Author : Kabir Taneja

Published on Dec 01, 2023 Updated 0 Hours ago

I2U2 जैसी व्यवस्थाएं और अभी सितंबर में G20 शिखर सम्मेलन में घोषित किए गए भारत- मध्य पूर्व और यूरोप के बीच आर्थिक गलियारे (IMEEC) जैसी व्यवस्थाएं अब बनी रहेंगी.

गाज़ा  का संकट और I2U2 का भविष्य बचाए रखने की चुनौतियां

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इज़राइल और हमास के बीच चल रहे मौजूदा युद्ध ने उस सबसे बड़ी चुनौती को सामने ला खड़ा किया है, जिसकी आशंका इस क्षेत्र के हालात सामान्य बनाने की कोशिशों के दौरान जताई जा रही थी, यानी फिलिस्तीन का मसला. ऐसी ख़बरें आईं कि अमेरिका के कूटनीतिज्ञों ने अपनी सरकार से ये आशंका जताई कि ग़ज़ा में मरने वालों की तादाद बढ़ने के साथ ही मध्य पूर्व में अमेरिका की हैसियत कमज़ोर होती जा रही है. उसके बाद से अब तक गाज़ा  के हालात और भी बिगड़ चुके हैं.

हालांकि, हाल ही में जब ग़ज़ा के हालात पर चर्चा के लिए रियाद में अरब लीग के साथ इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की बैठक हुई, तो इसमें अरब और इस्लामिक देशों के बीच मतभेद साफ़ तौर पर दिखे. दोनों बैठकों में इज़राइल की आलोचना तो की गई. मगर इसमें भाग लेने वाले देशों के दूरगामी हितों के चलते कोई ठोस आम सहमति नहीं बन सकी. इन बैठकों में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी भी शामिल हुए और उन्होंने क़रीब एक दशक बाद सऊदी अरब के अपने समकक्ष से बात की. इस साल चीन की मध्यस्थता से ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक संबंध फिर से स्थापित हुए थे. उसके बाद के शीर्ष नेताओं की पहली मुलाक़ात थी. ईरान खुलकर हमास और हिज़्बुल्लाह का समर्थन करता है. वो इन दोनों संगठनों को केवल प्रतिबंधित आतंकी संगठन नहीं, बल्कि फिलिस्तीन की आज़ादी की लड़ाई का प्रतीक मानता है. रियाद में इब्राहिम रईसी ने अपने मुस्लिम समकक्षों से कहा कि वो इज़राइल की सेना को एक आतंकवादी संगठन घोषित करें.

इस साल चीन की मध्यस्थता से ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक संबंध फिर से स्थापित हुए थे. उसके बाद के शीर्ष नेताओं की पहली मुलाक़ात थी.

लेकिन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और अन्य देशों की नज़र में उनके दूरगामी हित और मौजूदा संघर्षों के बीच टकराव उनके नज़रिए के लिए एक चुनौती पेश कर रहा है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में बड़ी तेज़ी से कई कूटनीतिक और सामरिक बदलाव देखने को मिले हैं. कई देशों ने टकराव का रास्ता छोड़कर भविष्य को देखते हुए एक कामकाजी स्थिरता की तरफ़ बढ़ने का रास्ता अपनाया है. 2021 में दस्तख़त किए गए अब्राहम समझौतों ने केवल अरब देशों और इज़राइल के बीच रिश्ते सामान्य करने की शुरुआत की, बल्कि इस पूरे इलाक़े में अमेरिका की स्थिति भी बेहतर हुई थी. संबंध सामान्य होने का एक सीधा असर, I2U2 के नाम से एक नई पहल के तौर पर सामने आया था. इसके तहत, भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के बीच नए आर्थिक और व्यापारिक इकोसिस्टम स्थापित किया जा रहा है. I2U2 को एक ऐसी मिसाल के तौर पर पेश किया जा रहा था, जोये नया मध्य पूर्वहासिल कर सकता है.

