भारत और अमेरिका के बीच फरवरी महीने के आखिर में होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग आयोजित किया गया था, जिसमें दोनों देशों के अधिकारियों ने शिरकत की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. देखा जाए तो, होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग अमेरिका और भारत के बीच विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करने का काम करता है. इस डायलॉग का मकसद मादकद्रव्यों की तस्करी का सामना करने के लिए सहयोग को बढ़ाना, कस्टम विभाग यानी सीमा शुल्क के अधिकारियों के बीच पारस्परिक सहयोग को मज़बूत करना, आतंकवाद और साइबर क्राइम का मुक़ाबला करना और गैरक़ानूनी विस्थापन की समस्या का समाधान निकालना है. ज़ाहिर है कि भारत और अमेरिका के बीच इन तमाम क्षेत्रों में सहयोगी नज़रिए के पीछे प्रगाढ़ द्विपक्षीय संबंध हैं और दोनों देशों के रिश्तों में यही भरोसा पारस्परिक ख़ुफ़िया सूचना सहयोग को मज़बूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है. भारत और अमेरिका ख़ास तौर पर इंडो-पैसिफिक में महाद्वीपीय, समुद्र और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में संवेदनशील जानकारी साझा करने के साथ ही इंटेलिजेंस सेक्टर में आपसी सहयोग सशक्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत-अमेरिका के बीच सहयोग की असीम संभावनाएं हैं, लेकिन इसको लेकर पहले कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के बीच मज़बूत होती भागीदारी ने ख़ुफ़िया मामलों में आपसी सहयोग की संभावनाओं के ऐसे द्वारा खोलने का काम किया है, जिनके बारे में दो दशक पहले सोचना भी मुमकिन नहीं था.
जिस प्रकार से क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर सुरक्षा को लेकर माहौल में बदलाव आ रहा है, उसके मद्देनज़र अमेरिका और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच सशक्त सहयोग बेहद ज़रूरी हो गया है.
जिस प्रकार से क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर सुरक्षा को लेकर माहौल में बदलाव आ रहा है, उसके मद्देनज़र अमेरिका और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच सशक्त सहयोग बेहद ज़रूरी हो गया है. इंडो-पैसिफिक में जिस तरह से हालात तेज़ी से करवटें ले रहे हैं, उसे देखते हुए इस रीजन में दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया सूचना सहयोग सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद कारगर सिद्ध हो सकता है. इसीलिए, होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग के दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने गोपनीय जानकारी को सुरक्षित तरीक़े से साझा करने के लिए विभिन्न स्तरों पर सहयोग को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया, साथ ही ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच पारस्परिक सामंजस्य एवं द्विपक्षीय या बहुपक्षीय साझेदारी पर विशेष रूप से ज़ोर दिया गया. ज़ाहिर है कि अलग-अलग क्षेत्रों में बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों एवं मुश्किलों को देखते हुए आतंकवाद का सामना, साइबर सुरक्षा, सीमा-पार अवैध घुसपैठ, हवाई सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा एवं इन सबके ऊपर संप्रभुता पर होने वाले किसी भी ख़तरे का मुक़ाबला करने में दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया सूचना सहयोग बेहद आवश्यक हो गया है.
आपसी भरोसा बेहद ज़रूरी
वैश्विक स्तर पर भारत और अमेरिका के संबंधों की बात की जाए, तो दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने के मामले में संबंध पहले से ही काफ़ी बेहतर हैं. लेकिन हाल-फिलहाल में खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू के मुद्दे ने दोनों देशों के बीच विश्वास के इस माहौल में खटास पैदा करने का काम किया है. विशेष रूप से पन्नू के प्रकरण में जिस प्रकार से इंटेलिजेंस को लेकर भारत और अमेरिका के बीच विवाद जैसी स्थिति पैदा हुई है, उसने कहीं न कहीं दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया एजेंसियों के स्तर पर सूचनाओं के स्वतंत्र आदान-प्रदान की ज़रूरत को सामने लाने का काम किया है. जहां तक पन्नू से जुड़े प्रकरण की बात है, तो सच्चाई यह है कि इसमें दोनों देशों के बीच विश्वास पर आंच आने जैसा कोई मामला नहीं था, बल्कि यह मतभेद पन्नू से जुड़े ख़तरे का मूल्यांकन करने और उससे जुड़ी जानकारियों का ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण करने की वजह से था. हालांकि, पन्नू प्रकरण के बावज़ूद दोनों देशों के बीच इंटेलिजेंस सहयोग में भरोसे पर कोई फर्क नहीं पड़ा है, यानी पारस्परिक ख़ुफ़िया सहयोग की मज़बूती आज भी क़ायम है. पारंपरिक रूप से देखें, तो किसी भी दो राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय स्तर पर या बहुपक्षीय फ्रेमवर्क के अंतर्गत ख़ुफ़िया रिश्तों में विश्वास सबसे ज़रूरी और बुनियादी शर्त होती है.
