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रूस जिस तरह संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के पैनल को ख़त्म करता जा रहा है, उससे यूएन के प्रतिबंध लगाने की शक्ति पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इसका नकारात्मक असर ज़मीनी स्तर पर इन प्रतिबंधों के क्रियान्वयन की निगरानी पर पड़ेगा.
उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाने की कोशिशों को 28 मार्च को बड़ा झटका लगा. रूस ने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के पैनल के नवीनीकरण के प्रस्ताव को वीटो कर दिया. ये पैनल डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK)पर प्रतिबंध की निगरानी करता था. रूस का ये वीटो विशेषज्ञों के पैनल के कामकाज पर बुरा असर डालेगा. यही पैनल इस बात की निगरानी करता था कि संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसका ज़मीनी स्तर पर कितने सही तरीके से क्रियान्वयन हो रहा है. रूस के इस तरह के वीटो करने को एक व्यापक प्रवृत्ति के तौर पर देखा जा रहा है. इससे पहले रूस ने सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (CAR) और माली पर बने विशेषज्ञों के पैनल के मामले में भी इसी तरह वीटो का इस्तेमाल किया था. उत्तर कोरिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और माली पर विशेषज्ञों के पैनल को इस तरह वीटो करने के रूस के रुझान को समझना है तो ये जानना ज़रूरी है कि इन सारे पैनलों पर रूस के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपाती रहने के आरोप लगते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के इन पैनलों द्वारा की जाने वाली जांच का रूस हमेशा से आलोचक रहा है. यही वजह है कि रूस या तो इन पैनलों में विशेषज्ञों का नियुक्ति में देरी करता है या इन पैनलों को पूरी तरह बंद कर देता है.
उत्तर कोरिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और माली के मामले में विशेषज्ञों के पैनल ने रूस की भूमिका पर सवाल उठाए थे और ये कहा था कि रूस ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन किया.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)ने इन प्रतिबंध समितियों का गठन किया है. ये समितियां ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए ज़िम्मेदार होती हैं. इन समितियों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य देश शामिल होते हैं. इसलिए UNSC में जो राजनयिक प्रोटोकॉल और शक्तिशाली देशों के बीच के विवाद होते हैं, उनका असर इन समितियों में भी दिखता है. चूंकि ये समितियां एक प्रशासनिक इकाई के तौर पर काम करती हैं, इसलिए इनकी मदद के लिए विशेषज्ञों का पैनल बनाया जाता है. इनका काम उन देशों में जाकर ये देखना होता है कि जो प्रतिबंध उन पर लगाए गए हैं, उनका ठीक से पालन हो रहा है या नहीं. ये पैनल इस लिहाज़ से अनूठे होते हैं कि इसमें देशों द्वारा नियुक्त राजनयिक नहीं बल्कि हथियार, वित्त और सशस्त्र समूह जैसों क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं. इसका फ़ायदा ये होता है कि विशेषज्ञों का पैनल जो रिपोर्ट बनाता है, वो राजनयिक शिष्टाचार से मुक्त होती है और अगर कोई भी देश या संगठन प्रतिबंध का उल्लंघन करती है तो ये खुलकर उसकी आलोचना करते हैं. उत्तर कोरिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और माली के मामले में विशेषज्ञों के पैनल ने रूस की भूमिका पर सवाल उठाए थे और ये कहा था कि रूस ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन किया.
