Published on May 16, 2024 Updated 0 Hours ago

UK के रवांडा अधिनियम का न केवल पश्चिमी देशों बल्कि ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के लिए भी बड़ा मतलब है.

दूसरे देशों को माइग्रेशन की ज़िम्मेदारी देना: ग्लोबल साउथ के देशों के लिए एक फिसलन भरी ढलान!

जब प्रधानमंत्री ऋषि सुनक 2022 के आख़िर में चुने गए तो उन्होंने प्रण लिया था कि वो “नावों को रोकेंगे”. वो मजबूरी में पलायन करने वाले प्रवासियों की तरफ इशारा कर रहे थे जो अवैध, ख़तरनाक और अक्सर गैर-ज़रूरी तरीकों का इस्तेमाल करके मुख्य रूप से नाव के ज़रिए यूनाइटेड किंगडम (UK) में प्रवेश करते हैं. इसके बाद 22 अप्रैल को ब्रिटिश संसद के द्वारा एक कानून पारित किया गया जो किसी भी अवैध ढंग से शरण चाहने वाले आवेदक को पूर्वी अफ्रीकी देश रवांडा में निर्वासित (डिपोर्ट) करने की अनुमति देता है और फिर उसे दोबारा UK में प्रवेश करने से हमेशा के लिए रोकता है.

वैसे, चूंकि एंट्री करने के लिए कोई रिफ्यूजी वीज़ा या दूसरा वैध ज़रिया नहीं है, ऐसे में इस नियम का वास्तव में ये मतलब है कि सभी शरण चाहने वालों को UK में प्रवेश करने से रोका गया है. कानून में कहा गया है कि 1 जनवरी 2022 के बाद UK में अवैध ढंग से आने वाले किसी भी व्यक्ति को रवांडा भेजा जाएगा. इस प्रकार अगर ये कानून लागू किया जाता है तो इस बात की संभावना है कि वर्तमान समय में UK में रहने वाले 50,000 शरण मांगने वालों को अंतत: रवांडा निर्वासित किया जाएगा. नाव के ज़रिए UK आकर पनाह चाहने वाले लोग जिन देशों के हैं, उनमें पांच प्रमुख देश हैं अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश.

इस कानून की शुरुआत अप्रैल 2022 में हुई थी जब रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे और ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 'माइग्रेशन एंड इकोनॉमिक पार्टनरशिप (प्रवासन एवं आर्थिक साझेदारी)' नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.

इस कानून की शुरुआत अप्रैल 2022 में हुई थी जब रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे और ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 'माइग्रेशन एंड इकोनॉमिक पार्टनरशिप (प्रवासन एवं आर्थिक साझेदारी)' नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे 'रवांडा प्लान' के नाम से भी जाना जाता है जिसके तहत ब्रिटेन को अनुमति मिलेगी कि वो शरण मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को रवांडा निर्वासित कर सकेगा. चूंकि 2022 में नाव के ज़रिए आने वाले शरणार्थियों की संख्या 2018 के महज़ 299 की तुलना में बढ़कर रिकॉर्ड 45,774 पर पहुंच गई, ऐसे में इमिग्रेशन (अप्रवासन) UK की संसद में एक बहुत ज़्यादा बहस का मुद्दा बनकर उभरा है.

फिर भी यूरोप के मानवाधिकार कोर्ट (ECHR) ने इस कानून को अवैध ठहराया और जून 2022 में शरणार्थियों को लेकर उड़ने वाले पहले विमान को रोक दिया है. इसके अलावा नवंबर 2023 में ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने रवांडा प्लान को अवैध घोषित करने के पहले फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने इसके पीछे ये दलील दी कि अगर प्रवासी वापस जाते हैं तो उन्हें अपने देश या दूसरे देश जैसे कि रवांडा में अत्याचार का सामना करना पड़ सकता है. इससे ब्रिटिश और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों और संधियों का उल्लंघन होगा. 

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जताई गइ चिंताओं के जवाब में प्रधानमंत्री सुनक ने रवांडा के साथ एक नए समझौते रवांडा सुरक्षा (शरण एवं अप्रवासन) अधिनियम का प्रस्ताव दिया. संक्षेप में कहें तो नया अधिनियम सभी कानूनी बाधाओं को पार करेगा और रवांडा को शरण मांगने वालों के लिए सुरक्षित घोषित करेगा. इसके अतिरिक्त ये नया कानून रवांडा को अपने किसी भी शरणार्थी को वापस ब्रिटेन के अलावा किसी दूसरे देश भेजने से रोकेगा. 

