Published on Nov 23, 2021 Updated 0 Hours ago

अब जब भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरों को हासिल करने की प्रतिज्ञा कर ली है, हमारे पास ऊपर से नीचे के दृष्टिकोण को अपनाते हुए हरित नीतियों की राह को संस्थागत करने का पर्याप्त समय है.

नेट ज़ीरो का संस्थानीकरण

भारत ने  वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन को लेकर प्रतिबद्धता जताते हुए ग्लासगो में परिवर्तन का समय मोल लिया है. वैश्विक कार्बन घेरे और अपने बेहतर तकनीकी और आर्थिक संसाधनों को कम करने में ज़्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने अपने दोषों के अनुरूप वर्ष 2050 के आसपास की समय सीमा ली है.

चीन ने “2030 से पहले” उत्सर्जन का पीक, लेकिन नेट ज़ीरों के लिए “2060 से पहले” तक का लंबा परिवर्तन काल का चुनाव किया है- जो उनके विकासशील देश की हैसियत और प्रतिस्पर्धी विकास की आवश्यकता को लेकर सहमति लेकिन पूर्णतया “विभेदित उत्तरदायित्वों” के सिद्धांतों के अनुरूप है. इंडोनेशिया ने चीन का ही अनुसरण किया है.

लंबे भारतीय कट ऑफ डेट का मकसद व्यवस्थित तरीके से बदलाव सुनिश्चित करना है; हालांकि दीर्घकालिक योजना अल्पकालीन लोकतांत्रिक राजनीतिक दौर के साथ पंक्तिबद्ध कम ही होती है. दूर भविष्य में भावी प्रशासनों के लिए प्रतिबद्धताओं को टालना असुविधाजनक हो सकता है.

लंबे भारतीय कट ऑफ डेट का मकसद व्यवस्थित तरीके से बदलाव सुनिश्चित करना है; हालांकि दीर्घकालिक योजना अल्पकालीन लोकतांत्रिक राजनीतिक दौर के साथ पंक्तिबद्ध कम ही होती है. 

सोचिए कि लोकसभा का 88 प्रतिशत– भारत का सीधेतौर पर चुना हुआ, राष्ट्रीय विधानमंडल- 40 साल से अधिक आयु का है और भारत की एक तिहाई आबादी 35 साल से अधिक आयु की है- वर्तमान में ज़्यादातर सक्रिय कामगार हैं, जिनके ऊर्जा परिवर्तन की तकलीफ का अनुभव करने की संभावना कम है. लेकिन भारत एक युवा देश है और नौकरियों, आय या कल्याण पर असर डालती जलवायु कार्रवाई की विशिष्टता उन दो तिहाई भारतीयों के लिए महत्व रखता है जो 35 साल की उम्र से कम हैं.

क्या वैश्विक सहयोग, जलवायु कार्रवाई के कारण आर्थिक खलल से जुड़े डर को खत्म करेगा जैसा कि ग्लासगो में “कोयले के अंत” का स्वागत किया गया था ? वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बारे में भी सोचिए जिसने चीन और अमेरिका और उनके अपने मित्र देशों के बीच संघर्ष को बढ़ाया है या अंतरराष्ट्रीय व्यापार का शस्त्रीकरण किया है और निर्णायक समिति के पास अब भी इस बात का जवाब नहीं है कि पिछले तीन दशकों से चल रही खुली, नियम-आधारित, वैश्विक अर्थव्यवस्था से हुए फायदे अगले तीन दशकों तक कायम रहेंगे या नहीं.

इसके बावजूद, शांति और गरीबी उन्मूलन दो चमकते उदाहरण हैं जहां दीर्घकालिक वैश्विक सहयोग, परिणामों की कुशल निगरानी और बहुस्तरीय बातचीत ने समृद्धि के लंबे युग का निर्माण किया है.

