Author : Nilanjan Ghosh

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

अर्थव्यवस्था पर मुक्त व्यापार समझौतों के असर और इनसे बदलने वाले भू-राजनीतिक समीकरणों को समझने के लिए ऐसे समझौतों का विश्लेषण करने की ज़रूरत और बढ़ती जा रही है.

The India-UAE CEPA: मुक्त व्यापार समझौतों में भारत की दोबारा बढ़ती दिलचस्पी
The India-UAE CEPA: मुक्त व्यापार समझौतों में भारत की दोबारा बढ़ती दिलचस्पी

18 फ़रवरी 2022 को भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी के समझौते पर दस्तख़त किए गए. माना जा रहा है कि इस समझौते से दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए कई नए अवसर खुलेंगे. इस व्यापार समझौते का मक़सद, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा 60 अरब डॉलर सालाना से बढ़ाकर अगले पांच वर्षों में 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके साथ ही साथ दोनों देशों के बीच सेवाओं का व्यापार 15 अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य भी समझौते के तहत तय किया गया है. वाणिज्य मंत्रालय के दावे ये कहते हैं कि इस समझौते से भारत के कपड़ा, दवा, जवाहरात, गहनों और  प्लास्टिक के उत्पादों, ऑटो और चमड़ा, प्रोसेस्ड कृषि और डेयरी उत्पादों, हस्तशिल्प, फर्नीचर, खाद्य और पेय पदार्थों, इंजीनियरिंग जैसे ज़्यादा श्रम वाले उद्योगों में 10 लाख नए रोज़गार पैदा होंगे. माना जा रहा है कि भारत से संयुक्त अरब अमीरात को होने वाले निर्यात पर व्यापार कर को मौजूदा 90 प्रतिशत से बढ़ाकर शून्य के स्तर पर लाया जाएगा. वैसे तो इसका मतलब है व्यापार के 80 फ़ीसद मामलों में टैक्स कम होगा. लेकिन, इस सूची में 97 फ़ीसद वो भारतीय उत्पाद होंगे, जो अभी तक व्यापार कर के बोझ तले दबे हैं.

भारत के ऐसे मुक्त व्यापार समझौते करने की दो बड़ी वजहें हैं. एक तो अंतरराष्ट्रीय और दूसरी घरेलू राजनीति. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को संबंधित देश से वार्ता करनी पड़ रही है. वहीं, घरेलू स्तर पर भारत को अलग-अलग दावेदारों से भी निपटना पड़ रहा है.

इस समझौते से संयुक्त अरब अमीरात को भी कई फ़ायदे होंगे. संयुक्त अरब अमीरात से भारत को निर्यात किए जाने वाले 65 फ़ीसद उत्पादों पर टैक्स कम होगा. अगले दस वर्षों में ऐसे उत्पादों की संख्या 90 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रस्ताव है. संयुक्त अरब अमीरात से 200 टन सोने के आयात पर भी कम व्यापार कर लगेगा. अन्य व्यापारिक साझेदारों की तुलना में भारत द्वारा आयात किए जाने वाले सोने पर एक फ़ीसद कम व्यापार कर लगेगा. इस समझौते से ‘होने वाले फ़ायदों’ को तो आसानी से समझा जा सकता है. लेकिन, उम्मीद यही है कि संयुक्त अरब अमीरात में काम करने वाले भारतीय और ज़्यादा रक़म स्वदेश भेज पाएंगे. क्योंकि, इस समझौते के तहत सेवाओं और मानव पूंजी की आवाजाही में और आसानी हो जाएगी.

