Published on Jun 04, 2019 Updated 0 Hours ago

वित्तमंत्री को तीन तरह के काम करने हैं. पहले तो उन्हें 2019 का पूर्ण बजट लिखना होगा. दूसरा, उन्हें कार्यकारी या प्रशासनिक फैसले लेने होंगे. तीसरा, काम नए कानून बनाने होंगे.

बजट में निर्मला सीतारमण ये 8 काम कर दें तो कमाल हो जाएगा

देश की नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को तीन तरह के काम करने हैं. पहले तो उन्हें 2019 का पूर्ण बजट लिखना होगा. दूसरा, उन्हें कार्यकारी या प्रशासनिक फैसले लेने होंगे. तीसरा काम नए कानून बनाने का है. बजट लिखने और प्रशासनिक फैसले जैसे काम तो वह तुरंत शुरू कर सकती हैं, लेकिन नए कानून के लिए उन्हें बीजेपी के अंदर और बाहर राजनीतिक समर्थन की जरूरत पड़ेगी. तभी उनसे जुड़े विधेयक पास हो पाएंगे. मैं नीचे जिन बातों का जिक्र कर रहा हूं, उनमें से पांच तो उनके पहले 100 दिन के प्रोग्राम का हिस्सा हो सकते हैं. आखिर के तीन प्वाइंट्स के लिए शुरुआत अभी की जा सकती है और उन पर अमल तीन साल बाद किया जा सकता है, जब बीजेपी के पास राज्यसभा में भी बहुमत हो जाएगा.

बजट 2019

  1. लोकसभा चुनाव के जनादेश के कई पहलू हैं. इसमें आर्थिक मोर्चे पर जनता ने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की नीतियों को जारी रखने का समर्थन किया है. इसलिए बजट में मोदी के पहले कार्यकाल में हुई आर्थिक पहल को जारी रखने पर ध्यान देना होगा. देश के 10 करोड़ गरीबों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिहाज से यह बहुत ज़रूरी है. इससे आर्थिक गैर-बराबरी की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी. इसके साथ वेल्थ क्रिएशन पर भी ध्यान देना होगा. यह काम निजी क्षेत्र से निवेश को बढ़ावा देकर ही किया जा सकता है. बजट में इसके उपाय करने होंगे. मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस यानि आसानी से कारोबार करने की खातिर कई उपाय किए थे, जिसे आगे ले जाने की जरूरत है. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत को दुनिया के टॉप 50 देशों की लिस्ट में जगह बनानी होगी.
  1. रिफॉर्म यानि सुधार को लेकर इरादे स्पष्ट करने होंगे. सच है कि एक बजट से बड़े रिफॉर्म या बदलाव नहीं हो सकते, लेकिन मोदी सीज़न 2 में सरकार बड़े आर्थिक सुधारों के लिए तैयार है, इसकी झलक बजट में ज़रूर दिखनी चाहिए. इसमें कम से कम उन सुधारों का जिक्र तो किया ही जा सकता है. सेक्टोरल यानि अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों में सुधारों की लिस्ट बहुत लंबी है. यह बात स्पष्ट की जाए कि ये रिफॉर्म क्यों ज़रूरी हैं. मसलन, यह बताया जाना चाहिए कि इन सुधारों से देशी-विदेशी स्तर पर निवेश आकर्षित करने, भारत को दुनिया में बड़ी मैन्युफैक्चरिंग ताकत बनाने और रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी. अंग्रेजों से विरासत में जो दमनकारी सत्ता मिली है, उसे बदलना होगा. यह संदेश देना होगा कि सरकार इन सुधारों के ज़रिये आर्थिक विकास, संपत्ति और समृद्धि को बढ़ावा देना चाहती है. वह अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना चाहती है. आप किसी भी क्षेत्र को ले लीजिए. वह ऐसे रिफॉर्म का इंतजार कर रहा है, जिससे देश के युवाओं की ऊर्जा का कारगर इस्तेमाल हो सकता है. इसलिए मज़बूत जनादेश को गंवाना ठीक नहीं होगा.
  1. अलग-अलग एसेट क्लास (यानि शेयर, प्रॉपर्टी, गोल्ड, बॉन्ड फंड आदि) पर एक जैसा टैक्स लगाया जाए. इस बार के बजट में टैक्स स्ट्रक्चर में बहुत बदलाव की उम्मीद नहीं है, लेकिन निर्मला को अलग-अलग एसेट्स पर‘टैक्स भेदभाव’ को खत्म करने पर ध्यान देना चाहिए. आखिर, कोई इंसान रेगुलेटर को देखकर बचत या निवेश का फैसला नहीं करता. इसलिए शेयरों के मामले में एक साल, रियल एस्टेट में दो साल और डेट प्रॉडक्ट्स में तीन साल की अवधि को लॉन्ग टर्म मानने का कोई मतलब नहीं है. अगर हमें फाइनेंशियल सेविंग्स को बढ़ावा देना है तो वित्तमंत्री को इस पक्षपात को ख़त्म करना होगा. उन्हें पीपीएफ, गोल्ड, रियल एस्टेट से लेकर बॉन्ड और शेयर सहित सभी एसेट क्लास के लिए कैपिटल गेंस का एक सिस्टम बनाना होगा. इनवेस्टमेंट स्विच करने पर भी यही व्यवस्था लागू करनी होगी यानि एक घर बेचकर दूसरा घर खरीदने पर कोई कैपिटल गेंस नहीं लगता, लेकिन एक म्यूचुअल फंड से पैसा निकालकर दूसरे में लगाने पर यह छूट मिलती है. इससे अर्थव्यवस्था में मनी फ्लो बढ़ेगा.

