-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
नेट-ज़ीरो के लक्ष्यों के साथ-साथ संक्रमण से जुड़ी विस्तृत योजनाओं का खाका भी पेश किया जाना चाहिए. इसमें उत्सर्जन में कमी लाने वाले तात्कालिक, अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपलब्धियों का ब्योरा शामिल हो
नेट-ज़ीरो (Net Zero) के लक्ष्य को लेकर भारत की घोषणा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के मोर्चे पर बड़ी कार्रवाई का संकेत है. अनेक विकसित देशों द्वारा इस तरह के लक्ष्य की घोषणा लंबे समय से अपेक्षित रही है. जलवायु के संदर्भ में एक संतुलित और न्यायोचित तौर-तरीक़ों वाली प्रतिबद्धता की ज़रूरत दीर्घकाल से महसूस की जाती रही है. बहरहाल इस लक्ष्य को हक़ीक़त में बदलने के लिए अगले क़दम के तौर पर उत्सर्जन में कमी का एक निश्चित खाका तैयार करने की ज़रूरत है. इस मकसद से अर्थव्यवस्था और उसके विभिन्न अंगों में बदलाव लाना ज़रूरी है. कारोबार जगत (business world) को इसमें निर्णायक भूमिका निभानी होगी. विभिन्न सेक्टरों, बुनियादी ढांचों, मूल्य श्रृंखलाओं और उनके द्वारा मुहैया कराए जाने वाले उत्पादों और सेवाओं को तत्परता से कार्बनमुक्त (carbon free) करने की ज़रूरत है. इस क़वायद में कारोबार जगत की कार्रवाइयों, संसाधनों, नए नए प्रयोग करने की क्षमताओं और उनकी व्यापक पहुंच की भारी अहमियत है. पिछले कुछ अर्से से आर्थिक गतिविधियों के टिकाऊ तौर-तरीक़ों पर उपभोक्ताओं और निवेशकों का ज़ोर बढ़ने लगा है.
इनके साथ-साथ नियामक व्यवस्थाओं और ज़रूरी प्रकटीकरणों से जुड़े नियम-क़ानून भी बढ़ने लगे हैं. कारोबार जगत तो पहले से ही जलवायु के मोर्चे पर जारी प्रयासों में प्रमुख भूमिका निभाता आ रहा है. पिछले साल कई कंपनियों ने नेट-ज़ीरो को लेकर अपने इरादे ज़ाहिर किए हैं. भारत की कई विशाल कंपनियों ने अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्यों का ऐलान किया है. इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (RIL), टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS), HDFC बैंक, विप्रो, इंफ़ोसिस, महिंद्रा एंड महिंद्रा, JSW एनर्जी, ITC, अडानी, डालमिया सीमेंट और भारतीय रेल शामिल हैं. इनके अलावा 64 भारतीय कंपनियों ने साइंस-बेस्ड टारगेट इनिशिएटिव के मुताबिक अपने-अपने स्तर पर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (GHG) को कम करने का बीड़ा उठाया है. ये एक वैश्विक पहल है जो कारोबार जगत को अपना-अपना जलवायु लक्ष्य स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करती है.
भारत की कई विशाल कंपनियों ने अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्यों का ऐलान किया है. इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (RIL), टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS), HDFC बैंक, विप्रो, इंफ़ोसिस, महिंद्रा एंड महिंद्रा, JSW एनर्जी, ITC, अडानी, डालमिया सीमेंट और भारतीय रेल शामिल हैं.
नेट ज़ीरो एक ऐसी अवस्था है जिसमें किसी कंपनी के भीतर मूल्य श्रृंखला की गतिविधियों से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के रूप में जलवायु पर कोई शुद्ध प्रभाव नहीं पड़ता है.
