Author : Sanjay Ahirwal

Published on Jan 18, 2018 Updated 0 Hours ago

अब समय आ गया है की आतंकवाद को नए क़िस्म का युद्ध बनाने से रोका जाए और जो देश आतंकवाद का इस्तेमाल कर आढ़े हैं उन पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाए।

आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग ज़रूरी पर हर देश को अपनी लड़ायी ख़ुद लड़नी पड़ेगी

Source Image: फोटोलेब्स@ORF

जैसे-जैसे सरकार विरोधी ताकतों (नॉन स्टेट एक्टर्स) को संप्रभुता और राज्य जैसे ज्यादा फायदे मिलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे आंतकवाद से खतरे की मौजूदा धारणा को भी चुनौती मिल रही है। एक्टर्स, नेटवर्क और संस्थाओं के उभरते स्ट्रक्चर की मांग है कि आंतक विरोधी तरीकों पर एक बार फिर से विचार किया जाए। हालांकि कट्टरपंथ के फैलाव और बढ़ती प्रकृति से यह चुनौती आज बहुत मुश्किल हो गई है। आंतकी राज्यों (टेरर स्टेट) से बढ़ते खतरे और इस डिजिटल युग के आंतकी समूहों से इंटरनैशनल ऑर्डर कैसे निपट सकता है इस पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।

भारतीय सेना अध्यक्ष जेनरल बिपिन रावत ने साफ़ कहा की पहले अंतर राष्ट्रीय समुदाय को यह साफ़ करना चाहिए की आतंकी और आतंकवाद की परिभाषा क्या है? आतंकियों को आज़ादी की लड़ायी लड़ने वाले नहीं कहा जा सकता। जो कोई हिंसा का रास्ता अख़्तियार कर रहा है उसे आतंकवाद क़रार देना चाहिए। जो देश आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे है, पैसा और हथियार मुहैय्या करा रहे हैं उनके बारे में दुनिया जानती है। उनसे निपटने के कारगर उपाए करने चाहिए। आतंकवाद की मदद कर रहे पैसे के सोत्रों पर पूरी तरह से क़ाबू पाया जाना चाहिए। जहाँ से आतंकी गुटों को हथियार मिलते हैं उन सोत्रों पर पूरी तरह से अंकुश लगे। हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ यह सुनिस्चित करें की हर हथियार पर सही तरह से लेबेल्लिंग हो ताकि वो कहाँ से पाया गया है उस का पता चल सके। उस से भी बड़ा ख़तरा जैविक, रासायनिक और परमाणु हथियारों से पैदा हो सकता है अगर यह आतंकवादी गुटों के हाथों में पड़ गए। इन सब ख़तरों से निपटने के लिए ज़रूरी है की इन ताक़तों को अपनी आयडीआलॉजी बढ़ाने से रोका जाए। इन को मीडिया का इस्तेमाल ना करने दिया जाए। अब समय आ गया है की आतंकवाद को नए क़िस्म का युद्ध बनाने से रोका जाए और जो देश आतंकवाद का इस्तेमाल कर आढ़े हैं उन पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाए।

लेकिन जैसा की मेजर जेनरल अमोस गिलेयड ने साफ़ किया की आतंकवाद से लड़ायी हर देश को अकेले ही लड़नी होगी। आप को अपने को मज़बूत बनाना होगा। अंतर्रष्ट्रिया सहयोग मिलता रहेगा लेकिन पहली प्राथमिकता है आतंकवादी को अपने मंसूबों में कामयाब होने से रोकना। उसे अपने मक़सद में कामयाब नहीं होने दिया जा सकता। जब वो कामयाब होते हैं तभी उनकी शक्ति बढ़ती है। और यही लड़ायी इस्राएल बड़ी कामयाबी से लड़ रहा है।

रूस के डूमा सदस्य व्याचेस्लाव निकोनोव ने भी आतंकवादियों तक पहुँच कर उनको ख़त्म करने की रणनीति पर ज़ोर दिया। और यही नीति ISIS के ख़िलाफ़ रूस ने सीरिया में अपनायी। उनके अनुसार इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए की आतनवाद के ख़िलाफ़ लड़ायी और उस का ख़ात्मा चुनी हुई सरकारें ही कर सकतीं हैं। इस लिए बसशर एल असद की मदद ज़रूरी थी। इस बात पर हुई नोंक झोंक ने साफ़ किया की विश्व की ताक़तें आतंकवाद की किस नज़र से देख रहीं हैं। एक तरफ़ शिया और ईरान को समर्थन देने वाली ताक़तें है तो ठीक उसकी उलटी तरफ़ सुन्नियों को मदद करने वाली ताक़तें है जो की सीरिया, लीबीया, मिस्त्र में ऑपरेशन में हिस्सा ले चुकी हैं।

और इसी परेशानी को उजागर किया हूसेन हक्कानी ने जिन होने साफ़ कहा की सब जानते हैं उन देशों को जो आतंकवाद की मदद कर रहे हैं। छोटे देशों के ख़िलाफ़ बड़ी ताक़तों ने तो तुरंत कार्यवाही कर दी लेकिन उन बड़े देशों का क्या जो खुले आम आतंकियों को पैसे और हथियारों से मदद पहुँचा रहे हैं। अब इनका साथ देने के लिए वो बड़े देश भी आगे आ गए हैं जिन की संयुक्त राष्ट्र में चलती है जिस के कारण सुरक्षा परिषद असली आतंकियों और मदद देने वाले राष्ट्रों के ख़िलाफ़ कार्यवाही नहीं कर पाती। इन नए रिश्तों से जुड़ी हुई इस दुनिया में जिनमें कहानी को आकार देने की योग्यता होती है, उन्हें बहुत सी ताकत मिल जाती है।

इस लिए ज़रूरी है की आप अपनी लड़ायी ख़ुद लड़ें। और राजनीतिक तौर पर आप इतने मज़बूत हों की आतंकवाद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन करने के बाद आपको अंतरराष्ट्रीय समुदाय वाह-वाही दे और आतंकवाद से लड़ने के लिए सहयोग देता रहे।

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