प्रशासनिक फैसले

  1. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) 2.oलाया जाए. मोदी के पहले कार्यकाल में संसद ने जीएसटी कानून बनाया. यह शानदार और पेचीदा कानून है. एक संविधान संशोधन, चार केंद्रीय कानून, 29 राज्य कानूनों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक अधिसूचना से जीएसटी लागू हुआ. यह मोदी सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि है. इसने टैक्स चोरी को सिर के बल खड़ा कर दिया और इससे टैक्स कलेक्शन सिस्टम बेहतर बना है. कुछ समय तक छोटे कारोबारियों को जीएसटी पर अमल करने में दिक्कत हुई थी, लेकिन अब सारी परेशानियां खत्म हो चुकी हैं. मोदी के दूसरे कार्यकाल में निर्मला को राज्य सरकारों के साथ मिलकर रियल एस्टेट, बिजली, पेट्रोल-डीजल, शराब को जीएसटी के दायरे में लाने की कोशिश करनी होगी. वह इसकी शुरुआत बीजेपी शासित राज्यों को मनाने के साथ कर सकती हैं. जीएसटी 1.o के साथ कई टैक्स रेट्स की दिक्कत थी. अभी भी इसमें शून्य, 5 पर्सेंट, 12 पर्सेंट, 18 पर्सेंट, 28 पर्सेंट और अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए 1 पर्सेंट यानि कुल छह दरें हैं. इनकी संख्या घटाकर तीन (शून्य, 5 पर्सेंट और 12 पर्सेंट) की जानी चाहिए. जीएसटी काउंसिल में निर्मला को इसके लिए खुद कमान संभालनी होगी.
  1. विनिवेश, इस पर तो सोचने की भी जरूरत नहीं है. विनिवेश से सरकार के हाथ में अधिक पैसा आता है. इकोनॉमिक एफिशिएंसी यानि आर्थिक कुशलता बढ़ती है. सरकार को वैसे काम पर ध्यान देने की आज़ादी मिलती है, जिस पर उसे ध्यान देना चाहिए. निजी क्षेत्र से मुकाबला या होड़ करना उसका काम नहीं है. वित्तमंत्री को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपने सहयोगियों को समझाना होगा कि आख़िर सरकार को क्यों अपनी कंपनियों को बेच देना चाहिए. बाज़ार में सरकारी कंपनियां निजी क्षेत्र की कंपनियों से मुक़ाबला करती हैं. लेकिन सरकार रेगुलेटर भी है और इन कंपनियों की मालिक भी. उसकी यह दोहरी भूमिका ठीक नहीं है. सरकार का काम लोगों को सामान या सेवाओं की बिक्री करना नहीं है. उस पर ऐसा माहौल बनाने का दायित्व है, जिससे किसी क्षेत्र में निजी कंपनियां आएं और उससे रोजगार के मौके बनें और वेल्थ क्रिएशन हो. वह विनिवेश की शुरुआत एयर इंडिया के साथ कर सकती हैं. इसके बाद इसे बैंकों, माइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग और दूसरे क्षेत्रों और उद्योगों तक बढ़ाया जा सकता है. निर्मला को इसकी योजना बनानी होगी. सरकारी कंपनियों की समस्या कितनी बड़ी है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पहली पंचवर्षीय योजना में 29 करोड़ के निवेश के साथ पांच सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (पीएसई) थे, जबकि 31 मार्च 2018 तक 13 लाख करोड़ के निवेश के साथ कुल 339 पीएसई ऑपरेट कर रहे थे. सिर्फ 2016 से 2018 के बीच 19 नए सेंट्रल पीएसई बने.