ऐसा नहीं है कि हरित विकास के बारे में सिर्फ़ सरकारें सोच रही हैं. आज के दौर में ज़्यादा से ज़्यादा निवेशक अपनी निवेश प्रक्रियाओं में पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासकीय (ESG) विचारों को तरजीह दे रहे हैं. इतना ही नहीं वो इस क़वायद को ज़्यादा एकीकृत और व्यवस्थागत तरीक़े से अंजाम दे रहे हैं. परिसंपत्तियों का प्रबंधन करने वालों के लिए जलवायु परिवर्तन आज के दौर में ESG से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है. ESG प्रवाह के लिहाज़ से 2020 एक रिकॉर्डतोड़ साल रहा था. 2020 के अंत में सतत या टिकाऊ विकास से जुड़े कोष में कुल वैश्विक परिसंपत्ति तक़रीबन 1.7 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई थी. 2019 के अंत में ये रकम 1.0 खरब अमेरिकी डॉलर थी. साफ़ है कि 2020 में इस कोष में क़रीब 67 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. मॉर्निंगस्टार की 2020 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक टिकाऊ विकास से जुड़े कोष में शुद्ध प्रवाह में 2020 में तेज़ी से और क्रमवार बढ़ोतरी देखने को मिली थी. 2020 की चौथी तिमाही में इस कोष में शुद्ध प्रवाह में 2019 की चौथी तिमाही के मुक़ाबले 150 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा देखा गया. टिकाऊ परिसंपत्तियों की वृद्धि के मामले में यूरोप सबसे ऊपर है. इसके बाद अमेरिका का नंबर आता है. हालांकि भारत भी जल्द ही ESG खुलासों के मामले में यूरोप और अमेरिकी के नक़्शेक़दम पर चलने लगेगा.
आज का निवेशक न सिर्फ़ किसी कंपनी में उत्सर्जन के पूर्ववर्ती स्तरों बल्कि भविष्य में कार्बन प्रभावों के स्वरूप को लेकर भी दिलचस्पी दिखा रहा है. इससे कारोबार जगत के ज़्यादा से ज़्यादा खिलाड़ी उत्सर्जन घटाने वाली रणनीतियां तैयार करने को लेकर प्रोत्साहित हो रहे हैं.
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट (BRSR) के ज़रिए जलवायु परिवर्तन समेत तमाम मसलों पर जानकारी देने के लिए एक गूढ़ प्रक्रिया या कार्यपद्धति सामने रखी है. वित्तीय वर्ष 2020-21 से स्वैच्छिक आधार पर और वित्तीय वर्ष 2022-23 से अनिवार्य रूप से BRSR शीर्ष 1000 सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होगा. कारोबार जगत के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर पारदर्शिता बढ़ती जा रही है. हरित तौर-तरीक़ों से संचालित होने वाली कंपनियों को ऊंचे मूल्यांकनों और वित्त का लाभ मिल रहा है. आज का निवेशक न सिर्फ़ किसी कंपनी में उत्सर्जन के पूर्ववर्ती स्तरों बल्कि भविष्य में कार्बन प्रभावों के स्वरूप को लेकर भी दिलचस्पी दिखा रहा है. इससे कारोबार जगत के ज़्यादा से ज़्यादा खिलाड़ी उत्सर्जन घटाने वाली रणनीतियां तैयार करने को लेकर प्रोत्साहित हो रहे हैं. इतना ही नहीं इन लक्ष्यों की दिशा में तरक्की को लेकर भी वो ख़ुद की जवाबदेही तय करने पर संजीदा हो रहे हैं.
कंपनियों के प्रबंधकों और बोर्डरूम से न सिर्फ़ पर्यावरण को लेकर उनके लक्ष्यों बल्कि जलवायु के हिसाब से ढलने को लेकर उनकी रणनीतियों के बारे में भी सवाल पूछे जाने लगे हैं. इन मकसदों को पूरा करने के लिए कारोबार जगत के अगुवा लोगों को एक विश्वसनीय रुख़ अपनाना होगा. इतना ही नहीं मौजूदा वक़्त में नेट-ज़ीरो की प्रतिबद्धता लेकर चल रही कंपनियों को भी डिकार्बनाइज़ेशन के रास्ते के सबसे मुश्किल और पेचीदा सवालों का जवाब तलाशना होगा. आज कारोबार जगत नेट-ज़ीरो के लक्ष्य के लिए ज़रूरी बदलावों के हिसाब से ढलने के लिए बेहतर स्थिति में है. उसे इसका फ़ायदा भी मिलना तय है. ये बात ख़ासतौर से उन उद्यमों पर लागू होती है जो समाज की समस्याओं के लिए ‘हरित’ समाधान मुहैया करा रहे हैं. इसके अलावा जो उद्यमी जलवायु परिवर्तन के भौतिक प्रभावों से निपटने के लिए ज़रूरी और मज़बूत तौर-तरीक़े इज़ाद करने में समुदायों की मदद कर रहे हैं, उनपर भी ये मिसाल लागू होती है. जलवायु के मोर्चे पर की जाने वाली कार्रवाइयों से उद्योगों का चेहरा बदल जाएगा. इतना ही नहीं इनसे निवेश से जुड़े फ़ैसले लेने और धन के प्रवाह से जुड़े समूचे तंत्र के भी एक नया अवतार लेने की संभावना है. जलवायु संक्रमण की अगुवाई करने वाली कंपनियों की ओर पूंजी का अधिक से अधिक प्रवाह होने के आसार हैं. वहीं दूसरी ओर जलवायु के मोर्चे पर फिसड्डी साबित होने वालों को वित्तीय चुनौतियों या मूल्यांकन में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है.
