23 मार्च को लंदन में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार की प्रेस कांफ्रेंस ने भारत और पाकिस्तान के सर्द रिश्तों में एक नई जान पैदा होने का संकेत दिया था. इशाक डार से पूछा गया था कि क्या पाकिस्तान में नई हुकूमत आने के बाद भारत के साथ उसके रिश्तों में कोई सुधार देखने को मिलेगा; इशाक डार का जवाब बड़ा दिलचस्प था. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की हुकूमत सभी ‘भागीदारों’ (मतलब पाकिस्तानी फ़ौज) के साथ मिल बैठकर बात करेगी और इस संभावना पर गंभीरता से विचार करेगी कि क्या, ‘कम से कम कारोबार और आर्थिक गतिविधियों के मामले में कुछ किया जा सकता है.’ ध्यान देने वाली बात ये है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री से दोनों देशों के रिश्तों के बारे में सवाल किया गया था. लेकिन, उन्होंने किसी तरह के आर्थिक लेन-देन के बारे में ही बात की. डार ने माना कि पाकिस्तान के कारोबारी तबक़े की तरफ़ से हुकूमत पर काफ़ी दबाव है कि भारत के साथ कारोबार फिर शुरू किया जाए. उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि दोनों देशों के बीच कारोबार तो अभी भी हो रहा है. हालांकि, दोनों देशों के बीच सीधा व्यापार होने के बजाय किसी तीसरे देश के ज़रिए हो रहा है, जिससे पाकिस्तान के कारोबारियों के लिए लेन-देन और परिवहन की लागत काफ़ी बढ़ जाती है. हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने अपने बयान में बहुत सावधानी और साफ़गोई से पहले जम्मू-कश्मीर को लेकर ‘विवाद’ का ज़िक्र किया और कहा कि वो इसके साथ साथ जारी रहेगा.
जैसा कि भारत में कुछ लोगों की आदत है, तो जैसे ही इशाक डार का बयान आया, तो वो उत्साहित हो गए कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ़ कुछ हद तक पिघलने वाली है. पाकिस्तान में फ़ौज की प्रोपेगेंडा मशीन के कुछ जाने-पहचाने वफ़ादार प्रवक्ताओं ने भी इशाक डार के इस बयान का स्वागत किया. लेकिन, भारत का विदेश मंत्रालय पाकिस्तान की तरफ़ से ऐसी गोटियां चलने से बख़ूबी वाक़िफ़ है. इसलिए, वो पाकिस्तान के विदेश मंत्री के बयान के झांसे में नहीं आया. अपनी तरफ़ से भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर जयशंकर ने पाकिस्तान की जिहादी आतंकवादियों के बड़े उद्योग को पालने पोसने और बढ़ावा देने पर से ज़रा भी ध्यान नहीं हटने दिया. जयशंकर ने कहा कि भारत, आतंकवाद के मसले की सिर्फ़ इसलिए क़तई अनदेखी करने नहीं जा रहा है कि ‘दांव पर और भी बहुत कुछ है.’ भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान का ये भ्रम दूर कर दिया कि भारत, उसके साथ ऐसी स्थिति में भी किसी तरह का फ़ायदेमंद कारोबारी रिश्ता स्थापित करने के लिए तैयार है. जबकि पाकिस्तान एक तरफ़ तो भारत के ख़िलाफ़ जिहाद भड़काए और आतंकवादियों को भारत भेजता रहे, और साथ ही साथ और खालिस्तानियों जैसी अलगाववादी ताक़तों को बढ़ावा देकर भारत से दुश्मनी वाला रवैया भी अपनाए रहे. जहां तक भारत की बात है कि तो बुनियादी बात यही है कि अगर बातचीत और आतंकवाद साथ साथ नहीं हो सकते, तो व्यापार और आतंकवाद भी साथ साथ नहीं चल सकते.
