Published on Feb 03, 2020 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे भारत के अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने की रफ़्तार बढ़ रही है. वैसे-वैसे भारत के लिए नए लॉन्च स्टेशन बनाने की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है.

भारतीय अंतरिक्ष लॉन्च स्टेशन: 2020 में विस्तार का आग़ाज़

भारत की अंतरिक्ष एजेंसी, अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो (ISRO) ने वर्ष 2020 में कई अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने की योजना बना रखी है. इस के अलावा इसरो, अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई अन्य गतिविधियों का भी विस्तार कर रहा है. इस बात की संभावना है कि इसरो, इस साल अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए अतिरिक्त बुनियादी ढांचा विकसित करने की दिशा में भी आगे बढ़ेगा. जैसे-जैसे भारत के अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने की रफ़्तार बढ़ रही है. वैसे-वैसे भारत के लिए नए लॉन्च स्टेशन बनाने की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है. इसरो के लिए ऐसा करना आवश्यक है, अगर भारत अंतरिक्ष के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मुक़ाबला करने और अपने लिए जगह बनाने का इरादा रखता है. इसीलिए आज ज़रूरी हो गया है कि इसरो न सिर्फ़ अच्छी गुणवत्ता वाले मिशन पर ध्यान दे, बल्कि उस के मिशन की तादाद में भी इज़ाफा बेहद ज़रूरी हो गया है. किसी भी देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की कार्यक्षमता का अंदाज़ा लगाने का एक महत्वपूर्ण पैमाना ये होता है कि उस देश की स्पेस एजेंसी ने कितने उपग्रह, कामयाबी से अंतरिक्ष में पहले से तय कक्षा में स्थापित किए. आज अगर इसरो ये चाहता है कि वो अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट लॉन्च करने वाले रॉकेट के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का बड़ा खिलाड़ी बने, तो इस के लिए इसरो के पास स्पेस मिशन लॉन्च करने के केंद्रों की संख्या भी महत्वपूर्ण हो जाती है. इसरो को इन की ज़रूरत इसलिए है, ताकि वो अपने अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों की ज़रूरत के हिसाब से नए मिशन लॉन्च कर सके. इस वक़्त भारत के पास स्पेस मिशन लॉन्च करने के दो केंद्र हैं, जो इसरो चलाता है. पहला है केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्च स्टेशन यानी TERLS. वहीं, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम लॉन्च करने का दूसरा केंद्र है, सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC), जो आंध्र प्रदेश के दक्षिणी छोर पर समुद्र के किनारे श्रीहरिकोटा में स्थित है. थुम्बा स्पेस स्टेशन, प्रमुख रूप से रॉकेट के परीक्षण का केंद्र है. जहां पर ठोस ईंधन वाले रॉकेट को लॉन्च किया जाता है. ख़ास तौर से ऊपरी वायुमंडल और आयोनोस्फेयर में. इस की मदद से भविष्य के स्पेस मिशन की वैज्ञानिक और तकनीकी पड़ताल करने में सहूलत होती है. वहीं, श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर अंतरिक्ष और पृथ्वी की कक्षा से बाहर के अंतरिक्ष मिशन लॉन्च किए जाते हैं. इस स्पेस स्टेशन से भारत की वैज्ञानिक, सैन्य, मौसम संबधी, विकास से जुड़ी और कारोबारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले सैटेलाइट मिशन को लॉन्च किया जाता है. यहां से कई विदेशी ग्राहकों के उपग्रह भी लॉन्च किए जाते हैं. भारत ने अब तक विदेशी ग्राहकों के जितने भी स्पेस मिशन लॉन्च किए हैं, उन सभी को सतीश धवन स्पेस स्टेशन से ही लॉन्च किया गया है.

इस क्षेत्र में इसरो की उपलब्धियां बेहद शानदार रही हैं. हालांकि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की बाधा ये है कि उस के पास स्पेस स्टेशन और लॉन्च पैड की तादाद बेहद कम है. इस की वजह से भारत अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने और सैटेलाइट लॉन्च से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करता है. श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर कई दशकों से इसरो के तमाम मिशन लॉन्च करने का केंद्र रहा है. जिस तरह इसरो के अपने स्वदेशी मिशन और अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मिशन की तादाद बढ़ रही है. ऐसे में इसरो को नए लॉन्च पैड की ज़रूरत है, जो उस की कारोबारी मांग को पूरा कर सकें. और घरेलू स्पेस मिशन भी बेरोक-टोक जारी रह सकें. फिलहाल, श्रीहरिकोटा में ही दो स्पेस लॉन्च पैड हैं. ये उस वक़्त तक पर्याप्त थे, जब तक इसरो को सिर्फ़ स्वदेशी वैज्ञानिक और कारोबारी मिशन लॉन्च करने होते थे. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में इसरो के सैटेलाइट लॉन्च करने की संख्या में लगातार इज़ाफा हो रहा है. इसरो ने सौ से भी ज़्यादा सैटेलाइट मिशन अब तक लॉन्च किए हैं. इसरो की इस कामबायी में सब से बड़ा योगदान पीएसएलवी यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का रहा है, जो इसरो के 50 कामयाब मिशन में से 48 के लिए ज़िम्मेदार रहा है.

