Author : Premesha Saha

Published on Nov 19, 2021 Updated 0 Hours ago

दक्षिणी चीन सागर में युद्ध को लेकर चीन के बढ़ते प्रेम और निवेश में चीन की कमी ने फिलीपींस को अपनी चीन नीति पर फिर से विचार करने को मजबूर कर दिया है.

कहानी फिलीपींस की: क्या दक्षिणी चीन सागर में चीन अपने भरोसेमंद साथियों को खो रहा है?

फिलीपींस की चीन नीति उतार-चढ़ाव वाली रही है. फिलीपींस के मौजूदा राष्ट्रपति ड्यूटर्ट जब 2016 में सत्ता में आए तो अमेरिका और चीन को लेकर फिलीपींस की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया था. पूर्व राष्ट्रपति बेनिग्नो एक्विनो III फिलीपींस के पुराने संधि सहयोगी अमेरिका के साथ घुल मिल कर रहने की नीति पर चले थे. उन्होंने सक्रिय रूप से फिलीपींस की संप्रभुता पर चीन के अतिक्रमण का मुक़ाबला किया और दक्षिणी चीन सागर में चीन के ‘नाइन-डैश लाइन’ दावे को खारिज करने के लिए परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) में इस मामले को ले गए. इसके विपरीत जब ड्यूटर्ट सत्ता में आए तो उन्होंने सिर्फ़ चीन से फ़ायदा उठाने पर ध्यान दिया. यहां तक कि कई बार उन्होंने चीन को फिलीपींस का सहयोगी घोषित कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि दक्षिणी चीन सागर में फिलीपींस को लेकर अपनी आक्रामकता में चीन कमी करेगा और फिलीपींस के आर्थिक और बुनियादी संरचना के विकास में भी चीन काफ़ी योगदान करेगा, ख़ास तौर पर राष्ट्रपति ड्यूटर्ट की अपनी ‘बिल्ड बिल्ड बिल्ड’ पहल में. लेकिन हाल के महीनों में ऐसा लगता है कि चीन की तरफ़ ये दोस्ताना और समझौतापरक नीति छोड़ दी गई है और एक बार फिर से अमेरिका के साथ जुड़ने के लिए कोशिशों की शुरुआत हो गई है. ड्यूटर्ट की चीन से जुड़ी नीति में इस बदलाव की वजह क्या है? अमेरिका के साथ मौजूदा सामंजस्य क्या आकार ले रहा है? क्या चीन को लेकर फिलीपींस के रवैये में ये बदलाव पड़ोसियों को लेकर चीन की नीति ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया को लेकर नीति के मामले में ग़लत क़दमों और लड़खड़ाहट की शुरुआत है?

 पिछले कुछ महीनों में देखा जा रहा है कि चीन को रोकने की कोशिश के तहत फिलीपींस अमेरिका के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को पूरी तरह बहाल कर रहा है और फिर से भरोसा बढ़ा रहा है. इस तथ्य को उच्च स्तरीय दौरों की श्रृंखला से देखा जा सकता है. 

पिछले कुछ महीनों में देखा जा रहा है कि चीन को रोकने की कोशिश के तहत फिलीपींस अमेरिका के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को पूरी तरह बहाल कर रहा है और फिर से भरोसा बढ़ा रहा है. इस तथ्य को उच्च स्तरीय दौरों की श्रृंखला से देखा जा सकता है. साथ ही व्यापक रक्षा समझौतों की फिर से बहाली की गई है. फिलीपींस दक्षिण-पूर्व एशिया में उन गिने-चुने देशों में से है जिसने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच ऑकस सुरक्षा संधि का पूरी तरह समर्थन किया है. फिलीपींस-अमेरिका द्विपक्षीय सामरिक संवाद की फिर से बहाली, 2022 में पूरी तरह सैन्य ड्रिल (बालिकतान अभ्यास) की तरफ़ लौटने और पर्यवेक्षक के रूप में ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम को आमंत्रित करने की योजना से भी ये समझा जा सकता है कि अमेरिका के साथ फिलीपींस के संबंधों में गर्माहट आ रही है. सबसे महत्वपूर्ण क़दम जुलाई 2021 में अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के मनीला दौरे के दौरान उठाया गया जब ड्यूटर्ट ने अमेरिका के साथ बहुत पुराने विज़िटिंग फोर्सेज़ एग्रीमेंट (वीएफए) को ख़त्म करने को लेकर अपनी आपत्तियों को वापस ले लिया और समझौते को फिर से बहाल कर दिया. इसके अलावा जुलाई 2020 में उन्होंने अंतत: फिलीपींस के विदेश मामलों के विभाग को अधिकृत कर दिया कि वो हेग के परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) के 2016 के फ़ैसले, जिसमें विवादित सागर में चीन के दावे को खारिज किया गया था, को मान्यता देने के लिए चीन को अधिसूचित करे. ड्यूटर्ट ने चीन को ख़ुश करने के लिए 2016 के फ़ैसले को लेकर पहले तो चुप्पी साधे रखी, फिर पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्होंने एक बयान में कहा कि “2016 में फिलीपींस के पक्ष में फ़ैसले पर “कोई समझौता नहीं हो सकता” और इसे कमज़ोर करने की किसी भी कोशिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा.” ये सभी बातें साफ़ तौर पर दिखाती हैं कि चीन से दोस्ती की नीति को फिलहाल किनारे कर दिया गया है और अमेरिका एक बार फिर से पसंदीदा देश बन गया है.

