Author : Rajeev Jayadevan

Published on Dec 06, 2023 Updated 0 Hours ago

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक ताज़ा अध्ययन ने युवाओं की अचानक मौत में बढ़ोतरी को कोविड-19 वैक्सीन से जोड़ने वाली चर्चित थ्योरी पर विराम लगा दिया है.

युवाओं में अचानक मौत को लेकर ICMR की स्टडी

युवाओं के बीच अचानक मौत की घटनाओं का कारण पता लगाने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने व्यापक स्तर पर एक देशव्यापी अध्ययन किया. ये स्टडी 16 नवंबर 2023 को प्रकाशित की गई है. ICMR के अध्ययन को लेकर ये लेख पहले के उस लेख को आगे बढ़ाते हुए लिखा गया है जिसमें युवाओं की मौत पर ध्यान दिया गया था.

सोशल मीडिया पर अक्सर इस तरह की अचानक मौतों को लेकर बहस होती है. हर घटना के बाद लोकप्रिय काल्पनिक कारणों की फिर से चर्चा होने लगती है. इनमें से अधिकतर में मौत के पीछे कोविड-19 वैक्सीन से संबंध की तरफ इशारा किया जाता है. इसके बाद जो डर और बेचैनी का माहौल बनता है, उसकी वजह से सीधे-सादे लोग ऐसी ख़बरों को एक-दूसरे से साझा करते हैं जो आख़िर में दुष्प्रचार के फैलने में योगदान करता है.

ICMR के अध्ययन को लेकर ये लेख पहले के उस लेख को आगे बढ़ाते हुए लिखा गया है जिसमें युवाओं की मौत पर ध्यान दिया गया था.

विज्ञान में निगरानी से सच्चाई की खोज करना शामिल है. हालांकि, अक्सर किसी एक मामले के आधार पर नतीजे तक पहुंचना संभव नहीं हो पाता है. मिसाल के तौर पर, कोई महिला ये मान सकती है कि उसका गर्भपात इसलिए हुआ क्योंकि उसने अनानास खाया था. ये धारणा उस समय मज़बूत होती है जब वो सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों को इसी तरह की बात कहते हुए सुनती है. सामूहिक तौर पर ये धोखे में बदल जाता है जो कि वास्तव में एक व्यापक रूप से गलत भरोसा है जिसे बिना किसी सवाल के स्वीकार किया जाता है और बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा अंतहीन रूप से प्रचारित किया जाता है.

किस तरह विज्ञान गलत मान्यताओं को नामंज़ूर करता है?

ICMR ने इस तरह की सबसे बड़ी स्टडी की जिसने ख़ास तौर पर 18 और 45 वर्ष की उम्र के बीच के उन लोगों के बारे में अध्ययन किया जिनकी मौत अचानक हुई. इसका मक़सद ये जानना था कि इस उम्र समूह के दूसरे लोगों की तुलना में क्या ये लोग किसी ऐसे रिस्क फैक्टर का सामना कर रहे थे जिसकी वजह से उनकी मौत हुई. इसे केस-कंट्रोल स्टडी कहा जाता है जहां केस का मतलब वो लोग हैं जिनकी अचानक मौत हुई और कंट्रोल वो लोग हैं जिन्हें इस हालात का सामना नहीं करना पड़ा.

केस-कंट्रोल स्टडी क्या है?

केस-कंट्रोल स्टडी एक सामान्य जोखिम की दुर्लभ जटिलताओं पर नज़र डालने का एक आदर्श रिसर्च टूल है जैसे कि सिगरेट पीना और लंग कैंसर. सिगरेट पीने वाले हर व्यक्ति को कैंसर नहीं होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो लंग कैंसर एक सामान्य जोखिम का दुर्लभ नतीजा है. फिर कनेक्शन का अध्ययन कैसे करें? इसका समाधान है लोगों के दो समूहों की तुलना करना जिनमें से एक समूह में लंग कैंसर वाले लोग हों और दूसरे समूह में बिना लंग कैंसर वाले, अतीत में अलग-अलग रिस्क फैक्टर के प्रति जोखिम में किसी अंतर के लिए इन दो समूहों के पीछे के समय पर नज़र डालते हुए.

किसी भी तरह के पक्षपात से परहेज करने के लिए उन्होंने दोनों समूहों में एक समान उम्र के लोगों का इस्तेमाल किया और रिसर्च करने वालों ने कई रिस्क फैक्टर, जिनमें तंबाकू का इस्तेमाल शामिल है, के प्रति जोखिम की तुलना की.

