20 दिसंबर 2022 को, भारतीय नौसेना (आई एन) ने प्रोजेक्ट-75, कलवारी श्रेणी की पनडुब्बियों के तहत पांचवीं पनडुब्बी आईएनएस वागीर की डिलीवरी ली. नेवल ग्रुप के सहयोग से मझगांव डॉक शिपिबल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) मुंबई में निर्मित, वागीर एक अत्याधुनिक पनडुब्बी है, जिसमें एकाउिस्टक एब्सोर्पशन अर्थात ध्वनिक अवशोषण सहित उन्नत स्टेल्थ अर्थात चुपके से जानेवाली विशेषताएं हैं. इसे एंटी-सरफेस, एंटी-सबमरीन, खुफिया जानकारी एकत्र करने, निगरानी और खदान बिछाने जैसे विविध मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है. पनडुब्बी को नवंबर 2020 में लॉन्च किया गया था. केवल दो वर्षों में ही इसकी साज-सज्जा, मशीनरी और हथियारों का परीक्षण किया गया है. अत: यह पनडुब्बी 2023 की शुरुआत में भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने की राह पर है. इसके परीक्षण और मूल्यांकन की गति से पता चलता है कि नौसेना अपने पनडुब्बी बेड़े के आधुनिकीकरण के प्रयासों में तेजी ला रही है.
ऐसे वक्त में जब हिंद महासागर में चीन अपनी नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है, तो इसकी वजह से भारतीय पर्यवेक्षक भारत की समुद्री सुरक्षा और सामरिक प्रभाव पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चिंतित हैं.
अपने सबमरीन आर्म अर्थात पनडुब्बी शाखा के आधुनिकीकरण में भारत की तीव्र इच्छा साफ झलकती है. ऐसे वक्त में जब हिंद महासागर में चीन अपनी नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है, तो इसकी वजह से भारतीय पर्यवेक्षक भारत की समुद्री सुरक्षा और सामरिक प्रभाव पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चिंतित हैं. विशेष रूप से, भारतीय विश्लेषक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हाल ही में इंडोनेशिया के निकट-समुद्र में जो चीनी अंडरसी ड्रोन अर्थात समुद्र के नीचे काम करने वाले ड्रोन देखें गए, उन्हें पूर्वी हिंद महासागर में भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास वाले समुद्री इलाके के पानी में तैनात किया जा सकता हैं. इसी के परिणामस्वरूप भारत का नौसैनिक नेतृत्व समुद्र के किनारे गश्त करने की क्षमतावाली डीजल-इलेक्तिट्रक पनडुब्बियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
हमलावर पनडुब्बियों की कमी
भारत के सुरक्षा योजनाकार भी अच्छी तरह से जानते हैं कि पिछले एक दशक में भारतीय नौसेना का मुख्य ऑपरेशनल डेफिसिट अर्थात परिचालन कमी, हमलावर पनडुब्बियों का अभाव रहा है. केवल 15 पारंपरिक पनडुब्बियों के साथ नौसेना का पनडुब्बी बेड़ा, काफी तनाव महसूस करता आया है. 24 के आदर्श आंकड़े से मौजूदा बल का स्तर न केवल कम से कम नौ से कम हैं, बल्कि पनडुब्बी बेड़े के वर्कहॉर्स अर्थात भरोसेमंद किलो-क्लास (सिंधुघोष) पनडुब्बी, अपनी सर्विस लाइफ अर्थात सेवा कल के अंत तक पहुंच चुकी हैं. जुलाई 2022 में आईएनएस सिंधुध्वज का डीकमीशनिंग अर्थात सेवानिवृत्ति यानि सेना की सेवा से बाहर होने की एक ऐसी प्रक्रिया को शुरू करेगा, जो दशक के अंत तक इस श्रेणी में आनेवाली सभी नौकाओं की सेवानिवृत्ति के साथ समाप्त हो जाएगी.
नई दिल्ली के लिए चिंता की बात यह है कि किलो श्रेणी के प्रोजेक्ट-75 का रिप्लेसमेंट अर्थात प्रतिस्थापन कार्यक्रम की गति धीमी है. स्कॉरपीन क्लास यानी कलवारी क्लास की छह पनडुब्बियां की आपूर्ति 2012 से 2016 के बीच होनी थी. लेकिन पहले जहाज़, आईएनएस कलवारी का लॉन्च अनुमानित तिथि से पांच वर्ष की देरी से 2017 में ही संभव हो पाया. दो और पनडुब्बियों, आईएनएस खंडेरी तथा आईएनएस करंज को 2020 में सेवा में शामिल किया गया. किंतु इन दोनों के पास ही पनडुब्बी के मुख्य हथियार माने जाने वाले टारपीडो का पूरा भंडार नहीं था. 100 ब्लैक शार्क नामक एक टारपीडो उपलब्ध नहीं हो सका, क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने अगस्टा वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले के परिणामस्वरूप, फिनमेकेनिका को काली सूची में डाल दिया था. ऐसे में फिनमेकेनिका की सहायक कंपनी डब्ल्यूएएसएस, 100 ब्लैक शार्क टारपीडो की आपूर्ति करने में असमर्थ थी.
