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Published on Apr 03, 2024 Updated 0 Hours ago

नाविक 2.0 (NavIC) न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करता है, बल्कि ये भारत को दुनिया में सैटेलाइट नेविगेशन के अग्रणी देशों की क़तार में भी खड़ा करता है.

NavIC के दूसरे संस्करण को लागू करके भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी सामरिक बढ़त का लाभ उठा सकता है

आज जब भारत का प्रभाव हिंद प्रशांत और उसके आगे के क्षेत्र में बढ़ रहा है, तो अंतरिक्ष एक ताक़तवर मंच के तौर पर उभरा है, जो भारत की आकांक्षाओं को कल्पनातीत रफ़्तार से आगे बढ़ा सकता है. अंतरिक्ष में भारत की इस छलांग के केंद्र में नाविक (NavIC) है. ये भारत का स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है. वैसे तो दुनिया के दूसरे नेविगेशन सिस्टम की तुलना में ये छोटा है. लेकिन, ये स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम भारत को अमेरिका (GPS), यूरोप (Galilio), रूस (GLONASS) और चीन (Beidou) की क़तार में खड़ा कर देगा. नाविक के दूसरे संस्करण (NavIC 2.0) की जल्द आमद की संभावना को देखते हुए, भारत अपने मौजूदा क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम से ऊपर उठकर दुनिया के नेविगेशन सेक्टर में दबदबा हासिल कर सकेगा.

नाविक के दूसरे संस्करण (NavIC 2.0) की जल्द आमद की संभावना को देखते हुए, भारत अपने मौजूदा क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम से ऊपर उठकर दुनिया के नेविगेशन सेक्टर में दबदबा हासिल कर सकेगा.

नाविक 2.0 की खूबियां क्या है?

NavIC इस वक़्त 10 उपग्रहों के एक समूह से संचालित होता है. इनमें से नौ सैटेलाइट IRNSS-1a से लेकर IRNSS1l तक हैं. इसके अलावा हाल ही में दसवां उपग्रह NVS-01 लॉन्च किया गया है. इस वक़्त इनमें से केवल पांच सैटेलाइट काम कर रहे हैं, जो जियोस्टेशनरी और जियोसिंक्रोनस कक्षाओं में स्थित हैं. ये स्वदेशी सिस्टम भारत और इसके पास पड़ोस के इलाक़ों में (जो भारत की सीमाओं से लगभग 1500 किलोमीटर तक फैले हुए हैं) एकदम सटीक, भरोसेमंद और सुरक्षित ठिकाने की जानकारी, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) सेवाएं प्रदान करता है.

 

भारत के स्वदेशी क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) की शुरुआत 1999 के दशक से हुई थी; हालांकि, भारत को एक स्वतंत्र सैटेलाइट सिस्टम की सबसे सख़्त सामरिक ज़रूरत कारगिल के युद्ध के दौरान महसूस हुई थी. प्राथमिक तौर पर उपग्रहों के इस समूह का मक़सद सामरिक सेवाएं देना था, ताकि ज़रूरत के वक़्त आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की जा सके. वहीं असैन्य सेवाओं को अंतरिक्ष और ज़मीन पर स्थित उन्हीं मूलभूत संसाधनों के ज़रिए मुहैया कराया जाना था, जो सेना के लिए बनाई जा रही थीं. नाविक दो अलग अलग तरह के उपयोग उपलब्ध कराता है: आम लोगों के लिए स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विसेज़ (SPS) और सामरिक कार्यों के लिए रिस्ट्रिक्टेड सर्विसेज़ (RS). 1 जुलाई 2013 को पहला सैटेलाइट IRNSS-1A लॉन्च किया गया था. उसके बाद से 12 अप्रैल 2018 को पहली पीढ़ी के आख़िरी उपग्रह IRNSS-1l को लॉन्च करने तक नाविक L5 और S फ्रीक्वेंसी बैंड पर संचालित हो रहा था. इसमें विदेशी मूल की रुबिडियम की घड़ियां लगी थीं, जिन्हें इज़राइल से ख़रीदा गया था.

 

पहली पीढ़ी के उपग्रहों के समूह को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इनमें सिग्नल की पहुंच, रेंज, मूलभूत ढांचा और डिज़ाइन में तालमेल की कमी, लागत ज़्यादा होना, दूसरे उपग्रहों के साथ मिलकर काम करना और घड़ी की सटीक टाइमिंग में स्थिरता जैसी मुश्किलें थीं. 2022 तक सात में तीन एटॉमिक घड़ियां काम करना बंद कर चुकी थीं. इन चुनौतियों की वजह से उपग्रहों के इस समूह का लगभग एक दशक तक उसकी वास्तविक क्षमता से कहीं कम उपयोग हो पा रहा था. NVS-01 सैटेलाइट लॉन्च होने के बाद तक इसमें कोई ख़ास बदलाव नहीं आया. यही वजह रही कि नाविक को बिल्कुल नए अवतार में विकसित करने, उसका विस्तार करने और टिकाऊ बनाने को लेकर सामरिक नज़रिए में बदलाव किया गया.

