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पिछले कई दिनों से भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और श्रीलंका में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है, जिसका भारत पर क्या असर पड़ेगा और इसके क्या समाधान होंगे ये हमारे सामने एक बड़ा सवाल बनकर उभरा है. इन सभी देशों में उभरी अस्थिरता का हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा और इसका इस इलाके के सामरिक समीकरणों पर क्या दूरगामी असर पड़ेगा, इन सभी मुद्दों पर “गोलमेज़” की चर्चा में ओआरएफ़ के विदेशी मामलों के जानकार और विशिष्ट फेलो मनोज जोशी और सीनियर फेलो नग़मा सह़र ने बात की, उसी बातचीत पर आधारित है ये लेख, जिसका शीर्षक है: ‘पड़ोस में अस्थिरता: भारत के लिये संदेश’
मनोज जोशी – जब इमरान ख़ान प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने कहा था की मै एक नया पाकिस्तान लाऊंगा, उन्होंने कहा था की जब पीपीपी और भुट्टो के ज़माने में जो सियासत थी, उस समय बहुत भ्रष्टाचार था, और नाकामी थी और मै यह सब ठीक कर दूंगा. तो अब यदि शरीफ़ खानदान वापस आता है तो एक तरह से व्यक्तिगत रूप से इमरान खान का असफल होना दर्शाता है, दूसरी तरफ से पाकिस्तान के लिए भी यह असफलता की बात है क्योंकि अगर आप दोबारा वापस जा रहें है, उस मोड़ पर जहां से आप निकले थे तो आगे रास्ता साफ़ नहीं है क्योंकि शरीफ़ खानदान तो वहां पहले भी रह चुका है. शाहबाज़ शरीफ़ पंजाब के मुख्यमंत्री थे और नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. तो पाकिस्तान के सामने नया मोड़ आएगा या नहीं यह अभी साफ नहीं है, हालाँकि- चुनाव ज़रूर आयेंगे और यह ही आगे का भविष्य तय करेंगे. पाकिस्तान के सामने कई मुद्दे हैं जेसे एक तो आर्थिक विकास, स्थिरता, उग्रवाद को काबू में करने का मुद्दा आदि, इसके लिए हमे साफ़-साफ़ जवाब मिलेंगे या नहीं यह अभी तय नहीं है.
शाहबाज़ शरीफ़ पंजाब के मुख्यमंत्री थे और नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. तो पाकिस्तान के सामने नया मोड़ आएगा या नहीं यह अभी साफ नहीं है, हालाँकि- चुनाव ज़रूर आयेंगे और यह ही आगे का भविष्य तय करेंगे.
मनोज जोशी – पाकिस्तान और मुल्कों के जैसे नहीं है, पाकिस्तान में जो राजनितिक प्राधिकरण है वो बंटी हुई है, यहां तक कि 60-70 प्रतिशत तो सेना के हाथ में है, तो यह सब जानते हैं कि पाकिस्तान के हाथ में नियंत्रण कम होता है, जितना होना चाहिए था उतना नहीं होता है, जहां तक अमेरिका का सवाल है है वह जनरल बाज़वा ने खुद ही स्पष्ट कर दिया था कि सेना के साथ तो अमेरिका के संबंध अच्छे हैं वो इमरान खान के इस बात का समर्थन नहीं करते हैं कि अमेरिका, पाकिस्तान के साथ किसी किस्म की साज़िश कर रहा है.
मनोज जोशी – पाकिस्तान में सेना के बिना किसी राजनीतिक दल की कल्पना नहीं की जा सकती, शरीफ़ ख़ानदान ने खुद सेना की मदद से अपने राजनितिक जीवन की शुरुआत की थी. नवाज शरीफ़ को 1980 में जनरल ज़िया की मदद से प्रधानमंत्री बने थे और आज भी यह पाकिस्तानी सेना की मदद से ही उन्हें यह कुर्सी मिल रही है. जनरल मुशर्रफ़ के समय बीच में शरीफ़ खानदान के साथ टक्कर हुई थी और शायद अब किसी रूप में समझौता हो गया होगा. पर वहां कोई भी सरकार सेना के बिना टिक नहीं सकती, इमरान ख़ान ने ये ख़ुद कहा था कि सेना और हम तो एक ही हैं. 2018 में ख़ुद सेना ने इमरान खान का रास्ता साफ़ किया था एवं नवाज़ शरीफ़ को जेल भेजा था. अभी भी कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि कोई यह कह सके कि सेना के बिना हम पाकिस्तान में सरकार बना सकते हैं, आज के समय में यह सवाल ही उचित नहीं है.
पाकिस्तानी सेना ना कमज़ोर हुई है और न ही सेना की भूमिका बदली है. पाकिस्तानी सेना ने कई सबक सीखे हैं और उसकी भी समझ बढ़ गयी है और वह भी अपना हाथ खुलेआम नहीं दिखाना चाहती है, और वह चाहती है की उसकी जो शक्ति एवं प्राधिकरण है, वो अपने आप पाकिस्तानी नागरिकों के अमल में आ जाए.
