Author : Anirban Sarma

Published on Oct 05, 2023 Updated 19 Days ago

भारत और अमेरिका के बीच शैक्षणिक सहयोग लगातार मज़बूत हो रहा है, लेकिन इस दिशा में अभी और भी बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइश है.

भारत-अमेरिका शैक्षणिक संबंध: शिक्षा में निवेश से मिलेगा प्रोत्साहन

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और दार्शनिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपनी आत्मकथा ए वे टू वेल्थ (1757) में एक चर्चित वाक्य लिखा था, “नॉलेज यानी ज्ञान या शिक्षा में निवेश सबसे अधिक लाभकारी होता है.” यह एक सच्चाई है और इस विचार को ज़्यादातर देशों ने स्वीकार भी कर लिया है. उदाहरण के लिए यूनेस्को के जो भी सदस्य देश हैं, वर्ष 2015 के बाद से उन्होंने अपने सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) की 4 से 6 प्रतिशत राशि या फिर सार्वजनिक व्यय की 15 से 20 प्रतिशत राशि एजुकेशनल फंडिंग पर ख़र्च करने को लेकर रज़ामंदी जताई है. मौज़ूदा समय में ज़्यादातर देश शिक्षा सेक्टर के वित्तपोषण के इस लक्ष्य को हासिल करने में जुटे हुए हैं. G20 जैसे समूह, जिसका गठन मुख्य तौर पर आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया था, उसने भी अब औपचारिक तौर पर लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने एवं मानव पूंजी (human capital) के विकास के महत्व को समझा है और स्वीकार किया है.

G20 जैसे समूह, जिसका गठन मुख्य तौर पर आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया था, उसने भी अब औपचारिक तौर पर लोगों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने एवं मानव पूंजी के विकास के महत्व को समझा है और स्वीकार किया है.

हाल ही में जारी किए गए G20 नई दिल्ली लीडर्स डिक्लेरेशन में भी वैश्विक स्तर पर शैक्षणिक सहयोग के महत्व के बारे में चर्चा की गई है. इस घोषणापत्र में अकादमिक सहभागिता का समर्थन करने एवं “दुनिया के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों, विद्वानों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के आवागमन को प्रोत्साहित करने” की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया है. निस्संदेह तौर पर विभिन्न देशों के बीच शैक्षणिक साझेदारी और छात्रों व शोधकर्ताओं के आदान-प्रदान से जुड़े कार्यक्रम, जहां एक ओर नॉलेज-आधारित सशक्तिकरण का प्रमुख ज़रिया बनकर उभरे हैं, वहीं दूसरी ओर सॉफ्ट पवार के माध्यम से देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को सशक्त करने का साधन भी बने हैं.

भारत और अमेरिका: साझेदारी एक, संभावनाएं अनेक

शैक्षणिक संबंधों के मामले में भारत व अमेरिका के बीच जो प्रगति हुई है, वह इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है. जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की ऐतिहासिक स्टेट विज़िट के दौरान, राष्ट्रपति जो बाइडेन की पत्नी और अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडेन ने अमेरिकी छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि “भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की नींव शिक्षा है. दोनों देशों के छात्र न केवल एक-दूसरे के साथ सीख रहे हैं, बल्कि आगे भी बढ़ रहे हैं. इसके साथ ही ये छात्र मिलकर अपना भविष्य भी संवार रहे हैं और एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर रहे हैं.” प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर बताया था कि द्विपक्षीय प्रौद्योगिकी साझेदारी के हिस्से के रूप में अमेरिका के 750 प्राध्यापक पहले से ही भारत में शैक्षणिक कार्यों में संलग्न हैं. प्रधानमंत्री ने कहा था कि तेज़ विकास की गति को बरक़रार रखने के लिए दोनों देशों को “पाइपलाइन ऑफ टेलेंट” की आवश्यकता है. पीएम मोदी ने यह भी कहा था कि अमेरिका “बेहतरीन शैक्षणिक संस्थानों और उन्नत टेक्नोलॉजी” का एक बड़ा केंद्र है, जबकि भारत के पास “दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी” है. ज़ाहिर है कि दोनों देशों के बीच ऐसी कई समानताएं हैं और उम्मीदें हैं, जो कि भारत-अमेरिका शैक्षणिक रिश्तों को और विकसित करने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं.

पीएम मोदी ने यह भी कहा था कि अमेरिका “बेहतरीन शैक्षणिक संस्थानों और उन्नत टेक्नोलॉजी” का एक बड़ा केंद्र है, जबकि भारत के पास “दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी” है.