नेट ज़ीरो की एक भरोसमंद रणनीति के तहत मूल्य श्रृंखला में उत्सर्जन के स्रोतों को दूर करने की क़वायद शामिल है. जहां तक संभव हो इस क़वायद की रफ्तार और उसका पैमाना विश्व तापमान में अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के दायरे तक रोके जाने के लक्ष्य से मेल खाता हुआ होना चाहिए. इसके बाद बचे हुए उन उत्सर्जनों को दूर करने की जद्दोजहद की जानी चाहिए जिन्हें कार्बन डाइऑक्साइड को स्थायी तौर पर हटाए जाने से जुड़े तौर-तरीक़ों से दूर करना मुश्किल होता है. लिहाज़ा कंपनियों को तमाम ग्रीन हाउस गैसों के निपटारे के लिए अल्पकालिक और विज्ञान-आधारित लक्ष्य तय करने चाहिए. इसके अलावा उन्हें अपने तौर-तरीक़ों और वैल्यू चेन- दोनों को कार्बनमुक्त करने की प्रतिबद्धता जतानी चाहिए. इसके नतीजे के तौर पर सबसे पहला क़दम उत्सर्जन को अच्छी तरह समझने को लेकर उठाया जाना चाहिए. डिकार्बनाइज़ेशन की ओर हरेक कंपनी का सफ़र ग्रीन हाउस गैस की बुनियादी सीमा से जुड़े विस्तृत मूल्य श्रृंखला और प्रभाव के आकलन से शुरू होता है. इस सिलसिले में पैमाने का दायरा 1 (सीधे: कंपनी की अपनी गतिविधियों से), 2. (अप्रत्यक्ष: ख़रीदी गई बिजली के उत्पादन से), और 3 (अप्रत्यक्ष: वैल्यू चेन के साथ-साथ). बहरहाल बारीकी से नेट-ज़ीरो प्लान बनाने के लिए उत्सर्जन एक महत्वपूर्ण और पहला क़दम है. इससे निवेशकों, ग्राहकों, सिविल सोसाइटी और दूसरे तमाम किरदारों के प्रति विश्वसनीयता ज़ाहिर होती है. एक बार उत्सर्जन का आकलन हो जाने पर अगले क़दम के तौर पर उत्सर्जन के स्तर में कमी लाने और आख़िर में उसे जड़ से ख़त्म करने की क़वायद आती है. मिसाल के तौर पर एक कंपनी अपनी कारों को आसानी से इलेक्ट्रिक वाहनों से बदल सकती है या फिर वो सौर ऊर्जा के लिए करार कर सकती है. बहरहाल दुकानों, कारखानों, दफ़्तरों और बाक़ी तमाम सुविधाओं में डिकार्बनाइज़ेशन की क़वायद को अमल में लाना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. इतना ही नहीं इस सिलसिले में उनके सप्लायर्स को जोड़ना और भी ज़्यादा जटिल हो सकता है. आम तौर पर किसी कंपनी के कुल कार्बन प्रभावों में इनका बहुत बड़ा हिस्सा होता है. इसके बावजूद कंपनी का इनपर सीधे तौर पर कोई नियंत्रण नहीं होता.
एक बार उत्सर्जन का आकलन हो जाने पर अगले क़दम के तौर पर उत्सर्जन के स्तर में कमी लाने और आख़िर में उसे जड़ से ख़त्म करने की क़वायद आती है.