मनोज जोशी – पाकिस्तानी सेना ना कमज़ोर हुई है और न ही सेना की भूमिका बदली है. पाकिस्तानी सेना ने कई सबक सीखे हैं और उसकी भी समझ बढ़ गयी है और वह भी अपना हाथ खुलेआम नहीं दिखाना चाहती है, और वह चाहती है की उसकी जो शक्ति एवं प्राधिकरण है, वो अपने आप पाकिस्तानी नागरिकों के अमल में आ जाए. आमलोग यह समझ लें की सेना की रेड लाइन क्या है. वह नहीं चाहते की राजनितिक दल उन्हें बताये की सेना की रेड लाइन क्या है. वह चाहते हैं कि पाकिस्तान की राजनीति यह समझ जाए कि उनकी स्वयं की सीमा क्या है. जहां तक की सेना है उनका यह मानना है कि पाकिस्तान में स्थायी स्थिरता एवं विकास हो. पाकिस्तानी सेना यह कभी नहीं चाहती की यहां अस्थिरता हो. सेना यह चाहती है कि राजनीतिक दल पाकिस्तान में कुछ काम करे, आर्थिक विकास एवं स्थिरता कायम करें. पाकिस्तानी सेना की रुचि भारत और अफ़ग़ानिस्तान में है, पर यह रूचि तभी और बेहतर होगी जब पाकिस्तान में स्थिरता हो, और जो भी सरकार आये पाकिस्तान में स्थिरता का माहौल बनाये.
मनोज जोशी – कथनी और करनी में अंतर का उदाहरण देते हुए पाकिस्तान की सरकार को हर बार की तरह कश्मीर का मुद्दा उठाना पड़ता है, और इस समय शहबाज़ शरीफ़ अंतरिम प्रधानमंत्री हैं और उन्हें आगे भी चुनाव लड़ना है. और यदि आगे चुनाव लड़ना है तो एक सीमा से ज्य़ादा भारत को राजनीतिक संकेत नहीं दे सकते, यदि उनको ऐसा करना है, तो पहले चुनाव लड़ें और फिर ऐसा करें. और जहां तक भारत में कश्मीर का सवाल है, दोनों सरकार जब तक राज़ी न हो तब तक बात नहीं बनेगी, साल 2004-2007 के मध्य एक शुरुआत के तौर पर अटल सरकार, मनमोहन सरकार, मुशर्रफ़ सरकार के साथ जिसे फोर पॉइंट फार्मूला कहा गया. आज इस समय पाकिस्तान की स्थिति यह है की पाकिस्तान में आज भी ज़िहादी समूह सक्रिय है ,हालांकि- कई बार पाकिस्तान ने यह समझाने का प्रयास किया है कि ज़िहादी समूहों को जेल में डाला जाये, किंतु जब तक आतंकवादी संरचना को धवस्त नहीं किया जाता तब तक भारत को यह विश्वास नहीं होगा की चीजें वहां बदली है. यदि गौर करें इन एक-दो वर्षो की तो इनमें ज़रूर कोई गतिविधि नहीं हुई है किन्तु यह पूर्ण रूप से ख़त्म नही हुआ है. पाकिस्तानी ड्रोन से भारत में कई हमले हुए है एवं यह किसकी मदद से हुआ है, तो कई ऐसे मुद्दे है जिनको यदि सुलझाया नहीं जाता तो पाकिस्तान और भारत के संबंध सुधरेंगे नहीं. और जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, तो यह तो इतना अहम है कि जब तक पाकिस्तान में बदलाव नहीं आएगा और यह रणनीति पाकिस्तानी सेना, सरकार, और पाकिस्तान की आवाम को मिलकर यह बदलाव लाना होगा, यदि यह रणनीति नहीं बदली और ऐसा नहीं हुआ तो बात आगे नहीं बढ़ेगी.
इमरान ख़ान के 2018 के चुनावों के लिये भी कहा जाता है की उसमें गड़बड़ी हुई थी. अब यह पता नहीं कि अगले चुनावों में पाकिस्तान की सेना किसके साथ खड़ी होगी एवं क्या इरादे होंगे.
