जल पहला ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के अधिकांश प्रभाव को महसूस किया जा रहा है. जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है और जलवायु स्वरूप में एक सतत बदलाव चल रहा है, इसका सीधा प्रभाव जल चक्र पर पड़ना तय है, जिसका प्रभाव मानव समाज और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा. चाहे बाढ़ और सूखे जैसे पर्यावरण की चरम स्थिति हो, बर्फ के आवरण में कमी और ग्लेशियरों का पिघलना हो या समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी और तूफान की स्थिति हो, ये सभी मीठे पानी की उपलब्धता के लिए बड़े ख़तरे हैं. इसलिए आईपीसीसी की नई पेशकश – कार्य समूह III द्वारा छठी आकलन रिपोर्ट, जो जलवायु परिवर्तन के शमन को लेकर है, वह इस महत्वपूर्ण अंतःसंबंध पर ज़ोर देती है. आदर्श रूप में, इसी मूल्यांकन चक्र के दौरान पिछली रिपोर्ट जो असर, अनुकूलन और ख़तरे के साथ गंभीर संयोजन की वास्तविकता को लेकर नई आईपीसीसी रिपोर्ट की पूरी तस्वीर सामने ला सकती है, उसका भी यहां उल्लेख किया जाना चाहिए.
आईपीसीसी की सबसे ताज़ा रिपोर्ट क्या कहती है ?
पर्यावरण सुधार पर नवीनतम रिपोर्ट वैश्विक जलवायु कार्रवाई को लेकर एक गंभीर तस्वीर पेश करती है. मानवजनित स्रोतों से कुल शुद्ध ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्ज़न में साल 2010 और 2019 के बीच बढ़ोतरी जारी रही है जो औद्योगिकीकरण के पहले के समय (1850) के बाद से हुई वृद्धि के अनुरूप है. वास्तव में साल 2010 से लेकर 2019 के बीच औसत वार्षिक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्ज़न पिछले किसी भी दशक के मुक़ाबले अधिक रहा था, भले ही विकास दर पिछले दशक की तुलना में कम हो गई हो. यह एक चेतावनी के रूप में भी सामने आता है कि वैश्विक तापमान को करीब 1.5 ° सेंटीग्रेड तक सीमित करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता होगी जिससे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्ज़न का स्तर साल 2025 से पहले के जैसा ना हो, और बाद में साल 2019 के स्तर की तुलना में 2030 के भीतर 42 प्रतिशत कम हो जाए.
यह एक चेतावनी के रूप में भी सामने आता है कि वैश्विक तापमान को करीब 1.5 ° सेंटीग्रेड तक सीमित करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता होगी जिससे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्ज़न का स्तर साल 2025 से पहले के जैसा ना हो, और बाद में साल 2019 के स्तर की तुलना में 2030 के भीतर 42 प्रतिशत कम हो जाए.
साल 2025 की सीमा सही है इसके लिए भले ही तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को पूरा करना ही क्यों न हो. इसमें अंतर केवल इतना है कि यह 2030 के भीतर एक चौथाई तक कम हो सकता है जिससे कम कार्बन संक्रमण के लिए अधिक लचीलेपन की गुंजाइश दिखती है. रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इस कमी को विशेष रूप से मीथेन में कमी के बराबर करना होगा जो गर्मी को बढ़ाने में सीओ 2 जैसा ही 25-34 गुना ताक़तवर होता है और इसमें 100 साल की ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता होती है. आसान शब्दों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई की अपील करना शायद यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के वैश्विक शोर से ज़्यादा महत्वपूर्ण है लेकिन पारंपरिक सुरक्षा ख़तरों के विपरीत, धीमी शुरुआत के प्रभाव, प्रक्रियाएं, या ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के आसपास की घटनाएं शायद ही किसी युद्ध स्तर के शोर शराबे से मेल खाती हो.
पानी और पर्यावरण बदलाव के बीच इंटरफेस
जब जलवायु परिवर्तन का, अनुकूलन और भेद्यता के प्रभाव पर पिछली रिपोर्ट की व्याख्या की जाती है, तो जो बातें साफ तौर पर दिखती हैं उन्हें नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है. पूरी दुनिया में जल असुरक्षा बढ़ रही है क्योंकि बढ़ते वैश्विक तापमान जल चक्र को बढ़ा रहे हैं जिससे लंबे समय में बदलाव होना तय है. उदाहरण के तौर पर, सामान्य शब्दों में, गर्म हवा अधिक पानी धारण कर सकती है जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है और यह सूखा, जंगल की आग और मरुस्थलीकरण के जोख़िम को बढ़ाने के साथ सूखे की स्थिति पैदा करती है. उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता एक साथ मानव जीवन को ख़तरे में डाल सकती है. इसके बाद, जैसे ही गर्म और गीली हवा ठंडी होती है, यह भारी वर्षा का कारण बन सकती है. हवा के तापमान और परिसंचरण स्वरूप में बदलाव की वजह से इस अतिरिक्त वर्षा का ज़्यादातर भाग उन क्षेत्रों में गिर सकता है जहां इतने पैमाने पर वर्षा पहले नहीं होती है. इससे बाढ़, मिट्टी का कटाव, फसलों का ख़राब होना और यहां तक कि टिड्डियों के प्रकोप जैसी समस्या पैदा हो सकती है. इस प्रकार जलवायु परिवर्तन अलग-अलग स्वरूपों में पहले से मौज़ूद जल संकट को और बढ़ा सकता है.
