Author : Sohini Bose

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 09, 2024 Updated 1 Hours ago

एक और जहां दक्षिण बांग्लादेश में चीनी निवेश, क्षेत्र को विकसित करने में सहायक साबित होगा, वहीं दूसरी ओर यह निवेश बंगाल के खाड़ी की भूराजनीति स्थिति में भूचाल भी पैदा करेगा.

ड्रैगन का उद्भव : दक्षिणी बांग्लादेश में चीनी निवेश में संभावित उछाल

चार अप्रैल को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और बांग्लादेश में चीन के राजदूत, याओ वेन के बीच हुई मुलाकात में हसीना ने बीजिंग से बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से के विकास में निवेश करने की गुज़ारिश की. हसीना ने कहा कि बांग्लादेश का दक्षिणी हिस्सा देश का सबसे असुरक्षित क्षेत्र है, क्योंकि वहां विशाल नदियां है और यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से भी काफ़ी हद तक प्रभावित है. उन्होंने कहा कि, "अब तक अवामी लीग सरकार के अलावा किसी भी सरकार ने इस क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं दिया है." हसीना ने कहा कि उनकी सरकार ने इस इलाके में अपनी एक फ्लैगशिप यानी प्रमुख कनेक्टीविटी प्रोजेक्ट, पद्मा ब्रिज यानी पुल का निर्माण करवाया है, जो 2022 में बनकर तैयार हुआ था. इस पुल की वज़ह से अब दक्षिणी बांग्लादेश तक सीधा रोड संपर्क स्थापित हो गया है. इसके जवाब में चीन ने बांग्लादेश सरकार से दक्षिणी बांग्लादेश को लेकर विशेष विकास के प्रस्ताव देने की गुज़ारिश की हैएक ओर जहां बाहरी निवेश, प्रधानमंत्री हसीना को पर्यावरण से जुड़ी असुरक्षा से निपटने में काम आएगा और दक्षिणी बांग्लादेश के आर्थिक क्षमता का दोहन करने में सहायक साबित होगा, वहीं बंगाल की खाड़ी में चीन के बढ़ते दख़ल की वज़ह से इस क्षेत्र की भूराजनीतिक स्थिति में एक भूचाल भी आएगा.

एक ओर जहां बाहरी निवेश, प्रधानमंत्री हसीना को पर्यावरण से जुड़ी असुरक्षा से निपटने में काम आएगा और दक्षिणी बांग्लादेश के आर्थिक क्षमता का दोहन करने में सहायक साबित होगा, वहीं बंगाल की खाड़ी में चीन के बढ़ते दख़ल की वज़ह से इस क्षेत्र की भूराजनीतिक स्थिति में एक भूचाल भी आएगा.

अर्थशास्त्र और परिस्थितिकी के बीच संतुलन साधना 


बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में खुलना, बारिसल और चट्टोग्राम का समावेश हैं. ये इलाका बंगाल डेल्टा यानी नदीमुख-भूमि के मुहाने पर स्थित हैं. देश की दो प्रमुख नदियां, पद्मा और जमुना, बंगाल की खाड़ी में समाहित होने से पहले लोअर बांग्लादेश स्थित मेघना नदी से मिल जाती है और यह तीनों नदियां मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा रिवर डेल्टा यानी नदीमुख-भूमि क्षेत्र बनाती है. सारे डेलाटिक आइलैंड्स यानी डेल्टाई (नदी का दहानेवाला) चैनल्स, टाइडल चैनल्स यानी ज्वारीय चैनल और खाड़ियों से गुज़र रही बांग्लादेश की कोस्टलाइन यानी तटीय मार्ग लगभग 1,320 किलोमीटर लंबाई की है.
हालांकि इस तटीय मार्ग के इलाके की टोपोग्राफी यानी स्थलाकृति इसे बाढ़, टाइडल सर्ज़ यानी ज्वारीय आवेश के साथ नदी किनारे की भूमि के कटाव के लिए प्रवृत्त बनाती है. इसी प्रकार खाड़ी के अशांत इलाके में होने की वज़ह से बांग्लादेश का तटीय मार्ग तेज तूफान और चक्रावात को लेकर भी असुरक्षित है. जलवायु परिवर्तन के चलते तूफ़ान और चक्रावात की फ्रीक्वेंसी यानी आवृत्ति भी बढ़ गई है यानी अब पहले की तुलना में ज़्यादा तूफ़ान और चक्रावात देखे जाते हैं. इसके अलावा सी-लेवल यानी समुद्री तल में वृद्धि के ख़ातरे के साथ साल्ट वॉटर इंट्रूजन यानी मीठे पानी में ख़ारे पानी की घुसपैठ भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि 80% बांग्लादेश समुद्री तल से 5 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और समुद्री तल में एक मीटर की वृद्धि भी लाखों लोगों को विस्थापित कर सकती है. समुद्री तल में एक मीटर की वृद्धि भी देश के सबसे महत्वपूर्ण इकोसिस्टम यानी पारिस्थितिकी प्रणाली, सुंदरबन मैंग्रोव अर्थात सुंदरबन कच्छ वनस्पति को भी नष्ट कर सकती है. पहले ही बांग्लादेश के समुद्री मार्ग पर बसे कुछ द्वीप जैसे कुटुबदिया तथा सैंडविप, समुद्री तल में ऊंचाई और भूमि के कटाव की वज़ह से अपना कुछ क्षेत्र गंवा चुके हैं