नए कानून

  1. फाइनेंशियल रिज़ॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफडीआरआई). 3 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था में फाइनेंशियल सेक्टर में किसी कंपनी के फेल होने से निपटने की प्रक्रिया न होना अजीब बात है. एफआरडीआई बिल, 2017 में इसके लिए एक व्यवस्था सुझाई गई थी. इसमें फाइनेंशियल सेक्टर में किसी कंपनी के फेल होने से निपटने का एक तरीका, एक रास्ता बताया गया था. देश की अर्थव्यवस्था अब 3 लाख करोड़ डॉलर से 5 लाख करोड़ डॉलर की तरफ बढ़ रही है. ऐसे में फाइनेंशियल सेक्टर के लिए ऐसे कानून की ज़रूरत और बढ़ गई है. ओछी राजनीति और एफआरडीआई बिल पर नासमझी की वजह से उसे वापस लेना पड़ा था. उस विधेयक की एक शर्त को लेकर काफी विवाद हुआ था, जिसमें कहा गया था कि इस कानून के तहत जो रिज़ॉल्यूशन कॉरपोरेशन को बनाया जाएगा, उसके पास ग्राहकों (बैंकों के मामले में डिपॉजिट करने वालों) का कुछ पैसा रखने का अधिकार होगा ताकि डूबती हुई कंपनी को बचाया जा सके. इससे ऐसे मामलों में सरकार यानि टैक्सपेयर्स का पैसा लगाने की ज़रूरत शायद खत्म हो जाती. खैर, एफआरडीआई बिल के आलोचकों ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि डिपॉजिटर्स से इस पर सहमति ली जाएगी. इस शर्त पर बीच का रास्ता निकाला जा सकता है, लेकिन इसमें काफी वक्त बर्बाद हो सकता है. अच्छा यही होगा कि इस शर्त को हटाकर एफआरडीआई बिल को लागू किया जाए या वित्तीय संस्थानों पर डिपॉजिटर्स को यह विकल्प देने के लिए दबाव डाला जाए.
  1. द इंडियन फाइनेंशियल कोड (आईएफसी). यह पहला विधेयक है, जो संसद के सामने पेश किए जाने के लिए तैयार है. इस विधेयक का कॉन्सेप्ट मार्च 2013 में फाइनेंशियल सेक्टर लेजिस्लेटिव रिफॉर्म्स कमिशन ने तैयार किया था. यह उम्दा कानून है, जिसके केंद्र में वित्तीय सेवाओं का इस्तेमाल करने वाले आम लोग और रेगुलेशन है. कंज्यूमर्स रेगुलेटरी संस्थाओं के बारे में ज्यादा नहीं सोचते. वैसे भी, इनमें से ज्यादातर को रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को पनाह देने के लिए बनाया गया है. कंज्यूमर्स का ध्यान रिटर्न पर होता है. 2019 बजट में निर्मला जब अलग-अलग एसेट क्लास को लेकर टैक्स ट्रीटमेंट में भेदभाव ख़त्म कर चुकी होंगी तो उसके बाद उन्हें आईएफसी के ज़रिये फाइनेंशियल सेक्टर में लंबी अवधि के रिफॉर्म पर ध्यान देना चाहिए. आज देश में फाइनेंशियल प्रॉडक्ट्स में पैसा लगाने वालों की संख्या बढ़ रही है. इसलिए इस कानून के जरिये राजनीतिक समर्थकों का नया वर्ग तैयार किया जा सकता है और यह दुनिया को भारत का सॉफ्ट एक्सपोर्ट भी हो सकता है.
  2. डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी). वित्त वर्ष 2017-18 में देश में 4.67 करोड़ लोगों और 11 लाख कंपनियों ने इनकम टैक्स चुकाया था. इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग इनकम टैक्स के दायरे से बाहर हैं. इसलिए जीएसटी की तरह डायरेक्ट टैक्स में भी रिफॉर्म करना होगा. यह काम नीतियों में बदलाव और नए कानून के ज़रिये किया जा सकता है. एक तो देश के टैक्स कानून पेचीदा हैं, दूसरी तरफ टैक्स ब्यूरोक्रेसी किसी भी कीमत पर रेवेन्यू बढ़ाने के जुगाड़ में लगी रहती है. ऐसे में डीटीसी के जरिये डायरेक्ट टैक्स सिस्टम को भरोसेमंद बनाया जा सकता है. इससे टैक्सपेयर की कंप्लायंस कॉस्ट में कमी की जा सकती है. सरकार के लिए इसे मैनेज करना आसान बनाया जा सकता है. डीटीसी को लागू करने के साथ सारी टैक्स छूट ख़त्म की जा सकती है. स्पष्ट नियम और रेगुलेशन बनाए जा सकते हैं, जिससे टैक्स चोरी रोकने में मदद मिलेगी. जीएसटी ने जो काम इनडायरेक्ट टैक्स के मामले में किया है, वही काम डीटीसी डायरेक्ट टैक्स के मामले में कर सकता है. इससे जीडीपी के अनुपात में टैक्स बढ़ेगा, जिससे आखिरकार देश की मैक्रो-इकनॉमी मजबूत होगी.
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