Author : Shoba Suri

Expert Speak India Matters
Published on Mar 13, 2024 Updated 0 Hours ago

लैंगिक सशक्तिकरण और खाद्य सुरक्षा एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं. सतत् विकास लक्ष्यों के लिए इस संबंध का गंभीर अर्थ है. 

भोजन सुरक्षा और लैंगिक समानता के लिए पोषण संबंधी सामर्थ्य का इस्तेमाल!

ये लेख अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस सीरीज़ का हिस्सा है.


ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार दुनिया भर में लगभग 82.8 करोड़ लोगों ने 2021 में भुखमरी का सामना किया. लगभग 2.3 अरब लोगों, जो कि दुनिया की कुल आबादी का 29.3 प्रतिशत हिस्सा है, ने 2021 में सामान्य से लेकर गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना किया. महामारी से पहले की तुलना में खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों में 35 करोड़ की बढ़ोतरी हुई हैं. करीब 92.4 करोड़ लोगों, जो कि दुनिया की कुल आबादी का 11.7 प्रतिशत हिस्सा है, ने खाद्य असुरक्षा के गंभीर स्तर का सामना किया जो कि दो साल पहले की तुलना में 20.7 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी है. अपने अलग-अलग रूपों में कुपोषण दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है. पांच साल से कम उम्र के लगभग 4.5 करोड़ बच्चे वेस्टिंग (कमज़ोरी) से प्रभावित हैं जबकि महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की लगातार कमी की वजह से 14.81 करोड़ बच्चों का विकास रुक गया है. इसके अलावा पांच साल से कम उम्र के 3.9 करोड़ बच्चे बहुत ज़्यादा वज़न वाले (ओवरवेट) हैं. ज़ीरो हंगर (बिना भुखमरी वाली दुनिया) के लक्ष्य को हासिल करने की तरफ दुनिया की प्रगति लड़खड़ाती दिख रही है और अगर मौजूदा रुझान बने रहते हैं तो युद्ध, जलवायु के उतार-चढ़ाव, मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स) और महामारी की वजह से भूख का सामना करने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है. 

अपने अलग-अलग रूपों में कुपोषण दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है. पांच साल से कम उम्र के लगभग 4.5 करोड़ बच्चे वेस्टिंग (कमज़ोरी) से प्रभावित हैं जबकि महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की लगातार कमी की वजह से 14.81 करोड़ बच्चों का विकास रुक गया है. 

अधिक आमदनी और ऊपरी मध्य वर्ग (अपर मिडिल क्लास) वाले देशों में महिलाएं ओवरवेट या मोटापे का शिकार होने के मामले में और भी ज़्यादा ख़राब स्थिति में हैं. दुनिया भर में सामान्य से लेकर गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 2021 में बढ़कर 31.9 हो गया जबकि पुरुषों का प्रतिशत 27.6 था. एनीमिया (खून की कमी) ने दुनिया भर में 15 से 49 साल के बीच की आधा अरब महिलाओं और लगभग 27 करोड़ बच्चों को प्रभावित किया. मातृ (मैटरनल) कुपोषण, विशेष रूप से गर्भावस्था या बच्चों को दूध पिलाने के संदर्भ में, ग़रीबी के एक दुष्चक्र की शुरुआत कर सकता है जो जन्म के समय बच्चे का कम वज़न, बाल मृत्यु दर (बच्चों में पांच वर्ष से कम उम्र में 45 प्रतिशत मौतें होती हैं), गंभीर बीमारी, पढ़ाई-लिखाई में ख़राब प्रदर्शन और काम-काज में कम उत्पादकता का ख़तरा बढ़ाता है. 