यह आवश्यक है कि इस क्षेत्र में आपदा-लचीला बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए. और इस इलाके की आर्थिक क्षमता का दोहन करने के लिए कनेक्टिविटी लिंकेजेस यानी संपर्क मार्ग तैयार करना भी ज़रूरी है. 

दक्षिणी बांग्लादेश की भौतिक असुरक्षा देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है, क्योंकि बांग्लादेश का 20% इलाका समुद्री मार्ग के तहत आता है, जबकि 30% क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है. देश का मुख्य पेशा कृषि है और बांग्लादेश की GDP में इसकी हिस्सेदारी लगभग 11.50 प्रतिशत की है. डेल्टा का यह क्षेत्र हिल्सा फिशिंग यानी मछलीपालन के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि समुद्री मछली हिल्सा, वंश विस्तार के मौसम में यहां की नदियों के चैनल यानी इलाकों में जाती है. कृषि के अलावा देश में मछलीपालन दूसरा सबसे बड़ा प्राथमिक पेशा है. देश की GDP में मछलीपालन की हिस्सेदारी 3.50% की है, जिसमें हिल्सा मछली पालन करने वाले लोगों की हिस्सेदारी लगभग एक फ़ीसदी की है. स्वाभाविक रूप से दोनों पेशों के लिए उपलब्ध अवसरों को देखते हुए देश की 29 प्रतिशत आबादी समुद्री मार्ग के यानी नदियों के किनारे ही बसी हुई है. ऐसे में इस क्षेत्र पर आपदाओं को लेकर ख़तरा बढ़ जाता है, क्योंकि इस क्षेत्र में रहने वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले प्रभाव की चपेट में आता हैं. प्राकृतिक आपदा अथवा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की वज़ह से बड़ी आबादी को विस्थापित होना पड़ता है. उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी तथा जीवन यापन भी इसके चलते प्रभावित होता है. इस बात को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस क्षेत्र में आपदा-लचीला बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए. और इस इलाके की आर्थिक क्षमता का दोहन करने के लिए कनेक्टिविटी लिंकेजेस यानी संपर्क मार्ग तैयार करना भी ज़रूरी है. इस बात को देखकर ही PM हसीना ने विदेशी निवेश को न्यौता दिया है, ताकि डेल्टा को विकसित करने की सरकारी योजनाओं पर काम किया जा सके


डेल्टा का विकास


2018 में बांग्लादेश की सरकार ने बांग्लादेश डेल्टा प्लान 2100 (BDP) प्रकाशित किया था. यह एक समग्र विकास रणनीति है, जिसमें आपदाओं से जुड़े ख़तरे को न्यूनतम करते हुए उत्पादकता बढ़ाने के लिए संपूर्ण रूप से रणनीतिक ख़ाका ख़ींचते हुए क्रॉस-सेक्टोराल यानी सभी क्षेत्रों पर काम करने की बात की गई थी. इस प्लान पर काम करना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि ऐसा नहीं होने पर कृषि उत्पादन घटेगा, बेरोज़गारी और विस्थापन की समस्या गहराएगी और इन सब बातों की वज़ह से शहरीकरण पर दबाव बढ़ेगा. इन सारे कारणों की वज़ह से अंततः देश की GDP भी घटेगी. इस स्थिति में 2026 तक लीस्ट डेवलप्ड कंट्री यानी सबसे कम विकसित देश का दर्ज़ा हटाने की बांग्लादेश की कोशिशें को झटका लगेगा और बांग्लादेश अपने यहां से गरीबी का समूल नाश करने से वंचित रह जाएगा. इसी प्रकार 2031 तक बांग्लादेश, उच्च-मध्यम आय वाले देश का दर्ज़ा भी हासिल नहीं कर सकेगा और 2041 तक गरीबी को ख़त्म कर एक विकसित राष्ट्र बनने से भी रह जाएगा.