इस मामले में इज़राइल पर हमास के आतंकवादी हमले और उसके बाद इज़राइल द्वारा ग़ज़ा में सैन्य अभियान को लेकर UAE का रवैया संयमित और बहुत से लोगों की नज़र में अनअपेक्षित रहा है. संयुक्त अरब अमीरात ने शुरुआत में इज़राइल के ख़िलाफ़ हमास के हमले की आलोचना की थी औऱ इसेगंभीर और भयंकर टकरावका नाम दिया था. उसके बाद से UAE ने दोनों पक्षों के बीच संतुलित रुख़ अपनाया हुआ है. हालांकि, अब्राहम समझौते में शामिल देशों के बीच दरारें खुलकर दिख रही हैं. जहां संयुक्त अरब अमीरात ने इन समझौतों पर क़ायम रहने की बात दोहराई है. वहीं, उसके साझीदार और इज़राइल से रिश्ते सामान्य करने के समझौते का हिस्सा रहे बहरीन ने इज़राइल के साथ कारोबार रोक दिया है और इज़राइल में अपने राजदूत को भी सलाह मशविरे के लिए वापस बुला लिया है.

हालांकि, राजनीतिक और कूटनीतिक सहमति बनाने की मौजूदा कोशिशों के बीच, इस बात की आशंका कम ही है कि ग़ज़ा में संघर्ष की वजह से या फिर अरब देशों और ईरान के ज़्यादा टकराव वाला रुख़ अपनाने से अरब देशों और इज़राइल के बीच संबंध सामान्य करने की ये रूप-रेखा बिखर सकती है. संयुक्त अरब अमीरात की संघीय राष्ट्रीय परिषद के चेयरमैन ऑफ डिफेंस और फॉरेन अफेयर्स कमेटी के अध्यक्ष अली राशिद अल-नुऐमी ने यूरोपियन ज्यूइश एसोसिएशन और अमेरिकन इज़राइल पब्लिक अफेयर्स कमेटी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि, ‘अब्राहम समझौते हमारा मुस्तक़बिल हैं’.

अरब के रेगिस्तान में एक नया सामरिक समीकरण भी देखने को मिलेगा, जहां एक तरफ़ अरब देश- इज़राइल और अमेरिका, ईरान के मुक़ाबले में एकजुट होकर खड़े दिखेंगे.

और, संयुक्त अरब अमीरात की तरह सऊदी अरब भी इज़राइल के साथ संबंध सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा था. सऊदी अरब के वली अहद प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान (MbS) ने हमास के हमले के कुछ दिनों पहले ही एक इंटरव्यू में कहा था कि उनका देश इज़राइल से रिश्ते सामान्य करने की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है. हालांकि उन्होंने ये बात भी कही थी कि ऐसी पहलों की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि इज़राइल, फिलिस्तीन मसले पर कितनी नरमी दिखाता है. जहां एफ ग्रेगरी गॉज़ III जैसे विद्वान ये मानते हैं कि सऊदी अरब और इज़राइल के रिश्ते सामान्य करने की बुनियादी ज़मीन तो अभी भी तैयार है. लेकिन खाड़ी देश के शाही परिवारों के ज़हन में अरब क्रांति की यादें अभी भी ताज़ा हैं. इसलिए मौजूदा हालात में वो अपनी जनता का मूड भांपते हुए बहुत सावधानी से इस रास्ते पर आगे बढ़ेंगे.

