Author : Sushant Sareen

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 20, 2024 Updated 0 Hours ago

जैश-ए-मुहम्मद के फिर से सक्रिय होने और उसके आक़ा मसूद अज़हर की धमकियों को देखते हुए भारत को चाहिए कि इसका सख़्ती से जवाब दे

पाकिस्तान में फिर सिर उठा रहा है जैश-ए-मुहम्मद

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से प्रतिबंधित आतंकवादी मसूद अज़हर और उसका संगठन जैश--मुहम्मद (JeM) एक बार फिर से पाकिस्तान के उपयोगी नॉन-स्टेट मोहरे के तौर पर उभर रहे हैं, ताकि पाकिस्तान इनके ज़रिए अपनी विदेश नीति और सुरक्षा के एजेंडे को सिर्फ़ भारत के ख़िलाफ़ बल्कि तालिबान के शासन वाले अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के ख़िलाफ़ भी लागू कर सके. अपने आतंकवादी काडर के सामने हालिया तक़रीर में मसूद अज़हर ने क़सम खाई कि वो अपने आतंकवादियों को कश्मीर में जिहाद करने के लिए भेजेगा और उसने इज़राइल के ख़िलाफ़ भी मुहिम छेड़ने का संकेत दिया. इसके बाद उसने संदेश दिया कि वो बाबरी मस्जिद कोआज़ादकराएगा और अयोध्या में रामजन्मभूमि के मंदिर पर भी हमला करेगा. ये इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जैश--मुहम्मद बार फिर से पर्दे के पीछे से निकलकर सक्रिय हो रहा है और वो ख़ास तौर से भारत के ख़िलाफ़ खुलकर अपनी गतिविधियां चलाएगा. वैसे तो भारत के विदेश मंत्रालय ने आतंकवाद से मुक़ाबला करने में पाकिस्तान केदोगलेपन को उजागर किया है. इसके साथ साथ विदेश मंत्रालय ने मसूद अज़हर और उसके संगठन जैश (JeM) के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है. लेकिन इस बात की उम्मीद के बराबर है कि पाकिस्तान का फौजी तंत्र, अपने पाले हुए आतंकवादी मोहरों को अपने दुश्मन के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने के फ़ैसले को पलटेगा.

 अपने आतंकवादी काडर के सामने हालिया तक़रीर में मसूद अज़हर ने क़सम खाई कि वो अपने आतंकवादियों को कश्मीर में जिहाद करने के लिए भेजेगा और उसने इज़राइल के ख़िलाफ़ भी मुहिम छेड़ने का संकेत दिया. 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान पाकिस्तान ने लगातार अपने पसंदीदा जिहादी मोहरे के तौर पर जमात-उद-दावा (JuD) की जगह किसी और को देने का सिलसिला जारी रखा है. जमात के बहुत से बड़े आतंकवादियों को जेल में डाल दिया गया है (इनमें से ज़्यादातर पर मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के लिए पैसे जुटाने के इल्ज़ाम हैं), और इस संगठन के ज़्यादातर आतंकवादियों को कम से कम फ़ौरी तौर पर तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. असल में जिस तरह पाकिस्तान द्वारा जिहादी आतंकवाद का इस्तेमाल अपनी विदेश और सुरक्षा नीति के हित साधने के लिए किया जा रहा था, उसकी वजह से उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नाराज़गी का सामना करना पड़ रहा था. इसके जमात उद दावा, पाकिस्तान के लिए एक बोझ बन गया था. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान को अपनीग्रे लिस्टमें डाल दिया था, इस वजह से भी पाकिस्तान पर काफ़ी दबाव था. इसी के चलते पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ ठोस और साबित हो सकते वाले क़दम उठाने पड़े थे. उसी दौरान, जमात-उद-दावा की जगह जैश--मुहम्मद को बढ़ावा दिया गया और इसका पुनर्वास करके इस संगठन में नई जान डाली गई. जिसके बाद जैश ने तेज़ी से अपनी गतिविधियां बढ़ाईं. हालांकि, जैश ने ये काम बड़ी ख़ामोशी से और बिना किसी प्रचार के किया. वैसे जमात उद दावा पर पूरी तरह से तो रोक नहीं लगाई गई. लेकिन, उस पर लगाम लगने के बाद से जैश--मुहम्मद पर पाकिस्तान की निर्भरता काफ़ी बढ़ गई है.