नियमित अंतराल पर प्रक्रियाओं और कार्रवाइयों की समीक्षा करना बेहद ज़रूरी है. दरअसल इसी के ज़रिए उत्सर्जन को ख़त्म करने और उनके प्रभावों को शून्य करने से जुड़े भावी प्रयासों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, इसी क़वायद से कामयाब तौर-तरीक़ों और संभावित दुष्परिणामों के बारे में समझ बढ़ाना भी मुमकिन हो सकेगा. साथ ही अगले चक्र को पिछले चक्र के मुक़ाबले निश्चित रूप से ज़्यादा उत्पादक बनाने में भी इससे सहायता मिलेगी. नेट ज़ीरो की आकांक्षा के साथ कॉरपोरेट क्षेत्र के लक्ष्यों को जोड़ने के रास्ते में एक और अहम क़दम प्रकटीकरण से जुड़ा है. जलवायु के मोर्चे पर की जा रही कार्रवाइयों के बारे में सूचनाओं के आदान-प्रदान से जनता के साथ जुड़ाव बनाने में मदद मिलती है. इसके साथ ही दूसरे कारोबारी मालिक़ों की कार्बन-निरपेक्ष गतिविधियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी ये सहायक सिद्ध होता है. जलवायु से जुड़े प्रकटीकरणों ने ज़्यादा से ज़्यादा कारोबारियों और मालिक़ों को उनके मालिक़ाना हक़ वाली इकाइयों में जलवायु जोख़िमों की पड़ताल करने को प्रेरित किया है. कारोबारों की नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धताओं की इन दिनों ज़्यादा जांच-पड़ताल होने लगी है. लिहाज़ा कार्बन के प्रभावों का लेखा-जोखा विश्वसनीय और पारदर्शी तौर-तरीक़े से किया जाना लाजिमी हो गया है. हर कंपनी की नेट ज़ीरो की यात्रा अपने-आप में अलग है. इस रास्ते पर आगे बढ़ रहे कारोबार जिन मसलों से दो-चार होते हैं, उनके बारे में काफ़ी-कुछ जानने-सीखने की ज़रूरत है. कुछ कारोबारों के संदर्भ में इन संभावनाओं को साकार करने के लिए मौजूदा कार्रवाइयों को विस्तार देने की ज़रूरत होती है. साथ ही रणनीतिक गठजोड़ बनाने या बाज़ार में प्रवेश के नए केंद्रों की पहचान करने की आवश्यकता होती है. बाक़ियों को अत्याधुनिक जलवायु तकनीक और नए तौर-तरीक़ों में निवेश करना होगा. इसके साथ ही उन्हें अपनी गतिविधियों और आपूर्ति श्रृंखला को भी नए सिरे से खड़ा करना होगा.
हर कंपनी की नेट ज़ीरो की यात्रा अपने-आप में अलग है. इस रास्ते पर आगे बढ़ रहे कारोबार जिन मसलों से दो-चार होते हैं, उनके बारे में काफ़ी-कुछ जानने-सीखने की ज़रूरत है. कुछ कारोबारों के संदर्भ में इन संभावनाओं को साकार करने के लिए मौजूदा कार्रवाइयों को विस्तार देने की ज़रूरत होती है.
छोटे और मध्यम आकार वाले उद्यमों (SMEs) के लिए नेट-ज़ीरो का रास्ता कठिनाइयों भरा हो सकता है. इनमें से कई सप्लाई नेटवर्क से जुड़े हैं. वो बड़ी कंपनियों के लिए आपूर्ति आधार के तौर पर भी काम करते हैं. लिहाज़ा इन बड़ी कंपनियों को उनके अपने और सामूहिक कार्बन प्रभावों को कम करने में लघु और मध्यम आकार वाली इकाइयों की मदद करनी चाहिए. निश्चित रूप से इन बड़ी कंपनियों को प्रभावी, न्यायोचित और दीर्घकालिक जलवायु समाधानों के लिए ज़रूरी माहौल बनाने की दिशा में योगदान देना चाहिए. भारत का कारोबार जगत इंसानों, मुनाफ़ों और पर्यावरण के बीच संतुलन बिठाकर इस मिशन में अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकता है. नेट-ज़ीरो के लक्ष्यों के साथ-साथ संक्रमण से जुड़ी विस्तृत योजनाओं का खाका भी पेश किया जाना चाहिए. इसमें उत्सर्जन में पूरी गहराई से कमी लाने वाले तात्कालिक, अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपलब्धियों का ब्योरा शामिल होना चाहिए. इसके अलावा नवाचारों और नए कारोबारी तौर-तरीक़ों में निवेश भी ज़रूरी है. श्रमशक्ति के समावेशी संक्रमण को सुलभ बनाने के लिए कौशल के स्तर को ऊंचा उठाने और दोबारा हुनर हासिल करना भी ज़रूरी है. इसके अलावा SME साझीदारों और सप्लायर्स को ज़रूरी मदद के स्तर में बढ़ोतरी करना भी एक महत्वपूर्ण उपाय है. नेट-ज़ीरो की रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण में सामाजिक संकेतकों को जोड़ना और अपने रुख़ में समावेशी उपायों को शामिल करना भी बेहद आवश्यक है. कुल मिलाकर अंतिम लक्ष्य सिर्फ़ नेट-ज़ीरो न होकर एक फलता-फूलता और सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण नेट ज़ीरो वाला भविष्य होना चाहिए.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Rupali Handa is a public policy professional. Her work focuses on clean energy and climate change mitigation policy issues. She was formerly a part of ...
Read More +