ताज़ा रिपोर्ट के अध्याय 5 से 11 तक, लागत और क्षमता जैसे एक दूसरे परस्पर सेक्टर के पहलुओं, जैसे की ऊर्जा संक्रमण, जलवायु-स्मार्ट, और शहरी नियोजन, परिवहन के स्वच्छ तरीक़े, और कुशल भवन डिज़ाइन को एक साथ जोड़ते हैं. इस पैमाने पर परिवर्तनों को प्राप्त करने के लिए, ताज़े पानी तक पहुंच महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इनमें से हर महत्वपूर्ण चीजें जल से जुड़ी होंगी. इसके अलावा, इस पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पर पानी के उपयोग के प्रभाव को समझना होगा और किसी भी महत्वपूर्ण व्यापार को नकारने के लिए एक संतुलन बनाने की ज़रूरत होगी. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, जल असुरक्षा के वैश्विक स्तर पर बड़ी चुनौती बनने के बाद भी इस संतुलन को हासिल करना ही होगा. इस प्रकार संभावित जलवायु समाधान असरदार नहीं होंगे अगर सरकारें और निगम ‘जलवायु-स्मार्ट’ रणनीतियों को लागू करने में शामिल जल जोख़िमों का ठीक से आकलन करने में नाकाम रहती हैं. यह सामाजिक रूप से अस्वीकार्य होगा.
खाद्य सुरक्षा को जल सुरक्षा से अलग नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए और जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सबक है.
वर्तमान समय में इन उदाहरणों से यह साफ हो जाता है कि आगे क्या उम्मीद की जा सकती है. उदाहरण के लिए, अधिकांश विकासशील देशों में कृषि को मौसम और वर्षा की अनिश्चितताओं से अलग करने की कोशिश तेज़ी से हो रही है क्योंकि खाद्य सुरक्षा दुनिया के हर देश की प्राथमिकता है. दुनिया के बड़े हिस्से में ज़मीन के पानी से सिंचाई के विस्तार ने पानी के परमाणुकरण की गुंजाइश को बढ़ा दिया है. यह सुनिश्चित करता है कि ना केवल वर्षा सिंचित क्षेत्रों को सिंचित क्षेत्रों में बदला जा सकता है, बल्कि फसल जीवन चक्र की महत्वपूर्ण अवधि के दौरान पानी की अबाध आपूर्ति को भी यह सुनिश्चित करता है. हालांकि ऐसा करने में इसने भूमिगत जल के अनियंत्रित इस्तेमाल और ज़रूरत से ज़्यादा दोहन की आशंका बढ़ा दी है जो कभी-कभी प्रतिस्पर्धात्मक रूप से – आम लोगों की त्रासदी की ओर इशारा करता है. दुनिया भर में ऐसी कई मिसालें हैं जो इस बात को बताती हैं कि बिना सोचे समझे जल संचयन और भंडारण के साथ पानी की निकासी, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा तक पहुंच के साथ मिलकर आने वाले समय में आपदा बन जाएंगी और जो धीरे-धीरे सामने भी आ रही हैं. साफ तौर पर खाद्य सुरक्षा को जल सुरक्षा से अलग नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए और जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सबक है.
तालमेल और व्यापार-नापसंद को ध्यान में रखते हुए
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे जलविद्युत, बायोएनर्जी और परमाणु ऊर्जा की ओर रुख़ करना भी संभावित संघर्ष पैदा कर सकता है क्योंकि स्वच्छ पानी की उपलब्धता दुर्लभ और अनिश्चित हो जाएगी. इसी तरह शहरी क्षेत्रों में लोगों के लगातार आने से और शहरों के विस्तार से भी पानी के भंडार पर ख़तरा मंडरा रहा है, भले ही वे ‘डे ज़ीरो’ स्थिति की ओर दौड़ रहे हों. मुंबई जैसी बड़ी और घनी आबादी वाले शहरों में समान वितरण और पानी तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है. शहरों में नीले और हरे रंग के बुनियादी ढांचे का संरक्षण न केवल जलवायु संबंधी सतर्क शहरों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण होगा बल्कि जलवायु शांति के लिए भी अहम है. आर्द्रभूमि और ताज़ा पानी के पारिस्थितिकी तंत्र सबसे प्रभावी कार्बन सिंक में से एक हैं, जो सूक्ष्म जलवायु को व्यवस्थित करने की क्षमता भी रखते हैं.