हालांकि BDP का लक्ष्य 2030 तक 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का है. इसे लागू करने के लिए सार्वजनिक तथा विभिन्न स्रोतों से निजी वित्त पोषण ज़रूरी है. बांग्लादेश अपने यहां विकास के लिए अधिकांशत: विदेशी सहायता पर ही निर्भर करता है. विदेशी सहायता देने के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश होने के नाते चीन भी वित्त पोषण का एक संभावित स्रोत हो सकता हैहालांकि दक्षिणी बांग्लादेश में चीन का बढ़ता हुआ प्रभाव उसे बंगाल की खाड़ी के नजदीक ले आएगा और इस वज़ह से भारत की चिंताओं में इज़ाफ़ा होगा.


बंगाल की खाड़ी में बीजिंग 


विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा उसे अपने सतत विकास और वृद्धि की दृष्टि से ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद अहम है. इसी बात को ध्यान रखते हुए बीजिंग के लिए इंडियन ओशन रीजन, विशेषत: बंगाल की खाड़ी में, अपनी मौजूदगी को बनाए रखना और इसे बढ़ाना ज़रूरी है. क्योंकि बंगाल की खाड़ी में बड़ी मात्रा में हाइड्रोकार्बन मौजूद है और यह रास्ता ऊर्जा व्यवसाय के लिए अहम शिपिंग रूट यानी समुद्री मार्ग का हिस्सा है. ऊर्जा व्यापार के लिए ईस्ट-वेस्ट शिपिंग रूट जो खाड़ी में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सुदूर दक्षिणी छोर से 8 नॉटिकल माइल्स नीचे से गुज़रते हुए मलक्का जलडमरूमध्य से जाकर मिलता है, जो एक अहम समुद्री मार्ग है, जहां से मिडिल ईस्ट देश से दक्षिणपूर्व, पूर्व और सुदूर पूर्वी एशिया में तेल का निर्यात होता है. 2021 तक चीन का 70 फ़ीसदी ऊर्जा कारोबार मलक्का चोकप्वाइंट से होकर आगे बढ़ता है. चीन के संपूर्ण कारोबार का लगभग 60 फ़ीसदी यही से गुजरता है. ऐसे में यह मार्ग चीन की अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है. ऐसे में स्वाभाविक रूप से जब भविष्य में ऊर्जा असुरक्षा का सामना करना होगा, तब बीजिंग के लिए यह जलडमरूमध्य, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से अहम बन गया है.

हालांकि देश के पास खाड़ी में अपनी मौजूदगी को बनाए रखने के लिए कोई अंतर्निहित कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन वह अपना बोलबाला वहाँ पर बनाए रखना चाहता है. वह ऐसा खाड़ी के आसपास बसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करते हुए कर रहा है. लेकिन नई दिल्ली को बीजिंग पर भरोसा नहीं है, जबकि म्यांमार राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था कमज़ोर है. ऐसे में चीन के लिए इस क्षेत्र में अपने पैर सुरक्षित और मजबूत करने का एकमात्र विकल्प बांग्लादेश ही बच जाता है. खाड़ी के ऊपरी हिस्से में स्थित बांग्लादेश केवल एक अनूठी भूरणनीतिक स्थिति में है, बल्कि वह इस क्षेत्र के समुद्री मार्गो पर भी निगरानी रख सकता है. और बांग्लादेश अपने यहां विकास के लिए विदेशी निवेश लेने को भी तैयार है. इसी वज़ह से चीन ने बांग्लादेश के समुद्री संपर्क ढांचे यानी मैरिटाइम कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ उसकी नौसेना सुरक्षा को भी मजबूती प्रदान करने का काम करते हुए भारी निवेश किया है.

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा उसे अपने सतत विकास और वृद्धि की दृष्टि से ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद अहम है.