जहां तक भारत की बात है कि तो बुनियादी बात यही है कि अगर बातचीत और आतंकवाद साथ साथ नहीं हो सकते, तो व्यापार और आतंकवाद भी साथ साथ नहीं चल सकते.
इस हक़ीक़त से इनकार नहीं किया जा सकता कि दो देशों और ख़ास तौर से दो पड़ोसियों के बीच कारोबार एक अच्छी बात है. अगर व्यापार होता है, तो दोनों ही पक्षों को फ़ायदा होता है, ये भी एक बड़ी सच्चाई है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. लेकिन, वास्तविक दुनिया में व्यापार को पूरी तरह सियासत से अलग नहीं किया जा सकता. ख़ास तौर से तब और जब इसका ताल्लुक़ दो दुश्मन देशों से हो. भारत और पाकिस्तान के बीच तीन मोटे तर्क हो सकते हैं, जिनके इर्द-गिर्द आर्थिक संबंध घूमते हैं: पहला आर्थिक आयाम; दूसरा, सियासी संबंध; और तीसरा, सामरिक पहलू. इन सभी मोर्चों पर ऐसी कोई बात नहीं नज़र आती, जिसके आधार पर भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार शुरू किया जा सके.
भारत को इससे क्या फ़ायदा होगा?
अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कारोबार दोबारा शुरू भी होता है, तो पाकिस्तान, भारत के लिए बहुत मामूली हैसियत रखने वाला होगा. जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो उसे अपनी कुशलता बेहतर बनाने, नये बाज़ार तक पहुंच, आपूर्ति श्रृंखलाओं की समस्याओं से निपटने और महंगाई, ख़ास तौर से खाने-पीने के सामान की क़ीमतों पर क़ाबू पाने के लिए भारत के साथ कारोबार शुरू करने की सख़्त दरकार है. पर, इसकी तुलना में भारत कारोबार शुरू करने से को कोई ख़ास फ़ायदा नज़र नहीं आता. कुछ और नहीं, तो पाकिस्तान के साथ कारोबार शुरू करने के आर्थिक फ़ायदे तो बेहद मामूली होंगे, मगर इसकी सियासी क़ीमत भारत को कहीं ज़्यादा चुकानी पड़ सकती है. वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का कुल विदेशी व्यापार 1.6 ट्रिलियन डॉलर या GDP का लगभग 48 प्रतिशत था. इस वक़्त पाकिस्तान के साथ जो बेहद सीमित स्तर का व्यापार हो रहा है, उसके तहत 2022-23 में पाकिस्तान को भारत के सामानों का निर्यात 62.7 करोड़ डॉलर (कुल निर्यात का 0.1 प्रतिशत) था. वहीं आयात दो करोड़ डॉलर (कुल आयात का 0.003 फ़ीसद) ही था. 2018-19 वो आख़िरी साल था जब दोनों देशों के बीच कुछ हद तक सामान्य व्यापारिक संबंध थे. तब पाकिस्तान को भारत का निर्यात 2 अरब डॉलर (कुल निर्यात का 0.6 प्रतिशत), वहीं आयात 49.5 करोड़ डॉलर (कुल आयात का 0.096 फ़ीसद) था. आर्थिक नज़रिए से देखें, तो भारत की नज़र में पाकिस्तान की कोई अहमियत है ही नहीं. पाकिस्तान के साथ कारोबार करके भारत को कोई फ़ायदा नज़र नहीं आता है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत और पाकिस्तान के बीच 37 अरब डॉलर के कारोबार की संभावनाएं मौजूद हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जो उधार और भीख के भरोसे चल रही है, और सिर से पैर तक क़र्ज़ में डूबी है. वहां का रहन-सहन लगातार गिरता जा रहा है
