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बच्चों पर महामारी का असर कम से कम पड़े, ये सुनिश्चित करने के लिए सेशेल्स ने सक्रियता दिखाते हुए कई क़ानूनी क़दम उठाए हैं.
कोविड-19 महामारी की आमद के साथ ही दुनिया भर के बच्चों को बेहद परेशान कर देने वाली नई हक़ीक़त का सामना करना पड़ा है. बचपन की लगभग हर मंज़िल को करारा झटका लगा है. दुनिया भर में बच्चों के बीच ग़रीबी, उनके शोषण और ज़ुल्म में इज़ाफ़ा हुआ है. चूंकि सेशेल्स की क़रीब 22 प्रतिशत आबादी 15 साल से कम उम्र की है, ऐसे में सेशेल्स अपनी आने वाली पीढ़ियों को कोविड-19 के बुरे असर से बचाकर उन्हें सभी संसाधन उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है.
चूंकि सेशेल्स की क़रीब 22 प्रतिशत आबादी 15 साल से कम उम्र की है, ऐसे में सेशेल्स अपनी आने वाली पीढ़ियों को कोविड-19 के बुरे असर से बचाकर उन्हें सभी संसाधन उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है.
सेशेल्स में सबके लिए स्वास्थ्य सेवा मुफ़्त है. इसकी ज़्यादातर आबादी को आसानी से स्वास्थ्य सेवा हासिल होती है. वर्ष 2020 में सेशेल्स की जनता के बीच ग़ैर संक्रामक बीमारियां, दिल की बीमारियां और कैंसर रोग और मौत के प्रमुख कारण थे. लेकिन, इस महामारी ने देश की स्वास्थ्य सेवा में ख़लल डाल दिया. सेशेल्स के स्वास्थ्य मंत्रालय को रोज़मर्रा के स्वास्थ्य की ज़रूरतों वाले संसाधनों और विशेषज्ञ सेवा से संसाधन खींचने पड़े. इससे स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल और इन तक पहुंच पर बुरा असर पड़ा है. हालांकि, मुख्य सेवाओं की ज़रूरी कवरेज जैसे कि बच्चों के टीकाकरण और जन्म से पहले की देख-भाल को बरकरार रखा गया था. इससे गर्भ में और नवजात बच्चों के साथ साथ पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की दर सीमित रखी जा सकी थी. वर्ष 2020 में सेशेल्स की जनता की औसत आयु में भी इज़ाफ़ा दर्ज किया गया था. इसकी बड़ी वजह युवाओं में मौत के दूसरे कारणों जैसे कि हादसे और चोट से मौत में कमी आई थी. ऐसा शायद कोविड-19 का संक्रमण रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के चलते हुआ था.
13 सितंबर 2021 तक सेशेल्स में कोविड-19 संक्रमण के कुल 20 हज़ार 748 केस दर्ज किए गए थे. इनमें से 535 एक्टिव केस और 110 मौतें थीं. इस वायरस से ज़्यादा प्रभावित होने वाले आयु वर्ग में बच्चे नहीं आते हैं; अब तक ज़्यादातर मौतें बुज़ुर्गों की ही हुई हैं. सेशेल्स की सरकार ने 12 से 17 साल के बच्चों को फ़ाइज़र का टीका लगाने का व्यापक अभियान शुरू किया है, जिससे स्कूलों में कोविड-19 का संक्रमण न फैले.