मनोज जोशी – पाकिस्तान में कोई भी राजनैतिक दल बिना पाकिस्तान की सेना के सत्ता हासिल नहीं कर सकता, और जंहा तक मौके की बात है तो तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी अभी भी इमरान खान के साथ खड़ी है. यदि सेना के साथ इमरान खान के संबंध हैं यदि वह फिर से बेहतर हो जाए तो एक बार पुन: इमरान सरकार बन सकती है, इमरान ख़ान के 2018 के चुनावों के लिये भी कहा जाता है की उसमें गड़बड़ी हुई थी. अब यह पता नहीं कि अगले चुनावों में पाकिस्तान की सेना किसके साथ खड़ी होगी एवं क्या इरादे होंगे. सेना भी यह मानती है कि पाकिस्तान में ऐसी सरकार बने जो स्थिरता लाये एवं आर्थिक विकास हो, ताकि पाकिस्तान की सेना का अपना बजट कायम रहे और अपना संबंध जो भारत एवं अफ़ग़ानिस्तान के साथ जुड़े हुए हैं, सेना उनकी तरफ ध्यान केन्द्रित कर सकें.
मनोज जोशी – श्रीलंका पर चीन का कर्ज़ 3.5 बिलियन डॉलर है, जो कर्ज़ जाल नीति की तहत हुआ है किंतु चीन की ज़िम्मेदारी उतनी भी नहीं है की श्रीलंका की आर्थिक स्थिति के पीछे पूर्ण रूप से चीन का हाथ है. पर सवाल यह उठता है कि श्रीलंका ने और जो कर्ज़ लिया है, वह अंतरराष्ट्रीय सार्वभौम बॉंड, वेस्टर्न बैंक से लोन लिया है, तो यह जो स्थिति उत्पन हुई है वो सब मिलाकर हुई है, न कि सिर्फ़ चीन की वजह से हुई है. पर यह ज़रूर है कि जो स्थिति हुई है वह बहुत सोच समझकर कदम उठा रहा है, श्रीलंका को करेंसी स्वॉप भी दिया है, चीन से निवेदन किया है कि 2.5 बिलियन डॉलर की सहायता करें, क्योंकि चीन को जुलाई तक 1 बिलियन की रकम वापस भी करनी है. श्रीलंका की सहायता के लिय भारत सामने आया है, बहुत पहले से भारत ने चीनी, चावल, गेंहू की मदद से शुरुआत की है, और वित्त मंत्री ने यह घोषणा भी की है कि श्रीलंका की मदद के लिए भारत दो बिलियन डॉलर की रकम देने के लिए तैयार है. अत: चीन की कंपनी ने श्रीलंका को कर्ज़ दिया है लेकिन अब बहुत सोच समझ कर कदम उठा रहा है.
मनोज जोशी – वास्तव में यह सबक तो सबके लिए है, यहां तक कि चीन के लिए भी है, पिछले 5-10 साल में चीन की नीति भी बदली है, जब चीन ने इस नीति की शुरुआत की थी तब शायद चीन को उतनी समझ नहीं थी जितनी होनी चाहिये थी, उन्हें लगा था कि उनकी अर्थव्यवस्था इसको झेल लेगी पर अब चीन को भी यह लग रहा है की अब वो समय समाप्त हो गया है. जिस तरह से चीन दूसरे देशो को कर्ज़ देती थी अब वैसा माहौल नहीं है और चीन की स्वयं की स्थिति भी सही नहीं है.
सार्क और बिम्सटेक यह नाममात्र की संस्थाए हैं, यह उतनी मज़बूत नहीं है जितनी इनको होना चाहिए, और साथ ही यदि सहयोग के साथ आर्थिक रूप से भी सहयोग हो तो अच्छा होगा.
मनोज जोशी – हिंद महासागर की अर्थव्यवस्था और एकीकृत हो, यह उतनी एकीकृत नहीं है. सार्क और बिम्सटेक यह नाममात्र की संस्थाए हैं, यह उतनी मज़बूत नहीं है जितनी इनको होना चाहिए, और साथ ही यदि सहयोग के साथ आर्थिक रूप से भी सहयोग हो तो अच्छा होगा. श्रीलंका में जिस तरह हम्बनटोटा बंदरगाह, एयरपोर्ट आदि पर जिस तरह से खर्चा किया गया है, यदि इन सब पर भी ध्यान दिया जाता है तो अच्छा होता. क्योंकि अचानक से कोई भी संकट आ सकता है, बात करें कोविड की तो उसके बारे में तो किसी ने सोचा ही नहीं था, बहुत कुछ असर तो कोविड का ही है. वैश्विक अर्थव्यवस्था तो कॉट्रैक्ट पर है, श्रीलंका जेसे देश पर्यटन, आयात-निर्यात आदि पर निर्भर है, इन सब का असर उस पर पड़ता है. अत: यह जो सबक है वो सभी देशों के लिए अलग-अलग है पर सबक अवश्य है, और इन सबसे सुलझना इतना आसन नहीं होगा क्योंकि जो यह पाकिस्तान और श्रीलंका में चल रहा है इसका असर एक दशक आगे तक चलता रहेगा.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
Read More +Naghma is Senior Fellow at ORF. She tracks India’s neighbourhood — Pakistan and China — alongside other geopolitical developments in the region. Naghma hosts ORF’s weekly ...
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