Author : Rupali Handa

Published on Jul 17, 2021 Updated 0 Hours ago

हाइड्रोजन एक ज़्यादा विविध और इसलिए लोकतांत्रिक वैश्विक ऊर्जा प्रणाली की स्थापना के द्वारा अलग-अलग देशों के बीच ऊर्जा की समानता की संभावना भी मुहैया कराता है.

हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का भू-राजनीतिक अर्थ

आने वाले दशकों के लिए जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने का अभियान राजनीतिक और आर्थिक तौर पर बड़ा वैश्विक मुद्दा होने जा रहा है. ये मामला सिर्फ़ पर्यावरण संरक्षण को लेकर नहीं है; ये दीर्घकालीन औद्योगिक और आर्थिक स्थिरता से भी जुड़ा है. अलग-अलग देशों के बीच प्रतिस्पर्धा में तकनीक तक पहुंच, प्राकृतिक संसाधन और मानवीय पूंजी की ज़रूरत एक प्रमुख भू-राजनीतिक हथियार है. दुनिया के हर क्षेत्र की अपनी अलग मज़बूती और सामरिक प्राथमिकता है. कार्बन उत्सर्जन को कम करने की होड़ वाली दुनिया में जो देश और कारोबार तकनीक की मदद से इस दिशा में तेज़ी से और बड़े पैमाने पर बदलाव करेंगे वो प्रतिस्पर्धा में दूसरों से आगे रह सकते हैं. ठीक उसी तरह जैसे 20वीं सदी में औद्योगिकरण के दौरान कोयला और तेल जैसे संसाधनों तक पहुंच वाले देश आगे रहे.

हाइड्रोजन से जुड़ी परियोजनाओं में प्राइवेट कंपनियों का निवेश

कार्बन को कम करने और जीवाश्म ईंधन पर ऊर्जा के लिए निर्भरता कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण ऊर्जा हाइड्रोजन वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में सबसे आगे है. वैसे तो 1970 से हाइड्रोजन को “भविष्य के ईंधन” के रूप में पेश किया गया है लेकिन अब हरित हाइड्रोजन (जिसका उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रोलिसिस के इस्तेमाल से पानी को हाइड्रोजन और पानी में विभाजित कर होता है) को और भी ज़्यादा राजनीतिक और कारोबारी मान्यता मिल रही है. नेट ज़ीरो (शून्य कार्बन उत्सर्जन) का बढ़ता लक्ष्य, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और तकनीक में आधुनिकता, नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन की लागत में महत्वपूर्ण कमी के साथ कई देशों के द्वारा हाइड्रोजन के मामले में राष्ट्रीय रणनीति का विकास और हाइड्रोजन से जुड़ी परियोजनाओं के विकास में प्राइवेट कंपनियों का निवेश, हाइड्रोजन को लेकर दिलचस्पी में मौजूदा बढ़ोतरी के पीछे हैं.

नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन की लागत में महत्वपूर्ण कमी के साथ कई देशों के द्वारा हाइड्रोजन के मामले में राष्ट्रीय रणनीति का विकास और हाइड्रोजन से जुड़ी परियोजनाओं के विकास में प्राइवेट कंपनियों का निवेश, हाइड्रोजन को लेकर दिलचस्पी में मौजूदा बढ़ोतरी के पीछे हैं. 

हाइड्रोजन में दिलचस्पी का मौजूदा स्तर अभूतपूर्व है. इसकी एक वजह ये है कि हाइड्रोजन के कई संभावित इस्तेमाल की जांच-पड़ताल की जा रही है जिनमें परिवहन (ख़ास तौर पर अल्पावधि में भारी वाहनों के लिए और दीर्घावधि में समुद्री जहाज़ और उड्डयन में), बिजली उत्पादन, ऊर्जा भंडारण, औद्योगिक इस्तेमाल (उत्पादन, लौह और इस्पात उत्पादन, रसायन सेक्टर, ऑयल रिफाइनिंग), बिल्डिंग (हीटिंग और कूलिंग) सेक्टर और ऊर्जा निर्यात शामिल हैं. इस ईधन के व्यापक उपयोग पर विचार करते हुए आने वाले समय में ऊर्जा आपूर्ति की प्रणाली में हरित हाइड्रोजन का दबदबा होने वाला है.

भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता है हाइड्रोजन  

हाइड्रोजन काउंसिल के अनुमान के मुताबिक़ अगर हाइड्रोजन की क़ीमत 1.80 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम हो तो 2030 तक वैश्विक ऊर्जा मांग का 15 प्रतिशत हिस्सा हाइड्रोजन से पूरा किया जा सकता है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ अगर एक मज़बूत और व्यापक नीति को लागू किया जाए तो हाइड्रोजन 2050 तक वैश्विक ऊर्जा मांग का 24 प्रतिशत हिस्सा पूरा कर सकता है. इस तरह हाइड्रोजन भू-राजनीतिक परिदृश्य को काफ़ी हद तक प्रभावित कर रहा है.

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में ऊर्जा सुरक्षा को बेहतर करने, अर्थव्यवस्था में विविधिता और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर असर डालने की संभावना है. लंबे समय में ये बदलाव न सिर्फ़ ऊर्जा कारोबार को अस्त-व्यस्त करेगा बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन को भी बिगाड़ेगा. हाइड्रोजन का अंतर्राष्ट्रीय कारोबार वैश्विक ऊर्जा व्यापार के परिदृश्य को काफ़ी हद तक बदलेगा, ऊर्जा निर्यातकों और आयातकों के नये वर्ग को विकसित करेगा. साथ ही अलग-अलग देशों के बीच भू-राजनीतिक संबंधों और गठबंधन को नये सिरे से परिभाषित करेगा.

