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इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में अपनी संभावित मजबूत घरेलू मांग और लागत योग्यता का लाभ उठाते हुए वैश्विक पटल पर रोबोटिक्स में एक मजबूत पारिस्थितिकी सहयोगी बनकर उभरना चाहिए.
Image Source: Getty
19 अप्रैल 2025 को बीजिंग की अधिकांश टेक फर्म्स की मेज़बानी करने वाले शहर यिझुआंग में 21 ह्यूमनॉइड रोबोट्स ने पहली बार हाफ-मैराथन में मानव प्रतिस्पर्धियों की बराबरी में दौड़ लगाई. हालांकि विजेता रोबोट को अपने सबसे तेज मानव प्रतिस्पर्धी के मुकाबले जीत दर्ज़ करने में दुगना वक़्त लगा, लेकिन इस मैराथन ने रोबोटिक्स में चीन की बढ़ती ताकत का प्रदर्शन कर दिया. इसके साथ ही रोबोटिक्स, विशेषतः ह्यूमनॉइड्स में, नवाचार के साथ मास प्रोडक्शन सुनिश्चित करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने वाली आक्रामक नीतियों को भी अपनाया जा रहा है. ऐसा करते हुए ‘आर्थिक विकास के नए इंजन’ के रूप में देखे जा रहे ह्यूमनॉइड को माध्यम बनाकर सुस्त अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने यानी प्रोत्साहन देने की कोशिश हो रही है.
रोबोटिक्स के इंस्टालेशन यानी स्थापना में चीन विश्व स्तर पर काफ़ी आगे है. लेकिन यह एकीकरण जापान, दक्षिण कोरिया एवं यूरोप के विदेश विनिर्माताओं के दम पर पूरा किया जा रहा है. ऐसे में घरेलू क्षमताओं में वृद्धि को लेकर इस तरह का सार्वजनिक प्रदर्शन विश्व को एक अहम संकेत देने वाला साबित होता है. यह संकेत है कि चीन अपने स्तर को लगातार बढ़ाता जा रहा है और वह खुद को एक सबसे बड़े बाज़ार के रूप में पुख़्ता रूप से पेश कर रहा है. इसके अलावा यह संकेत भी दिया जा रहा है कि वह अब संभवत: सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र भी है जो आपूर्ति श्रृंखलाओं और पुर्जों के उत्पादन को सुरक्षित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.
औद्योगिक, उपभोक्ता एवं सैन्य क्षेत्र में रोबोटिक्स का विविध तरीके से उपयोग किए जाने की संभावनाएं व्यापक है. एक अनुमान है कि 2025 से 2033 के बीच रोबोटिक्स बाज़ार में 16.35 फीसदी की वृद्धि होगी और यह 2033 तक बढ़कर 178.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा. इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में होने वाला विकास, ऑटोमेशन की बढ़ती मांग, श्रमिकों की कमी और बढ़ते श्रम मूल्य के साथ-साथ सरकार की प्रोत्साहनकारी नीतियां भी ज़िम्मेदार होंगी. रोबोटिक्स का औद्योगिक क्षेत्र में बहुत ज़्यादा उपयोग किया जा सकता है. लेकिन ह्यूमनॉइड रोबोट्स का विविध उपयोगों के लिए उपयोग आम होने की उम्मीद ज़्यादा है. ऐसे में 2032 तक ह्यूमनॉइड रोबोट्स की कुल मांग 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंचने की संभावना है. बाज़ार में मौजूद संभावनाओं को देखकर ही यूनाइटेड स्टेट्स स्थित मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, NVIDIA तथा अमेजॉन जैसे टेक जायंट्स ने इस क्षेत्र में भारी निवेश करने का फ़ैसला किया है. निवेश की इस होड़ में टेस्ला का ऑप्टिमस प्रोटोटाइप सबसे आगे है. लेकिन रोबोटिक्स में विकास करने के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का ऐसा मिश्रण शामिल होता है जिनके सहयोग से रोबोट्स को अपने काम करने होते हैं. लेकिन विभिन्न कार्यों को संभव बनाने वाला यह मिश्रण बेहद उच्चतम कुशलता के साथ हासिल करना मुश्किल होता है. ऐसे में रोबोटिक्स में विनिर्माण के स्तर में विस्तार करने के अवसर बेहद सीमित हो जाते हैं.
