Published on Sep 27, 2022 Updated 0 Hours ago

अभी भी लगभग आधे भारतीय घरों में खाना बनाने के लिए जैव ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. LPG या उसके समान किसी खाना बनाने के ईंधन की तरफ़ विश्वसनीय बदलाव तभी संभव हो पाएगा जब उस ईंधन पर खर्च करने के लिए लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी.

भारत में घरेलू LPG की उपलब्धता में नया क्या है?

ये लेख व्यापक ऊर्जा निगरानी: भारत और विश्व सीरीज़ का हिस्सा है.


पृष्ठभूमि

2021-22 में LPG (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) का हिस्सा कुल पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में क़रीब 13 प्रतिशत था. लगभग 90 प्रतिशत LPG की खपत घरों में होती है, जबकि 8 प्रतिशत का उपभोग औद्योगिक इस्तेमाल में और 2 प्रतिशत का गाड़ियों में होता है. 60 प्रतिशत से ज़्यादा LPG का आयात किया जाता है और 99 प्रतिशत से ज़्यादा घरेलू उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियों के द्वारा किया जाता है. पिछले 10 वर्षों के दौरान LPG की खपत में 84 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई. 2011-12 के लगभग 15.3 MT (मिलियन टन) की खपत के मुक़ाबले 2021-22 में LPG की खपत बढ़कर 28.3 MT हो गई. LPG की खपत में बढ़ोतरी के पीछे ज़्यादातर योगदान घरेलू और व्यावसायिक संस्थानों का है जो पैकेज्ड LPG का इस्तेमाल करते हैं. 2013-14 से 2021-22 के बीच घरेलू LPG की खपत में 76 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई जबकि व्यावसायिक उपभोग में 108 प्रतिशत से ज़्यादा की वृद्धि हुई. इसी अवधि के दौरान उद्योगों के द्वारा थोक LPG खपत में लगभग 59 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि ऑटोमोबाइल सेक्टर के द्वारा LPG के उपभोग में 37 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी दर्ज की गई. निजी क्षेत्र के द्वारा LPG के प्रत्यक्ष आयात में 83 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी दर्ज की गई जो 4,89,000 टन से घटकर 2021-22 में 82,000 टन हो गया. LPG की खपत में ज़्यादातर बढ़ोतरी सरकार के द्वारा LPG की उपलब्धता बढ़ाने की नीति की वजह से हुई.

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल

LPG की उपलब्धता

70 के दशक में जब भारत की नई रिफाइनरियों ने LPG सिलेंडर के उत्पादन की शुरुआत की थी तो LPG स्टोव ने शहरों में रहने वाले लोगों के घरों में केरोसिन स्टोव की जगह लेना शुरू कर दिया. 1977 में पूरे भारत में सिर्फ़ 32 लाख घरों में LPG कनेक्शन था (यानी 2.5 प्रतिशत घरों में). 1984 में LPG कनेक्शन की संख्या तिगुनी होकर 88 लाख पहुंच गई (यानी 5 प्रतिशत घरों तक) और 1990 में LPG कनेक्शन की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 96 लाख हो गई (यानी 11 प्रतिशत घरों तक). 1977 से 1990 की अवधि के दौरान LPG कनेक्शन में 14 प्रतिशत से ज़्यादा की दर से बढ़ोतरी हुई जो कि बिजली के कनेक्शन की बढ़ोतरी की दर से ज़्यादा थी लेकिन LPG कनेक्शन का शुरुआती आधार बहुत छोटा था. सरकार के द्वारा दी गई सब्सिडी, जो कि एक LPG सिलेंडर की लागत की लगभग आधी थी, इस बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारण था और LPG कनेक्शन ने शहरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के परिवारों को फ़ायदा पहुंचाया. गांवों में रहने वाले परिवारों के द्वारा LPG का इस्तेमाल बहुत कम था क्योंकि कनेक्शन लेने की शुरुआती लागत गांवों के लोगों की आमदनी के मुक़ाबले अपेक्षाकृत ज़्यादा थी. LPG ख़त्म होने के बाद दूसरा सिलेंडर लेने में आने वाली कठिनाई भी ग्रामीण क्षेत्रों में कम इस्तेमाल का एक कारण था क्योंकि LPG के डीलर ज़्यादातर शहरों में होते थे. 80 के दशक और 90 के दशक की शुरुआत में शहरों में भी सबके लिए LPG कनेक्शन लेना मुश्किल था और ज़्यादातर अमीर घरों को ही ये सुविधा मिल पाती थी.