जहां भारत के लिए पाकिस्तान के साथ कारोबार शुरू करने की कोई आर्थिक वजह नज़र नहीं आती. वहीं, पाकिस्तान के लिए सच्चाई इसके उलट है. 2018 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान को क्षेत्रीय कारोबार और विशेष रूप से भारत से व्यापार करने से काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत और पाकिस्तान के बीच 37 अरब डॉलर के कारोबार की संभावनाएं मौजूद हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जो उधार और भीख के भरोसे चल रही है, और सिर से पैर तक क़र्ज़ में डूबी है. वहां का रहन-सहन लगातार गिरता जा रहा है, तो महंगाई आसमान छू रही है. बेरोजगारी बढ़ रही है और उद्योग तबाह हो रहे हैं. ऐसे में पड़ोसी भारत जैसी दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्था से कारोबार का मौक़ा चूकना, तबाही लाने जैसा है. क्योंकि आज की तारीख़ में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी है और इस दशक के आख़िर में उसके तीसरे पायदान पर पहुंचने की उम्मीद है. पर चूंकि पाकिस्तान को जिहादी आतंकवाद का नशा है. अपने इस्लाम के मामले में आला दर्ज़े का होने की सनक और दूसरों की ज़मीन हथियाने के जुनून की वजह से पाकिस्तान आज के भारत की हक़ीक़त के साथ जीने की आदत डाल पाने में अक्षम है.
कारोबारी रिश्तों का टूटना
भारत और पाकिस्तान के बीच कारोबार 2019 में अचानक बंद हुआ था. फ़रवरी 2019 में पुलवामा के आत्मघाती आतंकवादी बम हमले में पाकिस्तान की शिरकत सामने आने के बाद, भारत ने पाकिस्तान को दिया हुआ मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा वापस ले लिया था और पाकिस्तान से आने वाले सारे उत्पादों पर 200 प्रतिशत सीमा शुल्क लगा दिया था. इसके कुछ महीनों बाद भारत ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के आर-पार हो रहे कारोबार को भी रोक दिया था. क्योंकि, इस कारोबारी रास्ते का इस्तेमाल ड्रग्स, हथियार और नक़ली भारतीय करेंसी लाने के लिए किया जा रहा था. नियंत्रण रेखा के ज़रिए व्यापार, आतंकवाद के लिए पूंजी जुटाने और मनी लॉन्ड्रिंग का भी एक बड़ा ज़रिया बन गया था. उसी साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर में भारत के संवैधानिक सुधारों के जवाब में इमरान ख़ान की हुकूमत ने भारत के साथ सभी तरह का व्यापार बंद कर दिया था. हालांकि, कुछ हफ़्तों के भीतर ही पाकिस्तान को अपने क़दम कुछ पीछे खींचते हुए दवाओं के व्यापार पर लगी पाबंदी हटानी पड़ी थी. क्योंकि उसके यहां जीवन रक्षक दवाओं की क़िल्लत हो गई थी और दवाओं के दाम आसमान छूने लगे थे. 2021 में भारत के साथ सीमित स्तर पर व्यापार शुरू करने का प्रस्ताव फिर रखा गया. लेकिन, इमरान ख़ान ने इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि भारत के साथ संबंध को लेकर यू-टर्न लेने की उन्हें भारी सियासी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. इसके बाद, पाकिस्तान में मीडिया के ज़रिए अक्सर ये शिगूफ़ा उछाला जाता रहा है कि भारत के साथ कारोबार फिर शुरू होना चाहिए. लेकिन, इस बारे में पाकिस्तान की तरफ़ से भारत सरकार से कोई आधिकारिक संपर्क नहीं किया गया है. वहीं, भारत ने पाकिस्तान के भीतर कारोबार को लेकर मचने वाले गुल को कभी कोई तवज्जो नहीं दी है.