चीन से दोस्ती की नीति पर पुनर्विचार

चीन को लेकर फिलीपींस की नीति में इस बदलाव की मुख्य वजह इस तथ्य में देखा जा सकता है कि चीन के रवैये में शायद ही कोई परिवर्तन आया है, ख़ास तौर पर दक्षिणी चीन सागर के विवादित इलाक़े में चीन की घुसपैठ को लेकर. साथ ही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन ने ड्यूटर्ट से जो वादे किए थे, उन पर भी अमल नहीं किया गया है. फिलीपींस में बीआरआई के तहत सिर्फ़ दो उल्लेखनीय प्रोजेक्ट हैं, जो छोटे हैं. एक प्रोजेक्ट के तहत मनीला में कुछ पुलों का निर्माण होना है जबकि दूसरा प्रोजेक्ट एक विवादित बांध है जो प्रकृति के संरक्षण को गंभीर नुक़सान पहुंचा सकता है. चीन ने अपने दक्षिणी चीन सागर के अभियान को भी तेज़ किया है. 2019 और 2020 में चीन ने फिलीपींस के थिटु द्वीप (जिसे पाग-असा के नाम से भी जाना जाता है) को सैकड़ों योद्धा नावों से घेर लिया. स्पष्ट तौर पर इसका उद्देश्य फिलीपींस की सरकार को द्वीप के रनवे को बेहतर बनाने और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार से रोकना है. फिर 2021 में मछली पकड़ने में इस्तेमाल होने वाली चीन की सैकड़ों नावें दक्षिणी चीन सागर के टापुओं में देखी गईं. सबसे ज़्यादा नावें व्हिटसन रीफ में दिखीं जो फिलीपींस के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईज़ेड) के भीतर है. फिलीपींस को ये शक हुआ कि मछली पकड़ने में इस्तेमाल होने वाली ये नावें वास्तव में चीन की समुद्री सहायक सेना द्वारा भेजे गए पोत हैं जिन्हें स्थायी रूप से रीफ़ पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से भेजा गया है. इसके जवाब में फिलीपींस ने भी नौसेना और तटरक्षक जहाज़ों को इस क्षेत्र में भेजा. दूसरे शब्दों में चीन से ड्यूटर्ट की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं और चीन का समर्थन करने वाली अपनी नीति से उनके पास दिखाने के लिए बहुत कम चीज़ें थीं.

चीन को लेकर फिलीपींस की नीति में इस बदलाव की मुख्य वजह इस तथ्य में देखा जा सकता है कि चीन के रवैये में शायद ही कोई परिवर्तन आया है, ख़ास तौर पर दक्षिणी चीन सागर के विवादित इलाक़े में चीन की घुसपैठ को लेकर. 

