Published on Sep 04, 2021 Updated 0 Hours ago

पूर्वोत्तर के विकास के लिए घरेलू कोशिश जारी रहेंगी लेकिन इस विकास प्रक्रिया में अन्य देशों की भागीदारी से कई लाभ मिलने वाले हैं.

देश के उत्तर-पूर्व के राज्यों को एक्ट-ईस्ट पॉलिसी के तहत नये सिरे से देखने की पहल

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र (Northeastern Region, NER) यानी एनईआर में आठ राज्य हैं. इसकी पहचान अक्सर ढांचागत और आर्थिक विकास के मामले में हाशिए पर रहने वाले क्षेत्र के रूप में की जाती है. पुरानी नीति यानी ‘लुक ईस्ट’ (Look East Policy) और अब इसके नए मौजूदा संस्करण यानी ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East Policy) के बावजूद इस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं है. इसके अलावा पूर्वोत्तर के विकास की संभावना को सीमा पार के साथ साथ आंतरिक उग्रवाद ने और जटिल कर दिया है. बावजूद इसके यह क्षेत्र घरेलू प्राथमिकता के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग के एक ज़ोन के रूप में उभरकर सामने आया है. ऐसा इसलिए क्योंकि संसाधन और श्रम क्षमता के साथ साथ दक्षिण पूर्व एशिया और तेज़ी से विकसित हो रहे हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र से नज़दीकी के कारण इस की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति काफ़ी अहम हो गई है. पूर्वोत्तर न केवल भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए एक अहम चालक है बल्कि यह पश्चिम और पूरब दोनों के साथ भारत की साझेदारी को मज़बूत करने के लिए एक प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है. 

पूर्वोत्तर न केवल भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए एक अहम चालक है बल्कि यह पश्चिम और पूरब दोनों के साथ भारत की साझेदारी को मज़बूत करने के लिए एक प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है. 

एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत एकीकरण और विकास के व्यापक क्षेत्रीय लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, लंबे समय तक उसके निर्वाह के लिए स्थानीय हिस्सेदारी बनाना बेहद अहम है. यह न केवल एक्ट ईस्ट पहल को पर्याप्त ताकत देगा, बल्कि पूर्वोत्तर और इसके लोगों को अब तक नहीं जोड़ पाने के कारण होने वाली आलोचना को भी दूर करेगा. ये चीज़ें सदियों पुरानी इस नीति की सफ़लता के लिए महत्वपूर्ण हैं. वैसे भी यह नीति समय से काफ़ी पीछे चल रही है. ऐसा करने से पारस्परिक रूप से सहायक संरचनाएं मजबूत होंगी. एक तरफ दक्षिण पूर्व एशिया से भारत के जुड़ाव के एजेंडे को मजबूती मिलेगा तो दूसरी तरफ इस प्रक्रिया में संपूर्ण पूर्वोत्तर के विकास को बढ़ावा मिलेगा. महाद्वीप के पूर्वी हिस्से के साथ देश के संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए पहले ही कई तरीक़ों पर क्रियान्वयन विभिन्न चरणों में हैं. ऐसे में अब अभियान के दूसरे चरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है. दूसरे चरण में निवेश के लिए अवसर पैदा करने के साथ-साथ सुरक्षा चिंताओं के प्रभावी शमन पर ध्यान देना होगा. यह एक ज्ञात सच्चाई है कि पूर्वोत्तर के विकास में एक प्रमुख बाधा इसकी बाहरी और आंतरिक सुरक्षा चिंताएं हैं. वैसे इस क्षेत्र में भारत के सीमा तनाव में चीन की भूमिका अहम है लेकिन भारत को आंतरिक सुरक्षा चिंताओं से भी निपटना है. इन आंतरिक सुरक्षा चिंताओं में वे चरमपंथी और उग्रवादी समूह शामिल हैं जिनके सुरक्षा बलों से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं. म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में इनके ठिकाने हैं. इसके साथ ही इलाक़े में कथित तौर पर आईएसआई जैसी अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों की भी मौजूदगी है. इस बारे में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से प्रयास किए गए हैं लेकिन इन दोनों समस्याओं के समाधान में एक जैसी सफलता नहीं मिली. अब भी इस दिशा में अन्य देशों के साथ सहयोग की गुंजाइश बची हुई है. खासकर तब जब विदेश नीति का झुकाव हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) की ओर है.   