द्विपक्षीय राजनीतिक रिश्तों की नज़र से देखें, तो इस समझौते के कई और अहम पहलू भी नज़र आते हैं. भारत की मौजूदा सरकार द्वारा किया गया ये महज़ दूसरा द्विपक्षीय व्यापार समझौता है. पहला समझौता फ़रवरी 2021 में मॉरीशस के साथ किया गया था. हाल ही में भारत ने ख़ुद को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी  (RCEP) से अलग कर लिया था. भारत के इस क़दम की काफ़ी आलोचना हुई थी. भारत के बाहर कई ऐसे लोग थे, जिनका ये मानना था कि ख़ुद को RCEP जैसे विशाल व्यापारिक समझौते से अलग करके भारत ने अपना भारी नुक़सान कर लिया था. हालांकि इस समझौते को लेकर ये भी तर्क दिया गया था कि भारत, आसियान देशों और ऑस्ट्रेलिया से कई क्षेत्रों में मिलने वाली चुनौती से निपटने के लिए तैयार नहीं था. वैसे, भारत के इस समझौते से ख़ुद को दूर करने की एक वजह भू-राजनीतिक या भू-सामरिक भी थी और वो इसलिए थी क्योंकि चीन भी इस व्यापारिक समझौते का एक हिस्सा था.

सच तो ये है कि इन मुक्त व्यापार समझौतों से ग्राहकों को फ़ायदा हुआ है. पिछले एक दशक के दौरान भारत में पाम ऑयल की खपत बढ़ने की सटीक वजह यही रही है कि इसके दाम बहुत कम हैं और इससे ग्राहकों को फ़ायदा पहुंचा है.

ख़ुद को इस व्यापारिक समझौते से अलग करने के बाद भारत कई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते करने की कोशिश कर रहा है. मॉरीशस के साथ व्यापारिक आर्थिक सहयोग और साझेदारी के समझौते (CECPA) और भारत- संयुक्त अरब अमीरात व्यापारिक संधि (CEPA) के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते प्रक्रिया के अंतिम दौर में हैं. इसके अलावा यूरोपीय संघ और इज़राइल के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने को लेकर भी गंभीर वार्ताएं चल रही हैं. आख़िर इन द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों में अचानक भारत की बढ़ी दिलचस्पी के पीछे वजह क्या है? क्या भारत सिर्फ़ आर्थिक फ़ायदे के लिए ये मुक्त व्यापार समझौते (FTA) कर रहा है और वो इन समझौतों से होने वाले नुक़सान समेत एक व्यापक नज़रिए से इनकी समीक्षा नहीं कर रहा है? यहां पर हमें ये समझना होगा कि भारत के ऐसे मुक्त व्यापार समझौते करने की दो बड़ी वजहें हैं. एक तो अंतरराष्ट्रीय और दूसरी घरेलू राजनीति. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को संबंधित देश से वार्ता करनी पड़ रही है. वहीं, घरेलू स्तर पर भारत को अलग-अलग दावेदारों से भी निपटना पड़ रहा है.

वेल्यू चेन पर असर के नज़रिए से मुक्त व्यापार समझौतों का मूल्यांकन

अगर हम मुक्त व्यापार समझौते के घरेलू पहलू पर नज़र डालें, तो ये पता चलता है कि कुछ लोगों को इनसे फ़ायदा होता है, तो कुछ को नुक़सान भी उठाना पड़ता है. ये अलग-अलग क्षेत्रों में भी होता है और वैल्यू चेन की अलग-अलग कड़ियों के हिसाब से भी बदलता रहता है. अगर किसी मुक्त व्यापार समझौते से कोई सामान स्वेदेश में बनाने के बजाय बाहर से आयात करना सस्ता पड़ता है, तो इससे कोई भी संगठन कम लागत में ‘उत्पादन को ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा सकता है’. हालांकि किसी तैयार माल को बाहर से आयात करने के बारे में ये बात सही नहीं साबित होती. क्योंकि, इससे घरेलू स्तर पर बनने वाले सामान को सीधे तौर पर विदेशी सामान से मुक़ाबला करना होगा.

