Author : Arya Roy Bardhan

Expert Speak India Matters
Published on Jan 09, 2024 Updated 0 Hours ago

भारतीय चावल पर लगे प्रतिबंध, वैश्विक बाज़ार में आपूर्ति में आई कमी, एवं कीमतों में हो रही वृद्धि, वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थ की कमी की ओर अग्रसर हो रही है. 

भारतीय चावल निर्यात पर प्रतिबंध: वैश्विक बाज़ार और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव

 

पूरी दुनिया में चावल, डाइट, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने वाला प्रधान एवं प्रमुख कृषि उत्पाद है. विशेष कर के एशिया क्षेत्र में, लगभग 3.5 बिलियन लोगों के लिए, यह एक महत्वपूर्ण मुख्य भोजन एवं आजीविका का एक प्रमुख ज़रिया है. वैश्विक स्तर पर, चावल का उत्पादन 900 मिलियन निर्धन व्यक्तियों को भोजन प्रदान करती है, जिनमें सें 400 मिलियन व्यक्ति तो खुद चावल के उत्पादन में सीधे तौर पर शामिल हैं, इसलिए ही चावल इसलिये चावल उत्पादन के सप्लाई चेन का सतत् विकास लक्ष्य यानी (एसडीजी) को हासिल कर पाने में, केंद्रीय भूमिका है. विशेष करके एशिया महाद्वीप में, कोविड-19 महामारी और बढ़ते भू-राजनैतिक संघर्षों सरीखे वैश्विक चुनौतियों के बीच चावल के मूल्य में होती लगातार बढ़त से वैश्विक कृषि क्षेत्र ख़तरे में है, इसलिए ख़ासकर एशिया महाद्वीप में, खाद्य सुरक्षा, ग़रीबी में कमी, और आर्थिक विकास काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे समय पर, प्रमुख निर्यातकों द्वारा किसी भी प्रकार का व्यावसायिक हस्तक्षेप, वैश्विक कीमतों एवं खाद्य सुरक्षा को बेतरह प्रभावित करेगी. हाल ही में जिस तरह से भारत के द्वारा चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है, ‘भारत जो कि दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है और 2012 के बाद से पूरी दुनिया में सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा है – इस कारण उस पर लगाया गया यह प्रतिबंध चावल की वैश्विक कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा व इसके फलस्वरूप पैदा होने वाली कमी से खाद्य संकट भी खड़ा हो सकता है.       

इस लेख के ज़रिये, भारत के द्वारा किये जाने वाले कम उत्पादन की वजह से पैदा होने वाली घरेलू अनिश्चितताओं के प्रमुख कारक के तौर पर चर्चा की गयी है, और बाद में इस प्रतिबंध के कारण अतंरराष्ट्रीय उत्पादकों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा करता  है. 

भारत सरकार, अपने उपभोक्ताओं और किसानों के हित की रक्षा के लिये, कमज़ोर देशों में खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रही है. ये घटनाक्रम, भारत की बेहतरीन व्यापारिक रणनीति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को एक साथ पूरा करने की कोशिश है, जिसका सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की ज़रूरत है. यह देश की राष्ट्रीय नीति एवं वैश्विक खाद्य सुरक्षा के बीच के नाज़ुक संतुलन पर प्रकाश डाल रही है. इस लेख के ज़रिये, भारत के द्वारा किये जाने वाले कम उत्पादन की वजह से पैदा होने वाली घरेलू अनिश्चितताओं के प्रमुख कारक के तौर पर चर्चा की गयी है, और बाद में इस प्रतिबंध के कारण अतंरराष्ट्रीय उत्पादकों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा करता  है. 

