Published on Apr 26, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत में वर्ष 2018 के दौरान सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) सेक्‍टर में सुस्‍ती छाने का एक प्रमुख कारण आयातित सोलर पैनलों पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाना था।

सौर क्षमता मजबूत करने के लिए संरक्षणवाद नहीं, प्रोत्साहन है जरूरी

भारत में वर्ष 2018 के दौरान सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) सेक्‍टर में सुस्‍ती छाने का एक प्रमुख कारण यह था कि आयातित सोलर पैनलों पर सेफगार्ड ड्यूटी लगा दी गई थी जिसका व्‍यापक प्रतिकूल असर पड़ा। वैसे तो सेफगार्ड ड्यूटी लगाने का मुख्‍य उद्देश्य देश में इनके विनिर्माण को बढ़ावा देना था, लेकिन इस वजह से टैरिफ या शुल्‍क दरें बढ़ गईं जिसके परिणामस्वरूप कई सौर नीलामियों को रद्द करना पड़ा और फि‍र नए सिरे से निविदाएं आमंत्रित करने की नौबत आ गई। इस सुस्‍ती के अस्थायी रहने के आसार हैं, क्योंकि फोटोवोल्टिक (पीवी) मॉड्यूल की गिरती कीमत जैसे दीर्घकालिक रुझान अब भी बने हुए हैं। भारत की सौर क्षमता में वृद्धि मुख्यत: आयातित पीवी मॉड्यूल की बदौलत संभव हुई है जिनकी हिस्‍सेदारी लगभग 90 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच गई है। इनकी कीमतें 30 प्रतिशत तक कम होने से ही इस हद तक व्‍यापक हिस्‍सेदारी संभव हो पाई है। वैसे तो सरकार द्वारा विदेशी मॉड्यूलों पर 70 प्रतिशत सेफगार्ड ड्यूटी लगाना तय किया गया था, लेकिन ऊर्जा कंपनियों की ओर से भारी दबाव रहने के कारण इसे 25 प्रतिशत पर ही सीमित कर दिया गया।

भारत के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अधीन संचालित की जाने वाली कंपनी सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) ने मई 2018 में 5 गीगावाट (जीडब्‍ल्‍यू) की वार्षिक घरेलू सौर विनिर्माण क्षमता से जुड़ी 10 जीडब्‍ल्‍यू की सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए एक टेंडर लाकर इसके स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास किया। हालांकि, उद्योग जगत द्वारा कोई खास उत्‍साह न दिखाने के कारण इस निविदा के लिए तय समय सीमा को कई बार आगे बढ़ाना पड़ा। यही नहीं, विनिर्माण से जुड़ी निविदा क्षमता को बाद में घटाकर 3 जीडब्ल्यू कर दिया गया, जिसके तहत डेवलपरों के साथ 600 मेगावाट की विनिर्माण क्षमता के लिए दो जीडब्ल्यू के गारंटीड विद्युत खरीद समझौते (पीपीए) करने थे। ऐसे में ठेके पर दी गई कुल बिजली परियोजनाएं 10 जीडब्‍ल्‍यू के स्‍तर पर ही बनी रहतीं।

जनवरी 2019 में सरकार ने पिछली निविदा को रद्द करने और विनिर्माण से जुड़ी एक नई सौर निविदा जारी करने की अपनी योजना की घोषणा की। एसईसीआई ने इसके तहत 1.5 गीगावाट की विनिर्माण क्षमता से जुड़ी 3 जीडब्ल्यू की ग्रिड-कनेक्‍टेड सौर क्षमता के लिए निविदा जारी की। बोली लगाने के लिए न्यूनतम क्षमता 500 मेगावाट के सौर विनिर्माण से जुड़ी 1,000 मेगावाट की सौर क्षमता होगी। इन दोनों को ही ‘बनाओ, अपनाओ, चलाओ’ के आधार पर विकसित करना होगा। एसईसीआई 2.75 रुपये प्रति यूनिट की अधिकतम देय टैरिफ दर के साथ 25 साल का पीपीए करेगा। हालांकि, उद्योग जगत की ओर से कोई खास समर्थन न मिलने के कारण इस निविदा को भी रद्द कर दिए जाने की प्रबल संभावना है। निविदाओं को जारी करने एवं इनमें संशोधन करने और फि‍र अंततः उन्हें रद्द कर देने की ये घटनाएं स्पष्ट रूप से भारत के सौर पीवी के विनिर्माण सेक्‍टर के समक्ष मौजूद कठिनाइयों को दर्शाती हैं।