ये चुनौतियां न केवल इस क्षेत्र में, बल्कि इससे बाहर भी अपना असर डाल सकती हैं. इस प्रकार से कई ऐसी चिंताएं हैं, जो बेहद परेशान करने वाली हैं. ऐसे में देखा जाए, इंटरपोल के सदस्य देशों की स्थानीय पुलिस का इंटरपोल के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो के ज़रिए वैश्विक नेटवर्क के साथ सहज और निर्बाध मेलजोल अंतर्राष्ट्रीय अपराधों और आतंकवाद के खात्मे की दिशा में एक अहम क़दम है.
मास्को में 22 मार्च को जिस तरह से ISIS-K ने वीभत्स आतंकी हमले को अंज़ाम दिया उसने स्पष्ट रूप से वैश्विक स्तर पर सशक्त ख़ुफ़िया सूचना साझाकरण तंत्र की ज़रूरत को सामने लाने का काम किया है. एक सच्चाई यह भी है कि सिर्फ़ विश्वास के बल पर ख़ुफ़िया सूचना सहभागिता को मज़बूत नहीं किया जा सकता है, बल्कि ख़ुफ़िया जानकारियों के साझाकरण में सुगमता के लिए अधिकारियों एवं संस्थागत स्तर पर पैदा होने वाली रुकावटों भी दूर करना होगा. ऐसे में सुगम और निर्बाध तरीक़े से सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इस प्रकार के संस्थानों की आवश्यकता है, जिनकी कार्यप्रणाली ऐसी हो कि किसी जानकारी के मिलने पर न सिर्फ त्वरित कार्रवाई करें, बल्कि जब तक उस ख़ुफ़िया जानकारी का लक्षित मकसद पूरा नहीं हो जाए तब तक चैन से नहीं बैठें.
संस्थागत स्तर पर समानता
भारत और अमेरिका के बीच आतंकवाद के खात्मे से जुड़ी किसी भी साझा रणनीति की नींव में आपसी ख़ुफ़िया सहयोग बेहद अहम है. ज़ाहिर है कि दोनों देशों के बीच ऐसी रणनीतियों का उद्देश्य ख़ास तौर पर 9/11 हमले या 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले जैसी ख़ौफनाक घटनाओं पर लगाम लगाना है. हालांकि, जिस तरह से अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाओं की रणनीतिक वापसी की है, उसने आतंकवाद के खात्मे के रास्ते में तमाम चुनौतियां पैदा कर दी हैं. ये चुनौतियां न केवल इस क्षेत्र में, बल्कि इससे बाहर भी अपना असर डाल सकती हैं. इस प्रकार से कई ऐसी चिंताएं हैं, जो बेहद परेशान करने वाली हैं. ऐसे में देखा जाए, इंटरपोल के सदस्य देशों की स्थानीय पुलिस का इंटरपोल के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो के ज़रिए वैश्विक नेटवर्क के साथ सहज और निर्बाध मेलजोल अंतर्राष्ट्रीय अपराधों और आतंकवाद के खात्मे की दिशा में एक अहम क़दम है. भारत और अमेरिका इंटरपोल के सदस्यों के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय अपराध एवं आतंकवाद दोनों से पैदा होने वाले ख़तरों का समाधान तलाशने में मिलजुलकर काम करके आपसी सहयोग को मज़बूत कर सकते हैं. भारत और अमेरिका की द्विपक्षीय साझेदारी में एक मुद्दा काफ़ी समय से रोड़ा बना हुआ है और यह मुद्दा 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण का है. भारत तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण के लिए लगातार अमेरिका पर दबाव बना रहा है. उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के बीच अपराधियों एवं आतंकियों के प्रत्यर्पण का मसला काफ़ी उलझा हुआ है और इसे सुलझाने के लिए भी काफ़ी कुछ किए जाने की ज़रूरत है.