कई मामलों में- ख़ास तौर से दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ- व्यापार समझौते करने के बाद, जब ये संधियां लागू हुईं तो भारत का व्यापार घाटा और बढ़ गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आयातित माल की मांग बढ़ गई. वहीं, व्यापार कर की दीवारें ढहने से स्वदेश में बने सामान की तुलना में दूसरे देशों से मंगाए जाने वाले वही सामान भारतीय ग्राहकों के लिए सस्ते हो गए. ये बात पाम ऑयल के मामले में बिल्कुल सही है. वर्ष 2014-15 में व्यापार कर कम होने के चलते मलेशिया और इंडोनेशिया से पाम ऑयल के उत्पादों की बाढ़ सी आ गई. ये आरोप भी लगता है कि मलेशिया से आयातित पाम के दबदबे और दक्षिण अमेरिका से मंगाए जाने वाले सोया ऑयल के सस्ता होने के कारण, इन्हें भारत में ही प्रोसेस करने की लागत बढ़ गई. मुनाफ़ा कम हो गया. इससे तेल प्रोसेस करने के घरेलू उद्योग के अस्तित्व के लिए ही ख़तरा पैदा हो गया.

तेज़ी से हो रहे मुक्त व्यापार समझौतों पर दस्तख़त के दौरान इन समझौतों के प्रभाव का अधिक व्यापक विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है. इसमें वैल्यू चेन के विश्लेषण के ज़रिए अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के असर और इनके भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन शामिल है.

इन सभी चुनौतियों के बावजूद, सच तो ये है कि इन मुक्त व्यापार समझौतों से ग्राहकों को फ़ायदा हुआ है. पिछले एक दशक के दौरान भारत में पाम ऑयल की खपत बढ़ने की सटीक वजह यही रही है कि इसके दाम बहुत कम हैं और इससे ग्राहकों को फ़ायदा पहुंचा है. बड़ी तादाद में सस्ते आयात से ग्राहकों के सामने विकल्पों की भरमार हो गई है. घरेलू उद्योगों के लगातार दबाव डालने के कारण पिछले दशक के मध्य के दौरान सरकार ने कच्चे और परिष्कृत खाद्य तेलों पर व्यापार कर बढ़ा दिया है. उत्पादों की वैल्यू चेन पर इन मुक्त व्यापार समझौतों के असर का मूल्यांकन ओआरएफ के एक प्रकाशन ने समीक्षा के ढांचे के तहत पहले ही किया जा चुका है. हालात के विश्लेषण के ऐसे ढांचे की मदद से हम किसी समझौते को लागू करने से पहले और उसके बाद के हालात का विश्लेषण आसानी से कर सकते हैं.

हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच हुए व्यापक आर्थिक साझीदारी के समझौते और भविष्य में होने वाले मुक्त व्यापार समझौतों के संदर्भ में अगर हम कुछ तयशुदा उत्पादों (जैसे कि वाइन, डेयरी उत्पाद, ऑस्ट्रेलिया भारत मुक्त व्यापार समझौता) का विश्लेषण करें तो ये बहुत उपयोगी हो सकते हैं. इनसे ये पता चल सकता है कि ऐसे व्यापार समझौते का बाज़ार के ग्राहकों, ख़ुदरा विक्रेताओं, बिचौलियों, प्रॉसेसिंग की इकाइयों और मूल उत्पादकों पर समझौते का क्या असर होगा. आम तौर पर मुक्त व्यापार समझौतों का मूल्यांकन व्यापार के सरप्लस या घाटे के व्यापक आर्थिक नज़रिए से किया जाता है. ये इन समझौतों को देखने का संकुचित नज़रिया है. लेकिन, अगर हम ऊपर ज़िक्र किए गए तरीक़े से ऐसे समझौतों के व्यापक असर का मूल्यांकन करते हैं, तो हमें इस बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने में मदद मिलती है.

