Author : Shoba Suri

Expert Speak Health Express
Published on Jan 20, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत ने मज़बूत टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों को ख़त्म करने में सराहनीय प्रगति दिखाई है

भारत की जीत: टीके से रोकी जाने वाली बीमारियों के उन्मूलन की दिशा में भारत की यात्रा!

निवारक टीकों से रोकथाम योग्य बीमारियों को समाप्त करने के अपने लक्ष्य में भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे समुदायों को स्वस्थ बनाए रखने की दिशा में यह बेहतर स्थिति में आ गया है. व्यापक और मज़बूत टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से, रोकथाम योग्य बीमारियों के बोझ को कम करने के लिए देश ने निष्ठा से समर्पित होकर काम किया है, सभी नागरिकों के लिए सुलभ और न्यायसंगत स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने का प्रयास किया है. 1990 से 2020 तक, भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 1,000 जीवित जन्मों में 126 से घटकर प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 32 तक आ गई. इसके अलावा, 12-23 महीने की आयु के बच्चों में पूर्ण टीकाकरण का कवरेज 2015-16 में 62 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 76 प्रतिशत हो गया है. साल 2014 में भारत ने पोलियो उन्मूलन की सफलता के साथ एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार किया, जो देश की प्रमुख उपलब्धियों में शामिल है और वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्यों के प्रति इसकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है. 

सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के सहयोगात्मक प्रयासों ने बाधाओं को दूर करने और राष्ट्रव्यापी पोलियो टीकाकरण अभियानों को सफलतापूर्वक निष्पादित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के सहयोगात्मक प्रयासों ने बाधाओं को दूर करने और राष्ट्रव्यापी पोलियो टीकाकरण अभियानों को सफलतापूर्वक निष्पादित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इसके अलावा, भारत ने लगातार टीकाकरण पहलों और रोग के प्रकोप की निरंतर निगरानी के माध्यम से खसरा, रूबेला, तपेदिक और हेपेटाइटिस बी से निपटने में सराहनीय प्रगति का प्रदर्शन किया है. टीकाकरण अभियानों को नियमित स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल करने और टीका वितरण तंत्र में नवाचारों ने विभिन्न आबादी समूहों में टीकाकरण कवरेज बढ़ाने में योगदान दिया है. 

हालांकि, कई चुनौतियां बनी हुई हैं, विशेष रूप से दूरदराज़ के और हाशिए के समुदायों तक पहुंचने में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अब भी सुलभ नहीं हो पाई है. सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और सांस्कृतिक मान्यताएं कभी-कभी टीकाकरण की स्वीकार्यता में बाधा उत्पन्न करती हैं, जिसके लिए विश्वास पैदा करने और ग़लत सूचनाओं को दूर करने के लिए लक्षित संचार रणनीतियों और समुदाय की भागीदारी की आवश्यकता होती है. भविष्य की ओर देखें तो लगता है कि भारत की टीका-रोकथाम योग्य बीमारियों को समाप्त करने की प्रतिबद्धता अडिग बनी हुई है.

मिशन इंद्रधनुष

भारत में 2014 में शुरू हुए "इंटेन्सिफ़ाइड मिशन इंद्रधनुष" (आईएमआई) टीकाकरण अभियान ने देश भर में महत्वपूर्ण टीकाकरण कवरेज बढ़त हासिल की है. अभियान की प्रमुख उपलब्धियों में से एक उच्च जोख़िम वाले और कम टीकाकरण वाले क्षेत्रों की पहचान करना था. इन विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करके, स्वास्थ्य अधिकारी सबसे कमज़ोर समुदायों तक पहुंचने पर अपने प्रयासों और संसाधनों को केंद्रित कर सकते थे. आईएमआई के बहुआयामी दृष्टिकोण में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना, पहुंच में सुधार करना, समय-समय पर टीकाकरण अभियान चलाना और समुदाय की भागीदारी बढ़ाना शामिल है. दूरदराज़ और हाशिए के समुदायों तक पहुंचने की चुनौती को दूर करने के लिए अभियान ने रचनात्मक रणनीतियों का इस्तेमाल किया, जैसे कि मोबाइल टीकाकरण टीमों के इस्तेमाल के साथ-साथ सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के ज़रिये इन क्षेत्रों में टीके पहुंचाना. अधिकतम कवरेज प्राप्त करने और छूटे हुए टीकाकरण को कम करने के लिए नियमित अंतराल पर टीकाकरण के दौर आयोजित किए जाते हैं. 

आईएमआई संचार के विभिन्न माध्यमों के ज़रिये, जिनमें सामाजिक और पारंपरिक मीडिया के साथ-साथ सामुदायिक बैठकें भी शामिल हैं, बड़े पैमाने पर समुदाय को लामबंद करने पर निर्भर करता है. स्थानीय समुदाय बच्चों का टीकाकरण कराने के लिए परिवारों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. नेता, ग़ैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और स्वयंसेवक अभियान को बढ़ावा देने और लोगों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं. कुछ क्षेत्रों में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी बच्चा बिना टीकाकरण के बिना न रह जाए, घर-घर टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं. ज़मीन पर काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जैसे कि आशा, सहायक नर्स-दाई (एएनएम) और अन्य यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि टीके समुदाय तक पहुंचे.