पाकिस्तान की कुत्सित सोच
पाकिस्तानियों को लगता है कि भारत सांसे रोककर उनके देश के साथ कारोबार बहाल होने का इंतज़ार कर रहा है. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की इस ख़ाम ख़याली के पीछे उसकी ‘हिंदू बनिया’ वाली पुरानी इस्लामिक कट्टरपंथी सोच है. उन्हें अब भी ये ग़ुमान है कि वो भारत के लिए बेहद अहम हैं. उनकी भौगोलिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि भारत, पाकिस्तान के रास्ते ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और अन्य देशों से संपर्क स्थापित करने का विकल्प मिलते ही झूम उठेगा. पाकिस्तानियों के ज़हन में ये ख़याल आता ही नहीं कि ज़मीन के रास्ते कारोबार, बहुत महंगा सौदा है. उन्हें जो एक और बात समझ में नहीं आती कि ईरान तक भारत की पहुंच समुद्री रास्ते से है. और, ईरान के रास्ते उसका अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक भी उसकी कनेक्टिविटी है. इसके अलावा, जो एक और बात अहम है, वो ये कि इनमें से कोई भी देश भारत के लिए इतना बड़ा बाज़ार नहीं है कि उनको हासिल करने के लिए वो पाकिस्तान को रियायतें देने को तैयार हो जाएगा. भारत द्वारा पाकिस्तान जैसे अड़ियल और न सुधरने वाले दुश्मन देश पर भरोसा करके अपनी आर्थिक सुरक्षा को दांव पर लगाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.
भारत के लिए एक कमज़ोर, लड़खड़ाता हुआ और आर्थिक रूप से दिवालिया पाकिस्तान सबसे अच्छा है. इससे भारत को अपनी ताक़त में इज़ाफ़ा करने और अपनी सैन्य और सुरक्षा क्षमताओं में बढ़ोत्तरी के लिए मूल्यवान समय मिल जाता है.
भारत के अधिकारियों को इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा है कि पाकिस्तान, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक कनेक्टिविटी को नियंत्रित करके ठोस बढ़त हासिल करने की कोशिश में है. अपनी सार्वजनिक परिचर्चाओं में पाकिस्तान के विश्लेषक अक्सर इस ग़ुमान पर लार टपकाते सुनाई पड़ जाते हैं कि जैसे ही भारत, पाकिस्तान के ज़मीनी रास्ते पर निर्भर होगा, वो भारत पर अपनी शर्तें थोप पाने में सफल हो जाएंगे. यही वजह कि भारत कभी भी ईरान से पाकिस्तान होते हुए भारत तक की पाइप लाइन, या फिर तुर्कमेनिस्तान- अफ़ग़ानिस्तान- पाकिस्तान और भारत (TAPI) पाइपलाइन के लिए सहमत नहीं होगा. भारत के बिना इन परियोजनाओं का कोई मतलब नहीं है. इसका अर्थ ये है कि भारत तो पाकिस्तान से होकर गुज़रने वाले रास्तों पर निर्भर नहीं है. बल्कि, सच्चाई ये है कि पाकिस्तान, भारत के बाज़ारों तक पहुंच पर बहुत निर्भर है.
ये कुत्सित सोच उस बेतुके तर्क से भी ज़ाहिर होती है, जो पाकिस्तान की तरफ़ से व्यापार शुरू करने के लिए दिए जाते हैं. ज़ाहिर है, पाकिस्तान को भारत से कारोबार की ज़रूरत ज़्यादा है. इशाक डार ने भी ये माना था कि दोनों देशों के बीच व्यापार शुरू हुआ, तो भारत से ज़्यादा पाकिस्तान को नफ़ा होगा. साधारण सी हक़ीक़त ये है कि दुबई या सिंगापुर जैसे तीसरे देश के ज़रिए व्यापार से भारत को कोई नुक़सान है नहीं; इससे पाकिस्तान को झटका लगता है. क्योंकि उसे लेन-देन और सामानों की आवाजाही की अधिक क़ीमत चुकानी पड़ती है. फिर इसका असर पाकिस्तानी कारोबारियों के मुनाफ़े पर पड़ता है. कई मामलों में तो ऐसा कारोबार उनके लिए उपयोगी ही नहीं रह जाता. भारत से (विशेष रूप से कश्मीर के मसले पर) सियासी रियायतों की अपेक्षा इसलिए करना, ताकि पाकिस्तान के व्यापारियों का मुनाफ़ा बढ़ सके, ये बात गले उतरती नहीं है. पाकिस्तानियों को ये भी लगता है कि वो भारत को लेकर अपनी नीति को ‘कश्मीर नीति’ से अलग कर सकते हैं. अब भारत को ये बात मंज़ूर नहीं है. ये एक ऐसी सच्चाई है, जो अब तक पाकिस्तानियों को समझ में नहीं आ सकी है.