चावल उत्पादन – भारत और दुनिया 

भारत वैश्विक कृषि में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. दुनिया में कुल समुचित कृषि योग्य भूमि का 11.2 प्रतिशत हिस्सा भारत के पास है, जिसके कारण वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अनाज उत्पादक देश है. लेकिन ये देखने वाली बात है कि, चीन से भी कहीं ज्य़ादा, चावल की खेती के लिए सबसे ज्यादा क्षेत्र के इस्तेमाल किए जाने के बावजूद, अपनी कम उत्पादकता दर की वजह से, कुल 2,809 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के चावल उत्पादन के साथ, भारत दुनिया का सिर्फ़ दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश ही बना पाया है. इसके पीछे की वजह देश में कम उत्पादकता होना है, जो, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के तमाम सुधारों के बावजूद, अब भी वैश्विक मानक से काफी नीचे ही है.   

छाया 1: भारत में चावल उत्पादन बनाम विश्व 

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स्रोत: भारतीय आँकड़े, डेटा में विश्व 

इस उत्पादकता के अंतर में विभिन्न कारकों का योगदान है जैसे – क्षेत्रीय असमानता, पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकारों में असंतुलन, असमान उर्वरक का उपयोग, पुरानी तकनीक़ का इस्तेमाल में लाया जाना, अत्याधिक बाढ़, और खराब सिंचाई एवं प्रबंधन आदि. ये सारे व्यवधान न केवल उपज को प्रभावित करते हैं, बल्कि सरकारी दखल को प्रोत्साहित करने एवं बाज़ार को स्थिर करने के लिए व्यावसायिक पहल को प्रेरित करते हुए, चावल के अंतिम स्टॉक के प्रति अनिश्चितता का माहौल बनाते हैं. ये हालात मांग करते हैं कि नीतिनिर्धारक इस ओर अपना ध्यान केंद्रित करें और उत्पादकता की समस्या का निदान करें और और भारत के विशाल कृषि संसाधनों की पूरी क्षमता का पहचान भी करें.  

चावल के व्यापार में भारत का प्रभुत्व 

वैश्विक चावल का व्यापार, जो कुल चावल का मात्र 10 प्रतिशत भर है, उसमें 86 प्रतिशत से ज्य़ादा उत्पादन का योगदान एशियाई देशों का है. अपनी घरेलू मांग की वजह से, सबसे बाद उत्पादक देश होने के बावजूद, चीन चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है. कोविड के बाद, जब पाकिस्तान, वियतनाम और थाईलैंड और उनके सामान्य आपूर्तिकर्ता देश, चीन की चावल की मांग को पूरा कर पाने में असफल रहे, तब चीन ने राजनीतिक तनाव में कमी लाते हुए, भारत से चावल आयात किये. वैश्विक स्तर पर, उप-सहारा अफ्रीका, चावल के निर्यात में सबसे आगे है, जो कि एक उल्लेखनीय प्रवृत्ति को दर्शाता है, जहां, मुख्यत: विकासशील देशों में, चावल ही मुख्य भोजन होने के बावजूद वो वैश्विक खाद्य सुरक्षा में एक मज़बूत भूमिका निभाता है.  

चित्र 2: 2022 में चावल आयात करने वाले शीर्ष देश 

https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2023/12/Top-Rice-Exporting-Countries-in-2022.jpg स्त्रोत: आइटीसी 

हाल के वर्षों में निर्यात की दिशा में उल्लेखनीय वृद्धि के बलबूते साल 2012 से, दुनिया भर में सबसे बड़े निर्यातक देश के तौर पर भारत ने अपनी स्थिति बरकरार रखी है. जो सन् 2022 तक, 22.1 टन उत्पादन की ऊंचाई को छू चुकी है. सौहाद्रपूर्ण विदेशी संबंधों को बरकरार रखने और बढ़ती समृद्ध आबादी के बीच, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में, भारत को बेहतर और संतुलित व्यापार नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है.  