वैसे तो सरकार और उद्योग जगत ने इस मॉडल पर कई दौर की चर्चाएं कीं, लेकिन परियोजना डेवलपर विनिर्माण के क्षेत्र में उतरने को लेकर आशंकित हैं। दोनों को यही प्रतीत हुआ है कि बिजली दर की कोई उपयुक्त सीमा तय करना बड़ा ही कठिन है। भारतीय अर्थव्यवस्था में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव जैसे कि रुपये के अवमूल्‍यन, बढ़ती ब्याज दरों, जीएसटी में बदलावों इत्‍यादि के चलते ऐसी शुल्‍क दरें तय की गईं जिससे उद्योग को यह प्रतीत हुआ कि संबंधित बोलियां अब आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हो गई हैं जिनमें लाभ मार्जिन की गुंजाइश बेहद कम है।

इसके अलावा, सौर विनिर्माण उद्योग को तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। एसईसीआई की नवीनतम निविदा के अनुसार, सरकार की ओर से दो साल की उठान संबंधी प्रतिबद्धता भी बहुत महत्वाकांक्षी थी, क्योंकि उद्योग जगत को उन चीनी निर्माताओं जैसी उत्‍कृष्‍ट दक्षता हासिल करने में कम से कम पांच साल लग सकते हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर सौर पीवी के कलपुर्जों का उत्पादन करना भलीभांति सीख लिया है। इसके अतिरिक्‍त, उद्योग जगत इस बात को लेकर भी आशंकि‍त है कि आने वाले वर्षों में चीन से होने वाले आयात से कोई संरक्षण प्राप्‍त नहीं है जहां लागत पहले से ही बड़ी तेजी से घट रही है। कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया है कि भारतीय परियोजना डेवलपरों को विनिर्माण व्यवसाय में उतारने के लिए प्रेरित करने संबंधी सरकारी दृष्टिकोण इस दिशा में आगे बढ़ने का सही तरीका नहीं है। इस मामले में मुख्य दलील ऐसे मॉडल के वित्तपोषण से संबंधित है जिसमें विनिर्माण के लिए ज्‍यादा न्यायसम्य एवं कम उधार की आवश्यकता होती है, जबकि परियोजना के तहत उत्‍पादन के लिए कम इक्विटी एवं ज्‍यादा उधार की आवश्यकता होती है जो एक साथ संभव नहीं हैं।

फरवरी 2019 में एक अन्य घटनाक्रम के तहत आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 8,580 करोड़ रुपये की वीजीएफ (कम पड़ती धनराशि का वित्त पोषण) योजना को मंजूरी दी, जो सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को उन ‘मेड-इन-इंडिया’ मॉड्यूल का उपयोग करके अगले चार वर्षों में 12 जीडब्‍ल्‍यू के सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करने में सक्षम करेगी जो अपेक्षाकृत ज्‍यादा महंगे हैं। इस योजना के तहत 48,000 करोड़ रुपये का कुल निवेश आकर्षित होने और लगभग 2,00,000 नौकरियां सृजित होने की आशा है। चूंकि भारत में ज्‍यादातर विनिर्माण संयंत्र अब भी पुरानी तकनीक से ही संचालित किए जा रहे हैं, इसलिए इस धनराशि का उपयोग सही ढंग से किए जाने की संभावना नहीं है। इसके अलावा, अपने डीसीआर (घरेलू सामग्री संबंधी अनिवार्यता) नियम के कारण डब्ल्यूटीओ में भारत के अपना मामला हार जाने के बाद इस योजना के डब्ल्यूटीओ मानकों के अनुरूप होने पर अब भी सवाल उठ रहे हैं।

भारत में लगभग 3 जीडब्‍ल्‍यू की सेल और 9 जीडब्‍ल्‍यू की मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता है। इसके क्रमश: केवल 1.5 जीडब्‍ल्‍यू और 3 जीडब्‍ल्‍यू का ही सक्रियतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप होने के लिए फि‍लहाल पुरानी तकनीक का इस्‍तेमाल कर रहे इन संयंत्रों का तकनीकी उन्नयन तत्काल करने की आवश्यकता है, ताकि ये प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। उधर, भारतीय निर्माताओं को सेफगार्ड ड्यूटी के जरिए मिल रहा संरक्षण शीघ्र ही गायब हो गया क्योंकि चीन के पैनल निर्माताओं ने भी मॉड्यूल की कीमतें घटा दीं। वर्ष 2018 के मध्य से चीन द्वारा अपनी सौर क्षमता की वृद्धि दर में कमी किए जाने के कारण ही चीन के पैनल निर्माताओं ने मॉड्यूल की कीमतों में 35 प्रतिशत तक की कमी कर दी। अत: यह कहा जा सकता है कि भारतीय निर्माताओं द्वारा पूरी क्षमता से अपने संयंत्रों को चलाने के लिए सही अर्थों में कोई प्रोत्साहन उपलब्‍ध नहीं है।

