भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के परिवर्तन का दौर चल रहा है. 2022 में भारत में EV की वार्षिक बिक्री ने दस लाख के उल्लेखनीय आंकड़े को पार कर लिया था. दोपहिया वाहनों का वर्ग इसमें सबसे चमकदार बनकर उभरा है. देश में रजिस्टर्ड कुल इलेक्ट्रिक गाड़ियों में से लगभग पचास प्रतिशत दोपहिया वाहन ही हैं. सरकार से मज़बूत सहयोग, घरेलू आविष्कारों की वजह से इसके निर्माण के दमदार इकोसिस्टम और निवेश ने दोपहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों के सेक्टर के विकास में काफ़ी योगदान दिया है.
भारत में इलेक्ट्रोनिक वाहन उद्योग
भारत के इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के उद्योग ने अब तक प्रभावी रूप से केवल घरेलू मांग पूरी करने पर ज़ोर दिया है. लेकिन अब अपनी सीमाओं से परे देखने की भी ज़रूरत है. अब पूरी दुनिया में और ख़ास तौर से लैटिन अमेरिका, दक्षिणी एशिया और अफ्रीकी देशों में सस्ती इलेक्ट्रिक दोपहिया गाड़ियों की मांग बढ़ रही है. एशिया पहले से ही दोपहिया गाड़ियों की बिक्री का गढ़ है. दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत टू-व्हीलर वाहन एशिया में ही बिकते हैं. अफ्रीका में मोटरसाइकिल के लगभग 8 करोड़ उपभोक्ता हैं. इनमें से बहुत से लोग आने वाले वर्षों में EV लेना चाहेंगे. अब तक इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग का सबसे ज़्यादा फ़ायदा चीन के निर्माताओं को हुआ है, जो हर साल क़रीब दो करोड़ गाड़ियों का निर्यात कर रहे हैं. हालांकि, भारत में लगभग 60 मूल निर्माता अलग अलग तरह के दोपहिया वाहन बना रहे हैं और उनका कुल उत्पादन 2026 तक तीन करोड़ गाड़ियों तक पहुंचने की संभावना है. ऐसे में भारत का इलेक्ट्रिक दोपहिया उद्योग, विश्व स्तर पर चीन का मुक़ाबला करने के लिए तैयार है. हालांकि, चीन से वास्तविक तौर पर होड़ लगाने और इस मामले में वैश्विक नेतृत्व हासिल करने के लिए भारत को लक्ष्य आधारित नीतिगत रूप-रेखा विकसित करनी होगी.
भारत में लगभग 60 मूल निर्माता अलग अलग तरह के दोपहिया वाहन बना रहे हैं और उनका कुल उत्पादन 2026 तक तीन करोड़ गाड़ियों तक पहुंचने की संभावना है. ऐसे में भारत का इलेक्ट्रिक दोपहिया उद्योग, विश्व स्तर पर चीन का मुक़ाबला करने के लिए तैयार है.
नीतियों में बदलाव की ज़रूरत हाल ही में FAME योजना के तहत सब्सिडी के वितरण से जुड़ी घटनाओं के बाद भी महसूस की जा रही है. पहली अनिश्चितता तो दोपहिया गाड़ियों के लिए FAME के तहत मिलने वाली सब्सिडी को बैटरी की प्रति kWh क्षमता के हिसाब से 15 हज़ार रुपए से घटाकर दस हज़ार करने से पैदा हुई है. इसका एलान अप्रैल 2023 में किया गया था और इस बदलाव को केवल दो महीने के नोटिस के बाद जून 2023 में लागू कर दिया गया था. इसकी वजह से इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर की बिक्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखने को मिला था और ये सवाल भी उठे थे कि आने वाले साल में घोषित होने वाली FAME-III योजना के तहत इस वर्ग के साथ कैसा सलूक किया जाएगा. इसके अलावा, भारी उद्योग मंत्रालय कुछ निर्माताओं द्वारा स्थानीय संसाधनों के इस्तेमाल की शर्तें पूरी न करने के बावजूद झूठे दावों के आधार पर सब्सिडी पर दावा करने के ख़िलाफ़ की जा रही जांच ने भी इस उद्योग को झटका दिया है. ख़ास तौर से पहले वसूल की गई सब्सिडी को लेकर 500 करोड़ रुपए के जुर्माने और सब्सिडी के ग़ैर विवादित हिस्से को सरकार द्वारा रोकने की आशंका ने भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के कई निर्माताओं को दिवालिया होने की कगार पर पहुंचा दिया है.