2022 से व्यापक पैमाने पर सैन्य अभ्यास की फिर से शुरुआत करने के फ़ैसले का ऐलान ऑकस सुरक्षा साझेदारी के अनावरण के तुरंत बाद किया गया. वैसे तो दक्षिण-पूर्व एशिया के ज़्यादातर देशों ने बयान दिया कि ऑकस सुरक्षा साझेदारी से हथियारों की रेस शुरू होगी लेकिन फिलीपींस पूरी तरह इसके समर्थन में सामने आया और उसने कहा कि मनीला इंडो-पैसिफिक में सभी देशों के साथ बेहतर रक्षा समझौते का समर्थन करता है. अमेरिका न सिर्फ़ संकट की घड़ी में फिलीपींस के साथ खड़ा होने के लिए प्रतिबद्ध है बल्कि उसने एक समझौते पर अमल के लिए 12.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भी आवंटन किया है. इस समझौते के तहत फिलीपींस के सैन्य अड्डे में अमेरिका की परियोजनाओं को स्वीकार किया गया है. अमेरिका के लिए फिलीपींस के सैन्य अड्डों तक पहुंच महत्वपूर्ण है. इससे अमेरिका को न सिर्फ़ दक्षिणी चीन सागर बल्कि एशिया के ताइवान स्ट्रेट में भी चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने में मदद मिलेगी. चीन की बढ़ती चुनौतियों से निपटने की कोशिश के तहत ड्यूटर्ट ने वास्तव में अमेरिका के साथ साझेदारी बढ़ाई है. अगस्त 2021 के आख़िर में अमेरिकी सेना के इंडो-पैसिफिक कमांड के कमांडर, एडमिरल जॉन एक्विलिनो ने गठबंधन को और मज़बूत करने के लिए फिलीपींस का दौरा किया. सितंबर 2021 में फिलीपींस के विदेश मामलों के मंत्री टिओडोरो एल. लॉकसिन जूनियर और राष्ट्रीय रक्षा के मंत्री डेल्फिन लोरेन्ज़ाना ने अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाक़ात करने और अमेरिका-फिलीपींस पारस्परिक रक्षा संधि की स्थापना की 70वीं सालगिरह का जश्न मनाने के लिए वॉशिंगटन का दौरा किया. इसमें  महत्वपूर्ण है परिष्कृत रक्षा सहयोग समझौते (ईडीसीए) का क्रियान्वयन. इस पर 2014 में हस्ताक्षर किया गया था लेकिन अनाधिकारिक तौर पर 2016 में ड्यूटर्ट ने इसे रोक दिया था. ईडीसीए अमेरिकी सेना को फिलीपींस के सैन्य अड्डों के भीतर रक्षा संपत्तियों और दूसरी सुविधाओं का निर्माण करने की स्वीकृति देता है. फिलीपींस के सैन्य अड्डों में एंटोनियो बॉतिस्ता एयर बेस, बासा एयर बेस, फोर्ट मैग्सायसाय, लुंबिया एयर बेस और मैक्टन-बेनिटो एबुएन एयर बेस शामिल हैं.

चीन के द्वारा जिस आर्थिक फ़ायदे का भरोसा दिया गया था, उसके पूरा नहीं होने लेकिन दक्षिणी चीन सागर के विवादित क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख़ में बढ़ोतरी को देखते हुए नई सरकार के लिए ये तर्कसंगत लगता है कि वो अमेरिका के साथ-साथ इंडो-पैसिफिक में दूसरे समान विचार वाले देशों जैसे जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत पर डोरे डाले. 