गौरतलब है कि सूचना चतुर्भुज में प्रभावशाली उपकरणों और एक समान विचारधारा वाले दूसरे भागीदार देशों को भी जोड़ा जा सकता है, साथ ही इसका इस्तेमाल आक्रामक और रक्षात्मक दोनों उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है.
साइबर धोखाधड़ी यानी ऑनलाइन फ्रॉड और साइबर हमलों को रोकने लिए भी ख़ुफ़िया सूचना साझाकरण को लेकर सहयोग बेहद आवश्यक है. ज़ाहिर कि भारत और अमेरिका जानकारी का आदान-प्रदान करके, साझा जांच-पड़ताल करके और इस दिशा में मिलकर क़दम उठाकर न केवल साइबर सुरक्षा को मज़बूती प्रदान कर सकते हैं, बल्कि संभावित ख़तरों को समय से पहले ही नाक़ाम भी कर सकते हैं. दोनों देशों के साझा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क की प्रामाणिकता को बरक़रार रखने के लिए इस तरह का नज़रिया बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में बाइडेन सरकार की साइबर सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी यानी साइबर सुरक्षा रणनीति इस क्षेत्र में तमाम चुनौतियों का समाधान तलाशने के लिए आपसी सहयोग को प्रगाढ़ करने का अवसर उपलब्ध कराती है.
भारत और अमेरिका के बीच इंडो-पैसिफिक का समुद्री डोमेन और भारत की सीमा सुरक्षा, दो ऐसे ख़ास क्षेत्र हैं, जो पारस्परिक इंटेलिजेंस सहभागिता को एक नया आयाम प्रदान कर सकते हैं. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जो उथल-पुथल का माहौल है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि वहां कभी भी व्यापक स्तर पर अस्थिरता पैदा हो सकती है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र की विशालता के मद्देनज़र यह ज़रूरी हो जाता है कि इस क्षेत्र के ताक़तवर देश आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय अपराधों, तस्करी, समुद्री डकैती और अवैध व्यापारिक गतिविधियों जैसी चुनौतियों से इस क्षेत्र को महफूज़ रखने के लिए आपसी गठजोड़ करें और अपनी क्षमताओं को एकीकृत करके इनका मिलकर मुक़ाबला करें. जहां तक सीमा सुरक्षा में सुधार का मसला है, तो सटीक और विश्वसनीय इंटेलिजेंस दुश्मन को धूल चटाने में कारगर साबित हो सकती है. भारत और चीन के बीच गलवान में झड़प होने बाद सो जो हालात उपजे हैं, उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत की सीमा सुरक्षा के लिहाज़ से भारत और अमेरिका के बीच ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने की ज़रूरत को उजागर किया है. उल्लेखनीय है कि गोपनीय जानकारी साझा करके अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने का दोनों देशों का समान मकसद क्षेत्र में सीमा सुरक्षा के एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है. सीमा सुरक्षा का यह नया अध्याय देखा जाए तो हिंद-प्रशांत की क्षेत्रीय रणनीति के बुनियादी सिद्धांतों यानी स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक (FOIP) से मेल खाता है. जिस प्रकार से सुरक्षा में टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ा है, उसने इंटेलिजेंस और इन्फॉर्मेशन यानी ख़ुफ़िया जानकारी और सूचना के बीच के बारीक़ से अंतर को मिटा सा दिया है. आने वाले दिनों में विकसित GEOINT प्रणाली का उपयोग बॉर्डर पर चल रही गतिविधियों से जुड़े रियल टाइम भू-स्थानिक आंकड़ों को जुटाने, उनका विश्लेषण करने और आगे प्रसारित करने के कार्य को और सुगम बना देगा. इस प्रणाली के तहत LAC पर होने वाली उथल-पुथल पर नज़र रखने के लिए सैटेलाइट इमेजरी, मानव रहित विमानों (UAVs) और ज़मीन-आधारित सेंसर का उपयोग किया जाता है.