भारत में नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों एवं इंडस्ट्री के लिए हमेशा से ही “प्रतिभा पलायन” (brain drain) एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. प्रतिभा के पलायन ने भारत में घरेलू स्तर पर ह्यूमन कैपिटल के विकास पर विपरीत असर डाला है, जबकि यह अमेरिका के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हुआ है, क्योंकि बेहतर शिक्षा या रिसर्च के लिए अमेरिका गए आधे से अधिक भारतीय प्रवासी छात्र बाद में वहीं बस जाते हैं. देखा जाए तो वर्तमान में भी प्रतिभा पलायन में कोई विशेष कमी नहीं दिखाई दी है. लेकिन दोनों देश की ओर से की गईं कई प्रमुख शैक्षणिक पहलों के कारण भारत और अमेरिका के बीच प्रतिभा और कौशल का परिवर्तनकारी आदान-प्रदान सुनिश्चित हुआ है. इसके चलते जहां भारतीय विशेषज्ञों को अमेरिका की विकसित रिसर्च से लाभ उठाने का मौक़ा मिला है, वहीं अमेरिकी शिक्षाविदों और पेशेवरों को भारतीय शिक्षाविदों से सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है.

इस 21वीं सदी में भारत और अमेरिका के बीच शैक्षणिक आदान-प्रदान के जो कार्यक्रम शुरू हुए, उनमें दोनों देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण प्रोग्राम एग्रीकल्चर एजुकेशन एवं रिसर्च के क्षेत्र में था. वर्ष 2005 में अमेरिका और भारत के बीच कृषि शिक्षा, शिक्षण, रिसर्च, सर्विस एवं वाणिज्यिक संबंधों पर नॉलेज इनीशिएटिव्स शुरू हुए थे. इसका उद्देश्य व्यापक क़दमों के ज़रिए दोनों देशों के बीच कृषि सहयोग को प्रोत्साहन देना था. इस कार्यक्रम के कुछ वर्षों के बाद ही इंडो-यूएस 21st सेंचुरी नॉलेज इनीशिएटिव शुरू हुआ. इस पहल के माध्यम से दोनों देशों के बीच उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार किया जाना था. सहयोग के इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, टिकाऊ ऊर्जा और सार्वजनिक स्वास्थ्य आदि शामिल थे. नॉलेज से जुड़ी इन दोनों पहलों का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य शिक्षा के साथ ही आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी सशक्त करना था, यानि कि आपसी समझ, शैक्षिक सुधार एवं आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना था. भारत द्वारा वर्ष 2015 में ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर एकेडमिक नेटवर्क्स (GIAN) की शुरुआत की गई. इसका मकसद विश्व के तमाम देशों के बीच भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों, शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों एवं इंडस्ट्री के विशेषज्ञों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना था. उल्लेखनीय है कि GIAN की स्थापना के बाद से ही अमेरिकी विशेषज्ञों ने इसमें बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है. हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि फुलब्राइट-नेहरू प्रोग्राम ने भारत-अमेरिका के मध्य बेहतरीन शिक्षाविदों एवं पेशेवरों के आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने और दोनों देशों के आपसी रिश्तों को प्रगाढ़ करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है.

वर्ष 2020 में भारत और अमेरिका के बीच शिक्षा के क्षेत्र में कई अन्य कार्यक्रमों एवं पहलों की शुरुआत होने के बाद से ही दोनों देशों की शैक्षणिक गतिविधियों में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी देखी जा रही है.

भारत द्वारा वर्ष 2015 में ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर एकेडमिक नेटवर्क्स (GIAN) की शुरुआत की गई. इसका मकसद विश्व के तमाम देशों के बीच भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों, शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों एवं इंडस्ट्री के विशेषज्ञों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना था.

पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद से ही ऑनलाइन शैक्षणिक गतिविधियों में अचानक से बेतहाशा बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. इसके साथ ही तमाम नए-नए ई-लर्निंग उत्पादों एवं सेवाओं की बाढ़ सी आ गई है. भारत वर्तमान में अमेरिकी एडटेक कंपनियों जैसे कि कोरसेरा, उडेमी और उडेसिटी का अमेरिका से बाहर एक सबसे बड़ा बाज़ार है. इतना ही नहीं एडडेट कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशक भारत में इस सेक्टर की वृद्धि को लेकर ख़ासे उत्साहित हैं, उनका साफ तौर पर मानना है कि “उनके लिए भारत सबसे महत्वपूर्ण मार्केट है.” एक तरफ देखा जाए तो अमेरिकी एडटेक कंपनियां भारत के ऑनलाइन एजुकेशन मार्केट में ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सेदारी पाने के लिए होड़ कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ भारतीय एडटेक कंपनियां भी तेज़ी के साथ वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही हैं और अमेरिका समेत तमाम दूसरे मार्केट्स में अपनी जड़ें जमा रही हैं. उदाहरण के तौर पर बायजूस, सिम्पलीलर्न, एमेरिटस और स्केलर जैसी भारतीय एडटेक कंपनियों ने अमेरिका में अपनी मौज़ूदगी को बढ़ाया है. इसके चलते इन कंपनियों में गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है, साथ ही अधिक से अधिक फंडिंग हासिल करने के लिए भी कोशिशें की जा रही हैं. इसी सबकी वजह से छात्रों के लिए नए-नए एवं उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक समाधान भी सामने आए हैं. अमेरिकी और भारतीय एडटेक कंपनियों के बीच उपयोगी व रचनात्मक प्रतिस्पर्धा एवं कई मामलों में पारस्परिक सहयोग का यह वातावरण अत्याधुनिक एवं नए शैक्षणिक समाधानों के विकास को प्रोत्साहित कर सकता है, साथ ही उन्हें मेनस्ट्रीम में लाने का भी काम सकता है. यह पूरी दुनिया में शिक्षा के उन्नत मापदंडों को स्थापित करने में भी मददगार साबित हो सकता है.

कोरोना महामारी का प्रकोप जब अपने चरम था, तब भारत द्वारा बेहतर भविष्य के मद्देनज़र राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लॉन्च की गई थी. इस नई शिक्षा नीति ने एजुकेशन सेक्टर में भारत और अमेरिका के बीच पारस्परिक सहयोग की तमाम संभावनों के दरवाज़े खोल दिए हैं. इस शिक्षा नीति के अंतर्गत अब भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस शुरू करने को सुविधाजनक बनाने के लिए वैधानिक फ्रेमवर्क्स की स्थापना की जा रही है. भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चोटी के 500 विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल विदेशी शैक्षणिक संस्थानों को आकर्षित करने में जुटा हुआ है. भारत द्वारा पहले से ही कम से कम 10 शीर्ष रैंकिंग वाली अमेरिकी यूनिवर्सिटियों के साथ विचार-विमर्श किया जा चुका है. इसके साथ ही भारत द्वारा अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों के साथ दूसरे साझा एजुकेशनल प्रोग्राम्स की संभावनाओं पर भी मंथन किया जा रहा है. इसमें सबसे अहम बात यह है कि अमेरिका में भारतीय विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने की योजना की मंज़ूरी को लेकर भी तेज़ी से काम किया जा रहा है. हाल ही में अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय यात्रा के बाद एक उच्च स्तरीय इंडिया-यूएस टास्क फोर्स ने सिफ़ारिश की है कि दोनों देश अपने-अपने राजनयिक दफ़्तरों में ऐसे विशेष कार्यालय खोलें, जो कि एजुकेशन सेक्टर में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करें. इन विशेष कार्यालयों का मुख्य काम ग्लोबल यूनिवर्सिटियों की एक-दूसरे के देश में अपना कैंपस खोलने में मदद करना होगा. उल्लेखनीय है कि इस तरह के क़दमों को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए. ऐसा करना पाठ्यक्रम, शिक्षण-प्रशिक्षण एवं रिसर्च के ग्लोबलाइज़ेशन को लेकर एक मॉडल स्थापित करने में मददगार साबित हो सकता है.

आगे का मार्ग

भारत और अमेरिका के बीच अप्रैल 2022 में 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता इस मामले में एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी. इस बैठक के बाद जारी किए गए साझा बयान में दोनों देशों के बीच स्थापित जीवंत शैक्षणिक संबंधों की तारीफ़ की गई थी. इस साझा बयान के तुरंत बाद दोनों देशों की शिक्षा के क्षेत्र में मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता उस वक़्त देखने को मिली थी, जब शिक्षा एवं कौशल विकास पर एक नए भारत-अमेरिका कार्य समूह का गठन किया गया. यह वर्किंग ग्रुप अन्य क्षेत्रों के अलावा, कौशल विकास एवं तकनीक़ी और व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा, साथ ही मौज़ूदा दौर में उद्योग जगत की ज़रूरतों के मुताबिक़ प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विकसित करने में भी सहयोग करेगा और प्रोग्रेशिव इंडस्ट्री-एकेडेमिया इंटरफेस की स्थापना में भी सहायता करेगा.

पूरी दुनिया में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नए सिरे से ज़ोर आजमाइश की जा रही है. देखा जाए तो भारत-अमेरिका के साझा अनुसंधान प्रयासों को नई गति देने का यह सटीक समय हो सकता है.