इस पैनल ने मई 2023 में मध्य अफ्रीकन गणराज्य पर प्रतिबंध को लेकर अपनी रिपोर्ट यूएन को सौंपी. इस रिपोर्ट में रूस की आलोचना की गई थी और ये कहा था कि वहां 2 विमान थे, जिनका इस्तेमाल सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक की सेना ने किया है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा करने के लिए यूएन से मंजूरी लेनी ज़रूरी थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया. रिपोर्ट में दावा किया गया कि इन दो में से एक विमान पहले रूस की एक कंपनी का था. बाद में मध्य अफ्रीकन गणराज्य की सेना ने रूसी प्रशिक्षकों की देखरेख में इस विमान का इस्तेमाल अपनी गतिविधियों के लिए किया. ये बात सभी जानते हैं कि रूस के मध्य अफ्रीकन गणराज्य की मौज़ूदा सरकार से अच्छे संबंध हैं. कहा जा रहा है कि अमेरिका ही उसे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की अनदेखी करने में मदद कर रहा है. पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने के नाते मिले वीटो के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए सीएआर पर विशेषज्ञों के पैनल की नियुक्ति पर छह महीने की रोक लगा दी. इसके लिए रूस ने ये तर्क दिया कि ये पैनल स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं है. वो रूस के प्रति पक्षपात रखता है. रूस की ये कार्रवाई उसके भू-राजनीतिक उद्देश्यों को भी पूरा करती है. रूस सार्वजनिक रूप से ये कह चुका है कि वो सेंट्रल अफ्रीकन गणराज्य पर लगे हथियारों की खरीद के साथ-साथ दूसरे प्रतिबंधों को भी हटाने का पक्षधर है. रूस की इस बात का चीन भी समर्थन कर रहा है. यहां इस बात का उल्लेख करना ज़रूरी है कि अफ्रीकी के जितने भी देशों में रूस समर्थित वैगनर समूह काम करता है, उनमें से वैगनर समूह का सबसे व्यापक नेटवर्क सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में ही है. रूस ने दिसंबर 2023 में इस पैनल में सदस्यों की नियुक्ति पर लगाई रोक हटाई है लेकिन अब इस पैनल के पास अपनी रिपोर्ट तैयार करने और सौंपने के लिए जुलाई 2024 तक का ही वक्त है. जुलाई 2024 के बाद संयुक्त राष्ट्र ये तय करेगा कि सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक पर प्रतिबंध जारी रखे जाएं या नहीं. रूस और चीन प्रतिबंध की अवधि बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं.
जहां तक माली की बात है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उस पर 2017 में प्रतिबंध लगाए थे. ये प्रतिबंध 2023 में ख़त्म हो गए, जब रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया. रूस ने प्रतिबंध समिति के विशेषज्ञों के पैनल को भी ख़त्म कर दिया. इस मामले में भी रूस ने यही दलील दी कि ये पैनल पक्षपाती है और स्वतंत्र नहीं है. रूस ने ये फैसला तब किया जब माली पर बने विशेषज्ञों के पैनल ने ये रिपोर्ट दी थी कि वैगनर ग्रुप और माली की सेना संघर्ष वाले इलाकों में यौन हिंसा में शामिल है. रूस ने पैनल पर खुलकर हमला करते हुए इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे और कहा था कि ये "विदेशी प्रभाव" में काम कर रही है. माली में रूस के बहुत हित हैं. यहां ऐसे कई अहम खनिज और दूसरे प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनका रूस दोहन करना चाहता है. ज़ाहिर सी बात है कि माली के मामले में रूस ने वीटो पावर का इस्तेमाल अपने हितों को पूरा करने के लिए किया.
रूस के हमले का सबसे नया शिकार उत्तर कोरिया पर विशेषज्ञों का पैनल बना. इस पैनल ने यूएन को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें काफी विस्तार से दो व्यापारिक पानी के जहाजों (MV), एमवी अंगारा और एमवी मारिया के बारे में बताया गया था.
रूस के हमले का सबसे नया शिकार उत्तर कोरिया पर विशेषज्ञों का पैनल बना. इस पैनल ने यूएन को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें काफी विस्तार से दो व्यापारिक पानी के जहाजों (MV), एमवी अंगारा और एमवी मारिया के बारे में बताया गया था. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इन जहाजों के ज़रिए बीस-बीस फीट के सैंकड़ों कंटेनर उत्तर कोरिया के राजिन बंदरगाह से रूस के ड्यूने बंदरगाह में गए हैं. हालांकि इस बात को साबित करने के लिए रिपोर्ट में कोई ठोस सबूत नहीं दिए गए हैं कि जो जहाज उत्तर कोरिया से रूस गया था, उसमें हथियार थे. लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इस बात के लिए रूस की आलोचना शुरू कर दी कि उसने संयुक्त राष्ट्र की तरफ से उत्तर कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन किया है. इसके साथ ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि रूस ने उत्तर कोरिया में प्रतिबंधों की निगरानी करने वाले विशेषज्ञों को काम करने से रोका. रूस ने भी पैनल पर आरोप लगाया कि वो पश्चिमी देशों के हाथ में खेल रहा है. वो ठोस सबूत पेश करने की बजाए पक्षपाती सूचनाओं को दोबारा प्रकाशित कर रहा है. और खराब क्वालिटी की तस्वीरों के साथ अखबारों की हेडलाइन का विश्लेषण कर रहा है.