पैनलों की घरेलू आपूर्ति पर विशेष जोर देने से यह तय हो गया है कि डेवलपर एक निश्चित कीमत पर मॉड्यूल प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि खरीद में परिवर्तनीय घटक (जैसे विदेशी मुद्रा विनिमय दरें) अपेक्षाकृत कम हैं। इसके साथ ही ऐसी स्थिति में आयात रसद (लॉजिस्टिक्‍स) संबंधी कोई कठिनाई नहीं होने से दोनों ही पक्षों को काफी सहूलियत हो जाएगी। चार वर्षों के लिए एक सुनिश्चित बाजार के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के लिए इस प्रस्तावित ‘वीजीएफ’ योजना से भविष्य की प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारतीय निर्माताओं में आत्मविश्वास पैदा होने की उम्मीद है।

सौर विनिर्माण इकाइयों के लिए 25 प्रतिशत की पूंजीगत सब्सिडी ‘संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (एम-सिप्‍स)’ के तहत उपलब्ध है। हालांकि, यह घरेलू सौर निर्माताओं से निवेश आकर्षित करने में विफल रही है। भारतीय निर्माताओं द्वारा इस्‍तेमाल में लाई जा रही पुरानी तकनीक को देखते हुए अत्याधुनिक विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) में निवेश करने की आवश्यकता है। कई कारोबारी बड़ा निवेश करने से पहले शुरुआती चरणों में केवल छोटे संयंत्रों को हो स्थापित कर सही स्थिति का आकलन करना पसंद करेंगे। चीन और जापान में कर्ज ब्याज दरें भारत की तुलना में काफी कम हैं, जो विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने में बाधक हैं। भारत को चीन की टॉप रनर नीति से सीखने की जरूरत है जिसके तहत मूल्य‍ के बजाय नई तकनीक और दक्षता पर ध्‍यान केंद्रित किया जाता है, जबकि भारत में कम टैरिफ दरें सुनिश्चित करने पर ज्‍यादा फोकस किया जाता है।

डेवलपरों के लिए विनिर्माण शुरू करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्‍योंकि इसके तहत सौर पीवी से जुड़ी वर्तमान मूल्य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) का एकीकरण अत्‍यंत अहम प्रतीत होता है। सौर मॉड्यूल के विनिर्माण में रेत की प्रोसेसिंग कर सिलिकॉन (मोनो या पॉली) बनाना, सिलिकॉन सिल्लियों (इनगॉट) की ढलाई करना, सिल्लियों से वेफर्स बनाना, वेफर्स का उपयोग करके सेल बनाना और फिर उन्हें असेम्बल करके मॉड्यूल बनाना जैसे कार्य शामिल हैं। मौजूदा समय में भारतीय पीवी विनिर्माण उद्योग केवल सेल और मॉड्यूल ही बनाता है, केवल दो कंपनियों को छोड़कर जो वेफर्स बनाती हैं। एक समग्र एकीकृत विनिर्माण केंद्र या हब (सिलिकॉन से मॉड्यूल तक) स्थापित करने के लिए भारी-भरकम पूंजीगत खर्च आवश्यक होता है और इसके लिए काफी बिजली एवं पानी की आपूर्ति अत्‍यंत जरूरी है। इस तरह के व्यवसाय की ओर निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कर रियायतों के जरिए विशेष प्रोत्साहन देने की आवश्यकता होगी। इस तरह के संयंत्रों की वित्तीय लाभप्रदता को लेकर संशय होने के कारण कई चीनी कंपनियां अब भी भारत में इस सेक्‍टर का आकलन कर रही हैं।

भारत सरकार द्वारा सोलर पीवी के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक बेहतर माहौल सुनिश्चित करने की जरूरत है, जिसके तहत सेफगार्ड ड्यूटी जैसे संरक्षणवादी उपायों के बजाय उपयुक्‍त बुनियादी ढाँचागत सुविधाएं और प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए। अनुकूल माहौल बनाने के लिए एक ऐसा विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) स्‍थापित करने पर विचार किया जा सकता है जो केवल एकीकृत मॉड्यूल विनिर्माण पर फोकस करता है। भूमि और संबद्ध गतिविधि सहित विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना करने में कम-से-कम दो साल लगेंगे, जिसे सरकार को तय समय सीमा वाली नीतियां तैयार करने से पहले अवश्‍य ही ध्यान में रखना होगा। भारत को उच्च दक्षता या क्षमता वाले पैनलों और नई तकनीकों की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी जिससे पीवी प्रणाली के सभी कलपुर्जों के साथ-साथ परियोजनाओं की भूमि लागत के मामले में भी हासिल लागत संबंधी समग्र लाभ को प्राप्‍त करने में मदद मिलेगी। पूर्णत: स्‍पष्‍ट उद्देश्यों वाली एक उपयुक्‍त नीतिगत रूपरेखा तैयार करने से भारत को पीवी के विनिर्माण के लिए अत्‍यंत अनुकूल माहौल बनाने में मदद मिलेगी।

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