व्यापार के सियासी और सामरिक पहलू
पाकिस्तानी इस दोहरे नज़रिए को जायज़ ठहराने के लिए चीन का उदाहरण देना पसंद है. मतलब ये कि दुश्मनी को क़ायम रहते हुए ऐसे आर्थिक संबंध विकसित करना जो उसके लिए फ़ायदेमंद हो. हालांकि, पाकिस्तानियों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि भारत और चीन के मामले में ये उदाहरण भी काफ़ी मुश्किलें झेल रहा है. भारत के साथ लगभग 100 अरब डॉलर के आकर्षक द्विपक्षीय कारोबार के बावजूद चीन ने भारत के इलाक़े में घुसपैठ करके उस पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की, जिसकी वजह से संघर्ष हुआ और सीमा पर अभी भी ज़बरदस्त तनाव बना हुआ है. और यहां पर हम पाकिस्तान की बात कर रहे हैं, जिसने अपने सबसे अहम व्यापारिक साझीदार और सबसे बड़े मददगार अमेरिका को भी पलीता लगाने से कोई गुरेज़ नहीं किया. ऐसे में भारत के साथ व्यापार करने में पाकिस्तान दग़ा नहीं देगा, इसकी कितनी संभावना है?
भारत अगर पाकिस्तान के साथ सीमित व्यापार के दरवाज़े खोलने को भी तैयार होता है, तो इसका मतलब यही होगा कि वो पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने की अपनी उस नीति से पलटे, जो अब तक पाकिस्तान पर अंकुश लगाए रखने में सफल साबित हुई है. उप-महाद्वीप में व्यापार के ज़रिए शांति स्थापना की पुरानी नीति अपना सफर पूरा कर चुकी है. 1999 में भारत, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट जैसे पाकिस्तानी फ़ौज के कारोबारी उद्यम से चीनी आयात कर रहा था. इसका मक़सद, भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने में पाकिस्तान के फ़ौजी तंत्र के लिए आर्थिक फ़ायदे का दांव बढ़ाना था. लेकिन, उसके बाद कारगिल का युद्ध हुआ. 2004 से 2008 के बीच भारत ने क्रिकेट, फिल्मों, पर्यटन, छात्रों, मेडिकल कूटनीति और सामान्य नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाकर दोनों देशों के रिश्ते सामान्य करने में काफ़ी कुछ दांव पर लगाया था. पर, इसके बाद 26/11 का आतंकवादी हमला हो गया.
सामरिक नज़रिए से भी देखें, तो भारत के लिए दुश्मन देश के साथ आर्थिक रिश्तों के दरवाज़े खोलना नुक़सानदेह है. भारत के लिए एक कमज़ोर, लड़खड़ाता हुआ और आर्थिक रूप से दिवालिया पाकिस्तान सबसे अच्छा है. इससे भारत को अपनी ताक़त में इज़ाफ़ा करने और अपनी सैन्य और सुरक्षा क्षमताओं में बढ़ोत्तरी के लिए मूल्यवान समय मिल जाता है. इन क्षमताओं में बढ़ोत्तरी करके भारत, पाकिस्तान के लिए अपने साथ किसी भी तरह का टकराव मोल लेने की क़ीमत इतनी बढ़ाता जा रहा है, जिससे उसकी ऐसा करने की हिम्मत ही न पड़े. ऐसा कोई भी ऐसा क़दम भारत के हित में नहीं होगा, जिससे पाकिस्तान को अपनी खोदी हुई मुसीबतों की खाई से बाहर आने में मदद मिले.