विवादित द्वीपों और दक्षिणी चीन सागर में चीन के लगातार अतिक्रमण की वजह से दक्षिण-पूर्व एशिया में कई देशों ने चीन को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार और बदलाव किया है. इस सिलसिले में सबसे उल्लेखनीय मामला फिलीपींस का है. एक समय अमेरिका का सहयोगी रह चुके फिलीपींस ने ड्यूटर्ट के सत्ता संभालने के बाद अपने रुख़ में बदलाव करते हुए अपनी विदेश नीति में चीन की तरफ़ मज़बूती से झुकने पर ध्यान दिया. अमेरिका से पूरी तरह कन्नी काटने और बेहद पुराने सुरक्षा समझौते को ख़त्म करने पर विचार ने फिलीपींस में काफ़ी चिंताओं को जन्म दिया लेकिन ड्यूटर्ट अपने रास्ते पर अडिग रहे. चीन को लेकर फिलीपींस की विदेश नीति में ये स्पष्ट बदलाव दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन की पड़ोसी देशों को लेकर नीति की व्यावहारिकता पर गंभीर सवाल खड़े करता है. क्या इस क्षेत्र में बीआरआई की परियोजनाएं अमेरिका और इंडो-पैसिफिक के दूसरे समान विचार वाले देशों के साथ आसियान देशों को गठबंधन करने से रोकने के लिए पर्याप्त होंगी? आर्थिक कूटनीति वाकई में आसियान के काम-काज में चीन के द्वारा अपनी मनमर्जी चलाने के लिए मज़बूत हथियार रही है. साथ ही आर्थिक कूटनीति इस क्षेत्र में चीन के द्वारा अपना क़िला बनाने में भी मददगार रही है लेकिन बीआरआई परियोजनाओं के ज़्यादा फ़ायदेमंद नहीं होने और क्षेत्रीय नेताओं की उम्मीद के मुताबिक़ निवेश नहीं होने के कारण चीन को अपनी दक्षिण-पूर्व एशिया नीति पर फिर से विचार करने और उसमें बदलाव की ज़रूरत पड़ेगी. फिलीपींस का मामला इस दिशा में एक मज़बूत इशारा पेश करता है.

अमेरिका के लिए फिलीपींस के सैन्य अड्डों तक पहुंच महत्वपूर्ण है. इससे अमेरिका को न सिर्फ़ दक्षिणी चीन सागर बल्कि एशिया के ताइवान स्ट्रेट में भी चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकने में मदद मिलेगी. चीन की बढ़ती चुनौतियों से निपटने की कोशिश के तहत ड्यूटर्ट ने वास्तव में अमेरिका के साथ साझेदारी बढ़ाई है. 

अक्टूबर 2021 में राष्ट्रपति ड्यूटर्ट ने राजनीति से अपने संन्यास का एलान किया. इस घोषणा ने ज़्यादातर को हैरान कर दिया और अटकलें लगने लगी कि वो अपनी बेटी सारा ड्यूटर्ट-कारपिओ, जो फिलहाल फिलीपींस के दवाओ शहर की मेयर हैं, की राष्ट्रपति पद की दावेदारी का रास्ता साफ़ कर रहे हैं. सवाल खड़ा होता है कि क्या नई सरकार के तहत चीन को लेकर फिलीपींस की नीति में कोई बदलाव होगा? ड्यूटर्ट ने पूर्व के राष्ट्रपतियों से अलग और फिलीपींस में आम लोगों की राय के ख़िलाफ़ जाकर चीन के साथ दोस्ती की नीति से शुरुआत की. पिछले कुछ वर्षों में फिलीपींस के लोग चीन पर पूरी तरह अविश्वास करने लगे हैं और अभी भी अमेरिका पर पूरा विश्वास करते हैं. राष्ट्रपति पद के लिए छह उम्मीदवार मुक़ाबले में हैं- सीनेटर रोनाल्ड डेला रोसा, फर्डिनेंड ‘बोंगबोंग’ मार्कोस जूनियर, उप राष्ट्रपति लेनी रॉब्रेडो, सीनेटर पैनफिलो लैक्सन, मनीला के मेयर फ्रांसिस्को मोरेनो और सीनेटर मैन्नी पैक्विआवो. ऐसा समझा जाता है कि सीनेटर रोसा और मार्कोस जूनियर अभी भी चीन समर्थक नीति में विश्वास करते हैं क्योंकि इन्होंने भी ड्यूटर्ट की इस भावना को दोहराया था कि चीन से निवेश और व्यापार वक़्त की ज़रूरत है. दूसरे उम्मीदवारों ने हमेशा ड्यूटर्ट की चीन समर्थक नीति, चीन से आर्थिक फ़ायदे के लिए पीसीए के 2016 के फ़ैसले की पूरी तरह अवहेलना पर कठोर आपत्ति जताई थी. चीन के द्वारा जिस आर्थिक फ़ायदे का भरोसा दिया गया था, उसके पूरा नहीं होने लेकिन दक्षिणी चीन सागर के विवादित क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख़ में बढ़ोतरी को देखते हुए नई सरकार के लिए ये तर्कसंगत लगता है कि वो अमेरिका के साथ-साथ इंडो-पैसिफिक में दूसरे समान विचार वाले देशों जैसे जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत पर डोरे डाले.

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