शक नहीं कि इस पूरे विवाद में भू-राजनीति की भूमिका है, लेकिन रूस की इस बात को भी सिरे से ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता है कि उस पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, उसके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं दिए गए हैं.
विशेषज्ञों का पैनल काम करे या ख़त्म हो जाए, इससे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध शासन पर कोई ज़्यादा असर नहीं पड़ता. प्रतिबंध समिति काम करती है, जब तक कि उसे ख़ास तौर पर वीटो ना कर दिया जाए, जैसा कि हमने माली के मामले में देखा. ऐसे में उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंध जारी रहेंगे, भले ही इन प्रतिबंधों की निगरानी करने वाला पैनल काम नहीं कर रहा है. हालांकि अतीत में कई प्रतिबंध समितियां बिना एक्सपर्ट पैनल के भी काम करते रहे क्योंकि निगरानी के लिए इस तरह के पैनल का इस्तेमाल 1990 के दशक के बाद ही शुरू हुआ. फिर भी ये कहा जा सकता है कि उत्तर कोरिया में प्रतिबंध के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए बने एक्सपर्ट पैनल को जिस तरह ख़त्म किया गया, उसने एक ग़लत मिसाल पेश की है. भविष्य में माली और सेंट्रल अफ्रीकन गणराज्य के मामले में भी ऐसा हो सकता है. इन पैनलों को जिस तरह बार-बार ख़त्म किया जा रहा है, उससे लगता है कि रशिया-यूक्रेन भू-राजनीतिक तनाव का असर मध्य अफ्रीकन गणराज्य, माली और उत्तर कोरिया तक फैल गया है. इसमें कोई शक नहीं कि इस पूरे विवाद में भू-राजनीति की भूमिका है, लेकिन रूस की इस बात को भी सिरे से ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता है कि उस पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, उसके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं दिए गए हैं. उत्तर कोरिया वाले मामले में ये बात ज्यादा सही भी लगती है. पैनल ने ऐसे कोई विस्तृत सबूत नहीं दिए जिससे ये साबित हो कि उत्तर कोरिया से जो कार्गो शिप रूस गया गया, उसमें हथियार थे. एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था, जहां महाशक्तियों और उभरती ताकतों के बीच कड़ा मुकाबला चल रहा है, वहां संयुक्त राष्ट्र के पैनलों द्वारा कोई भी बात सिर्फ अनुमान के आधार पर कह देना ठीक नहीं है. इससे संयुक्त राष्ट्र की निष्पक्षता पर भी सवाल उठेंगे. हालांकि इन पैनलों पर इस तरह के आरोप लगते रहेंगे लेकिन अगर विशेषज्ञों की नियुक्ति में पारदर्शिता का ख्याल रखा जाएगा. सबूतों को जुटाने में बेहतरीन मानदंडों का पालन किया जाएगा तो इससे पैनल की निष्पक्षता बढ़ेगी. निकट भविष्य में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. इससे यह साफ है कि चीन के साथ मिलकर रूस इन विशेषज्ञ समितियों और प्रतिबंध के शासन को कमज़ोर करता रहेगा. जुलाई 2024 में उस प्रतिबंध को भी ख़त्म करने की कोशिश की जाएगी, जो अभी सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक पर लगे हैं.
अंगद सिंह बरार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं
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Angad Singh Brar was a Research Assistant at Observer Research Foundation, New Delhi. His research focuses on issues of global governance, multilateralism, India’s engagement of ...
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