पर नियुक्ति के मामले में PTI का नियंत्रण कम हो गया और इन नियुक्तियों में विपक्ष के नेता की मौजूदगी के साथ मिलने वाले विशेषाधिकार बंद हो गए. 

लाहौर हाई कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए इमरान ख़ान ने संसद में अपने नेताओं की तरफ़ से आवाज़ बुलंद करने का हक़ मिलने को लेकर ख़ुशी जताई. PTI के वक़ील ने इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिलाया कि संसद में भरोसेमंद विपक्ष की मौजूदगी किस तरह ‘राजनीतिक संकट’ का समाधान करेगी. लेकिन इमरान ख़ान ने संसद में अपनी भागीदारी से इनकार किया, उन्होंने इसकी ‘राजनीतिक और विधायी’ अहमियत न होने की बात की तरफ़ ध्यान दिलाया. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी गठबंधन के साथ भागीदारी से इनकार करना राजनीति पर सेना के नियंत्रण में खलल पैदा करने के इमरान के वादे पर सवाल उठाता है और राजनीतिक संकट को शांत करने की किसी भी उम्मीद को ख़याली पुलाव साबित करता है. लोकतंत्र अच्छी तरह से काम कर रहा है, ये सुनिश्चित करने के लिए एक बुनियादी सिद्धांत है सत्ता में बैठी पार्टी और विपक्ष के बीच असरदार संवाद की मौजूदगी, चाहे कितनी ही मुश्किल स्थिति क्यों न हो. 

चूंकि, सेना हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों पर सैन्य क़ानून के तहत केस चलाने की तैयारी कर रही है, ऐसे में पिछले कुछ दिनों की उम्मीदों की धज्जियां उड़ गई हैं. PTI के नेताओं के इस्तीफ़े में तेज़ी और इमरान ख़ान की बातों में ख़ुद को बचाने वाला लहजा इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि PTI अपने अगले क़दम को लेकर जूझ रही है. सत्ताधारी गठबंधन ने PTI से नेताओं के इस्तीफ़े का इस्तेमाल ‘प्रोजेक्ट इमरान’ के ध्वस्त होने और एक मतलबी, स्वार्थी राजनीतिक नेता के ऊपर ‘पाकिस्तान की विचारधारा’ की जीत की तरफ़ ध्यान दिलाने में भी किया है. अर्थव्यवस्था और दूसरे क्षेत्रों पर इस वक़्त सरकार और दूसरे हिस्सेदारों को काफ़ी ध्यान देने की ज़रूरत है. लेकिन इस ज़ुबानी जंग की वजह से ज़रूरी चीज़ों पर किसी का ध्यान नहीं है. पाकिस्तानी ‘क़ौम’ और उसकी ‘विचारधारा’ को बचाने के इस राजनीतिक मुक़ाबले में सबकी पूरी ऊर्जा लगी हुई है. ऐसे में असली हार पाकिस्तान की अवाम की होगी.


 शिवम शेखावत ORF के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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