ज़ाहिर है कि जून के महीने में प्रधानमंत्री मोदी एवं राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा आपसी सहयोग की जिन प्राथमिकताओं के बारे में बताया गया था, वर्तमान में शिक्षा एवं कौशल विकास पर यह फोकस उन्हीं प्राथमिकताओं के अनुरूप है. दोनों राष्ट्राध्यक्षों द्वारा भारत-अमेरिका के बीच व्यापक स्तर शुरू होने वाली तकनीक़ी साझेदारियों के बारे में भी विस्तार से जिक्र किया गया था. उल्लेखनीय है कि इन साझेदारियों में से ज़्यादातर में विशेष रूप से महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों पर फोकस किया गया है. दोनों नेताओं के इस नज़रिए को ज़मीनी स्तर पर संचालित करने के लिए “अमेरिका और भारत के उद्योगों, सरकार एवं शैक्षणिक संस्थानों” को “व्यापक स्तर पर टेक्नोलॉजी साझाकरण, मिलजुल कर विकास करने एवं सह-उत्पादन के अवसरों” का लाभ उठाने की ज़रूरत होगी. निस्संदेह रूप से इसके लिए नेक्स्ट जेनरेशन के यानी भविष्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ रिसर्च, डेवलपमेंट एवं तकनीक़ी कौशल की आवश्यकता होगी. इस दिशा में भारत एवं अमेरिका की यूनिवर्सिटियों के एक चिन्हित ग्रुप की “इंडो-यूएस ग्लोबल चैलेंज इंस्टीट्यूट्स” के तौर पर पहचान करने एवं इन विश्वविद्यालयों को विशेष तरह की टेक्नोलॉजी और विकास से जुड़े विषयों पर मिलकर काम करने के लिए फंडिंग करने का यह ताज़ा प्रस्ताव बेहद आकर्षक है. इस प्रस्ताव को हर हाल में अमली जामा पहनाया जाना चाहिए.

सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की वर्ष 2030 तक की जो समय-सीमा निर्धारित की गई है, उसका आधा कार्यकाल समाप्त हो चुका है, यानी इसके लिए अब सिर्फ आधा समय ही बचा है. ऐसे में पूरी दुनिया में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नए सिरे से ज़ोर आजमाइश की जा रही है. देखा जाए तो भारत-अमेरिका के साझा अनुसंधान प्रयासों को नई गति देने का यह सटीक समय हो सकता है. ज़ाहिर है कि दोनों ही देश SDGs को पाने के लिए ऐसे समाधानों को विकसित करना चाहते हैं, जिन्हें लागू करना सुगम हो. इसके अतिरिक्त, भारत की GIAN जैसी पहलों में अमेरिकी भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है और साथ ही साथ अमेरिका के प्रमुख साइंटिफिक संस्थाओं में भारतीय विशेषज्ञों के लिए और अवसर बनाए जा सकते हैं. ऐसा करने से न केवल नॉलेज का आदान-प्रदान होगा, बल्कि नई तकनीक़ों और प्रक्रियाओं के बारे में बेहतर तरीक़े से जानने का अवसर भी मिलेगा. आख़िरकार यह क़दम दोनों ही देशों में रिसर्च एवं डेवलपमेंट को प्रोत्साहित कर सकता है. इसके अतिरिक्त, युवाओं को अंतर्राष्ट्रीय इंटर्नशिप एवं अप्रेंटिसशिप की सुविधा भी दी जा सकती है, इससे युवा शोधकर्ताओं और पेशेवरों को राष्ट्रीय प्रयासों में अपना योगदान देने के साथ ही बेहतर करियर शुरू करने का बहुमूल्य मौक़ा मिल सकता है.

आख़िर में, ऐसे दौर में जब भारत और अमेरिका की एजुकेशनल पार्टनरशिप का ज़्यादातर फोकस साइंस एवं टेक्नोलॉजी पर है, तब मानविकी, सामाजिक विज्ञान और लिबरल आर्ट्स यानी अर्थशास्त्र, साहित्य, दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्रों में ज़्यादा सहयोग प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है. तकनीक़ी कौशल और वैज्ञानिक प्रभुत्व हासिल करने की दिशा में कार्य करना अपनी जगह बहुत ज़रूरी है, लेकिन इस आपाधापी में दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों, यानी अमेरिका और भारत को अपने उन सांस्कृतिक संबंधों की अनदेखी नहीं करना चाहिए, जो उन्हें आपस में मज़बूती से जोड़े रखने का काम करते हैं.


अनिर्बान सरमा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो एवं डिप्टी डायरेक्टर हैं.

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