खाद्य सुरक्षा के सभी पहलुओं को बनाए रखने में महिला और पुरुष- दोनों अभिन्न हैं, दोनों अनूठे और अनिवार्य ढंग से इसमें योगदान करते हैं. सबसे पहले वो खाद्य उत्पादक और कृषि एंटरप्रेन्योर के तौर पर काम करते हैं जो कि फसल की जुताई, कटाई और पशुधन को पालने में सक्रिय रूप से शामिल हैं और इस तरह वो खाद्य संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं. इसके अलावा महिला और पुरुष “द्वारपाल” (गेटकीपर) की भूमिका में आ जाते हैं जो कि अपना समय, आमदनी और निर्णय लेने की क्षमता अपने घर और समुदाय के भीतर खाद्य सुरक्षा को चालू रखने में लगाने के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसमें खाने-पीने के सामान की ख़रीद, वितरण और उपयोग के संबंध में रणनीतिक विकल्प तैयार करना और परिवार के सदस्यों एवं पड़ोसियों की पोषण से जुड़ी ज़रूरत को प्राथमिकता देना शामिल है. इसके आगे पुरुष और महिलाएं आर्थिक अनिश्चितता के दौरान भोजन की सप्लाई के मामले में मैनेजर के तौर पर काम करते हैं और साधन संपन्न रणनीतियों का उपयोग खाद्य संसाधनों की कमियों को दूर करने और हर किसी तक समान मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए करते हैं. इन अलग-अलग भूमिकाओं में उनके सहयोग वाले प्रयास एक सामर्थ्य से भरपूर और स्थिर खाद्य प्रणाली की बुनियाद तैयार करते हैं जो भूख और कुपोषण के ख़िलाफ़ लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

घर के भीतर योगदान

महिलाएं अपने घरों में भी खाद्य सुरक्षा में योगदान करती हैं लेकिन उनका योगदान अक्सर छिपा होता है और राजनीतिक, कानूनी और संस्थागत संरचनाओं में महत्वहीन होता है. इस तरह खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में उन्हें उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोका जाता है. लैंगिक असमानता वैश्विक खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में योगदान करती है और उनकी स्थिति बिगाड़ती है. ये शहरी और ग्रामीण समुदायों में खाद्य और संसाधनों तक पुरुषों और महिलाओं- दोनों की उपलब्धता पर असर डालती है, साथ ही नकारात्मक लैंगिक मानदंड (जेंडर नॉर्म्स) बनाती है जो ज़मीन, तकनीकी जानकारी, भोजन और सामाजिक प्रतिबंधों (सोशल टैबू) तक महिलाओं की पहुंच को प्रभावित करती है. वैश्विक स्तर पर महिलाएं, ख़ास तौर पर महिलाओं के नेतृत्व वाले घर, पुरुषों की तुलना में खाद्य की कमी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को लेकर ज़्यादा ख़तरे का सामना करती हैं. 

लैंगिक सशक्तिकरण और खाद्य सुरक्षा गहराई से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. सतत विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से SDG2 यानी ज़ीरो हंगर, को हासिल करने में इसका बहुत ज़्यादा असर है. खेती और खाद्य प्रणाली के संदर्भ में महिलाओं का सशक्तिकरण खाद्य असुरक्षा का समाधान करने और स्थायी सकारात्मक नतीजों को हासिल करने में महत्वपूर्ण है. खेती में महिलाओं को सशक्त बनाने से उत्पादकता और खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. कई इलाकों में महिलाएं खेती से जुड़े श्रम बल (वर्कफोर्स) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं लेकिन इसके बावजूद वो संसाधनों, ज़मीन के मालिकाना अधिकार और वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुंच जैसी बाधाओं का सामना करती हैं. इन संसाधनों और अवसरों तक महिलाओं को बराबर पहुंच प्रदान करके कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है जिससे खाद्य उपलब्धता में इज़ाफ़ा होगा और लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा में बेहतरी आएगी. लैंगिक सशक्तिकरण पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े नतीजों में सुधार करने में योगदान करता है. 

जब संसाधनों और निर्णय लेने की ताकत पर महिलाओं का नियंत्रण होता है तो इस बात की अधिक संभावना है कि वो परिवार के लिए पोषक आहार को प्राथमिकता देंगी. इस तरह स्वास्थ्य से जुड़े नतीजे बेहतर होंगे, ख़ास तौर पर बच्चों और माताओं के लिए.

महिलाएं घरों में देखभाल करने और निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और इस तरह वो खाने-पीने की पसंद, भोजन से जुड़े तौर-तरीकों और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बर्ताव पर असर डालती हैं. जब संसाधनों और निर्णय लेने की ताकत पर महिलाओं का नियंत्रण होता है तो इस बात की अधिक संभावना है कि वो परिवार के लिए पोषक आहार को प्राथमिकता देंगी. इस तरह स्वास्थ्य से जुड़े नतीजे बेहतर होंगे, ख़ास तौर पर बच्चों और माताओं के लिए. इसके अलावा लैंगिक सशक्तिकरण खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को लेकर सामर्थ्य को बढ़ावा देता है. महिलाओं के पास अक्सर खेती की पद्धतियों और प्राकृतिक संसाधन के प्रबंधन से जुड़ी कीमती पारंपरिक जानकारी और हुनर होता है. जब महिलाओं को सशक्त बनाया जाता है तो वो जलवायु परिवर्तन के मामले में अनुकूलन और उसके प्रभाव को हल्का करने (एडेप्टेशन एंड मिटिगेशन) में सक्रिय रूप से हिस्सेदारी कर सकती हैं. इस तरह पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए सतत कृषि पद्धतियों में योगदान देती हैं और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं. 

