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Published on Apr 16, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत के प्राथमिक ऊर्जा क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी बहुत कम है. ऐसे में भारत के 2030 तक गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनने की संभावना बहुत कम है.

क्या भारत 2030 तक गैस आधारित अर्थव्यवस्था बन पाएगा?

पृष्ठभूमि

भारत सरकार ने 2016 में ये ऐलान किया था कि वो प्राथमिक ऊर्जा क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी बढ़ाएगी. 2016 में ये हिस्सेदारी 6.14 प्रतिशत थी, जिसे 2030 तक बढ़ाकर 15 प्रतिशत करके भारत को गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया. लेकिन इस ऐलान के बाद से भारत के प्राथमिक ऊर्जा क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी में मामूली बढ़त हुई. 2020 में ये 6.83 प्रतिशत थी, जो कि 2022 में गिरकर 5.7 फीसदी हो गई. यहां हम व्यावसायिक ऊर्जा की ही बात कर रहे हैं, बायोमास से पैदा की गई असंशोधित ऊर्जा की नहीं. 2010 में जब भारत के घरेलू गैस उत्पादन में तेज़ बढ़ोतरी हुई थी तब भारत की प्राथमिक ऊर्जा क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 9.43 प्रतिशत थी लेकिन अगर इसकी वृद्धि को लेकर मौजूदा रुझान जारी रहा तो 2030 तक भारत के गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद बहुत कम है.

उत्पादन और खपत के रुझान

2022-23 में भारत में प्राकृतिक गैस की खपत 164.3 मिलियन मीट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रति दिन (MMSCMD) थी. 2030 तक इसे बढ़ाकर 600 mmscmd करने के लिए ये ज़रूरी है कि इसकी खपत में सालाना 10.5 प्रतिशत की वृद्धि हो. ये लक्ष्य नामुमकिन नहीं है. 2008-18 के बीच चीन में प्राकृतिक गैस की सालाना खपत 13 प्रतिशत से ज्यादा रही. प्राकृतिक गैस की खपत में दोहरे अंकों की बढ़ोतरी की सबसे बड़ी वजह ये रही है कि उन दिनों चीन की सालाना आर्थिक वृद्धि दर भी 8 प्रतिशत से ज्यादा रही. चीन ने इस क्षेत्र के नियमन को लेकर सुधार किए. प्राकृतिक गैस को केंद्र में रखकर नीतियां बनाईं. भारत ने भी गैस के क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियां बनाई लेकिन पिछले दशक के उत्पादन और खपत के रुझान बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं.

 भारत ने भी गैस के क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियां बनाई लेकिन पिछले दशक के उत्पादन और खपत के रुझान बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं. 


भारत में प्राकृतिक गैस का घरेलू उत्पादन 108.94 से घटकर 92.23 mmscmd हो गया है. यानी 2012-13 से 2022-23 के बीच इसमें सालाना 1.6 प्रतिशत की गिरावट आई है. इस दौरान एलएनजी यानी लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस का आयात 2012-13 में 39.24 से बढ़कर 2022-23 में 72.07 mmscmd हो गया है. यानी इसके आयात में सालाना 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी अवधि में प्राकृतिक गैस की खपत 148.18 से बढ़कर 164.30 mmscmd हो गई. इसमें सालाना 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 143.61 mmscmd के साथ गैस के घरेलू उत्पादन का उच्चतम स्तर 2010-11 में दिखा जबकि गैस की खपत का उच्चतम बिंदु 175.74 mmscmd और एलएनजी आयात का उच्चतम स्तर 92.84 mmscmd कोरोना महामारी से ठीक पहले यानी 2019-20 में दर्ज किया गया.

अलग-अलग गैस क्षेत्र में वृद्धि के रूझान

70 और 80 के दशक में प्राकृतिक गैस की खपत तेज़ी से बढ़ी. इसकी सालाना वृद्धि दर दोहरे अंकों यानी 10 प्रतिशत से ज्यादा थी. किसी भी नए सेक्टर में आम तौर पर शुरुआत में ऐसा ही होता है, क्योंकि खपत को मापने का आधार बहुत छोटा होता है. 1990 और 2000 के दशक में प्राकृतिक गैस की खपत में कमी आई और इसकी सालाना वृद्धि दर 6-7 प्रतिशत रही. 2010 के दशक में तो ये वृद्धि दर और भी कम होकर सालाना करीब 1 प्रतिशत रह गई. मार्च 2023 में ख़त्म हुए दशक में पावर सेक्टर में प्राकृतिक गैस की खपत 3.7 प्रतिशत तक गिर गई. 2012-13 में ये 30.92 mmscmd थी जो 2022-23 में कम होकर 22 mmscmd रह गई. हालांकि इस गिरावट की भरपाई कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) की मांग में हुई वृद्धि ने पूरी कर दी. घरेलू और परिवहन क्षेत्र में सीएनजी की मांग में इस दौरान 8.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. औद्योगिक क्षेत्र में इसकी मांग में 12 प्रतिशत जबकि स्पंज आयरन के क्षेत्र में 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई. हालांकि मार्च 2023 में ख़त्म हुए दशक में रिफाइनिंग के क्षेत्र में इस गैस की खपत में सिर्फ 0.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई और पेट्रोकेमिकल सेक्टर में भी इसकी वृद्धि दर कम होकर 1.9 प्रतिशत ही रही