निसंदेह, स्थानीय हिंसा अब भी व्याप्त है और देशों में उथल-पुथल होती है- म्यांमार और इथिओपिया इसके हाल के दो उदाहरण हैं. ऐसे 22 संघर्ष-प्रभावित देश हैं, साथ ही अन्य 17 हैं जो संस्थागत रूप से से कमज़ोर हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय उत्पाद व्यापार 1970 में वैश्विक जीडीपी के 19.4 प्रतिशत से दोगुना होकर 2020 में 4106 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जिसने विश्व की गरीबी को कम करने में मदद की है, जो, 1.9 प्रतिदिन अमेरिकी डॉलर (2011 पीपीपी) से कम आय की मीट्रिक गणना का इस्तेमाल करते हुए, 1981 में 42.7 प्रतिशत से 2017 तक 9.3 प्रतिशत तक घटी है. भारत में, इसी मीट्रिक के तहत हुई गणना में, गरीबी स्तर 1977 में 63.1 प्रतिशत से कम होकर 2011 में 22.5 प्रतिशत तक हो गई है. सतत विकास लक्ष्यों का टार्गेट 2030 तक गरीबी खत्म करना है.

ठीक इसी तरह, ऊर्जा परिवर्तन के लिए 2020 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के द्विपक्षीय सहयोग की प्रतिबद्धता देने में विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा जारी ढीलापन यह दर्शाता है कि देशों को अंतर को भरने के लिए निजी आर्थिक प्रबंध को आकर्षित करने में आत्मनिर्भर होना होगा.

मोदी सरकार पारस्परिक विपरीत लक्ष्यों जैसे कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए संसाधन जुटाने के साथ ही गरीबी उन्मूलन से निपटने जैसे भविष्य के अकेले आर्थिक संघर्ष से परिचित है. राजकोषीय शुद्धता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो उसने, मैक्रो-आर्थिक विश्वसनीयता को बनाये रखा है, जबकि वैश्विक आर्थिक रीति ने कोविड 19 महामारी के दौरान पैसों की उपलब्धता पर ज़ोर दिया.

सरकार की अफगानिस्तान के तालिबानीकरण पर खामोश प्रतिक्रिया- जो नये “all weather” मित्रों पाकिस्तान और चीन की भू-अस्थिरीकरण की उपलब्धियों में एक और तमगा है- सतर्कता का एक और उदाहरण है जिस पर सरकार चीन की तरफ से बाहरी खतरों और उकसावा होने पर चलना चाहती है, जिसके परिणामस्वरूप भारत अमेरिका के सहयोगियों के क्लब के अंदर समाधान की तलाश में है- “क्वाड” साथ आये संप्रभु समझौते का केवल एक उदाहरण है.

हमारे सीमित आर्थिक महत्व को देखते हुए, अपनी ज़रूरतों के अनुरूप वैश्विक परिस्थितियों को ठीक करना एक ज़रूरी लेकिन निरंतर रूप से अनिश्चित प्रयास है. हम सक्रिय रूप से वैश्विक हैं. लेकिन जब तक हम अपने बाहरी संबंधों में और ज़्यादा आर्थिक तत्वों को जोड़ सकते हैं, हम “सौदा कबूल करने वाले” ना कि “सौदा तैयार करने वाले” बने रहेंगे जैसा कि ग्लासगो ने दिखाया.

उच्च सिंगल डिजिट विकास पर आधारित एक पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था भारत के लिए प्रमुख आर्थिक लक्ष्य बना हुआ है. ध्यान दें कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ग्लासगो में निजी रूप से पहुंचने की ज़हमत नहीं उठाई, अपने इस बात पर अडिग की अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित आर्थिक व्यवस्था खोखली हो गई है. चीन, 10,610 अमेरिकी डॉलर (2020) पर अपने वर्तमान per capita GNI के साथ, जो अमेरिका का छठवां भाग है, लेकिन दोगुने दर के साथ बढ़ रहा है, उग्र बने रहने या फिर विनम्रता के साथ पालन करने  का निर्णय ले सकता है- राजनयिक स्वतंत्रता, जो भारत के लिए अनुपलब्ध है.

मोदी सरकार पारस्परिक विपरीत लक्ष्यों जैसे कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए संसाधन जुटाने के साथ ही गरीबी उन्मूलन से निपटने जैसे भविष्य के अकेले आर्थिक संघर्ष से परिचित है. 