 

पनाहगाह बना बैठा है पाकिस्तान

जैश--मुहम्मद और मसूद अज़हर दोनों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रतिबंध लगा रखा है. फिर भी पाकिस्तान ने उन्हें बढ़ावा दिया. FATF ने मसूद अज़हर को मिसाल बनाकर पाकिस्तान से कहा था कि वो उसके ख़िलाफ़ जांच करके मुक़दमा चलाए. मसूद अज़हर के अलावा, पाकिस्तान को 26/11 के मुंबई हमले के मास्टरमाइंड लश्कर--तैयबा के साजिद मीर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने को कहा गया था. ऐसा लगता है कि मसूद अज़हर को बचाने के लिए पाकिस्तान ने साजिद मीर को क़ुर्बान करने का फ़ैसला किया. ये बात इस तथ्य से ज़ाहिर है कि 2018 के एक्शन प्लान के तहत एशिया पैसिफिक ज्वाइंट ग्रुप के सामने पेश की गई प्रगति रिपोर्ट में पाकिस्तान ने गुहार लगाई कि उसे ये नहीं पता कि मसूद अज़हर कहां है. पाकिस्तान के मुताबिक़, उसने मसूद अज़हर पर इसलिए नज़र नहीं रखी थी, क्योंकि सुरक्षा परिषद ने मई 2019 तक उसे प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित नहीं किया था. जबकि संयुक्त राष्ट्र ने जब मसूद अज़हर को प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित किया, उससे कुछ हफ़्ते पहले ही पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने दावा किया था कि मसूद अज़हर भयंकर रूप से बीमार है और अपने घर में ही पड़ा हुआ है.

 

चमत्कारिक रूप से मसूद अज़हर बिल्कुल सही समय पर ठीक होकर ठीक उसी वक़्तलापताहो गया, जब सुरक्षा परिषद ने उस पर प्रतिबंध लगाया और तब से उसका कोई सुराग़ नहीं मिला है! पाकिस्तान ने तो यहां तक दावा कर दिया कि अगस्त 2021 में मसूद अज़हर को उसकी ग़ैरमौजूदगी में ही नौ साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी और पाकिस्तान की सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान हुकूमत से संपर्क किया था कि वो मसूद अज़हर को पकड़ने में मदद करे. सितंबर 2022 में FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर किए जाने से ठीक पहले पाकिस्तान ने दावा किया कि अज़हर अफ़ग़ानिस्तान में छुपा हुआ है. इस पर तालिबान ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. तालिबान ने कहा था कि मसूद अज़हर उनके यहां नही है और पाकिस्तान पर व्यंग कसते हुए तालिबान ने ये भी कहा था कि ऐसेआतंकवादी संगठनकेवल पाकिस्तान में हीसरकारी सरपरस्तीमें सक्रिय हो सकते हैं.

 

2022 में जब तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते बुरी तरह बिगड़ गए थे, तब पाकिस्तानियों ने अफ़ग़ानिस्तान पर इल्ज़ाम धरते हुए कहा कि मसूद अज़हर वहीं छुपा है. मसूद अज़हर के हालिया भाषण के दौरान भी ऐसा ही हुआ, जब उसने कहा कि तालिबान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी के साथ उसके अच्छे ताल्लुक़ हैं. हालांकि, सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने ख़ुद को मसूद अज़हर से अलग करते हुए उसके दावों को सिरे से ख़ारिज कर दिया. जब अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स कीग्रे लिस्टसे हटा दिया गया, तो पाकिस्तान ने जैश--मुहम्मद की गतिविधियों पर लगाई गई कुछ पाबंदियां हटा लीं. उसी समय से जम्मू-कश्मीर में हिंसक गतिविधियों में लगातार तेज़ी आती दिखी. इस दौरान सेना के काफ़िलों पर कई बड़े आतंकवादी हमले हुए.

 पाकिस्तान ने दावा किया कि अज़हर अफ़ग़ानिस्तान में छुपा हुआ है. इस पर तालिबान ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. तालिबान ने कहा था कि मसूद अज़हर उनके यहां नही है और पाकिस्तान पर व्यंग कसते हुए तालिबान ने ये भी कहा था कि ऐसे ‘आतंकवादी संगठन’ केवल पाकिस्तान में ही ‘सरकारी सरपरस्ती’ में सक्रिय हो सकते हैं.

वैसे तो जैश--मुहम्मद पिछले कई वर्षों से, पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF) और कश्मीर टाइगर्स जैसे मुखौटा संगठनों की आड़ में अपनी गतिविधियां चलाता रहा है. लेकिन, जब से पाकिस्तान की गर्दन से FATF का फ़ंदा ढीला हुआ है, तब से उनकी गतिविधियों में अचानक तेज़ी आती दिखी है. उल्लेखनीय है कि जैश के ये मुखौटा आतंकवादी संगठन अप्रवासी कामगारों, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों, सैलानियों और स्थानीय लोगों जैसे आसान टारगेट पर हमले करते रहे हैं. लेकिन, सेना के काफ़िलों पर हुए पेशेवराना आतंकवादी हमले, जैश--मुहम्मद के तजुर्बेकार आतंकवादियों ने किए हैं. हालांकि, जैश ने इन हमलों की ज़िम्मेदारी लेने से परहेज़ किया है, जिससे पाकिस्तान पर उंगली उठे. जैसा उसने 2019 के पुलवामा के आत्मघाती हमले के दौरान किया था. मसूद अज़हर के हालिया भड़काऊ भाषण से संकेत मिलता है कि अब कश्मीर में जिहादी आतंकवाद का निर्यात जैश--मुहम्मद करेगा. पाकिस्तानी फौज के मौजूदा प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के कमान संभालने के बाद से पाकिस्तान एक बार फिर से आतंकवाद को बढ़ावा देने लगा है