मुक्त व्यापार समझौतों से होने वाले भू-सामरिक और भू-आर्थिक फ़ायदे

मुक्त व्यापार समझौतों का मूल्यांकन भू-सामरिक नज़रिए से भी किया जाना चाहिए. भारत द्वारा ख़ुद को RCEP से अलग किए जाने के फ़ैसले को अपने बाज़ार का ‘संरक्षण’ करने और ‘रूढ़िवादी’ कहा गया था. हालांकि, बहुत से लोग इस बड़े व्यापार समझौते को लेकर चिंतित भी थे, क्योंकि इसमें चीन भी शामिल है. इसी वजह से भारत द्वारा अपने मित्र देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने से उसे अपने रुढ़िवादी और संरक्षणवादी होने की छवि से आख़िरकार छुटकारा मिलता है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में व्यापार और निवेश के नज़रिए से देखें तो ऐसे समझौतों के गहरे भू-आर्थिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच हुए व्यापक आर्थिक साझीदारी के समझौते से पश्चिमी क्वाड (जिसमें भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका शामिल हैं) को भी मज़बूती मिलती है. इस क्षेत्रीय ताक़त का गठन पिछले साल अक्टूबर में ही हुआ था. पश्चिमी क्वाड और भारत-संयुक्त अमीरात के बीच व्यापर समझौते को हम संयुक्त अरब अमीरात की महामारी के दौर से उबरने की योजना के हिस्से के तौर पर देख सकते हैं. जिसके तहत एक तरफ़ तो वो भूमध्य सागर तट से तुर्की तक और दूसरी तरफ़ भारत और पूरे दक्षिण एशिया के विशाल बाज़ार का लाभ उठाने की कोशिश में जुटा है. इससे भारत को भी पश्चिमी पड़ोसियों के साथ क़रीबी संबंध विकसित करने का मौक़ा मिलता है. इस तरह से भारत ऐसे व्यापारिक समझौते कर सकता है, जिसमें चीन शामिल नहीं है. इसके अलावा भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए व्यापार समझौते को हम भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में बढ़ा एक क़दम भी कह सकते हैं. इसके भू-आर्थिक और भू-सामरिक नतीजे देखने को मिल सकते हैं. इसी तरह से मुक्त व्यापार समझौते अब ऑस्ट्रेलिया और अन्य मित्र देशों के साथ आर्थिक कूटनीति का एक बड़ा माध्यम बनकर भी उभर रहे हैं.

निष्कर्ष

इसलिए, तेज़ी से हो रहे मुक्त व्यापार समझौतों पर दस्तख़त के दौरान इन समझौतों के प्रभाव का अधिक व्यापक विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है. इसमें वैल्यू चेन के विश्लेषण के ज़रिए अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के असर और इनके भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन शामिल है. समझौते से पहले या बाद में अगर वैल्यू चेन पर असर का विश्लेषण किया जाता है, तो इससे दो तरह के फ़ायदे होते हैं. पहला तो ये कि इससे मंत्रालय और नीति निर्माताओं को पता चलता है कि उत्पाद की मूल्य आधारित श्रृंखला के तमाम भागीदारों के नफ़ा-नुक़सान पर समझौते का क्या असर पड़ेगा, और इससे ये भी पता चलेगा कि इस श्रृंखला में मोटे तौर पर बढ़त होगी या कमी आएगी. इन मूल्यांकनों को आधार बनाकर समझौते करने से पहले एक बड़ा नज़रिया क़ायम करने में मदद मिलेगी, न कि सिर्फ़ व्यापार घाटे और मुनाफ़े के आधार पर समझौता किया जाएगा. दूसरी बात, इस तरह से मूल्यांकन करने पर नीति निर्माताओं को समझौते से जुड़े तमाम भागीदारों को होने वाले नुक़सान के बारे में जानकारी होने पर इनमें से कुछ की वार्ता के दौरान भरपाई करने में मदद मिलेगी. मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति भारत की एक दशक लंबी आशंकाओं की बड़ी वजह ये भी रही है कि भारत मुक्त व्यापार समझौतों के बाज़ार तक पहुंच बनाने, क्षेत्रीय और वैश्विक उत्पादन नेटवर्क के साथ एकीकरण और व्यापार घाटों से उबरने में मदद की दर की कामयाबी / नाकामी का निष्कर्ष नहीं निकाल पाया. इस लेख के ज़रिए मुक्त व्यापार समझौतों की कामयाबी का मूल्यांकन करने के दो और पैमाने उपलब्ध कराता है.

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