2013-13 में प्राकृतिक गैस की खपत में पावर सेक्टर की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत थी जो 2022-23 में कम होकर 13 फीसदी ही रह गई. अगर प्राकृतिक गैस को पावर सेक्टर में ईंधन के रूप में बढ़ावा दिया जाए. अल्पकालीन सूचना पर गैस मुहैया कराई जाए और इसकी लागत गैस की कीमतों में भी दिखे तो बिजली उत्पादन क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की मांग बढ़ सकती है. हालांकि बैटरी की भंडारण क्षमता के समाधान की लागत में गिरावट आने से रिन्यूएबल एनर्जी के ज़रिए भी पावर सेक्टर को ईंधन की नियमित आपूर्ति होने की संभावना बढ़ गई है. इसने भी प्राकृतिक गैस को बिजली उत्पादन क्षेत्र में ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के आकर्षण को कम किया है. अगर खाद (फर्टिलाइज़र) उत्पादन क्षेत्र की बात करें तो यहां भी प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल में मामूली बढ़ोतरी हुई है. 2013-14 में ये 32 प्रतिशत था, जो 2022-23 में बढ़कर 33 प्रतिशत हुआ है. भारत ने 2025 के बाद यूरिया का आयात बंद करने का फैसला किया है. इसका मतलब ये हुआ कि प्राकृतिक गैस (यूरिया उत्पादन के लिए फीडस्टॉक) की मांग बढ़ेगी. इस बात की काफी संभावना है कि फर्टिलाइज़र सेक्टर में आयातित लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) की खपत बढ़ेगी.

भारत ने 2025 के बाद यूरिया का आयात बंद करने का फैसला किया है. इसका मतलब ये हुआ कि प्राकृतिक गैस (यूरिया उत्पादन के लिए फीडस्टॉक) की मांग बढ़ेगी. 


2013-14 में प्राकृतिक गैस की खपत में सीएनजी की हिस्सेदारी करीब 16 प्रतिशत थी जो 2022-23 में बढ़कर 33 प्रतिशत हो गई. भविष्य में सीएनजी की खपत बढ़ सकती है लेकिन ये नियंत्रित कीमतों पर घरेलू गैस की उपलब्धता और बुनियादी ढांचे में निवेश पर निर्भर करेगा. पेट्रोलियम और नेचुरल गैस रेगुलेटरी बोर्ड (PNGRB) ने अप्रैल 2023 में यूनिफाइड टैरिफ (UFT) नीति की शुरुआत की थी. इस नीति का मकसद पूरे देश में प्राकृतिक गैस के परिवहन की एकल, एक जैसी और निष्पक्ष शुल्क ढांचा बनाना है, जिससे सीएनजी की खपत में वृद्धि हो. यूनिफाइड टैरिफ नीति सीएनजी पाइप लाइन के 21 नेटवर्क पर लागू होगी. ये संख्या निर्माणाधीन पाइपलाइनों का 90 प्रतिशत है. यूनिफाइड टैरिफ एक ऐसा शुल्क है, जिसे PNGRB निर्धारित करता है. इस शुल्क का निर्धारण पूरे पाइपलाइन नेटवर्क की लागत के हिसाब से किया जाता है. पाइपलाइन की लागत और उसकी उपयोगिता के आधार पर समय-समय पर इस शुल्क में संशोधन किया जाता है. इस शुल्क का निर्धारण करने में क्षेत्र का भी ध्यान रखा जाता है. इसे आम तौर पर तीन क्षेत्रों में बांटा जाता है. 1) गैस इंट्री प्वाइंट से 300 किलोमीटर का दायरा. 2) 300 से 1200 किलोमीटर का दायरा. 3) 1200 किलोमीटर से आगे का हिस्सा के लिए ज़ोनल फैक्टर 0.25, 0.5 और 1.0 होते हैं. ज़ोनल टैरिफ उस शुल्क को कहते हैं, जो पाइपलाइन ऑपरेटर उस कंपनी को देता है, जो गैस वहां तक पहुंचाती है. इसका निर्धारण ज़ोनल टैरिफ और यूनिफाइड टैरिफ को गुणा करके किया जाता है. यूटीएफ द्वारा स्थिर, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी तरीके से कीमतों का निर्धारण किया जाएगा तो इससे गैस उत्पादन और इसकी मांग को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही इससे गैस की बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश को भी आकर्षित किया जा सकेगा. एनर्जी ट्रांजिशन एडवाइज़री कमेटी (ETAC) ने रणनीतिक तौर पर गैस के भंडारण का सुझाव भी दिया है. इससे देश की ऊर्जा की आपूर्ति तो सुरक्षित होगी ही, साथ ही गैस की कीमतों में तेज़ी से होने वाले उतार-चढ़ावों का सामना भी किया जा सकेगा. इससे प्राकृतिक गैस की मांग भी बढ़ सकती है. सरकार इस बात का अध्ययन कर रही है कि क्या 3-4 बिलियन क्यूबिक मीटर्स (bcm) गैस का भंडारण किया जा सकता है. 2022-23 में पेट्रोकेमिकल और रिफाइनिंग सेक्टर में प्राकृतिक गैस की खपत की हिस्सेदारी 2013-14 की तुलना में कम थी. ये दोनों क्षेत्र आयातित एलएनजी पर निर्भर हैं. एलएनजी की कीमतों में जो उतार-चढ़ाव दिखे, उसकी वजह से इन सेक्टर्स में प्राकृतिक गैस की खपत में कमी आई. एक निश्चित कीमत में प्राकृतिक गैस के विकल्पों की उपलब्धता ने भी रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल सेक्टर में प्राकृतिक गैस की खपत में कमी लाने में अहम भूमिका निभाई है.