सेशेल्स अपने सभी नागरिकों को मुफ़्त में राष्ट्रीय शिक्षा देता है. शुरुआती बचपन की देख-भाल और शिक्षा के मामले में सेशेल्स, यूनेस्को की कैटेगरी 2 में आता है. पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद करने पड़े थे और उसके बाद से ही पढ़ाई में बाधा पड़ती आई है. हालांकि, ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया गया था. लेकिन, बहुत से स्कूलों में ऐसे बुनियादी ढांचे और संसाधन की कमी है, जिससे वो डिजिटल लर्निंग को पूरी तरह अपना सकें. इसके अलावा ग़रीब घरों के बच्चों को हमेशा लगातार सेवा देने वाली इंटरनेट की सुविधा भी हासिल नहीं है, जिससे वो लंबे समय तक पढ़ाई कर सकें. इन चुनौतियों को देखते हुए सरकारी स्कूल मार्च 2021 के बाद से आधिकारिक रूप से दोबारा खुल गए हैं. लेकिन संक्रमण बढ़ने के चलते स्कूलों के संचालन में खलल पड़ा है. इसी वजह से स्कूलों को दोबारा खोलने की प्रक्रिया इस तरह से चलाई गई है, जहां छात्रों को एक सप्ताह के अंतर के बाद कक्षाओं में बुलाया जाता है. इससे क्लास में छात्रों की भीड़ सीमित रहती है और संक्रमण को भी रोकने में मदद मिलती है.
सेशेल्स अपने सभी नागरिकों को मुफ़्त में राष्ट्रीय शिक्षा देता है. शुरुआती बचपन की देख-भाल और शिक्षा के मामले में सेशेल्स, यूनेस्को की कैटेगरी 2 में आता है. पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद करने पड़े थे और उसके बाद से ही पढ़ाई में बाधा पड़ती आई है.
इन मुश्किलों के बावजूद, सेशेल्स ने 2019 की तुलना में 2020 के इंटरनेशनल कैंब्रिज (IGCSE) के अकादेमिक पैमाने पर काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है. 2020 में महामारी के चलते सेशेल्स के 53 फ़ीसद बच्चों को उच्च शिक्षा हासिल करने से रोका है. लेकिन, हाल ही में यहां की सरकार ने कहा है कि जल्द ही सेशेल्स के छात्र आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जा सकेंगे. देश का इकलौता उच्च शिक्षा संस्थान होने के नाते, इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेशेल्स ने शिक्षा के क्षेत्र में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स शुरू किया है. यूनिवर्सिटी ने नए ग्रेजुएट और उन छात्रों को नए हुनर सीखे और अध्यापन के पेशे से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया है, जिन्होंने महामारी के दौरान अपनी रोज़ी गंवा दी है.
कोविड-19 की संक्रमण दर को थामने के लिए जो उपाय किए गए हैं, उनसे पूरी दुनिया में बच्चों के संरक्षण की सेवाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है. इससे बच्चों के शोषण का जोख़िम और बढ़ गया है. महामारी ने सेशेल्स की सोशल सर्विस एजेंसी के काम पर भी बुरा असर डाला है. फिर भी इस एजेंसी ने संकट वाले मामलों में बच्चों की मदद करने और हेल्पलाइन को जारी रखा है. वर्ष 2020 में बच्चों से दुर्व्यवहार, जैसे कि अनदेखी, शारीरिक और यौन शोषण व जज़्बाती शोषण के 527 केस दर्ज किए गए थे. जबकि वर्ष 2019 में ऐसे मामलों की संख्या 406 थी. वर्ष 2020 में सेशेल्स की नेशनल काउंसिल फॉर चिल्ड्रेन द्वारा बच्चों को विशेषज्ञों की सलाह देने के मामलों में भी कमी आई है. इसकी वजह शायद ये रही कि आमने-सामने की मुलाक़ात वाले सत्र रद्द करने पड़े. ये साफ़ नहीं है कि इन आंकड़ों की वजह महामारी है, केस रिपोर्ट करने की बेहतर व्यवस्था है, केस की कम रिपोर्टिंग है या फिर पिछले साल आरोपियों पर सख़्त कार्रवाई है, क्योंकि इस बारे में कोई औपचारिक अनुसंधान अभी नहीं हुआ है.
महामारी ने सेशेल्स की सोशल सर्विस एजेंसी के काम पर भी बुरा असर डाला है. फिर भी इस एजेंसी ने संकट वाले मामलों में बच्चों की मदद करने और हेल्पलाइन को जारी रखा है.
उत्साह बढ़ाने वाली बात ये है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए नए क़ानून बनाने का प्रस्ताव दिया जा चुका है. इसमें बच्चों को परेशान करने, उन्हें पालने-पोसने, बलात्कार और अश्लील तस्वीरें दिखाने जैसे यौन शोषण और वर्चुअल माध्यमों में अश्लील संवाद करने जैसे अपराधों पर कार्रवाई शामिल है.