रोबोटिक्स में विकास करने के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का ऐसा मिश्रण शामिल होता है जिनके सहयोग से रोबोट्स को अपने काम करने होते हैं.
सॉफ्टवेयर डिजाइन में जहां US विश्व में अग्रणी है, वहीं इस उद्योग का मुख़्य चालक एशिया है. अब चीन कुल रोबोट इंस्टालेशन के सबसे बड़े बाज़ार के रूप में उभर रहा है. वैश्विक आपूर्ति में 45 प्रतिशत आपूर्ति के साथ जापान दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक रोबोटिक्स विनिर्माता है. जापान की ओर से होने वाला 36 फीसदी निर्यात चीन को होता है. इसके बाद 22 फीसदी के साथ US का नंबर आता है. भारत भी एशिया में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाज़ार है. यहां 2023 में रोबोटिक्स इंस्टॉलेशन में 59 फीसदी की वृद्धि देखी गई. इस वृद्धि के लिए श्रेय ऑटोमोटिव इंडस्ट्री को जाता है, जहां रोबोट्स की मांग में 139 फीसदी का इज़ाफ़ा देखा गया. इस मांग में कार विनिर्माताओं एवं आपूर्तिकर्ता दोनों की ही हिस्सेदारी है. इन आंकड़ों को देखकर ही यह समझा जा सकता है कि कैसे बढ़ती हुई घरेलू मांग को पूरा करने, निर्भरता को कम करने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मकता को सुनिश्चित करने के साथ-साथ विश्व स्तर पर पारिस्थितिक सहयोगी बनने के लिए रणनीतिक रूप से संरेखण करना ज़रूरी हो गया है.
साइबर-फिजिकल सिस्टम्स के रूप में रोबोटिक्स का विचार ही उत्पाद विकास प्रक्रिया से जुड़ी चुनौतियों और इसकी राह में आने वाली बाधाओं को उजागर कर देता है. इसमें सॉफ्टवेयर इटीरेशन के लिए डाटा की आवश्यकता होती है और रोबोटिक्स सिस्टम्स को प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न उपयोग संदर्भों की जटिलता शामिल होती है. ऐसे में यह बात हार्डवेयर विकास की समय सीमा के विपरीत जाती है और अंतत: वाणिज्यिक स्तर पर बढ़ने और विनिर्माण विस्तार में परेशानी होती है. ऐसे में इन्हें वर्तमान में रोबोटिक्स सिस्टम निर्माण कर उसका विस्तार करने की राह में आने वाली परेशानी माना जा सकता है. अधिकांश ह्यूमनॉइड रोबोट्स एक से दो घंटे की अवधि तक काम कर सकते हैं. इसके बाद इन्हें रिचार्ज करने की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार कुछ रोबोट्स चपलता और गतिशीलता में निपुण होते हैं, जबकि कुछ संज्ञानात्मक अथवा बौद्धिक कार्य करने में सक्षम होते हैं. लेकिन ये दोनों ही गुण एक ही रोबोट में नहीं पाए जाते. अधिकांशत: हार्डवेयर डेवलपमेंट, सॉफ्टवेयर से पीछे ही रह जाता है. इसका कारण हार्डवेयर डेवलपमेंट की राह में आने वाली डाटा-ड्रीवन फीडबैक लुप्स यानी डाटा संबंधी जानकारी का अभाव है. विस्तार और वाणिज्यिकरण की राह में आने वाली इन बाधाओं की वजह से ही विभिन्न देशों को इस पारिस्थितिकी तंत्र के अलग-अलग पहलूओं में सफ़लतापूर्वक काम करने में दिक्कत पेश आती है.
नवाचार में इन विकास और उसका नवाचार का समर्थन करने वाली नीतियों के साथ चीन आत्मनिर्भरता हासिल का प्रयास कर रहा है. लेकिन इस दिशा में किए गए आक्रामक प्रयासों के बावजूद वह आत्मनिर्भरता हासिल नहीं कर सका है.