निवेश और बाज़ार

पूर्वोत्तर के राज्य मुख्य रूप से दो मोर्चों पर निवेश के लिए आर्थिक रूप से अहम हैं- पहला, इस क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति (strategic location), जो एक बड़े भारतीय भू-भाग और मज़बूत दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई बाजार के बीच उत्पाद बाज़ार को जोड़ता है. दूसरा, इस क्षेत्र का मज़बूत इनपुट बाज़ार उत्प्रेरक, जैसे- सामाजिक (विविधता व सांस्कृतिक समृद्धि), भौतिक (संभावित ऊर्जा आपूर्ति केंद्र), मानव (सस्ता व कुशल श्रम) और प्राकृतिक (खनिज व वन) पूंजी. इसलिए, महामारी के बाद की दुनिया में, इन कारकों का लाभ इस क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल जैसे देशों की बढ़ती साझेदारी और उपस्थिति के महत्वपूर्ण हो सकता है.

आंतरिक सुरक्षा चिंताओं में वे चरमपंथी और उग्रवादी समूह शामिल हैं जिनके सुरक्षा बलों से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं. म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में इनके ठिकाने हैं. इसके साथ ही इलाक़े में कथित तौर पर आईएसआई जैसी अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों की भी मौजूदगी है.

इस क्षेत्र के विकास और आधारभूत संरचनाओं के आधुनिकीकरण (खासकर सभी राज्यों में सड़क संपर्क) के काम में जापान दशकों से जुड़ा हुआ है. मौजूदा समय में वह असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर धुबरी-फुलवारी पुल (Dhubri-Phulbari bridge)  के निर्माण में लगा हुआ है. जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) द्वारा शुरू की गई कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में टिकाऊ कृषि (sustainable agriculture) के लिए भूमि और जल संसाधन विकास और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है. इसके साथ ही इन परियोजनाओं को इस तरह डिज़ाइन किया गया है ताकि योजना और क्रियान्वयन प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी आसान हो और इसके जरिए पूरी प्रक्रिया समावेशी हो. पूर्वोत्तर में जापान की गहरी और लंबी भागीदारी के पीछे अक्सर सांस्कृतिक समानता को एक अहम कारण बताया जाता है. इस चीज को क्षेत्र की बनावट से लेकर फैशन तक में महसूस किया जा सकता है. हाल के सालों में पूर्वोत्तर की अहमियत काफ़ी बढ़ गई है. दरअसल, जापान की फ्री एंड ओपन हिंद प्रशांत नीति और भारत की एक्ट ईस्ट नीति के बीच पूर्वोत्तर ही है. ये नीतियां गुणवत्ता पूर्ण आधारभूत संरचना के लिए जमीनी साझेदार हैं.  

कई यूरोपीय देशों का फोकस देश ‘भारत’

पूर्वोत्तर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बीच संपर्क लिंक को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय साझेदारी की संभावना के अलावा लचीले वैल्यू चेन का निर्माण, व्यापार की सुविधा और पूर्वोत्तर में संपर्क इंफ्रास्ट्रक्चर का और विकास… कुछ ऐसे संभावित साझेदारी वाले पहलू हैं, जिसकी पहचान ऑस्ट्रेलिया ने की है.

पूर्वोत्तर में जापान की गहरी और लंबी भागीदारी के पीछे अक्सर सांस्कृतिक समानता को एक अहम कारण बताया जाता है. इस चीज को क्षेत्र की बनावट से लेकर फैशन तक में महसूस किया जा सकता है.