दक्षिण पूर्वी बांग्लादेश को ढाका के साथ जोड़ने वाले पद्मा ब्रिज का निर्माण करने के पीछे चाइना रेलवे मेजर ब्रिज इंजीनियरिंग ग्रुप का ही हाथ था. बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में सबसे व्यस्त बंदरगाह के रूप में पहचाने जाने वाले चट्टोग्राम सी पोर्ट यानी बंदरगाह को विकसित करने में भी बीजिंग ही शामिल था. इस बंदरगाह से बांग्लादेश का 90 फ़ीसदी ओवरसीज ट्रेड यानी विदेशी व्यापार होता है. बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन ने ही 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सरकारी रियायती कर्ज़ दिया हुआ है. चीन में उत्पादन लागत में वृद्धि और गैर चाइनीज आपूर्तिकर्ताओं के ब्रांड्स की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन के गारमेंट मेकर्स यानी कपड़ा निर्माता बांग्लादेश में अपने निर्माण केंद्र खोलने के लिए बहुत इच्छुक है. इसी वज़ह से मोंगला बंदरगाह चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. इसका कारण यह है कि यह ढाका, जहां फल-फूल रही रेडी-मेड-गारमेंट (RMG) इंडस्ट्री के कार्यालय है, के बेहद नज़दीक है. और इसी वज़ह से यह कपड़ा कारोबारियों के लिए सुविधाजनक स्थान पर स्थित है.

नगरीय पहलों के अलावा भी चीन ने बांग्लादेश के पहले सबमरीन बेस BNS शेख हसीना का भी चिटगांव डिवीजन के कॉक्स बाज़ार तट पर निर्माण किया है. इसकी वज़ह से चीनी सबमरीन, भारत के अंडमान निकोबार कमांड के बेहद करीब यानी उसे परेशान करने के स्थिति में खड़ी हुई है. इस वज़ह से खाड़ी में चल रहे भूराजनीतिक शक्ति संघर्ष के डायनेमिक्स यानी गतिविज्ञान की पहले से जटिल स्थिति पर एक नई परत चढ़ गई है. बंगाल की खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिए परेशानी का सबब है, क्योंकि भारत इस समुद्री क्षेत्र को अपने हितों का एक प्राथमिक क्षेत्र मानता है. दरअसल भारत अपने आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों के साथ विदेश नीति की आकांक्षाः को लेकर इस खाड़ी पर निर्भर है. ऐसे में दक्षिणी बांग्लादेश में चीन का बढ़ा हुआ निवेश चीन को लेकर भारत की आशंकाओं को बढ़ाता है, क्योंकि चीन अब उसकी नौसैनिक संपत्ति और खाड़ी में उसके समुद्री हितों के नज़दीक गया है. इसके अलावा बांग्लादेश भारत का एक पसंदीदा सहयोगी है, जो उसके साथ अनेक संसाधन साझा करता है. बांग्लादेश, भारत के उत्तर पूर्वी भूमिबद्ध क्षेत्र को समुद्री मार्ग मुहैया करवाने के साथ उसकी एक्ट ईस्ट और नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसीज को साकार करने के लिए अहम है. चट्टाग्राम और मोंगला बंदरगाह की विकास परियोजनाओं ने पहले ही साइनो- इंडियन यानी चीन और भारत के बीच की प्रतिद्वंद्विता को उज़ागर कर दिया है. लेकिन बांग्लादेश में चीन का बढ़ता हुआ निवेशबांग्लादेश को भारत से दूर ले जाने की क्षमता रखता है, जैसा कि मालदीव के मामले में हुआ था.

इस स्थिति को देखते हुए एक और जहां हसीना सरकार नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रही है, वही भारत को भी बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और उन्हें बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज कर देना चाहिए. अब दोनों देशों के बीच लंबे समय से प्रलंबित मुद्दे जैसे तीस्ता वाटर-शेयरिंग यानी तीस्ता जल-बंटवारा पर ध्यान देना अनिवार्य हो गया है. बांग्लादेश को BDP पर अमल करने के सपने को साकार करने के लिए भारत भी सहयोग कर सकता है, क्योंकि दोनों देश बंगाल डेल्टा को साझा करते हैं. इस वज़ह से ये दोनों देश अपने यहां इकोसिस्टम मैनेजमेंट के माध्यम से इस इलाके की समस्या को समन्वय के साथ हल करने की पहल करने की स्थिति में है. आपदा प्रबंधन में नई दिल्ली की महारथ और शोहरत तथा आपदा से निपटने में बांग्लादेश की निपुणता और जलवायु परिवर्तन को लेकर उसकी चेतना इस साझेदारी को और भी ऊंचाई पर ले जा सकती है.


सोहिनी बोस, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक एसोसिएट फेलो हैं.

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