US अपनी नवाचार क्षमताओं को व्यवहार्य एप्लीकेशन यूज केसेस् में परिवर्तित करने में विफ़ल रहा है. एप्लीकेशन यूज से जुड़े अधिकांश मामले एशिया में है. इसमें भी चीन, जापान और दक्षिण कोरिया अगुवाई कर रहे हैं. चीन में सबसे अधिक रोबोट इंस्टॉलेशन हैं. ऐसे में वह सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है. विनिर्माण में जापान का वर्चस्व है. दक्षिण कोरिया में सबसे ज़्यादा रोबोट डेनसिटी यानी घनत्व है. यहां प्रति 10,000 कर्मियों के पीछे स्थापित रोबोट्स हैं. 2022 में US का रोबोटिक्स में व्यापार घाटा 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. इसमें कुल आयात के मुकाबले निर्यात की हिस्सेदारी महज 28 फीसदी थी. 2024 में वैश्विक स्तर पर कराए गए रोबोटिक्स पेटेंट्स में से दो-तिहाई पेटेंट्स के साथ चीन दुनिया में सबसे आगे था. नवाचार में इन विकास और उसका नवाचार का समर्थन करने वाली नीतियों के साथ चीन आत्मनिर्भरता हासिल का प्रयास कर रहा है. लेकिन इस दिशा में किए गए आक्रामक प्रयासों के बावजूद वह आत्मनिर्भरता हासिल नहीं कर सका है.
ऊपर की गई चर्चा के अनुसार यह साफ़ है कि भारत के पास मजबूत अंदरुनी मांग है. यदि इस मांग को विभिन्न क्षेत्रों के साथ बेहतर तरीके से एकीकृत किया जाए इसमें मौजूद परिवर्तनकारी प्रभाव और दक्षता संबंधी लाभ उठाया जा सकता है. भारत चीन पर आर्थिक रूप से काफ़ी निर्भर करता है. अब रोबोटिक्स में बढ़ रही मांग की वजह से यह निर्भरता और बढ़ेगी. इसका कारण चीन की कम लागत वाली विनिर्माण क्षमता समेत अन्य वैश्विक आपूर्तिकर्ता है. ऐसे में यह ज़रूरी हो गया है कि इन अवसरों का लाभ उठाते हुए भारत को खुद को इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहिए. उसके लिए ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि अब इस क्षेत्र के फ्रंटियर डोमेंस अर्थात अग्रणी क्षेत्रों में विकास ही उसके स्ट्रैटेजिक एडवांटेज यानी रणनीतिक बढ़त को बनाए रख सकता है. क्योंकि यही अग्रणी क्षेत्र अब भू-राजनीतिक विचारों को आकार दे रहे हैं.
लेकिन भारत की ओर से अभी राष्ट्रीय रोबोटिक्स नीति पर अमल नहीं किया गया है. AI तथा रोबोटिक्स का मिश्रण ही विभिन्न क्षेत्रों में अब विविध मोर्चों को तय करेगा. ऐसे में भारत के पास खुद को वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद पारिस्थितिकी तंत्र साझेदार के रूप में स्थापित करने का बेहतरीन अवसर उपलब्ध है. भारत अब इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में ग्लोबल हब बनने जा रहा है. वह अब रोबोटिक्स विनिर्माण क्षमताओं में लागत कुशलता मुहैया करवाते हुए इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) तथा सॉफ्टवेयर में US के नेतृत्व का पूरक साझेदार बन सकता है. जापार भले ही वैश्विक स्तर पर रोबोटिक्स विनिर्माण में अग्रणी बना हुआ है, लेकिन वहां कुशल श्रमिकों की कमी के कारण काफ़ी दिक्कतें हैं. हालांकि वह व्यवसायीकरण और नवाचार विस्तार में लागत के हिसाब से प्रतिस्पर्धात्मक बना हुआ है. ये बातें अहम खिलाड़ियों के भरोसेमंद साझेदार बनने के लिए भारत के पास मौजूद अवसरों को और भी साफ़ कर देती है. इन अवसरों का लाभ बहुआयामी और एकीकृत नवाचार रणनीति के साथ उठाया जा सकता है. इस रणनीति के साथ-साथ समर्थन कारी इलेक्ट्रॉनिक्स एवं उन्नत विनिर्माण नीतियों को अपनाकर, एप्लाइड रिसर्च एंड डेवलपमेंट को प्रोत्साहन देने के साथ निजी निवेश को बढ़ावा और घरेलू मांग में तेजी लाना भी आवश्यक होगा.