90 के दशक के आख़िर में जब LPG की क़िल्लत दूर हुई तो दक्षिण की कई राज्य सरकारों ने ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले (BPL) परिवालों के लिए सब्सिडी वाले या मुफ़्त LPG कनेक्शन के वितरण की विशेष कार्यक्रमों की शुरुआत की. इन कार्यक्रमों की वजह से दक्षिण के राज्यों में LPG कनेक्शन वाले घरों की संख्या में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी हुई. ये मॉडल राज्य स्तर पर LPG से जुड़े कार्यक्रम चलाने वाली सरकारों के लिए राजनीतिक समर्थन बढ़ाने में सफल साबित हुआ और 2009 में केंद्र सरकार ने भी राजीव गांधी ग्रामीण LPG वितरण (RGGLV) योजना के रूप में इसको अपनाया. राजीव गांधी ग्रामीण LPG वितरण योजना के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में LPG के डीलर की संख्या दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई. एक तरफ़ जहां शहरों में रहने वाले मध्यम वर्ग के परिवारों के द्वारा LPG के इस्तेमाल में बढ़ोतरी एक सकारात्मक घटनाक्रम था, वहीं इसकी वजह से LPG के प्रावधान में ग्राहकवाद की शुरुआत हो गई. ये एक ऐसा मॉडल था जो कि बिजली के मामले में पहले से ही अच्छी तरह स्थापित था. 2016 में मौजूदा सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण LPG वितरण योजना में कुछ छोटे-मोटे बदलाव किए और इसे प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के रूप में फिर से शुरू किया.

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार 2021-22 में देश के 98.8 प्रतिशत घरों में LPG कनेक्शन था. इस आंकड़े को एक ‘अनुमान’ कहा जा सकता है. ये अनुमान देश में कुल घरों और  LPG कनेक्शन की कुल संख्या के आधार पर निकाला गया. LPG कनेक्शन के हर घर में समान रूप से वितरण और कुल घरों की संख्या की धारणा सटीक नहीं है. कई घरों में एक से ज़्यादा LPG कनेक्शन हैं और उनमें से कई का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाता है. भारत में कुल घरों की संख्या 2011 की जनगणना के आंकड़े का निष्कर्ष है. कुल घरों की संख्या को समायोजित करके LPG की उपलब्धता वाले घरों के आंकड़े तक पहुंचा जा सकता है. घरेलू स्तर के सर्वे ज़्यादा सटीक आंकड़े मुहैया कराते हैं और इनसे पता चलता है कि LPG की उपलब्धता उतने घरों में नहीं है जितना कि बताया जा रहा है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा कराए गए पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2019-2021 (NFHS-5) के अनुसार 88.6 प्रतिशत शहरी घरों में LPG या पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) का इस्तेमाल खाना बनाने के प्राथमिक ईंधन के तौर पर होता है जबकि सिर्फ़ 42 प्रतिशत ग्रामीण घरों में LPG या प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल किया जाता है. कुल मिलाकर केवल 56.2 प्रतिशत जनसंख्या ने LPG या PNG का इस्तेमाल खाना बनाने के प्राथमिक ईंधन के तौर पर किया. 8.9 प्रतिशत शहरी घरों में लकड़ी, भूसा, झाड़ी, घास, फसल के अवशेष, गोबर और अन्य सामग्रियों (ठोस ईंधन) का इस्तेमाल खाना बनाने के प्राथमिक ईंधन के तौर पर किया जाता है जबकि 54.6 प्रतिशत ग्रामीण घरों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल खाना बनाने के ईंधन के तौर पर किया जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी भारत के 43.3 प्रतिशत घरों में ठोस जैव ईंधन का इस्तेमाल खाना बनाने के प्राथमिक ईंधन के तौर पर किया जाता है.