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में ऊर्जा सुरक्षा को बेहतर करने, अर्थव्यवस्था में विविधिता और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर असर डालने की संभावना है. लंबे समय में ये बदलाव न सिर्फ़ ऊर्जा कारोबार को अस्त-व्यस्त करेगा बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन को भी बिगाड़ेगा.

इस बात की पूरी संभावना है कि तुलनात्मक फ़ायदे के आधार पर वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का आकार हरित हाइड्रोजन में व्यापार से तय होगा. इसका नतीजा ये होगा कि अगर किसी देश के पास स्थानीय स्रोतों से हाइड्रोजन के उत्पादन की क्षमता है भी तो वो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से फ़ायदा उठाने का विकल्प चुनेगा. इन कारणों से भविष्य की ये अर्थव्यवस्था संभवत: आयातक और निर्यातक देशों के एक नये वर्ग की रचना करेगी. इस बात की पूरी संभावना है कि अलग-अलग देश अपने संसाधनों के स्तर, इंफ्रास्ट्रक्चर की क्षमता और तकनीकी नेतृत्व के स्तर के आधार पर विशेष भूमिका अपनाएंगे.

व्यापार की संभावनाएं

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था हाइड्रोजन व्यापार पर नये अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को भी प्रोत्साहन देगी. अलग-अलग देश नया गठबंधन बनाने के लिए तैयार होंगे, हाइड्रोजन व्यापार पर साझेदारी विकसित करेंगे और क्षेत्रीय और महाद्वीपीय नेटवर्क बनाएंगे. कई देश पहले से ही तथाकथित हाइड्रोजन कूटनीति में शामिल हैं, वो व्यापक पैमाने पर हाइड्रोजन के व्यापार की संभावना तलाश रहे हैं. इसका एक उदाहरण भारत और अमेरिका के द्वारा स्ट्रैटजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (एससीईपी) के तहत हाइड्रोजन टास्कफोर्स की शुरुआत है.

हाइड्रोजन एक ज़्यादा विविध और इसलिए लोकतांत्रिक वैश्विक ऊर्जा प्रणाली की स्थापना के द्वारा अलग-अलग देशों के बीच ऊर्जा की समानता की संभावना भी मुहैया कराता है. हाइड्रोजन में जीवाश्म ईंधन से भरपूर देशों पर ऊर्जा निर्भरता कम करने और परंपरागत गठबंधन में परिवर्तन लाने की भी संभावना है. लेकिन अंतत: ऊर्जा, व्यापार और भू-राजनीतिक संबंधों की नई परिभाषा को भविष्य की अलग-अलग तरह की ऊर्जा निर्धारित करेगी. दो मूलभूत बातें भविष्य की ऊर्जा प्रणाली पर हाइड्रोजन के असर को बताएंगी- आने वाले दशकों में मानव सभ्यता को कितनी मात्रा में हाइड्रोजन की ज़रूरत होगी? इसके कितने हिस्से का व्यापार अलग-अलग देशों के बीच होगा?

उत्पादन की लागत के मामले में प्रतिस्पर्धी होना और व्यापक पैमाने पर मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर की तैनाती, हाइड्रोजन के वैश्विक विकास की दर तय करने में निर्णायक साबित होंगे.

उस बाज़ार के आकार और कार्यक्षेत्र के बारे में अभी भी पता नही है लेकिन हरित हाइड्रोजन की दौड़ साफ़ तौर पर जारी है. यद्यपि पिछले दशक के दौरान हरित हाइड्रोजन तकनीक और परयोजनाओं में निवेश बढ़ा है लेकिन लागत की चुनौती अभी भी बनी हुई है. जीवाश्म ईंधन से मुक़ाबला करने के लिए हरित हाइड्रोजन को निश्चित रूप से ज़्यादा लंबे और घुमावदार रास्ते को पार करना होगा. जीवाश्म ईंधन पर आधारित उत्पादन के मामले में ये अभी भी लागत के मामले में प्रतिस्पर्धी नहीं है. इसकी लागत 3 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम से 6.55 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच है. वहीं जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन की लागत 1.80 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है. ब्लू हाइड्रोजन, जो प्राकृतिक गैस के भाप मीथेन शोधन के ज़रिए हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करके बनता है, की लागत 2.40 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है.

उत्पादन की लागत के मामले में प्रतिस्पर्धी होना और व्यापक पैमाने पर मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर की तैनाती, हाइड्रोजन के वैश्विक विकास की दर तय करने में निर्णायक साबित होंगे. तकनीक, मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर की मौजूदगी और भविष्य के बाज़ार की संरचना तय करेगी कि हरित हाइड्रोजन का बाज़ार उसी तरह भौगोलिक रूप से केंद्रित है जैसे कि आज का तेल बाज़ार या उसी तरह विकेंद्रित जैसे कि आज की नवीकरणीय ऊर्जा. इन सभी परिवर्तनशील चीज़ों को जब मिलाया जाए तो वो विकसित होती हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का भू-राजनीतिक अर्थ निर्धारित करेगी.

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