फैसले के पीछे आर्थिक औचित्य ये तथ्य है कि ब्रिटेन शरणार्थी दावों से निपटने में हर साल 3 अरब पाउंड से ज़्यादा खर्च करता है. इसके अलावा इन प्रवासियों के आवेदन पर कार्रवाई करने से पहले  तक उनको होटल और दूसरी जगहों में रखने पर रोज़ का खर्च लगभग 8 मिलियन पाउंड से ज़्यादा है. तथ्य ये है कि रवांडा को किसी भी निर्वासन से पहले ही ब्रिटेन से 200 मिलियन पाउंड से ज़्यादा मिल चुका है और ये उम्मीद की जाती है कि उसे 600 मिलियन पाउंड या उससे भी ज़्यादा रकम 300 शरणार्थियों को बसाने के लिए मिलेगी. इस बीच कानून को हर किसी की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है- सुनक की अपनी कंज़र्वेटिव पार्टी से लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त (UNHCR) तक से. 

ग्लोबल साउथ के लिए मतलब 

रवांडा की सरकार के ख़िलाफ़ बार-बार मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के बावजूद इन प्रवासियों को रखने की सरकार की उत्सुकता से रवांडा के प्रति कोई दुश्मनी नहीं भड़कनी चाहिए. रवांडा ने हाल के इतिहास में शायद सबसे बड़े नरसंहार को झेला है और वो आज दृढ़ता, सामर्थ्य एवं अस्तित्व का जीता-जागता उदाहरण बना हुआ है. 

गृह युद्ध के दौरान हुतु की अगवाई में तूत्सियों के सामूहिक विनाश और अत्याचार के नतीजतन रवांडा के ज़्यादातर लोगों का आज प्रवासियों के साथ मज़बूत संबंध है. इसके अलावा हाल के दिनों में और काफी हद तक पश्चिमी देशों की नज़रों से दूर बड़ी संख्या में प्रवासी अभी भी DRC (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो) या बुरुंडी जैसे पड़ोसी देशों में चल रही ख़ौफ़नाक हिंसा से ख़ुद को बचाने के लिए रवांडा आ रहे हैं.  

कई अन्य देशों के विपरीत रवांडा में शरणार्थियों को अपने घरों में आज़ादी से रहने, काम करने, संपत्ति रखने, व्यवसाय करने और बैंक खाता खोलने की अनुमति है. 

रिफ्यूजी इंटरनेशनल के द्वारा प्रकाशित 2023 के अध्ययन के अनुसार मौजूदा समय में रवांडा में लगभग 1,35,000 शरणार्थी हैं. कई अन्य देशों के विपरीत रवांडा में शरणार्थियों को अपने घरों में आज़ादी से रहने, काम करने, संपत्ति रखने, व्यवसाय करने और बैंक खाता खोलने की अनुमति है. वास्तव में “आर्थिक समावेशन” से जुड़ी रवांडा की शरणार्थी नीतियां “पूर्वी अफ्रीका और दूसरे क्षेत्रों के लिए सबक के साथ एक मॉडल के तौर पर सामने आती हैं.” हाल के वर्षों में UNHCR के साथ तालमेल के तहत रवांडा ने कई बार उन शरणार्थियों को लिया है जिन्हें लीबिया के कुख्यात हिरासत केंद्रों (डिटेंशन सेंटर) से बचाया गया था. इसके अलावा रवांडा विवादित और अब रद्द हो चुके उस समझौते का भी हिस्सा था जिसके तहत इज़रायल के द्वारा ठुकराए गए शरणार्थियों को स्वीकार करना था. रवांडा ने इस समझौते के तहत इज़रायल के द्वारा निर्वासित 4,000 शरणार्थियों को लिया भी था.  

रवांडा के इतिहास के बावजूद मौजूदा कानून लागू होने वाला है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने कहा है कि पहली फ्लाइट 10 से 12 हफ्तों में उड़ेगी. वैसे तो बड़ी संख्या में शरणार्थियों को जगह देने की रवांडा की क्षमता पर शक जताया जा रहा है लेकिन उससे भी बड़ी चिंता ये है कि बाकी यूरोप के लिए ये कानून एक मिसाल कायम कर सकता है. वास्तव में यूरोप के कई देशों ने इसी तरह का कानून बनाने की अपनी इच्छा का संकेत देना शुरू कर दिया है. ज़्यादा संभावना ये है कि वो दूसरे देशों में प्रवासियों को बसाने का अपना मॉडल विकसित करने के लिए UK के प्रयोगों पर नज़र रख रहे हैं.