 

हाल ही में दूसरी पीढ़ी का पहला उपग्रह NVS-01 का लॉन्च इस दिशा में बहुत बडी़ प्रगति का प्रतीक है. INRSS सीरीज़ के इस दसवें उपग्रह को IRNSS-1J के नाम से भी जाना जाता है. इस सैटेलाइट ने असैन्य आवाजाही के मामले में L1 फ्रीक्वेंसी बैंड की शुरुआत की है, जिससे NavIC सिस्टम की क्षमता में इज़ाफ़ा हुआ है. NVS-01 सैटेलाइट में एकदम नई तरह की परमाणु घड़ी लगी है. जिसे इज़राइल से ख़रीदी गई पुरानी रुबिडियम घड़ी की जगह लगाने के लिए स्वदेश में ही विकसित किया गया है. बेहतर एनक्रिप्शन सिस्टम के साथ साथ ये सैटेलाइट ज़्यादा सटीक जानकारी, सिग्नल के मामले में बेहतर नतीजे और शहरी घनी बस्तियों से लेकर घने जंगलों तक के मुश्किल हालात में बेहतर ढंग से काम करता है.

 

सामरिक आत्मनिर्भरता

इस वक़्त नाविक केवल पांच पूरी तरह से कार्यरत उपग्रहों के साथ काम कर रहा है (इसमें हाल ही में लॉन्च किया गया NVS-01) उपग्रह भी शामिल है. इनसे सेवा क्षेत्र में न्यूनतम सिग्नल ही मिल पाता है. 2024 में IRNSS-1B और 1C अपनी तय उम्र को पूरा कर लेंगे. इससे उनकी जगह नए सैटेलाइट लॉन्च करने की ज़रूरत और गंभीर हो जाएगी. ऐसे में पुराने की जगह नए उपग्रह भेजने का ये चक्र बमुश्किल ही उपग्रहों के समूह को स्थायी बना पाता है, जबकि ये उपग्रह ज़रूरी सिग्नल औसत रूप से सटीक जानकारी ही दे पा रहे हैं.

उपग्रहों के समूह को बनाए रखने की मौजूदा पारंपरिक व्यवस्था को और मज़बूत बनाना शायद क्रियान्वयन में सफलता का लक्ष्य हासिल करने के लिए एक बुद्धिमानी भरी रणनीति नहीं होगा. क्योंकि, लॉन्च के वक़्त की इस रणनीति का मुख्य मक़सद तो केवल तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन करना था.

NavIC 2.0 को लागू करने का मोटा मोटा मतलब, सैटेलाइट समूह को टिकाऊ बनाने की मौजूदा चुनौती से पार पाते हुए एक प्रभावी वैश्विक सामरिक PNT समाधान मुहैया कराना है. इस बात को इस तरह समझा जा सकता है कि सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम को असरदार और सटीक सिग्नल और जानकारी देने के लिए ज़रूरी 11 सैटेलाइट एक साथ कक्षा में रहें, और सीमित सेवा क्षेत्र के भीतर डेटा का निर्बाध प्रवाह करने वाली मौजूदा स्थिति से आगे बढ़कर कवरेज क्षेत्र का विस्तार हो, ताकि नाविक वैश्विक पहुंच हासिल कर सके. ये बात सैन्य अभियानों के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी है. अगर अभी ऐसा नहीं हो पाता, तो शायद हम अगले पांच वर्षों में हम संचालन के मौजूदा मुश्किल हालात में ही फंसे रहेंगे और पुरानी कमियों को दूर करने में ही अटके रहेंगे. उपग्रहों के समूह को बनाए रखने की मौजूदा पारंपरिक व्यवस्था को और मज़बूत बनाना शायद क्रियान्वयन में सफलता का लक्ष्य हासिल करने के लिए एक बुद्धिमानी भरी रणनीति नहीं होगा. क्योंकि, लॉन्च के वक़्त की इस रणनीति का मुख्य मक़सद तो केवल तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन करना था.