इज़रायल की सरकार के बढ़ते व्यापार प्रयासों के लिए भारत भी एक ‘फोकस’ देश है. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महारत रखने वाले इज़राइल ने भारत सरकार की एजेंसियों और कारोबार के साथ प्रौद्योगिकी आधारित चीज़ें साझा करने की इच्छा जताई है. इसमें स्मार्ट सिटी के विकास से लेकर रीयल टाइम क्लाउड आधारित प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से भौतिक रूप से आधारभूत संरचनाओं की मरम्मत के काम शामिल हैं. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए ऐसे प्रयास जरूरी हैं. इसके अलावा, इज़रायल और अमेरिका के साथ भारत अपने यहां 5जी टेक्नोलॉजी को लेकर साझेदारी चाहता है. इससे पूर्वोत्तर के डिजिटल संपर्क को बढ़ावा मिलेगा. इससे निश्चित तौर पर सेवा और रोजगार के क्षेत्र में नए-नए अवसर खुलेंगे. इस क्षेत्र के एक ट्रांजिट मार्ग (transit route) होने की कमियों को इस तथ्य से दर्शाया गया है कि यह क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की दुकानों से भरा पड़ा है. इसमें अधिकतर उपभोक्ता वस्तुएं चीन निर्मित हैं.  

अनौपचारिक व्यापार में ज़्यादा फ़ायदा म्यांमार को होता है, क्योंकि अधिकतर लाभ उसके पक्ष में जाता है. इसके साथ ही स्थानीय उत्पाद और वहां बनी चीजों पर कोई असर नहीं पड़ता है.

इसमें आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि चीन और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों से भारत और म्यांमार के बीच मानव रहित सीमा और गुप्त तरीक़ों से दाखिल होने के क्षमता देने वाले रास्तों  से आसानी से चीज़ें भारत में आ जाती हैं. म्यांमार से भारत आने वाली चीज़ों को स्थानीय लोग ‘बर्माथील’ (Burmathil) कहते हैं जिसका मतलब ‘बर्मा की वस्तुएं’ हैं. यह बात कोई मतलब नहीं रखता कि ये वस्तुएं कहां बनी थीं. पहली नज़र में इन चीजों से कोई समस्या नहीं है लेकिन यह एक विवाद का मुद्दा बन गया है क्योंकि अनौपचारिक व्यापार की तुलना में क़ानूनी व्यापार का आकार काफ़ी कम है. साथ ही अनुमान जताया गया है कि इन अनौपचारिक व्यापार में ज़्यादा फ़ायदा म्यांमार को होता है, क्योंकि अधिकतर लाभ उसके पक्ष में जाता है. इसके साथ ही स्थानीय उत्पाद और वहां बनी चीजों पर कोई असर नहीं पड़ता है. ऐसे परिदृश्य में जहां पूर्वोत्तर के राज्यों को पूर्व के वर्षों की भांति छोड़ दिया जाए तो यह क्षेत्र सीमा बिंदुओं के जरिए होने वाले आयात और निर्यात के लिए एक पारगमन मार्ग या फिर तेल के लिए विवादास्पद निकासी बिंदु से अधिक कुछ नहीं रहेगा. व्यापक मात्रा में अनौपचारिक व्यापार, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी और अशांति के अन्य कारणों को लेकर चिंता बनी रहेगी. ऐसी स्थिति में एक्ट ईस्ट नीति की क्षमता और संभावना सीमित रूप से प्रभावकारी होगा. ऐसे में पूर्वोत्तर के विकास के लिए घरेलू कोशिश जारी रहेंगी लेकिन इस विकास प्रक्रिया में अन्य देशों की भागीदारी से कई लाभ मिलने वाले हैं.    

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Authors

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...

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Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick

Soumya Bhowmick is an Associate Fellow at the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. His research focuses on sustainable development and ...

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