इन बातों को देखते हुए ही यह ज़रूरी हो गया है कि अब भारत को रणनीतिक तकनीकी साझेदारियां स्थापित करनी चाहिए. ये साझेदारियां ज्ञान और तकनीक के ट्रांसफर यानी हस्तांतरण संबंधी मजबूत समानताओं पर आधारित होनी चाहिए. ऐसा करते हुए भारत लागत कुशल विनिर्माण के माध्यम से इस अहम मूल्य श्रृंखला में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है. ऐसा हुआ तो इसका लाभ व्यावसायिकरण को आगे बढ़ाने, वैश्विक स्तर पर रोबोटिक्स विनिर्माण में विस्तार करते हुए उन्नत विनिर्माण में भारत को अग्रणी देश में रूप में स्थापित करने में सहायता होगी. रणनीतिक साझेदारियों के अलावा भारत अपनी सॉफ्टवेयर क्षमताओं का लाभ AI-रोबोटिक्स एकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए भी कर सकता है. ऐसा करते हुए वह कंसेप्ट टू एप्लीकेशन की दिशा में आगे बढ़ेगा और घरेलू नवाचार का मार्ग खोलते हुए घरेलू और वैश्विक मांग की आपूर्ति करने लायक विस्तार करने में सफ़ल होगा.
भारत लागत कुशल विनिर्माण के माध्यम से इस अहम मूल्य श्रृंखला में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है. ऐसा हुआ तो इसका लाभ व्यावसायिकरण को आगे बढ़ाने, वैश्विक स्तर पर रोबोटिक्स विनिर्माण में विस्तार करते हुए उन्नत विनिर्माण में भारत को अग्रणी देश में रूप में स्थापित करने में सहायता होगी.
भारत में अनेक नवोदित रोबोटिक र्स्टाट अप्स है. डीपटेक र्स्टाट अप्स में हो रहे अधिक निवेश को सरकार की ओर से दिए जा रहे प्रोत्साहन में भी इज़ाफ़ा हुआ है. हालांकि भारतीय निवेशकर्ताओं के लिए फिलहाल डीपटेक सबसे कम पसंदीदा क्षेत्र बना हुआ है. इसके लिए यह आवश्यक है कि एक ऐसी निश्चित रोबोटिक रणनीति तैयार की जाए जो अन्य नीतियों, विशेषत: AI, डीपटेक और इलेक्ट्रॉनिक्स, के साथ प्रभावशाली तरीके से एकीकृत की जा सके. इसके अलावा निवेशकों की रुचि को बढ़ाने या प्रोत्साहित किए जाने की भी आवश्यकता है. ऐसा रक्षा जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक ख़रीद के माध्यम से किया जा सकता है. इसके अलावा परिवर्तन के इच्छुक कारोबारियों को यह परिवर्तन लाने के लिए आसानी से वित्त पोषण मुहैया करवाए जाने की भी ज़रूरत है. इसी प्रकार यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उत्पाद लागत के मामले में स्पर्धात्मक बने रहे ताकि विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों में इन्हें अपनाया जा सके. इस क्षेत्र में भारत को एक अहम खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने के लिए एक विस्तृत दृष्टिकोण आवश्यक है. यह दृष्टिकोण भारत को अहम खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की रूपरेखा तय करते हुए यह पता लगाने में मदद करेगा कि वह किन रास्तों और तरीकों पर चल सकता है.
अनुलेखा नंदी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
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Dr. Anulekha Nandi is a Fellow - Centre for Security, Strategy and Technology at ORF. Her primary area of research includes digital innovation management and ...
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