नवीनतम आईपीसीसी रिपोर्ट ने अपने शुरुआत में इस बात को रेखांकित किया है कि- “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूल बनाने में जल्द और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई करना सतत विकास के लिए ज़रूरी है. हालांकि जलवायु परिवर्तन की कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप कुछ चीजें बंद भी हो सकती हैं. व्यक्तिगत विकल्पों के ट्रेड-ऑफ़ को नीतिगत डिज़ाइन के ज़रिए प्रबंधित किया जा सकता है”. इस प्रकार जलवायु कार्रवाई और विभिन्न एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के बीच तालमेल, विशेष रूप से वे जो एसडीजी 2 (ज़ीरो हंगर), एसडीजी 3 (अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण) जैसे स्वच्छ पानी की उपलब्धता और पहुंच से संबंधित हैं, और इसके लिए एसडीजी 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता), एसडीजी 11 (सस्टेनेबल सिटीज़ एंड कम्युनिटीज़) और एसडीजी 15 (लाइफ़ ऑन लैंड) को समझना होगा. इसने इन सहक्रियाओं और व्यापार की व्याख्या करने की कोशिश भी की है, जिसे लेकर यह स्वीकार किया गया है कि ये संदर्भ और पैमाने के आधार पर अलग हो सकते हैं. स्वच्छ पानी के संबंध में शमन, अनुकूलन और सतत विकास के बीच संबंध की बेहतर, संदर्भ-विशिष्ट समझ अतीत की ग़लतियों को न दोहराने के लिए ज़रूरी है.
नवीनतम आईपीसीसी रिपोर्ट ने अपने शुरुआत में इस बात को रेखांकित किया है कि- “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूल बनाने में जल्द और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई करना सतत विकास के लिए ज़रूरी है.
इस जुड़ाव को समझना और इसमें शामिल जल जोख़िमों के बारे में जानना भी व्यावसायिक समझ को बढाता है. किसी तरह की जल्दबाज़ी में शमन निर्णय समस्या को बदलने में योगदान दे सकता है, जिससे निवेश जोख़िम में पड़ सकता है. इस प्रकार, निवेशकों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि पानी का जोख़िम व्यावसायिक पोर्टफोलियो को कैसे प्रभावित करता है; और जलवायु और ऐसे जल जोख़िमों के बीच संबंधों से अवगत रहें और शामिल होने के लिए तैयार रहें. ऐसे व्यावसायिक निर्णयों और अधिक नयेपन के पीछे गंभीर सोच ज़रूरी है. समाज को अपनी तरफ से वस्तुओं और सेवाओं के उपभोक्ताओं के रूप में ना केवल सोचने की ज़रूरत है बल्कि अपने उपभोग के कार्बन फुटप्रिंट पर विचार करना चाहिए. कहने की ज़रूरत नहीं है कि इसे प्राप्त करने के लिए अधिक जागरूकता और ज़िम्मेदारी से उपभोग करना महत्वपूर्ण होगा. इसके अलावा पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए, जो पानी की भौतिक और आर्थिक कमी दोनों को बताता है, पानी के इस्तेमाल से संबंधित निर्णयों पर पहुंचने के लिए एक अहम दृष्टिकोण हो सकता है, जो पानी के उपयोग को हर तरह से अनुकूलित करेगा. इसके अलावा, जिन देशों में पानी की कमी है वहां पानी के प्रवाह को समझने के लिए, ख़ास कर कृषि उत्पादों के कारोबार को लेकर बेहद गंभीर विषय बन जाता है. आख़िर में सामूहिक रूप से सुनिश्चित करना पड़ेगा कि पानी के लिए क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में, पारिस्थितिकी तंत्र ताज़ा पानी की पर्याप्त आपूर्ति करे.
ताज़े पानी की उपलब्धता और पर्यावरण बदलाव के बीच कारोबार को नज़रअंदाज़ करने और दोनों के बीच संबंध को और बढ़ाने के साथ इस ओर ज़्यादा से ज़्यादा केंद्रित शोध किए जाने की आवश्यकता है जिससे सबूत आधारित नीतियों के साथ इसका तालमेल बिठाया जा सके.
एक जल आधारित समाज ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र जो अनुकूलन पर आधारित है और सभी ख़ामियों को दूर कर लेता है, जिससे जलवायु शमन के चलते जल संकट नहीं पैदा हो. ताज़े पानी की उपलब्धता और पर्यावरण बदलाव के बीच कारोबार को नज़रअंदाज़ करने और दोनों के बीच संबंध को और बढ़ाने के साथ इस ओर ज़्यादा से ज़्यादा केंद्रित शोध किए जाने की आवश्यकता है जिससे सबूत आधारित नीतियों के साथ इसका तालमेल बिठाया जा सके. और आईपीसीसी रिपोर्ट इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए एक अहम चेतावनी के रूप में काम कर सकता है.
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