समुद्री क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न प्रकार की जानकारियां आज के दौर में क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए ख़ासी महत्वपूर्ण हो गई हैं. यही वजह है कि ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने का महत्व भी बहुत बढ़ गया है. इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक सफलता हासिल करने के लिए समुद्री मार्गों की सुरक्षा, समुद्री लुटेरों का मुक़ाबला करना और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना बेहद अहम हो जाता है. ज़ाहिर है कि इन लक्ष्यों को तभी पाया जा सकता है, जब सही समय पर सटीक जानकारी मिले. गौरतलब है कि भारत द्वारा अपने IFC-IOR यानी इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर- इंडियन ओसीन रीजन के माध्यम से साझा की गई रियल टाइम जानकारी पश्चिमी, दक्षिणी और पूर्वी हिंद महासागर को मुक्त और खुला रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. इतना ही नहीं, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय इंटेलिजेंस सहयोग वर्तमान में समुद्री क्षेत्रों की ज़रूरतों को जिस बेहतरीन तरीक़े से पूरा कर रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया. समुद्री क्षेत्र से जुड़ी प्रभावशाली समझबूझ ने इंटेलिजेंस, निगरानी और जासूसी के बीच के अंतर को कम कर दिया है. भारत ने हाल ही में मिनिकॉय में एक नौसैनिक अड्डा खोलने का निर्णय लिया है, जो डिएगो गार्सिया और जिबूती के साथ, जहां अमेरिका के सैन्य अड्डे मौज़ूद हैं, हिंद महासागर में एक अहम सामरिक केंद्र बन सकता है.
भारत और अमेरिका के बीच जो चार मूलभूत समझौते हैं, वो देखा जाए तो एक सूचना-साझाकरण ढांचे के गठन को वास्तविकता में बदलने का ऐसा अवसर प्रदान करते हैं, जिसके बारे में पहले कभी सोचा भी जा सकता था. यह सूचना साझाकरण फ्रेमवर्क भू-स्थानिक ख़ुफ़िया जानकारी और सूचना में इसकी भागीदारी को देखते हुए बेहद अहम है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच एक एकीकृत काउंटर-इंटेलिजेंस रणनीति के अनगिनत लाभ हो सकते हैं. कहने का तात्पर्य है कि इस रणनीति का लाभ पश्चिमी हिंद महासागर में घटित होने वाली डकैती की घटनाओं को रोकने में हो सकता है, साथ ही इसका लाभ भारत के पश्चिमी समुद्री तट, डिएगो गार्सिया, मिनिकॉय द्वीप और जिबूती के बीच एक इन्फॉर्मेशन क्वाड्रीलेटरल, अर्थात सूचना चतुर्भुज निर्मित करने में भी हो सकता है. हाल के दिनों में जिस तरह से चीन द्वारा हिंद महासागर में ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने के लिए जासूसी पोत भेजने की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं, देखा जाए तो भारत और अमेरिकी की संयुक्त ख़ुफ़िया रणनीति चीन के इन मंसूबों को नाक़ाम कर सकती है. गौरतलब है कि सूचना चतुर्भुज में प्रभावशाली उपकरणों और एक समान विचारधारा वाले दूसरे भागीदार देशों को भी जोड़ा जा सकता है, साथ ही इसका इस्तेमाल आक्रामक और रक्षात्मक दोनों उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है.