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की बाधा ये है कि उस के पास स्पेस स्टेशन और लॉन्च पैड की तादाद बेहद कम है. इस की वजह से भारत अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने और सैटेलाइट लॉन्च से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करता है.

हाल ही में एक संसदीय प्रतिनिधि मंडल ने विस्तार से समीक्षा के बाद ये पाया था कि श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर की सुविधाओं में बड़े पैमाने पर इज़ाफा करने की ज़रूरत है. इसे और संसाधन मुहैया कराने की भी ज़रूरत संसदीय प्रतिनिधि मंडल ने जताई थी. इसकी वजह ये है कि अगले पांच वर्षों में इसरो के स्पेस मिशन की तादाद दोगुना होने की संभावना है.

यही वजह है कि, एक नया स्पेस स्टेशन बनाना लंबे समय से इसरो के एजेंडे में है. राहत की बात ये है कि इसरो के नए स्पेस पोर्ट के लिए तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पास एक जगह तय हो गई है. अब यहां पर ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. ताकि, यहां एक नया स्पेस सेंटर बनाया जा सके. इस नए लॉन्च पैड के बन जाने के बाद अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने का इसरो पर जो दबाव है, वो काफ़ी कम होगा. क्योंकि, इसरो द्वारा लॉन्च किए जाने वाले अंतरिक्ष अभियानों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये दिनों-दिन बड़े और पेचीदा होते जा रहे हैं. इस के अलावा कारोबारी सेक्टर के अंतरिक्ष मिशन और वैज्ञानिक व तकनीकी संस्थाओं की तरफ़ से भी इसरो के मिशन लॉन्च की मांग बढ़ गई है. इस के अलावा कई अन्य देश अपने सैटेलाइट, इसरो के माध्यम से अंतरिक्ष में पहुंचाने का काम करते हैं. इसलिए इसरो के अंतरिक्ष अभियानों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है. इन सभी संस्थाओं और देशों का ज़ोर इसरो के माध्यम से सैटेलाइट भेजने पर इसलिए रहता है, क्योंकि अन्य देशों के मुक़ाबले इसरो के स्पेस मिशन काफ़ी सस्ते होते हैं. और इसरो के प्रक्षेपण रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) की कामयाबी का रेट भी अन्य देशों के रॉकेट से कहीं ज़्यादा है.

तूतीकोरिन में बनने वाला नया अंतरिक्ष केंद्र, स्पेस मिशन की इस बढ़ती घरेलू और विदेशी मांग को तो पूरा करेगा ही. इस के साथ इसरो को, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी बढ़त भी मिलेगी. वित्तीय दृष्टि से देखें, तो तूतीकोरिन का अंतरिक्ष केंद्र बनने के बाद इसरो के काफ़ी पैसे बचेंगे. क्योंकि यहां पर स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) रॉकेट से सैटेलाइट को कक्षा में पहुंचाया जाएगा. इस रॉकेट को तैयार करना और लॉन्च करना पीएसएलवी के मुक़ाबले काफ़ी सस्ता होगा. एसएसएलवी के ज़रिए पांच सौ किलोग्राम के उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक पहुंचाया जा सकेगा, वो भी बहुत ही कम समय में तैयारी कर के. इस के अलावा तूतीकोरिन स्पेस पोर्ट से आगे चल कर भारत के जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल एमके-III (GSLV MK-III), यूनीफाइड मॉड्यूलर लॉन्च व्हीकल (UMLV) और अवतार री-यूज़ेबल लॉन्च व्हीकल (ARLV) भी लॉन्च किए जा सकेंगे.

तूतीकोरिन में बनने वाला नया अंतरिक्ष केंद्र, स्पेस मिशन की इस बढ़ती घरेलू और विदेशी मांग को तो पूरा करेगा ही. इस के साथ इसरो को, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी बढ़त भी मिलेगी.