 

आज जब भारत एक वैश्विक ताक़त के तौर पर उभर रहा है, तो स्वदेशी PNT सेवाओं का पूरी दुनिया में करना एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गई है, ख़ास तौर से आपदा के प्रबंधन और सिग्नल वाले क्षेत्रों से बाहर आपातकालीन अभियानों (OOAC) के दौरान. एक क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम से वैश्विक सिस्टम में तब्दीली लाने का काम किस्तों में किया जाना चाहिए. इसके लिए आदर्श तौर पर दो जियोसिंक्रोनस कक्षा (GSO) या फिर जियोस्टेशनरी कक्षा (GEO) के साथ साथ मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO) में स्वदेशी सैटेलाइट के दो समूह हमेशा तैनात रखना होगा, ताकि प्राथमिक क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में सटीक जानकारी मिल सके और पूरी दुनिया में सुरक्षित सामरिक सेवा दी जा सके. दुनिया भर में सैटेलाइट के व्यापक समूह की तैनाती न केवल चुनौती भरी होगी, बल्कि इसे पूरा करने में भी कई साल लग जाएंगे. इस दौरान हमें अपनी आगे की कार्ययोजना को तुरंत ही तैयार कर लेना चाहिए.

 

NavIC 2.0 के GSO और MEO उपग्रहों के समूह की परत, व्यापक कवरेज, लचीलेपन, विस्तार की क्षमता और लचीलेपन के कारण कहीं बेहतर सेवा दे सकेगी. MEO कक्षाओं में सैटेलाइट प्रक्षेपण के प्रस्ताव से पूरी दुनिया में बिना किसी दिक़्क़त के निर्बाध रूप से PNT का कवरेज मुहैया कराया जा सकेगा, बल्कि इससे धरती पर निगरानी के काम ले सकने की क्षमता भी होगी. वहीं, GSO उपग्रहों का समूह, सैन्य अभियानों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में PNT की प्रतिबद्ध और सुरक्षित कवरेज दे सकेगा. नाविक के भविष्य के जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (GSO) के उपग्रहों के जत्थे की क्षमता का अधिकतम इस्तेमाल न केवल प्राथमिक PNT सेवाएं देगा, बल्कि सैन्य अभियानों के मामले में अपेक्षित बढ़त मुहैया कराकर सेनाओं की क्षमता में वृद्धि कर सकेगा. ये मंच न केवल अलग अलग सामरिक उपयोगों जैसे कि अपनी ज़रूरत वाले इलाक़े की निरंतर निगरानी के लिए जटिल पे-लोड लॉन्च करने का माध्यम बनेगा, बल्कि ये स्पेस सिचुएशन अवेयरनेस (SSA), टेलीमेट्री, ट्रैकिंग ऐंड कमांडिंग (TT&C), ब्रॉडकास्ट मैसेजिंग सर्विसेज़, ट्रैकिंग ऐंड डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम (TDRSS) और इंटर सैटेलाइट लिंक (ISL) सेवाएं भी देगा. इन एप्लिकेशन से सेनाओं की निगरानी, संचार और कमांड ऐंड कंट्रोल की क्षमताओं को काफ़ी बल मिलेगा.

 

PNT सेवाओं के मामले में सामरिक रूप से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए इसके ज़मीनी हिस्से का विस्तार करना होगा और इसमें ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों का समावेश करना होगा, ताकि अनिवार्य रूप से यूज़र के लिए एक मज़बूत और पूरी तरह सुरक्षित सेगमेंट विकसित किया जा सके. सारे सैन्य प्लेटफॉर्म जहां PNT सेवाओं की ज़रूरत है, फिर चाहे वो नेविगेशन हो, लक्ष्य निर्धारित करना हो, तैनाती करनी हो, स्थानीय परिस्थितियों से मिलान करना हो, ठिकाना बताना हो या फिर रेफरेंसिंग और अन्य संबंधित उपयोग करने हों, उनकी पहचा करके एक सुरक्षित स्वदेशी NavIC यूज़र RS मॉड्यूल के साथ एकीकृत करना होगा. वो सैन्य उपकरण जहां स्वतंत्र स्रोतों से प्राप्त GPS का इस वक़्त इस्तेमाल हो रहा है, उनकी जगह NavIC के RS मॉड्यूल का उपयोग शुरू करना होगा, ताकि एक व्यापक और विस्तारित यूज़र बेस सुनिश्चित हो सके. NavIC को एक बार पूरी तरह तैनात करके उसे लागू करने से भविष्य के C4ISR सिस्टमों के लिए एक आदर्श और सुरक्षित संचार व्यवस्था का ढांचा स्थापित किया जा सकेगा.