वास्तव में UK कोई अकेला देश नहीं है जो दूसरों की सहायता पर खर्च होने वाली रकम को कम करने की इच्छा रखता है. जर्मनी में कंज़र्वेटिव विपक्ष भविष्य में आने वाले शरणार्थियों को EU से अलग यूरोपीय देशों जैसे कि मॉल्डोवा और जॉर्जिया या अफ्रीका में घाना और रवांडा जैसे देशों में भेजने का समर्थन करता है जहां उनके शरण से जुड़े दावों पर कार्रवाई की जा सकती है. इस बीच इटली अपने यहां शरण मांगने वालों को अल्बानिया निर्वासित करने पर विचार कर रहा है. अल्बानिया की संसद ने इससे जुड़े समझौते को पहले ही मंज़ूरी दे दी है और वो हर साल 36,000 शरणार्थियों को ले सकता है. ऑस्ट्रिया ने भी इसी तरह की योजनाओं को लागू करने में दिलचस्पी का संकेत दिया है.

इन शरण चाहने वालों के भविष्य के अलावा मेज़बान देशों के लिए कई गंभीर चिंताएं होंगी. उदाहरण के लिए, अगर प्रवासी समूह दुर्लभ संसाधनों या नौकरियों के लिए एक-दूसरे से मुकाबला करना शुरू कर देते हैं तो वहां के नागरिकों को क्या करना चाहिए? पश्चिमी देश मजबूरी में पलायन का भले ही खुलकर समर्थन नहीं करते हों लेकिन शरणार्थियों की नाव को दूसरे देश की तरफ भेजना निर्दयता है. तथ्य ये है कि जल्द लागू होने वाली रवांडा नीति की छाया के बावजूद इस साल 6,250 से ज़्यादा प्रवासी इंग्लिश चैनल पार करके UK पहुंचे हैं. 

नावों की दिशा दूसरी तरफ मोड़कर ब्रिटेन उन्हें अपने तटों तक पहुंचने से रोक सकता है. लेकिन ये उपाय पनाह मांगने वालों को अपने देश से भागने से नहीं रोक सकता है. शरण मांगने वालों की अलग-अलग देशों की पृष्ठभूमि और उनके अपने देशों में हिंसा और सामाजिक अशांति के लिए प्रवृत्ति को देखते हुए ये शरणार्थी और अधिक ख़तरा उठा सकते हैं. जब तक उनके अपने देशों में शांति स्थापित नहीं हो जाती तब तक उन्हें संस्थागत समर्थन नहीं देना उन लोगों के साथ घोर अन्याय होगा जिन्हें इसकी आवश्यकता है.

ये साफ है कि “नावों को रोकना” एक जटिल चुनौती का एक अस्थायी समाधान है. वास्तव में मजबूरी में पलायन कई पश्चिमी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है. दुर्भाग्य से इसके लिए कोई आसान समाधान उपलब्ध नहीं है. 

ये साफ है कि “नावों को रोकना” एक जटिल चुनौती का एक अस्थायी समाधान है. वास्तव में मजबूरी में पलायन कई पश्चिमी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है. दुर्भाग्य से इसके लिए कोई आसान समाधान उपलब्ध नहीं है. कम से लेकर मध्यम अवधि (मीडियम टर्म) में इस समस्या से निपटने के लिए अलग-अलग देशों के पास सहयोग के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसके अलावा मजबूरी में पलायन की समस्या को मोड़ने, रोकने और नज़रअंदाज़ करने के लिए रवांडा के साथ UK का समझौता बेहद अमानवीय, बहुत खर्चीला और बेअसर है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सीमा को बंद करने की इस तरह की एकतरफा नीति से वैश्विक संरक्षण प्रशासन की संरचना घातक रूप से और पूरी तरह से कमज़ोर हो जाएगी. 

इस कानून के ख़िलाफ़ जिस स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं उससे एक स्पष्ट संदेश मिलता है: जिन लोगों को माइग्रेशन की ज़रूरत है, आम लोग अभी भी उनका स्वागत कर रहे हैं. वैसे तो रवांडा अधिनियम के पूरे असर को देखा जाना अभी भी बाकी है लेकिन ग्लोबल साउथ के कई देश निवेश आकर्षित करने के एक आसान तरीके के रूप में माइग्रेशन आउटसोर्सिंग सर्विस (दूसरे देशों को माइग्रेशन का ज़िम्मा) पर विचार कर सकते हैं और ये गलत दिशा में रेस को बढ़ावा दे सकता है. इस फिसलन भरी ढलान का नतीजा ग्लोबल साउथ के लिए नुकसान वाला होगा.


समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं. 

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