यह मानना एक गलती होगी कि असमान, तथापि आर्थिक रूप से कुशल, कार्बन उत्सर्जन कम करने का मार्ग जिसकी शुरुआत हो चुकी है- सौर ऊर्जा में तेज़ वृद्धि, भूमि-आधारित परिवहन का विद्युतीकरण, औद्योगिक और आवासीय ऊर्जा दक्षता, और ज़्यादा दक्ष वन प्रबंधन- 2050 तक उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए नींव तैयार करेगा, जिसके बाद धीरे-धीरे नेट ज़ीरो की तरफ बढ़ा जाएगा.

आवश्यक आर्थिक परिवर्तन का परिमाण 1991 के उदारीकरण से भी कहीं अधिक स्थायी है. उस समय, अन्य अर्थव्यवस्थाओं के अंतरराष्ट्रीय अनुभव, जिन्होंने इसी तरह की ढांचागत बाधाओं को पार किया और संपन्न हुए- यूके, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिणपूर्वी एशिया- भारत जैसे देर से शुरुआत करने वाले देशों को आश्वस्त किया कि असहनीय आर्थिक चोट और संप्रभुता खोये बगैर भी आर्थिक सुधार संभव है.

आज, कम कार्बन वृद्धि से संभावित रूप से “हारने वालों” के लिए ऐसे आश्वासन कम ही हैं. विनिर्माण में मौजूदा, अच्छे भुगतान, कम दक्षता वाली नौकरियां जो फॉसिल फ्यूल और internal combustion engine powering transport से जुड़े हैं, अगले दो दशकों में खत्म हो सकती हैं. मोटरों, उससे संबंधित इलेक्ट्रॉनिक सामान के उत्पादन और रखरखाव, बैटरी उत्पादन और रखरखाव के क्षेत्र में नये अवसर उपलब्ध होंगे. लेकिन यह अस्पष्ट है कि टैक्स नीति के माध्यम से श्रम पर पूंजी निवेश को लगातार विशेष लाभ देने के साथ औद्योगिक लागत-बचत के मौके जो डिजिटलाइज़ेशन की तिकड़ी, 24X7 रोबोट्स, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने पेश किये हैं, प्रतिस्पर्धी लागत, मानवीय प्रयत्नों के लिए पर्याप्त जगह छोड़ेंगे या नहीं. इस पर, भारत में उच्च गुणवत्ता की सार्वजनिक शिक्षा तक लोगों की कम पहुंच. राष्ट्रीय स्किल सेट में अपरिहार्य मंथन का प्रबंधन और आर्थिक कठिनाई से हारने वालों को बचाना एक महत्वपूर्ण लोक प्रशासन कौशल बन जाएगा, जो आज व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है.

यह शिक्षाप्रद है कि अमेरिका की “मध्य-सदी की रणनीति” अपने per capita CO2 के बराबर उत्सर्जन को 3 टन से ठीक नीचे तक प्रभावशाली तरीके से कम कर- जो 2018 में भारत के उत्सर्जन से थोड़ा अधिक है- उत्सर्जन में 2005 के स्तर से ऊपर 80 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य रखता है. यह देखा गया है कि कार्बन कैप्चर, उपयोग या अधिग्रहण के साथ जब तक कृषि, मृदा, भूमि प्रबंधन, कोड्स के निर्माण, स्थानिक योजना और बायोऊर्जा से खराब उत्सर्जन में व्यापक रूप से प्रचारित नीति की पहल का सहारा नहीं मिलेगा, तब तक प्रौद्योगिकी अकेले अपर्याप्त रहेगी. उसकी योजना अपने लैंड कार्बन सिंक को 45 प्रतिशत तक बढ़ाने की भी है जिससे 1850 से शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की भेंट चढ़े एक तिहाई वन भूमि को दोबारा पाया जा सके, जिससे 14 प्रतिशत CO2 उत्सर्जन को सोखा जा सके.

यह दुखद है कि, ज़मीन की कमी वाले भारत के लिए यह विकल्प नहीं है क्योंकि per capita कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता अमेरिका से एक चौथाई कम है. हालांकि, per capita वैश्विक औसत उत्सर्जन के भीतर ही उत्सर्जन की रोकथाम के लिए एक व्यापक लागत रणनीति बनाने का सिद्धांत, समय के साथ, अनुसरण करने योग्य है.