चावल पर निर्यात प्रतिबंध 

भारत से होने वाला चावल निर्यात, जो मुख्यतः बासमती, उबले हुए बासमती के सफेद एवं टूटे हुए चावल, मिलकर वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान होने वाले कुल चावल निर्यात का 98 प्रतिशत हिस्सा बनता है. सितंबर 2022 में, ग़ैर–बासमती सफेद चावल पर 20 प्रतिशत आयात शुल्क लगाए जाने के बावजूद, भू-राजनीतिक स्तर पर दुनिया में होने वाली अशांति और मौसम में हुए खराब बदलाव की वजह से चावल की अंतरराष्ट्रीय मांग में उल्लेखनीय तौर पर वृद्धि दर्ज की गई. जिसकी वजह से भारतीय चावल निर्यात में काफी बढ़त देखी गयी है. हालांकि, स्थानीय दरों को स्थिर करने के लिए, 20 जुलाई 2023 को, एक निर्यात प्रतिबंध लागू किया गया था. इसके अलावा, 9 सितंबर 2022 को, एक महत्वपूर्ण स्थानीय कमी को दूर करने के लिये  टूटे चावलों के निर्यात को भी रोक दिया गया था, जो देश में पशुधन एवं इथेनॉल उत्पादन सेक्टर को प्रभावित कर रहा था.

अफ्रीकी और पूर्व एशियाई देशों के लिए, जो कि चावल के विशुद्ध आयातक देश हैं, उनको इस व्यापार से मिलने वाला फायदा, उपभोक्ताओं के सरप्लस में होने वाले नुक़सान की किसी भी हालत में भरपाई करने की संभावना नहीं रखता है, और- ज्य़ादातर संदर्भ में, जनता के संपूर्ण कल्याण में कमी ही लेकर आएगा.

लगाए गए ये प्रतिबंध और शुल्क, भारतीय चावल का आयात करने वाले प्रमुख देशों जैसे नेपाल, वियतनाम, मलेशिया और विशेष रूप से अफ्रीकी देशों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने के उद्देश्य से किया गया है, जो संभावित रूप से, वैश्विक रूप से चावल की कीमतों में उछाल और खाद्य सुरक्षा को बाधित कर सकता है. चूंकि, ये सारे बदलाव, भारत की G20 की अध्यक्षता और अफ्रीकी संघ (AU) को जी20 में शामिल होने के लिये दिए गए निमंत्रण के बाद किया गया है, इस वजह से कहीं न कहीं इन देशों के बीच के अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है.   

व्यापारिक प्रतिबंध का दुनिया पर प्रभाव 

अपने किफ़ायती कीमत और आर्थिक गुणवत्ता की वजह से, उप-सहारा अफ्रीका, भारतीय ग़ैर-बासमती सफेद चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है. निर्यात पर प्रतिबंध की वजह से, वैश्विक बाज़ार को कमी का सामना करना पड़ेगा, जिस वजह से कीमतों में भारी वृद्धि  होगी. इन हो रही घटना का असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे उपभोक्ताओं की संख्या पर पड़ेगा और एक किस्म का सिकुड़न दर्ज किया जायेगा. ज्यों-ज्यौं कीमतें बढ़ेंगी, आयात करने वाले देशों को जो सरप्लस अनाज हासिल होगा जिसका उन्हें सबसे ज्य़ादा लाभ मिलेगा. अफ्रीकी और पूर्व एशियाई देशों के लिए, जो कि चावल के विशुद्ध आयातक देश हैं, उनको इस व्यापार से मिलने वाला फायदा, उपभोक्ताओं के सरप्लस में होने वाले नुक़सान की किसी भी हालत में भरपाई करने की संभावना नहीं रखता है, और- ज्य़ादातर संदर्भ में, जनता के संपूर्ण कल्याण में कमी ही लेकर आएगा. एक तरफ जहां इस स्थिती का अनुमान पहले से था, वहीं भारत पर लगे प्रतिबंध की वजह से वैश्विक खाद्य संकट उत्पन्न होने का दावा काफी विचित्र है. 

वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में चावल उत्पादन के महज 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जिसमें से 40 प्रतिशत चावल का निर्यात भारत अकेले करता है. हालांकि, इस 40 प्रतिशत व्यापार में से ज्य़ादातर हिस्सा बासमती चावल का है, और ग़ैर-बासमती सफेद चावल का मात्र 20 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है. एक तरफ जहां इस बैन की वजह से चावल की वैश्विक कीमतें अनावश्यक रूप से बढ़ जाएंगी, लेकिन अकेले निर्यात पर लगे प्रतिबंध के कारण खाद्य सुरक्षा में किसी प्रकार की बाधा या दिक्कतें पैदा हो ये मुमकिन नहीं है.  

सरकार को चाहिए कि वो उन्नत सिंचाई तकनीक़ माध्यमों एवं उच्च गुणवत्ता उर्वरकों के इस्तेमाल पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए, घरेलू उपज एवम् उत्पादकता को और बढ़ाए जाने की दिशा में अपना ध्यान केंद्रित करे .  

हालांकि, चावल के विभिन्न किस्मों के बीच आपस में क्रॉस-कीमत लोच काफी कम होने के बावजूद, बासमती के बाज़ार में कीमतों में उछाल आ सकता है. ऐसा होने की स्थिति में, बासमती चावल के उत्पादक किसानों को अधिक और बेहतर लाभ कमाने का अवसर प्राप्त होगा, लेकिन इस वजह से उपभोक्ताओं संख्या पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. ज्य़ादातर धनाढ्य देशों को निर्यात की जाने वाली, एवं ज्य़ादातर उच्च आय वाले लोगों द्वारा खाने में इस्तेमाल किए जाने वाली बासमती की उत्तम क्वालिटी वाले चावल, अंततः खाद्य सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में, अपने महत्व को कम करती है. इस पूरे घटनाक्रम से धनी उपभोक्ताओं से लेकर बड़े स्तर के उत्पादकों के बीच व्यापार से होने वाले फायदे का पुन: वितरण ज़रूर होगा.  

सारांश

भारतीय चावल पर लगा प्रतिबंध, वैश्विक बाज़ार में होने वाली कम आपूर्ति, और उस वजह से कीमतों में हो रही संभावित सहवर्ती वृद्धि के बावजूद, शायद ही, ग्लोबल खाद्य संकट का कारण बन पाए. यह फिर अफ्रीकी और पूर्वी-अफ्रीकी देशों, जो कि खासकर  के प्रतिबंधित चावल के प्रमुख उपभोक्ता हैं, उनके खाद्य मूल्य श्रृंखला को बेतरह बाधित करेगी. हालांकि, घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय खाद्य संकट में उचित संतुलन बनाए रखने की दिशा में, सरकार को प्रभावित देशों में तुरंत और आवश्यक तौर पर चावल की खेप भेजने, और प्रतिबंध की वजह से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का नियंत्रण करना सुनिश्चित करना चाहिये, और इसके लिये ज़रूरी उपायों का इंतेज़ाम करना चाहिये. अगर भारत बासमती निर्यात पर लागू शुल्क व्यवस्था को एक-समान बनाये रखता और इससे मिले राजस्व का इस्तेमाल उत्पादकता बढ़ाने में करता तो, संभवतः इस स्थिति को दरकिनार किया जा सकता था. एक तरफ जहां ये खाद्य सुरक्षा को लेकर भारत की प्रतिबद्धता पर प्रश्न खड़ा करेगी, वहीं लंबी दूरी तय करने की दिशा में, कुशल प्रोद्यौगिकी का अनुकूल इस्तेमाल, खाद्य भंडार के संग्रह को लेकर व्याप्त अनिश्चितता को समाप्त करेगा. सरकार को चाहिए कि वो उन्नत सिंचाई तकनीक़ माध्यमों एवं उच्च गुणवत्ता उर्वरकों के इस्तेमाल पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए, घरेलू उपज एवम् उत्पादकता को और बढ़ाए जाने की दिशा में अपना ध्यान केंद्रित करे .    

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