अब इस उद्योग को एक ऐसी नई रणनीति की सख़्त ज़रूरत है जो महत्वाकांक्षी तो हो मगर जिसके लक्ष्य हासिल भी किए जा सकें, ख़ास तौर से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन के मामले में. इस रूपरेखा में प्रोत्साहन की योजनाओं का ढांचा पेश करने के साथ साथ आने वाले वर्षों में धीरे धीरे इस सरकारी मदद को कम करने की समयसीमा का भी स्पष्ट रूप से ज़िक्र होना चाहिए. यही नहीं, नई नीति में स्थानीय संसाधनों से जुड़े नियमों के मामले में हर दुविधा को दूर करना चाहिए. इसमें प्रमाणन और अनुपालन की प्रक्रियाएं भी शामिल हों.
निजी क्षेत्र के साथ सलाह मशविरे की औपचारिक व्यवस्था से नीति निर्माताओं को अपनी योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलेगी. ऐसी व्यवस्था से नीति निर्माताओं को अपनी तमाम नीतियों में बदलाव की ज़रूरत की जानकारी फ़ौरन मिल जाएगी. इससे तेज़ी से फ़ुर्तीली और आधुनिक नीतियां बनाने में योगदान मिलेगा.
इस मामले में दुनिया भर में मशहूर जापान का ऑटोमोबाइल उद्योग एक उपयोगी मिसाल बन सकता है. 1950 से 1970 के दशक में जापान के ऑटोमोबाइल उद्योग का वार्षिक उत्पादन पचास लाख गाड़ियों तक पहुंच गया था जो 1993 में 1.35 करोड़ गाड़ियों के शीर्ष तक पहुंच गया था. उनका निर्यात भी इसी तरह बढ़ा था. 1950 के दशक में जापान मुट्ठी भर गाड़ियों का ही निर्यात करता था जो 1961 में दस हज़ार और 1970 के दशक में एक लाख गाड़ियों तक पहुंच गया था. आज टोयोटा और होंडा जैसे जापान के कार निर्माता विश्व में अव्वल हैं. वहीं, जापान में कारों के कल-पुर्ज़े बनाने वालों को भी पूरी दुनिया में सबसे अच्छा माना जाता है.
अब इस उद्योग को एक ऐसी नई रणनीति की सख़्त ज़रूरत है जो महत्वाकांक्षी तो हो मगर जिसके लक्ष्य हासिल भी किए जा सकें, ख़ास तौर से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन के मामले में.
जापान के ऑटोमोबाइल उद्योग के इस ज़बरदस्त उभार की क्या वजह रही थी? असल में जापान के इंटरनेशनल व्यापार और उद्योग मंत्रालय (MITI) ने उद्योग के लिए ख़ास तौर से व्यापक दूरगामी योजनाएं बनाईं और चुनौतियों से निपटने के मामले में निजी क्षेत्र के साथ तालमेल करने की ज़बरदस्त क्षमता का प्रदर्शन किया. लगातार सलाह मशविरे की मदद से जापान के MITI ने अपनी औद्योगिक नीतियों के तमाम पहलुओं में लगातार सुधार किया. इसमें राष्ट्रीय चैंपियनों की मदद करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में बदलाव लाना और मंज़ूरी व प्रमाणित करने की प्रक्रिया को आसान बनाना शामिल था. MITI का ये लचीलापन और तुरंत समस्याओं को दूर करने पर ध्यान देने ने जापान के ऑटोमोबाइल उद्योग की तरक़्क़ी में काफ़ी अहम भूमिका निभाई थी. भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को भी सलाह मशविरे से नीति निर्माण का ऐसा ही रास्ता अपनाना चाहिए.
आगे की राह
फ़ौरी तौर पर ये भी ज़रूरी है कि सरकार FAME योजना से जुड़े विवादों के तुरंत और निष्पक्ष निपटारे पर भी ध्यान केंद्रित करे. यही नहीं रिसर्च और विकास के प्रयासों को लक्ष्य आधारित प्रोत्साहन देकर सरकार आविष्कारों को भी बढ़ावा दे. ये काम PLI और FAME दोनों योजनाओं के तहत होना चाहिए. अगर भारत के इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के उद्योग को ‘मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़कर ‘दुनिया के लिए भारत में निर्माण’ की ओर जाना है तो स्वदेशीकरण के प्रयासों में आविष्कार की भूमिका को अहमियत देना ज़रूरी है.
भारत के इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के उद्योग को ‘मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़कर ‘दुनिया के लिए भारत में निर्माण’ की ओर जाना है तो स्वदेशीकरण के प्रयासों में आविष्कार की भूमिका को अहमियत देना ज़रूरी है.
भारत इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में दुनिया का अगुवा बन सकता है और इसका अवसर उसके हाथ में है. फ़ौरी तौर पर इसका रास्ता दोपहिया गाड़ियों के वर्ग से होकर जाता है. ये बिल्कुल सही समय है जब नीति निर्माता और उद्योग पक्के इरादों और आपसी सहयोग के साथ क़दम उठाकर इस रास्ते पर आगे बढ़ें.
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