खेती-बाड़ी और महिलायें

खेती में बदलाव और इसकी लैंगिक गतिशीलता की वजह से महिलाएं तेज़ी से किसानों और पशुपालकों के तौर पर अहम भूमिकाएं निभा रही हैं. इस बदलाव के बावजूद अलग-अलग चुनौतियों के कारण खाद्य उत्पादक के रूप में उनकी स्वायत्तता में ज़बरदस्त रुकावट है. इन रुकावटों में ज़मीन, वित्तीय सेवाओं, विस्तार की सेवाओं और बाज़ार की सीमित उपलब्धता के साथ-साथ खेती से जुड़ी रिसर्च और डेवलपमेंट की पहल से अपर्याप्त लाभ शामिल हैं. लैंगिक तौर पर संवेदनशील रणनीतियों के माध्यम से इन बाधाओं का समाधान करने से उत्पादकता में काफी सुधार होगा. इस तरह की प्रगति न केवल सीधे तौर पर खेती में शामिल महिलाओं को फायदा पहुंचाएगी बल्कि उनके घरों, समुदायों और समाज को भी लाभ मिलेगा. 

महिलाओं को खेती और खाद्य प्रणाली में सशक्त बनाने के लिए उन्हें ज़मीन, कर्ज़ और तकनीक समेत संसाधनों तक समान उपलब्धता मुहैया कराना शामिल है. इसमें भेदभावपूर्ण कानूनों और सांस्कृतिक मानदंडों जैसी संरचनात्मक बाधाओं का समाधान करना भी शामिल है जो महिलाओं की भागीदारी और निर्णय लेने के अधिकार को सीमित करते हैं.

भूख, कुपोषण और ग़रीबी को ख़त्म करने के लिए वैश्विक अभियान में महिलाओं का सशक्तिकरण और खेती एवं खाद्य प्रणाली के भीतर लैंगिक असमानता में कमी महत्वपूर्ण घटक हैं. ये प्रयास SDG2, जिसका लक्ष्य 2030 तक भुखमरी ख़त्म करना है, के साथ नज़दीक से जुड़े हैं. दुनिया भर में खेती के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं का हिस्सा महत्वपूर्ण है और महिलाएं खाद्य उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण में अहम भूमिका निभाती हैं. महिलाओं को खेती और खाद्य प्रणाली में सशक्त बनाने के लिए उन्हें ज़मीन, कर्ज़ और तकनीक समेत संसाधनों तक समान उपलब्धता मुहैया कराना शामिल है. इसमें भेदभावपूर्ण कानूनों और सांस्कृतिक मानदंडों जैसी संरचनात्मक बाधाओं का समाधान करना भी शामिल है जो महिलाओं की भागीदारी और निर्णय लेने के अधिकार को सीमित करते हैं. रिसर्च से पता चला है कि महिलाओं के सशक्तिकरण में निवेश करने से महत्वपूर्ण लाभ हासिल होता है. ये लाभ न सिर्फ़ आर्थिक विकास के मामले में मिलता है बल्कि सेहत से जुड़े नतीजों, शिक्षा के स्तर और समुदायों के भीतर समग्र कल्याण को सुधारने में भी. भुखमरी ख़त्म करने के लक्ष्य को हासिल करने में हमारी कोशिशों के तहत लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण को प्राथमिकता देकर हम एक अधिक समावेशी और स्थिर खाद्य प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं जो सबको फायदा पहुंचाता है. महिलाओं को सशक्त करने से अक्सर पोषण में सुधार होता है जो बच्चों और माताओं के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालता है. उत्पादकता को सबसे अच्छा बनाने, सेहत से जुड़े नतीजों को सुधारने और महिलाओं, उनके बच्चों, परिवारों और घरों में समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं की खाद्य सुरक्षा, पोषण से जुड़ी आवश्यकता, वित्तीय स्थिरता और अच्छे रोज़गार के अवसरों तक समान पहुंच हासिल करने को प्राथमिकता देना ज़रूरी है.


शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं. 

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