सेशेल्स ने बच्चों के अधिकारों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते पर 1990 में ही दस्तख़त कर दिए थे. लेकिन, इस महामारी ने दिखाया है कि बच्चों के यौन शोषण, ड्रग तस्करी और बाल मज़दूरी का ख़तरा अधिक होता है.
शारीरिक गतिविधियों में कमी, असंतुलित पोषण और स्कूल बंद रहने जैसी तमाम वजहों के चलते, महामारी के दौरान बच्चों का वज़न नुक़सानदेह तरीक़े से बढ़ा है. सेशेल्स की सरकार ने बच्चों के बीच बढ़ने मोटापे को सार्वजनिक सेहत का आपातकाल घोषित किया है. इससे पता चलता है कि 1998 के बाद से सेशेल्स में बच्चों के बीच मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. 2019 में 36 प्रतिशत लड़कियां और 28 फ़ीसद लड़के मोटापे के शिकार थे.
तमाम अध्ययनों में पता चला है कि इस महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चे मानक पैमानों और क्षमता के परीक्षण में कमज़ोर साबित हुए हैं. इसकी बड़ी वजह घर के बाहर खेल-कूद और लोगों से हेल-मेल में आई कमी को बताया जा रहा है.
तमाम अध्ययनों में पता चला है कि इस महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चे मानक पैमानों और क्षमता के परीक्षण में कमज़ोर साबित हुए हैं. इसकी बड़ी वजह घर के बाहर खेल-कूद और लोगों से हेल-मेल में आई कमी को बताया जा रहा है. महामारी से पहले सेशेल्स के हर 200 में से 2 से 6 बच्चों के बीच ऑटिज़्म की समस्या पाई जा रही थी. इस वक़्त ये साफ़ नहीं है कि कोविड-19 के बाद ऐसे केस बढ़े हैं या नहीं. एक सकारात्मक क़दम के रूप में न्यूरोसाइकोलॉजिकल सेवाएं देने के लिए सेशेल्स में पहला क्लीनिक खोला गया है. इसमें ऑटिज़्म, डिसलेक्सिया, ADHD, पढ़ने में कमज़ोरी और विकास में देरी जैसी बच्चों की समस्याओं का इलाज किया जाएगा.
सेशेल्स में कम उम्र की लड़कियों के गर्भ धारण की चुनौती हमेशा से ही बनी रही है. यहां पर किशोरियों के मां बनने का औसत दुनिया के औसत से कहीं ज़्यादा है. हालांकि, वर्ष 2020 में 10 से 19 साल उम्र की लड़कियों के बच्चों के जन्म देने की संख्या 2019 की तुलना में तीन प्रतिशत कम हुई है. हालांकि, किशोरियों के मां बनने की दर अब भी चिंताजनक बनी हुई है. लेकिन, ये साफ़ नहीं है कि ये गिरावट महामारी के प्रतिबंधों के चलते आई, जानकारी बढ़ने से हुई या फिर जन्म दर नियंत्रित करने की सुविधाएं बढ़ने से हुई है.
ये बात तय है कि इस महामारी का कुछ बच्चों पर ताज़िंदगी बुरा असर बना रहेगा. लेकिन सही आंकड़ों की कमी और कई बार बेतुके आंकड़े होने से इन बच्चों के भविष्य का आकलन कर पाना मुश्किल होता है. महामारी से पहले से ही बच्चे, हिंसा, ज़ुल्म, शोषण और जलवायु परिवर्तन के बुरे असर के शिकार थे; कोविड-19 ने इन मुश्किलों को बढ़ाने का ही काम किया है. आने वाले समय में यही चुनौतियां, सेशेल्स के ‘महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों’ का भविष्य तय करेंगी.
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Malshini Senaratne is a lecturer at the University of Seychelles and a Director with Eco-Sol Consulting Seychelles. Her research interests include entrepreneurship Blue Economy ecosystem ...
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