ये कमोबेश तय है कि भारत छोटे आकार के उपग्रहों को एसएसलवी रॉकेट के माध्यम से तूतीकोरिन से लॉन्च किया करेगा. इस की वैज्ञानिक और तकनीकी वजहें भी हैं. चूंकि, तूतीकोरिन भूमध्य रेखा के क़रीब है. जो भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिण में पड़ती है. तो जैसा कि इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने कहा भी कि, ‘हम ने तूतीकोरिन का चुनाव इसलिए किया कि हम एसएसएलवी के माध्यम से दक्षिणी तरफ़ सैटेलाइट लॉन्च करने का काम आसानी से कर सकेंगे.’ अगर आप भूमध्य रेखा के पास से कोई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजते हैं, तो इस के कई फ़ायदे होते हैं. क्योंकि, भूमध्य रेखा के पास धरती की चौड़ाई ज़्यादा होती है, तो इस के अपनी धुरी पर घूमने की रफ़्तार भी ज़्यादा होती है. इस का फ़ायदा ये होगा कि जब भूमध्य रेखा के क़रीब के किसी स्पेस पोर्ट से रॉकेट का प्रक्षेपण किया जाएगा, तो उसे धरती की इस तेज़ रफ़्तार का भी फ़ायदा मिलेगा. भूमध्य रेखा के पास धरती के घूमने की रफ़्तार 1670 किलोमीटर होती है. जो धरती के अन्य हिस्सों के मुक़ाबले ज़्यादा होती है. इस की वजह ये होती है कि भूमध्य रेखा के पास धरती का दायरा बड़ा होता है, तो इसे ज़्यादा फ़ासला तय करना होता है. इसीलिए भूमध्य रेखा के पास धरती के घूमने की रफ़्तार ज़्यादा होती है. अगर किसी स्पेस लॉन्च व्हीकल या रॉकेट को भूमध्य रेखा से दूर किसी अन्य जगह से प्रक्षेपित किया जाता है, तो उसे धरती के घूमने की रफ़्तार का फ़ायदा नहीं मिलता. तब उस रॉकेट को धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की पकड़ से मुक्त होने के लिए ज़रूरी रफ़्तार हासिल करने के लिए ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ता है. इस वजह से कई बार रॉकेट मंज़िल पर पहुंचने से पहले ही गिर जाते हैं. वहीं, जब स्पेस लॉन्च व्हीकल जब भूमध्य रेखा के पास से प्रक्षेपित किए जाते हैं, तो लॉन्च किए जाने से पहले ही उन के पास धरती के 1670 किलोमीटर की रफ़्तार से घूमने की स्पीड होती है. ऐसे में अगर को अंतरिक्ष केंद्र भूमध्य रेखा के क़रीब है, तो वहां से छोड़ा गया रॉकेट, ध्रुवों के पास से लॉन्च होने के मुक़ाबले, 500 किलोमीटर की ज़्यादा रफ़्तार से ऊपर जाता है. यहां से प्रक्षेपित रॉकेट अपनी तय दिशा में आगे बढ़ता है और किसी उपग्रह को बड़ी आसानी से उस की कक्षा में पहुंचा देता है. इन्हीं सब कारणों से इसरो ने अपना नया स्पेस पोर्ट तूतीकोरिन में बनाने का फ़ैसला किया. क्योंकि तूतीकोरिन, भारतीय प्रायद्वीप के एकदम आख़िरी छोर पर है और भूमध्य रेखा के क़रीब स्थित है. इसीलिए यहां से स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और दूसरे रॉकेट लॉन्च करना आसान होगा. इन रॉकेट के माध्यम से उपग्रहों का प्रक्षेपण करने के कई फ़ायदे होंगे. जो कारोबारी और विकास से जुड़े अंतरिक्ष मिशन लॉन्च करने से भी ज़्यादा मुनाफ़े का सौदा साबित होंगे.

कुल मिलाकर देखें, तो इन सभी कारणों से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो क्यों एक और स्पेस लॉन्च स्टेशन बनाना चाहती है. तूतीकोरिन में एक नए अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र के बन जाने से श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर पर मिशन लॉन्च करने का दबाव कम होगा. हालांकि, इसरो के पास नए वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ तलाश कर उन्हें अपने साथ जोड़ने की चुनौती बनी रहेगी. ताकि वो उन की विशेषज्ञता का फ़ायदा उठा कर अपने बढ़ते अंतरिक्ष मिशन की मांग को पूरा कर सके. और, उन्हें कामयाबी से अंजाम तक पहुंचा सके.

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