तीन सूत्रीय कार्रवाई का एजेंडा

पहला, जलवायु कार्रवाई के लिए एकल बिंदु संरक्षक के रूप में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सभी मुख्यमंत्रियों के प्रतिनिधित्व के साथ सशक्त जलवायु परिवर्तन परिषद (सीसीसी) का कानून बनाया जाए. राज्यों, शहरों और ग्रामीण स्थानीय निकायों की ओर से भागीदारी और सहयोग बढ़ाने के लिए, राज्यों की राजधानियों और सभी स्मार्ट सिटीज़ में मौजूदगी के साथ यह एक विकेंद्रीकृत, समावेशी मंच होना चाहिए, और संयुक्त रूप से ऊर्जा, पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और विदेश मामलों से जुड़े मंत्रालयों द्वारा प्रशासित होना चाहिए. एक दशक पहले तैयार की गई राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय जलवायु अनुकूलन योजना अधिक असरदार अल्पीकरण रणनीति बनाने और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे उभरते तकनीकी विकल्पों के लिए आधार बन सकती है.

दूसरा, सरकारें मददगार घरेलू प्रोत्साहन और सहयोग के लिए सुविधाओं के माध्यम से सफल जलवायु कार्रवाई को लेकर महत्वपूर्ण है. लेकिन जलवायु कार्रवाई विस्तृत आधार का होना चाहिए जिसमें कॉरपोरेट्स, बिज़नेस एसोसिएशन्स और नॉन स्टेट एक्टर्स को अपने-अपने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा जो नेट ज़ीरों की मुख्य थीम के आसपास उभर रहे हैं.

उत्सर्जन को नियंत्रित करने में हमारा घरेलू अनुभव अलग-अलग हैं. Bureau of Energy Efficieny के स्टार रेटिंग प्रोग्राम ने उपकरणों के लिए ऊर्जा उपयोग मापदंड बनाया है जो संस्थागत और खुदरा क्रय फैसलों के लिए प्रचलित मीट्रिक है. ईईएसएल लिमिटेड- संयुक्त स्वामित्व वाला एक पब्लिक सेक्टर एफिलिएट- ने पब्लिक सेक्टर की थोक खरीद, एलईडी बल्बों के लिए कीमत कम कर और मांग बढ़ाकर स्केल प्रभाव को प्रदर्शित किया है. इसी तरह, स्केल प्रभाव इलेक्ट्रिक वाहनों, एनर्जी एफिशिएंट कृषि उपकरण, निर्माण सामग्रियों और पद्धतियों के लिए बाज़ार बढ़ा सकता है.

 एक “न्यायसंगत” जलवायु कार्रवाई विकसित करने से, जो ज़मीन से ऊपर उठे, प्रचलित विचार के स्रोतों का लाभ उठा सकता है और मूलभूत समर्थन को बढ़ावा दे सकता है.  

आखिर में, कर्मचारियों को रोज़गार में बड़े बदलावों से बचाने के लिए आर्थिक विकास, नौकरियों, शिक्षा, कौशल अनुकूलन और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाओं के अनुरूप, जलवायु कार्रवाई के लिए चुनौतियों और अवसरों के स्वरूप पर एक विस्तृत प्रमाणित पॉलिसी दस्तावेज़, डर को कम करेगा और कम कार्बन वृद्धि के लिए आम सहमति बनाएगा.

1991 में वित्तीय संकट पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में आर्थिक बदलाव की शुरुआत हुई, जो तीन दशकों के बाद भी अधूरा है. ऊपर से नीचे का उपाय, यह माना गया कि अधिक राजनीतिक विवादास्पद माइक्रो आर्थिक बदलाव लायेगा. दुर्भाग्यवश, वृहद आर्थिक सुधार निष्क्रिय बना हुआ है, जैसा कि हाल में चल रहे दीर्घकालिक आर्थिक सुस्ती ने प्रमाणित किया है. हमने अब नेट ज़ीरो के लिए व्यवस्थित और अत्यंत परिवर्तनशील बदलाव करने के लिए वक्त ले लिया है. एक “न्यायसंगत” जलवायु कार्रवाई विकसित करने से, जो ज़मीन से ऊपर उठे, प्रचलित विचार के स्रोतों का लाभ उठा सकता है और मूलभूत समर्थन को बढ़ावा दे सकता है.

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