लगभग 100 साल पहले, जब तंबाकू के ख़राब असर के बारे में पता नहीं था, कुछ डॉक्टरों ने पाया कि जो मरीज़ सिगरेट पीते थे उन्हें लंग कैंसर हो रहा था. लेकिन उनके दावे को निहित स्वार्थ वाले लोगों ने ये कहते हुए नकार दिया कि ये सिर्फ़ एक संयोग है. इसलिए केस-कंट्रोल स्टडी की गई जिसमें लंग कैंसर से पीड़ित लोगों के एक बड़े समूह की तुलना ऐसे लोगों से की गई जिन्हें लंग कैंसर नहीं था. किसी भी तरह के पक्षपात से परहेज करने के लिए उन्होंने दोनों समूहों में एक समान उम्र के लोगों का इस्तेमाल किया और रिसर्च करने वालों ने कई रिस्क फैक्टर, जिनमें तंबाकू का इस्तेमाल शामिल है, के प्रति जोखिम की तुलना की. इन अध्ययनों ने इस बात की पुष्टि की कि लंग कैंसर से पीड़ित लोग उन लोगों के मुकाबले आम तौर पर तंबाकू का इस्तेमाल करते थे जिन्हें लंग कैंसर नहीं था. इस तरह नकारने की शुरुआती थ्योरी को ठुकरा दिया गया और ये साबित हुआ कि सिगरेट पीने से फेफड़ों  का कैंसर होता है.

ICMR की स्टडी किस बारे में थी?

इसी तरह ICMR की स्टडी में अचानक मरने वाले 729 लोगों के बारे में जानकारी की तुलना इससे चार गुना ज़्यादा लोगों (2916) से की गई जिन्हें इस हालत से नहीं गुज़रना पड़ा. इसके पीछे सोच ये थी कि क्या कोई ऐसी चीज़ है जिसके जोखिम का सामना इन मरने वाले लोगों को दूसरे लोगों के मुकाबले ज़्यादा करना पड़ा था. विशेष रूप से उन्होंने निम्नलिखित संभावनाओं की पड़ताल की: कोविड-19 वैक्सीनेशन; कोविड-19 की वजह से अस्पताल में भर्ती होने का ब्यौरा; सिगरेट, शराब और ड्रग्स का इस्तेमाल; ज़ोरदार एक्सरसाइज़ और परिवार में अचानक मौत का इतिहास.

इंटरहार्ट स्टडी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत के लोगों में शराब पीने से हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ता है.

इनमें से कुछ मानकों को भारत और दूसरे देशों में किए गए पहले के अध्ययनों की राय के आधार पर शामिल किया गया. उदाहरण के लिए, मेडिकल जर्नल लैंसेट में 2007 में प्रकाशित इंटरहार्ट स्टडी ने बताया कि कई कोरोनरी रिस्क फैक्टर की वजह से दक्षिण एशिया के देशों में कम उम्र में दिल का दौरा पड़ता है. इंटरहार्ट स्टडी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत के लोगों में शराब पीने से हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ता है.

ICMR की स्टडी में क्या पता चला?

ICMR की स्टडी ने पाया कि कोविड-19 वैक्सीनेशन और अचानक मौत के बीच कोई संबंध नहीं है. इसके बदले स्टडी में पता चला कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाई है, उनकी मृत्यु की आशंका उन लोगों की तुलना में कम है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई है.

अध्ययन में पता चला कि बाकी अन्य फैक्टर अचानक मौत से गंभीर तौर पर जुड़े हुए हैं. इनमें शामिल हैं कोविड-19 से ठीक होने पर अस्पताल से डिस्चार्ज होने वाले लोग, मौत से दो दिन पहले ज़ोरदार एक्सरसाइज़ करने वाले लोग, जिन लोगों के परिवार में अचानक मौत का इतिहास रहा है और जो लोग तंबाकू, शराब और ड्रग्स का सेवन करते हैं.

ये अध्ययन आम तौर पर प्रचलित इस थ्योरी को नकारता है कि कोविड-19 टीका इस तरह की मौत के लिए ज़िम्मेदार है. तथ्य यह  है कि युवाओं के बीच अचानक मौत हमेशा होती रही है लेकिन पहले इन मौतों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था जितना हाल में दिया जा रहा है.

हार्ट रिस्क फैक्टर को बढ़ाता है

जब बात कार्डियोवास्कुलर (दिल से जुड़े) रिस्क फैक्टर की आती है तो एक महत्वपूर्ण लेकिन कम ज्ञात तथ्य ये है कि वो जोखिम को बढ़ाते हैं. उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज़ है और वो सिगरेट भी पीता है तो उसमें ऐसे व्यक्ति की तुलना में दिल की बीमारी होने का ख़तरा बहुत ज़्यादा बढ़ता है जो सिगरेट तो पीता है लेकिन उसे डायबिटीज़ नहीं है. इसके अलावा जोखिम और भी ज़्यादा होगा अगर युवा अवस्था में दिल की बीमारी परिवार में किसी दूसरे व्यक्ति को हुई हो. यही वजह है कि डॉक्टर दिल की बीमारी के जोखिम को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव के उपाय की सलाह देते हैं. महामारी के समय से कोविड-19 एक अतिरिक्त रिस्क फैक्टर के तौर पर उभरा है. इसकी मुख्य वजह ये है कि वायरस हमारे खून की धमनियों (ब्लड वेसेल) की आंतरिक परत को प्रभावित करता है. कई अध्ययनों ने बताया है कि कोविड-19 से ठीक होने वाले लोगों में कार्डियोवैस्कुलर  बीमारी का जोखिम ज़्यादा है.