 

NavIC 2.0 की सामरिक कार्य योजना

बर्बाद हुए वक़्त की भरपाई करने के लिए भारत को चाहिए कि वो नाविक के दूसरे संस्करण से वैश्विक स्तर पर कवरेज देने के लिए एक साथ अंतरिक्ष, ज़मीन और यूज़र वाले हिस्सों के बीच तालमेल बनाकर काम करें. नाविक 2.0 के बेहतर एप्लिकेशन न केवल इसके सैन्य उपयोग में भारत को बढ़त देंगे, बल्कि इससे भारत, ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम के चार बड़े खिलाड़ियों यानी अमेरिका, चीन, रूस और यूरोप की क़तार में खड़ा हो सकेगा. इसीलिए, ऊपर जिन सामरिक पहलुओं का ज़िक्र किया गया है, उन पर काम शुरू हो जाना चाहिए, ताकि NavIC की सेवाएं 2028 तक वैश्विक स्तर पर उपलब्ध कराई जा सकें.

 

अंतरिक्ष का क्षेत्र: पुराने उपग्रहों की उम्र बढ़ने और ठीक से काम न करने की वजह से उनकी जगह 2025 तक नए सैटेलाइट प्रक्षेपित करने होंगे. इसके अलावा मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO) में 12 और उपग्रह 2028 तक लॉन्च करने होंगे (बाद में 2035 तक इन उपग्रहों की तादाद बढ़ाकर 24 या इससे भी ज़्यादा करनी होगी). इन उपग्रहों के रक्षा क्षेत्र में उपयोग की योजना बनाने की ज़िम्मेदारी इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (HQ IDS) और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL)/ ISRO और अंतरिक्ष के निजी क्षेत्र को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साथ दी जानी चाहिए.

 

ज़मीनी क्षेत्र और कार्यकारी इकाइयां: स्ट्रैटेजिक कंट्रोल केंद्रों, टाइमिंग की सुविधाओं, निगरानी के एकीकृत स्टेशनों और टू-वे रेंज के स्टेशनों के एक तेज़ रफ़्तार सुरक्षित और ख़ास नाविक के मुताबिक़ ढले नेटवर्क की स्थापना करनी होगी, जिसे 2025 तक पूरी तरह तैयार कर लेना होगा. तीनों सेनाओं के अलग अलग उपयोग के लिए मिलिट्री ग्रेड के मानक वाले पूरी तरह सुरक्षित मॉड्यूल तैयार करने होंगे और ये काम सैटेलाइट लॉन्च होने से पहले पूरा करना होगा.

आज जब भारत पुराने उपग्रहों की जगह नए सैटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है और ज़मीनी स्तर पर इसके लिए ज़रूरी सेवाओं की स्थापना करने जा रहा है

सेवाएं: NavIC के ज़रिए बेहद महत्वपूर्ण वन-वे पोज़िशन के साथ साथ, नेविगेशन, टाइमिंग और लक्ष्य निर्धारित करने की जो सेवाएं मिलती हैं, उनके अलावा ब्रॉडकास्ट सेवाओं की मैसेजिंग और टू-वे ट्रांसमिशन भी बेहद आवश्यक हैं. तभी जाकर राष्ट्रीय सुरक्षा के इस स्वदेशी नेटवर्क का भरपूर इस्तेमाल किया जा सकेगा.

 

निष्कर्ष

नाविक 2.0 एक बहुत बड़े बदलाव का प्रतीक है. ये भारत को नेविगेशन की क्षेत्रीय शक्ति से वैश्विक महाशक्ति में बदल देगा. सुरक्षा के मामले में इसके उपयोग के लिए अंतरिक्ष और ज़मीनी हिस्सों को स्थापित करने और मज़बूत करने के सामरिक पहलू ने NavIC 2.0 वो सक्रिय भूमिका दी है, जिसका लंबे वक़्त से इंतज़ार था. जिस सामरिक रूप-रेखा का ज़िक्र किया गया है, वो नाविक 2.0 को बेहतर फीचर्स, वैश्विक कवरेज और सटीक सैन्य जानकारियां देने वाली सेवा के तौर पर परिवर्तित करेंगे. आज जब भारत पुराने उपग्रहों की जगह नए सैटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है और ज़मीनी स्तर पर इसके लिए ज़रूरी सेवाओं की स्थापना करने जा रहा है, तो NavIC 2.0 भारत को PNT सेवाएं देने वाली वैश्विक शक्तियों की क़तार में खड़ा कर देगा. ये सामरिक पहल न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूती प्रदान करेगी, बल्कि कारोबारी स्तर पर भी ये भारत को ग्लोबल सैटेलाइट नेविगेशन के अग्रणी देशों के साथ खड़ा कर सकेगी. NavIC से NavIC 2.0 का ये सफर, राष्ट्रीय अंतरिक्ष सुरक्षा के क्षेत्र में तकनीकी तरक़्क़ी और आत्मनिर्भरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का सबूत है.

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