ज़मीन पर काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता, जैसे कि आशा, सहायक नर्स-दाई (एएनएम) और अन्य यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि टीके समुदाय तक पहुंचे.

कोरोना वायरस के तेज़़ी से फैलने वाले प्रभावों के कारण इसके मुकाबले के लिए तीव्र और सफल टीकाकरण पहल की आवश्यकता थी. भारत प्रतिक्रिया देने वाले पहले देशों में से एक था और इसने इसे काफ़ी सफलतापूर्वक किया. इस टीकाकरण कार्यक्रम ने न केवल लोगों को कोविड-19 से बचाया, बल्कि टीकाकरण के प्रति सार्वजनिक राय और दृष्टिकोण में भी काफ़ी सुधार किया. जैसे-जैसे टीकाकरण अभियान गति पकड़ता गया, लोगों को टीकाकरण के लाभों और संक्रामक रोगों को रोकने में उनकी भूमिका के बारे में अधिक जानकारी मिलती गई. कोविड-19 टीकाकरण अभियान एक ऐसी सफलता थी, जिसने टीकाकरण कवरेज में वृद्धि को संभव बनाया है विशेष रूप से जोखिम वाले समूहों के बीच और कुछ टीका-रोकथाम योग्य रोगों जैसे पोलियो, खसरा और हेपेटाइटिस बी के उन्मूलन के लिए. भारत अब टीका-रोकथाम योग्य रोगों जैसे खसरा और रूबेला (एमआर) के खिलाफ लड़ने के अपने प्रयासों को मज़बूत करने की स्थिति में है, जिनके टीकाकरण पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है.

टीकाकरण के लाभों के बारे में बढ़ी हुई जागरूकता ने आबादी के बीच टीकाकरण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा किया है. भ्रांतियों को दूर करके और टीकाकरण की हिचकिचाहट को दूर करके, भारत ने टीकाकरण अभियानों में स्वीकृति और भागीदारी में वृद्धि देखी है. इसके अलावा, टीकाकरण की पहुंच और वितरण तंत्र में सुधार लाने के लिए राष्ट्र का समर्पण दूरदराज़ और अछूते समुदायों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण रहा है. यह समावेशी तंत्र सुनिश्चित करता है कि कोई भी बच्चा बिना टीकाकरण के न रहे और एमआर जैसे रोगों को खत्म करने के लिए भारत के संकल्प को मज़बूत करता है.

गर्भवती महिलाओं और पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए, जिन्हें सामान्य टीकाकरण कार्यक्रमों से या तो छोड़ दिया गया था या बंद कर दिया गया था, एक कैच-अप टीकाकरण कार्यक्रम,आईएमआई 5.0 को लागू किया जा रहा है.

गर्भवती महिलाओं और पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए, जिन्हें सामान्य टीकाकरण कार्यक्रमों से या तो छोड़ दिया गया था या बंद कर दिया गया था, एक कैच-अप टीकाकरण कार्यक्रम,आईएमआई 5.0 को लागू किया जा रहा है. 2023 के अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में, पूरे देश के सभी ज़िलों में तीन आईएमआई 5.0 राउंड आयोजित किए गए, जिसमें विशेष रूप से "खसरा रूबेला उन्मूलन" लक्ष्य पर ज़ोर दिया गया. उच्च जोखिम वाले ज़िलों पर विशेष ध्यान देते हुए, सभी ज़िलों में खसरा और रूबेला उन्मूलन के लिए रोडमैप लागू किया जा रहा है और नियमित टीकाकरण प्रयासों को तेज़ कर दिया गया है. इस गति को बनाए रखने और महामारी के दौरान प्राप्त सफलता का लाभ उठाकर, भारत टीका-रोकथाम योग्य रोगों को समाप्त करने के अपने अभियान में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के लिए तैयार है. टीका जागरूकता बढ़ाने और कमज़ोर आबादी तक पहुंचने की दिशा में किए गए ठोस प्रयास एक ऐसे भविष्य की आशा जगाते हैं जहां एमआर सहित रोकथाम योग्य रोगों का बोझ अतीत की बात हो जाएगी. सरकारी एजेंसियों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, समुदाय के नेताओं और नागरिक समाज संगठनों द्वारा संयुक्त वकालत और पहुंच बढ़ाने की पहलों ने टीकों के बारे में सटीक जानकारी का प्रभावी ढंग से प्रसार किया है और टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए  एक अच्छी तरह से जानकारी प्रदान करने वाला और सहायक वातावरण बनाया है. 


(शोबा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में  वरिष्ठ अध्येता हैं) 

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के हैं.

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