विकसित देशों की रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि जब से महामारी की शुरुआत हुई है, तब से कुल मृत्यु दर ज़्यादा बनी हुई है. इनमें से सभी मौतों को कोविड की वजह से होने वाली मौत नहीं बताया गया है क्योंकि ज़्यादातर मौतें कोविड से उबरने के बाद हुई हैं.

विकसित देशों की रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि जब से महामारी की शुरुआत हुई है, तब से कुल मृत्यु दर ज़्यादा बनी हुई है. इनमें से सभी मौतों को कोविड की वजह से होने वाली मौत नहीं बताया गया है क्योंकि ज़्यादातर मौतें कोविड से उबरने के बाद हुई हैं. ये माना जा सकता है कि ज़्यादा मौतें कम उम्र में कार्डियोवास्कुलर बीमारियों से जुड़ी मृत्यु दर का नतीजा है. ICMR के एक और ताज़ा अध्ययन ने बताया है कि जिन लोगों को कोविड होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आई थी, उनमें एक साल में मृत्यु की दर 6.5 प्रतिशत रही जो ज़्यादा है. अभी जो अध्ययन चल रहे हैं वो इन ज़्यादा मौतों के पीछे के सटीक कारणों का खुलासा करेंगे.

कोविड-19 एक नई बीमारी है जिसके बारे में पहले लोगों को पता नहीं था. ये बीमारी स्वास्थ्य से जुड़े कई तरह के हालात से जुड़ी है जिनमें कार्डियोवास्कुलर बीमारी और स्ट्रोक शामिल हैं. इसका मुख्य कारण खून की धमनियों की नाज़ुक अंदरुनी परत (एंडोथेलियम) का शामिल होना है जो कार्डियोवास्कुलर सिस्टम के कुछ काम-काज को नियंत्रित करती है. वास्कुलर एंडोथेलियम की तुलना बिना ड्राइवर के चलने वाली कार के सेंसर से की जा सकती है जो कार की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं. अगर कुछ सेंसर को नुकसान होता है तो कार हादसे का शिकार हो सकती है.

सबक

वैसे तो सभी अचानक मौतों को रोका नहीं जा सकता है लेकिन स्टडी ने ख़ास कार्डियोवास्कुलर रिस्क फैक्टर पर प्रकाश डाला है. फैमिली हिस्ट्री को छोड़कर इनमें से हर एक रिस्क फैक्टर को बदला जा सकता है. उदाहरण के लिए, स्वस्थ लाइफस्टाइल का पालन करके शारीरिक गतिविधि, मोटापा, तंबाकू और शराब के सेवन में बदलाव लाया जा सकता है. ब्लड प्रेशर, शुगर और LDL कोलेस्ट्रॉल (बैड कोलेस्ट्रॉल) को काबू में रखा जा सकता है. कम उम्र से ही रिस्क के इन फैक्टर पर ज़्यादा ध्यान देना लंबे समय तक कार्डियोवास्कुलर स्वास्थ्य  के लिए आवश्यक है.

इस बात में कोई शक नहीं है कि कसरत और सक्रिय जीवनशैली ज़रूरी हैं लेकिन ये अध्ययन हमें याद दिलाता है कि जब हमारा शरीर कोविड के झटकों से पूरी तरह उबर नहीं पाया है तो उस स्थिति में बहुत ज़्यादा कसरत करने से नुकसान भी हो सकता है. संदेश ये है कि कोविड-19 से उबरने के बाद अपने रूटीन पर लौटने की कोशिश करते समय हमें गौर से अपने शरीर की सुननी चाहिए. फिर से एक्सरसाइज़ शुरू करते समय भरपूर समय लेने में कोई नुकसान नहीं है.

अध्ययन का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष ये है कि जो लोग गंभीर रूप से कोविड-19 से मुकाबला करके उबरे हैं, उन्हें डॉक्टर की मंज़ूरी के बिना बहुत ज़्यादा एक्सरसाइज़ नहीं करनी चाहिए.

इसके अलावा, स्टडी में महत्वपूर्ण रूप से सूचना को आंकने पर ज़ोर दिया गया है और आंख मूंदकर सोशल मीडिया की थ्योरी को स्वीकार करने से सावधान किया गया है, भले ही वो कितने ही ठोस और भावनात्मक तौर पर सम्मोहित करने वाले क्यों लगते हों. सेहत से जुड़े फैसलों के लिए प्रमाण पर आधारित जानकारी पर भरोसा करना सबसे अहम है.


डॉ. राजीव जयदेवन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की कोचिन ब्रांच के पूर्व अध्यक्ष और नेशनल IMA कोविड टास्क फोर्स के सह अध्यक्ष हैं.

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