 

वैसे तो जैश--मुहम्मद आम तौर पर अपनी गतिविधियां गुपचुप तरीक़े से ही चलाता रहा है. लेकिन, कई बार खुलकर आतंकवाद का खेल खेलना शायद उसके आक़ा और उसके संगठन की मजबूरी बन जाती है. इसकी एक वजह तो अपने आतंकवादियों का हौसला बढ़ाने और ज़ोरदार भड़काऊ तक़रीरें करके नए रंगरूट भर्ती करने और आतंकवादियों को आत्मघाती मिशन पर जाने के लिए जिहादी जज़्बा भरने की होती है. इसकी एक और वजह फौजी आक़ाओं पर दबाव बनाने की कोशिश भी होती है, ताकि अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाया जा सके और जैश अपने फ़ैसले कहीं ज़्यादा आज़ादी से ले सके. इसके अलावा ऐसी जोशीली तक़रीरों का मक़सद दुश्मन (यानी भारत) को संदेश देना भी होता है कि पाकिस्तान के लिए जिहाद का विकल्प हमेशा खुला है और उसके पास जिहाद के लिए तैयार आतंकवादियों की कमी नहीं है, और पाकिस्तान इनका इस्तेमाल करके आतंकवाद की आग को भड़काने की क्षमता रखता है.

 

इन इशारों का मक़सद भारत को ये संदेश देना होता है कि अगर वो ये समझता है कि पाकिस्तान अब खेल का हिस्सा नहीं है और कश्मीर मसला हल करते समय पाकिस्तान की अनदेखी की जा सकती है, तो भारत की ये सोच ग़लत है. मसूद अज़हर के भाषण और उसके संदेश भारत को ये बताने के लिए भी हैं कि उसकी हरकतें केवल जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि इनका इस्तेमाल भारत के मुसलमानों की वाजिब और काल्पनिक समस्याओं के समाधान के लिए भी किया जा सकता है. पाकिस्तान के लिए अपने देश में भारत द्वारा बलोच और तहरीक--तालिबान (TTP) के उग्रवादियों को समर्थन देने का जवाब भी मसूद अज़हर के भाषण और धमकियां हैं.

 

पाकिस्तान के लिए जैश की उपयोगिता

पाकिस्तान के लिए जैश की उपयोगिता केवल भारत तक सीमित नहीं है; एक देवबंदी जिहादी संगठन के तौर पर जैश के केवल तालिबान (पाकिस्तानी और अफ़ग़ान दोनों) से नज़दीकी रिश्ते हैं, बल्कि लश्कर--झंगवी और इसकी सियासी शाखा सिपह--सहाबा या फिर उसके नए अवतार अहले सुन्नत वाल जमात (ASwJ) जैसे बेहद कट्टर सुन्नी देवबंदी आतंकवादी संगठनों से भी उसके अच्छे रिश्ते हैं. तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) के बढ़ते ख़तरे से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए, जैश--मुहम्मद पंजाबी तालिबानी आतंकवादियों को TTP से अलग करने में उपयोगी भूमिका निभा सकता है, जिन्हें फिर पूरब में भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सके. पाकिस्तान पिछले एक दशक से ये कोशिश कर रहा है, लेकिन शायद हाल के दिनों में इसमें और तेज़ी गई है. अगर पंजाबी तालिबान और देवबंदी मुल्ला अभी पाकिस्तानी हुकूमत की तरफ़ से पश्तून तालिबान के बीच बीच बचाव भी कर सकें, तो भी उन्हें TTP से अलग करके कम से कम जैश जैसे संगठन उन्हें पंजाब और सिंध में अपने नेटवर्क और क्षमता का इस्तेमाल करने से तो रोका ही जा सकेगा.

 

निश्चित रूप से भारत इस मामले में क़तई लापरवाही नहीं बरत सकता. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान इस मुद्दे को सुर्ख़ियों में लाने के लिहाज़ से तो उपयोगी है. लेकिन, भारत को चाहिए कि वो ये मसला केवल FATF और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने उठाए, बल्कि उसे इस मसले को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपने साझीदारों के बीच भी उठाना चाहिए. इसके साथ साथ, सुरक्षा एजेंसियों को भी चाहिए कि वो जम्मू-कश्मीर में अपने प्रोटोकॉल और ग्रिड में बदलाव करे, ताकि जम्मू-कश्मीर और देश के दूसरे हिस्सों में तजुर्बेकार आतंकवादियों की हरकतों से निपट सके. बांग्लादेश में हालिया बदलाव के बाद वहां जैश--मुहम्मद जैसे पाकिस्तान के जिहादी आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रखने वाले देवबंदी आतंकवादी संगठन फिर से सिर उठा रहे हैं और बेख़ौफ़ होकर अपनी ताक़त बढ़ा रहे हैं. ऐसे में भारत के सामने खड़ी चुनौती और बढ़ जाती है. ख़ास तौर से इसलिए भी क्योंकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अब पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते विकसित करने की कोशिश कर रही है.

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