शर्तें लागू हैं
पाकिस्तानियों को इस बात का यक़ीन है कि जून में भारत में आम चुनाव ख़त्म होने के बाद, आपसी संबंध के मामले में कुछ प्रगति होने की संभावनाएं हैं. उन्हें उम्मीद है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार चुनाव जीत जाते हैं, तो भी वो पाकिस्तान के साथ रिश्तों को थोड़ा बहुत सामान्य करने के लिए तैयार होंगे. अक्टूबर 2024 में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने से पाकिस्तान को भी कूटनीतिक संबंध फिर क़ायम करने का एक बहाना मिल जाएगा. इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संपर्क की शुरुआत का रास्ता खुलेगा. इसका आग़ाज़ कुछ गिने चुने सामानों का कारोबार शुरू करने से हो सकता है. लेकिन, कारोबार की शुरुआत करने के लिए भारत को चाहिए कि वो पाकिस्तान के सामने कुछ बुनियादी मांगें पूरी करने की शर्त रखे.
पाकिस्तान से ये अपेक्षा भी की जानी चाहिए कि वो कश्मीरी अलगाववादियों को समर्थन देना बंद करे, और अपने यहां सक्रिय जिहादी आतंकवादी संगठनों पर ठोस कार्रवाई करे.
इन शर्तों में भारत द्वारा इस बात पर ज़ोर देना शामिल होना चाहिए कि पाकिस्तान उसे मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा दे. बिना भेदभाव के बाज़ार तक पहुंच (NDMA) का पुराना फ़ॉर्मूला अब नहीं चलने वाला. दोनों देशों के बीच हुए इस द्विपक्षीय समझौते के तहत पाकिस्तान को ये अधिकार था कि वो जब चाहे अपनी बात से पीछे हट जाए. अब इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. भारत को अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचने के लिए ज़मीनी रास्ता खोलने की मांग पर भी ज़ोर देना चाहिए. ये भारत से ज़्यादा अफ़ग़ानिस्तान के लिए फ़ायदेमंद होगा. इसके अतिरिक्त, भारत को पाकिस्तान से गारंटी मांगनी चाहिए कि वो व्यापार के रास्तों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद के लिए पूंजी मुहैया कराने, ड्रग तस्करी और नक़ली नोटों के कारोबार के लिए नहीं करेगा. पाकिस्तान से ये अपेक्षा भी की जानी चाहिए कि वो कश्मीरी अलगाववादियों को समर्थन देना बंद करे, और अपने यहां सक्रिय जिहादी आतंकवादी संगठनों पर ठोस कार्रवाई करे. पाकिस्तान की सत्ता और विशेष रूप से फ़ौज की पब्लिसिटी शाखा इंटर सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (ISPR) द्वारा दुश्मनी भरा दुष्प्रचार भी बंद होना होगा. आख़िर में पाकिस्तान को कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देना बंद करना होगा, जिसे पाकिस्तान की हुकूमत अपनी दिशा-निर्देशक विचारधारा मानती रही है. ये घातक विचारधारा ही है जिसकी वजह से पाकिस्तान अपने पड़ोसी देशों के साथ अमन के साथ रहने में अक्षम है.
ज़्यादा संभावना यही है कि पाकिस्तान इन शर्तों को मानने से इनकार कर देगा. भारत के लिए ये और मुफ़ीद होगा. क्योंकि इन शर्तों के बग़ैर पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य करना, भारत के आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों की पूर्ति नहीं हो सकेगी.
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