 
क्या सबक?

इसमें कोई शक नहीं कि जीवाश्म ईंधन और रिन्यूएबल एनर्जी के बीच प्राकृतिक गैस एक कड़ी का काम करती है, लेकिन ये भी हकीकत है कि प्राकृतिक गैस को कोयला ईंधन से कड़ी टक्कर मिल रही है. कोयला ईंधन की कीमत भी सही होती है और ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से भी ये सही ईंधन है क्योंकि इसका घरेलू उत्पादन काफी ज्यादा होता है. इसके अलावा सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से भी गैस को चुनौती मिल रही है. सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा पर्यावरण के नज़रिए से भी बेहतर है. हालांकि अगर कार्बन उत्सर्जन में कमी के हिसाब से देखें तो कोयले और तेल की तुलना में प्राकृतिक गैस एक बेहतर विकल्प है. कोयले से गैस में बदलाव को कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी के रूप में देखा जाता है. कोयले से चलने वाली बिजली संयंत्र की तुलना में प्राकृतिक गैस से चलने वाले बिजली सयंत्र 50-60 प्रतिशत कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं. इसी तरह पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की तुलना में गैस से चलने वाली गाड़ियों से 15-20 प्रतिशत कम कार्बन उत्सर्जन होता है.

एक निश्चित कीमत में प्राकृतिक गैस के विकल्पों की उपलब्धता ने भी रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल सेक्टर में प्राकृतिक गैस की खपत में कमी लाने में अहम भूमिका निभाई है.


लेकिन अब पर्यावरणवादी ये तर्क दे रहे हैं कि प्राकृतिक गैस का मतलब कार्बन उत्सर्जन से मुक्ति नहीं है. गैस आपूर्ति की श्रृंखला में निवेश की वजह से उत्सर्जन में उतनी कमी तो नहीं होगी. ये जीवाश्म ईंधन का जीवन और बढ़ा देगी. कुल मिलाकर इसका निष्कर्ष ये है कि प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल डिकार्बनाइजेशन के लक्ष्य को तो पूरी तरह हासिल नहीं कर पाएगा लेकिन इसकी वजह से गैस निर्माण में लगी परिसम्पतियां मुश्किल में फंस सकती हैं. ये भी एक तथ्य है कि पाइप लाइन गैस की तुलना में एलएनजी सप्लाई चेन में प्रति यूनिट ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है क्योंकि गैस के द्रवीकरण के लिए ज्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है.

हालांकि इन कमियों के बावजूद ये कहा जा सकता है कि ईंधन के परंपरागत साधनों की तुलना में प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है. कोरोना महामारी से पहले अमेरिका और यूरोप में ईंधन के तौर पर कोयले से प्राकृतिक गैस में बदलाव की वजह से वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में 1.7 प्रतिशत की कमी आई. अमेरिका में कोयले से गैस में बदलाव इसलिए हुआ क्योंकि गैस सस्ती पड़ रही थी, जबकि यूरोप में कोयले से गैस में बदलाव इसलिए हुआ क्योंकि कोयले से बहुत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हो रहा था. भारत में कोयला हमेशा प्राकृतिक गैस से सस्ता पड़ेगा क्योंकि हमें ज्यादातर गैस आयात करनी पड़ती है. भारत में कार्बन उत्सर्जन भी बहुत ज्यादा नहीं होता क्योंकि हमने जीवाश्म ईंधन पर पहले ही काफी टैक्स लगा रखा है. इसे देखते हुए लगता है कि भारत को गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनने में 6 साल से ज्यादा वक्त लगेगा.

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Authors

Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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