ख़ुफ़िया एजेंसियों का आपसी सहयोग
दो देशों के बीच इंटेलिजेंस के क्षेत्र में निर्बाध और सुगम सहयोग के लिए पहली शर्त वहां की जांच एजेंसियों के कामकाज और ढांचे में एकरूपता होना है. जबकि देखा जाए तो भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और अमेरिका की एफबीआई एवं सीआईए जैसे जांच एजेंसियों के काम करने के तरीक़े में ज़मीन-आसमान का अंतर है. ऐसे में दोनों देशों की जांच एसेंजियों के कामकाज में समानता लाने के लिए शीर्ष स्तर पर प्रयास करने की ज़रूरत है. यानी भारत में गृह मंत्रालय और अमेरिका में होमलैंड सुरक्षा विभाग द्वारा इस दिशा में क़दम उठाए जा सकते हैं. ख़ुफ़िया सूचना सहयोग को सुदृढ़ करने में भारत और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. ज़ाहिर है कि तकनीक़ी साझेदारी जैसे विशेष मुद्दों पर दोनों देशों के एनएसए के बीच पहले से ही अच्छा समन्वय बना हुआ है और ऐसे में इसका लाभ उठाया जा सकता है. इतना ही नहीं अमेरिका और भारत में अतिरिक्त सचिवों और सचिवों के स्तर पर नियमित बैठकें भी लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं, क्योंकि इन बैठकों में इस दिशा में होने वाली प्रगति की समीक्षा की जा सकती है. इसके अतिरिक्त, भारत की एनआईए एवं अमेरिकी की एफबीआई एवं सीआईए के बीच एक हॉटलाइन भी स्थापित की जानी चाहिए, ताकि दोनों देशों की शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुख सीधे जुड़ सकें और विभिन्न मुद्दों पर नियमित बातचीत कर सकें एवं अपने विचार साझा कर सकें. ऐसा करने से दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया जानकारी को लेकर बेहतर तरीक़े से समन्वय स्थापित हो सकेगा.
कुल मिलाकर भारत और अमेरिका के बीच ख़ुफ़िया सूचना साझेदारी कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है. यह साझेदारी न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूत बुनियाद बन सकती है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और उससे भी बाहर शांति, स्थिरता एवं समृद्धि को बढ़ावा देने की दोनों देशों की कोशिशों में भी अहम भूमिका निभा सकती है.
कुल मिलाकर भारत और अमेरिका के बीच ख़ुफ़िया सूचना साझेदारी कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है. यह साझेदारी न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूत बुनियाद बन सकती है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और उससे भी बाहर शांति, स्थिरता एवं समृद्धि को बढ़ावा देने की दोनों देशों की कोशिशों में भी अहम भूमिका निभा सकती है. ऐसे में भारत-अमेरिका होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग के कार्यक्षेत्र को बढ़ाने के बारे में भी सोचा जा सकता है, अर्थात दोनों देशों के बीच बातचीत के इस मंच का औपचारिक तौर पर ऐसे सभी क्षेत्रों से जुड़ी जानकारी साझा करने के लिए विस्तार किया जा सकता है, जो सीमा सुरक्षा और हवाई एवं समुद्री सुरक्षा जैसे सेक्टरों में क्षमता निर्माण के महत्वपूर्ण मुद्दे को प्रभावित करने वाले हैं. इसके अतिरिक्त, संयुक्त प्रशिक्षण एवं अभ्यासों को प्रभावशाली बनाने के लिए, साथ ही भविष्य में खड़े होने वाले ख़तरों का सक्रियता के साथ मुक़ाबला करने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजियों में निवेश के ज़रिए भी दोनों देशों के बीच इंटेलिजेंस साझेदारी को और भी मज़बूत एवं व्यापक बनाए जाने की ज़रूरत है. निसंदेह तौर पर इस दिशा में दोनों देशों के बीच बेशुमार संभावनाएं हैं.
ज़ाहिर है कि इंटेलिजेंस की सबसे बड़ी ख़ासियत समय से पहले सटीक जानकारी उपलब्ध कराना है और नतीज़तन किसी ख़तरे की स्थिति में उसे पहले से भी भांप कर और उसे रोकने के लिए आगे बढ़कर कार्रवाई करना है. यह उचित समय है, जब भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय ख़ुफ़िया सहयोग को लेकर एक विस्तृत फ्रेमवर्क स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ा जाना चाहिए. अमेरिका और भारत के मध्य ख़ुफ़िया सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए एक मुकम्मल और मज़बूत ढांचे की स्थापना न सिर्फ़ दोनों देशों की कोशिशों को संस्थागत स्वरूप प्रदान करेगी, बल्कि आने वाले समय में बेहद लाभकारी भी सिद्ध होगी.
विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं.
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