पनडुब्बी बल के स्तर में कमी की वजह से ही अब कलवारी श्रेणी की आपूर्ति को गति देने की कोशिश की जा रही है. अब वागीर उपलब्ध हो जाने से और इसके अगले वर्ष के आरंभ में ही सेवा में शामिल किए जाने की संभावना को देखते हुए इसे एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है. स्कॉरपीन कार्यक्रम के तहत मिलने वाली छठीं और अंतिम पनडुब्बी, वागशीर के 2024 की शुरुआत में नौसेना में शामिल होने की संभावना है. ऐसे में नौसेना प्रबंधकों को उम्मीद है कि परियोजना-75 (आई) को गति मिल जाएगी. रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने पहले ही आईएनआर 43,000 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ पी-75आई के तहत छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए एक सौदे को हरी झंडी दिखा दी है. यह ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनने वाली सबसे बड़ी परियोजना है और संभावित रूप से यह परियोजना देश में पनडुब्बी निर्माण के लिए एक औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र की नींव तैयार कर सकती है. रक्षा मंत्रालय ने पहले से ही इन छह नई स्टेल्थ पनडुब्बियों के निर्माण में सहयोग करने के लिए एमडीएल और निजी जहाज़ निर्माता लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) का चयन कर लिया है.
आईएन न्यूक्लियर अटैक सबमरीन (एसएसएन) परणाणु हमला पनडुब्बी बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. मई 2021 में आईएन ने सरकार से 1999 में स्वीकृत 30 वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना में संशोधन करने की अनुमति प्रदान करने के लिए संपर्क किया था. इंडो-पैसिफिक में बदलते रणनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, नौसेना छह पारंपरिक हमलावर जहाजों को परमाणु-संचालित प्लेटफार्मों में परिवर्तित करने की योजना बना रही है. हिंद महासागर में बढ़ती चीनी तैनाती और अन्य इंडो-पैसिफिक शक्तियों की ओर से पनडुब्बी क्षमता के निर्माण के लिए किए जा रहे प्रयासों को देखते हुए, सेवारत तथा सेवानिवृत्त दोनों ही अधिकारी इस बात से सहमत हैं कि एक भारतीय एसएसएन निर्माण कार्यक्रम-चाहे वह कितना भी लंबा और जटिल क्यों न हो- दोनों न केवल आवश्यक हैं, बल्कि यह अपरिहार्य भी हो गया है. भारत के नौसेना योजनाकारों को यह बात अच्छी तरह से पता है कि रूस को अकुला वर्ग एसएसएन, चक्र की वापसी ने देश की पारंपरिक पानी के भीतर लड़ने की क्षमता को घटा दिया है. हालांकि, भारत ने पहले ही इस तरह की एक और पनडुब्बी को लेकर एक लीज समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इसकी डिलीवरी 2025 में होने की उम्मीद है. लेकिन आईएन को इस बीच किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए तैयार रहना होगा.
पाइपलाइन में योजनाएं
आने वाले 10 वर्षों में नौसेना की कम से कम छह पी -75 (आई) श्रेणी की पनडुब्बियों और छह एसएसएन को शामिल करने की योजना है. चीन के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रतिरोध क्षमता का निर्माण करने के लिए, नौसेना आईएनएस अरिहंत के बाद दूसरी बैलिस्टिक मिसाइल परमाणु पनडुब्बी (SSBN) आईएनएस अरिघाट को जल्द ही कमिशन करने अर्थात शुरू करने का विचार कर रही है. इसी श्रेणी में एक अत्याधुनिक जहाज़, एस4 का निर्माण शुरू करने की भी योजना बन रही है. इस बीच एसएसबीएन के नए वर्ग के लिए डीआरडीओ के 5 (5,000 किमी) तथा के 6 (6,000 किमी) क्षमता वाली पनडुब्बी मिसाइल विकसित करने में जुटा हुआ है. के 8 एक बड़ी, 8,000 किमी रेंज वाली मिसाइल है, जिस पर विकास और अनुसंधान चल रहा है.
इसके बावजूद, वर्तमान में कलवारी श्रेणी की पनडुब्बियां और परियोजना-75(आई) पर ही भारत के नौसैनिक योजनाकारों का ध्यान केंद्रित हैं. अभी यह देखना बाकी है कि ये योजनाएं कितनी जल्दी और प्रभावी रूप से धरातल पर उतरती हैं.
चीन के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रतिरोध क्षमता का निर्माण करने के लिए, नौसेना आईएनएस अरिहंत के बाद दूसरी बैलिस्टिक मिसाइल परमाणु पनडुब्बी (SSBN) आईएनएस अरिघाट को जल्द ही कमिशन करने अर्थात शुरू करने का विचार कर रही है.
यह बताया गया है कि पी-75 (आई) की निविदा या प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) के लिए वेंडर अर्थात विक्रेता को जवाब देने की समय सीमा को 2023 के अंत तक के लिए टाल दिया गया है. पनडुब्बियों के लिए नौसेना की स्टाफ गुणात्मक आवश्यकताओं (एनएसक्यूआर) में ज़ाहिरा तौर पर डिजाइन ‘ओवररीच’ अर्थात अधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण असफल हो जाना, अवास्तविक आपूर्ति कार्यक्रम, अव्यावहारिक दायित्व खंड और अन्य सख्त प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आवश्यकताओं के कारण दुनिया के कई शीर्ष पनडुब्बी बिल्डरों ने पी-75 में भाग लेने से मना कर दिया है. इसे देखते हुए यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि भारत के पनडुब्बी आधुनिकीकरण कार्यक्रम की सफलता निर्धारित समयसीमा के साथ चलने की भारतीय प्रवृत्ति पर ही निर्भर करेगी.
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