मुद्दे

2012 में सब्सिडी के बाद 14.2 किलोग्राम के LPG सिलेंडर की ख़ुदरा क़ीमत लगभग 410 रुपये थी. 2022 में भारत के ज़्यादातर राज्यों में LPG सिलेंडर की ख़ुदरा क़ीमत 1,000 रुपये प्रति सिलेंडर है क्योंकि सब्सिडी चरणबद्ध ढंग से ख़त्म कर दी गई है. ज़्यादा क़ीमत की वजह से गांवों में ग़रीब लोगों के घरों में LPG को अपनाने की रफ़्तार और खाना बनाने के प्राथमिक ईंधन के रूप में इसका इस्तेमाल कम होने की आशंका है. भारत में LPG जैसी सार्वजनिक भलाई की चीज़ को मुहैया कराने को लेकर नौकरशाही की प्रणाली ग़रीबों के ख़िलाफ़ है. इस प्रणाली की वजह से राजनेताओं के लिए एक अवसर मिलता है कि वो LPG कनेक्शन जैसी चीज़ मुहैया कराकर लोगों का वोट हासिल करें. राजनीतिक अर्थशास्त्रियों के अध्ययन से पता चला है कि आर्थिक सुधारों ने लाइसेंस और परमिट के ज़रिए राजनीतिक लाभ लेने के अवसरों को कम कर दिया है लेकिन इसकी जगह ग़रीबों को सार्वजनिक संसाधनों के वितरण (बिजली और LPG जैसे ऊर्जा के स्रोत) ने ले ली है जिनके माध्यम से बड़े पैमाने पर वोटरों को प्रभावित किया जाता है.

भारत में LPG जैसी सार्वजनिक भलाई की चीज़ को मुहैया कराने को लेकर नौकरशाही की प्रणाली ग़रीबों के ख़िलाफ़ है. इस प्रणाली की वजह से राजनेताओं के लिए एक अवसर मिलता है कि वो LPG कनेक्शन जैसी चीज़ मुहैया कराकर लोगों का वोट हासिल करें.

पिछले दो दशकों में राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव के दौरान शायद ही कभी आर्थिक या सामाजिक नीतियों के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की हो लेकिन संभावित समर्थकों को निजी लाभ जैसे कि LPG कनेक्शन पहुंचाने के लिए सरकारी संसाधनों के इस्तेमाल के वादे के आधार पर प्रतिस्पर्धा ज़रूर की है. शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी व्यापक सेवा, जिसकी उपलब्धता एक साथ ज़्यादा लोगों के पास रहेगी, प्रदान करने के मुक़ाबले सार्वजनिक भलाई की चीज़ें जैसे कि LPG कनेक्शन का वितरण किसी व्यक्ति (मतदाता) का वोट सुरक्षित करने का ज़्यादा निश्चित तरीक़ा है. चुनाव जीतने के अल्पकालिक लक्ष्य के साथ ग़रीबों के घरों तक LPG सिलेंडर का वितरण दीर्घकाल में LPG की उपलब्धता के कार्यक्रम की कमज़ोरी के बारे में आंशिक रूप से बताता है. संस्थागत उत्तरदायित्व में अस्पष्टता और कार्यक्रमों के लिए ज़रूरत से कम फंड की वजह से LPG सिलेंडर लोगों तक पहुंचाने में कमी (विशेष रूप से चुनाव के बाद खाली सिलेंडर की जगह भरा हुआ सिलेंडर) एक-के-बाद-एक चुनावों में बार-बार योजनाओं को फिर से शुरू करने का कारण बनती है. LPG की उपलब्धता से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में न्यायसंगत वितरण और सामाजिक न्याय जैसे नारे भारत में सत्ताधारी दलों के लिए सामाजिक वैधता प्रदान करते हैं. इस तरह के कार्यक्रमों की अधूरी रूप-रेखा बाज़ार समर्थक, नव-उदारवादी हिस्सेदारों को ये भरोसा देती है कि ये कोशिश नाकाम होने की उम्मीद है या फिर अंतत: इसका ज़्यादा असर नहीं होगा और इसके कारण उम्मीद से कम सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी होगी. LPG की उपलब्धता से जुड़े कार्यक्रम के ज़रिए सामाजिक बदलाव के बड़े दावे भारत में जटिल सामाजिक और लैंगिक चुनौतियों को अधिक आसान भी बनाते हैं. जैव ईंधन से LPG या उसके समान किसी खाना बनाने के ईंधन की तरफ़ भरोसेमंद बदलाव तभी होगा जब उस ईंधन पर खर्च करने के लिए लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी.

स्रोत: पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल
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Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

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Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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