अगर हमास का मुख्य मक़सद इन कोशिशों पर पानी फेरना नहीं भी था. लेकिन, अगर सऊदी अरब और इज़राइल के रिश्ते सामान्य होते हैं, तो ये बहुत बड़ी और क्रांतिकारी उपलब्धि होगी. क्योंकि, सऊदी अरब में इस्लाम के दो सबसे पवित्र शहर हैं. इससे अरब के रेगिस्तान में एक नया सामरिक समीकरण भी देखने को मिलेगा, जहां एक तरफ़ अरब देश- इज़राइल और अमेरिका, ईरान के मुक़ाबले में एकजुट होकर खड़े दिखेंगे. ये बात ईरान के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल है. इससे निपटने के लिए ईरान, पिछले कई वर्षों से उस रणनीति पर चल रहा है, जिसका ज़िक्र पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया उल-हक़ ने किया था, यानीज़ार जख़्मों से दुश्मन को कमज़ोर करना’. जनरल ज़िया तो अपने दुश्मन भारत के ख़िलाफ़ ये मक़सद हासिल करने में नाकाम रहे. मगर, ईरान ने क़ुद्स ब्रिगेड के पूर्व कमांडर दिवंगत क़ासिम सुलेमानी के नेतृत्व में पूरे मध्य पूर्व में कई हथियारबंद संगठन खड़े करके अपना ये मक़सद काफ़ी हद तक हासिल कर लिया है. आज इराक़, सीरिया, यमन और लेबनान में ईरान समर्थक हथियारबंद संगठन सक्रिय हैं, जिनका मक़सद इज़राइल पर हमला करना रहा है. ये संगठन ज़रूरत पड़ने पर अरब देशों को भी निशाना बनाते रहे हैं. जनरल क़ासिम सुलेमानी की 2020 में अमेरिका ने हत्या कर दी थी.

I2U2 के लिए मौजूदा संकट एक झटका साबित हुआ है. हालांकि, उसके अस्तित्व को कोई ख़तरा नहीं है. चार देशों का ये समूह हो सकता है कि आने वाले कुछ महीनों तक बहुत सक्रिय दिखे. मगर ये एक अहम बहुपक्षीय व्यवस्था बना रहने वाला है. हालांकि, युद्ध के बाद के दौर में I2U2 को ख़ुद को एक नरम कूटनीतिक व्यवस्था और कामयाबी से लक्ष्य हासिल करने के ढांचे के तौर पर कारगर साबित होने को साबित करना होगा. शायद ये संकट बिल्कुल सही समय पर आया है, जब ऐसे सीमित बहुपक्षीय मंच पहले से मौजूद क्षेत्रीय मंचों की मदद से अपनी उपयोगिता साबित करें. I2U2 के अंतर्गत अमेरिका और इज़राइल आपस में ज़्यादा नज़दीकी से काम कर रहे हैं, जबकि संयुक्त अरब अमीरात दोनों से बराबर की दूरी और संतुलन बनाने पर ज़ोर दे रहा है. इस संकट को लेकर भारत भी अपनी विदेश नीति और घरेलू राजनीतिक ज़रूरतों के बीच एक नाज़ुक संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है. जब संयुक्त राष्ट्र में ग़ज़ा को मानवीय मदद पहुंचाने के लिए युद्ध बंद करने का प्रस्ताव लाया गया, तो भारत ने इसके लिए हुई वोटिंग से ख़ुद को दूर रखा. लेकिन, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में इज़राइल द्वारा फिलिस्तीन में अवैध रूप से बस्तियां बसाने के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया, तो भारत ने इज़राइल के ख़िलाफ़ वोट दिया (भारत हर साल इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट देता रहा है). ये भारत की बरसों पुरानी उसी नीति का हिस्सा है जिसके तहत वो इज़राइल और फिलिस्तीन के संघर्ष का समाधान दो अलग अलग देशों की स्थापना और फिलिस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र का दर्जा देने की हिमायत करता रहा है और इस तरह वो अरब और इज़राइली हितों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है.

आगे की राह

I2U2 जैसी व्यवस्थाएं और अभी सितंबर में G20 शिखर सम्मेलन में घोषित किए गए भारत- मध्य पूर्व और यूरोप के बीच आर्थिक गलियारे (IMEEC) जैसी व्यवस्थाएं अब बनी रहेंगी.नएऔरपुरानेमध्य पूर्व के बीच ये टकराव होना ही था, ख़ास तौर से फिलिस्तीन के मसले पर. हमास के हमले ने मध्य पूर्व में फिलिस्तीन के संकट की केंद्रीय भूमिका को फिर से रेखांकित कर दिया है कि भविष्य में इस इलाक़े के लिए बनने वाली किसी भी रूप रेखा में फिलिस्तीन की अनदेखी नहीं की जा सकती. फिर चाहे वो सियासी हो या राजनीतिक. अपने आतंकवाद से हमास ने जो संदेश दिया है वो इज़राइल के साथ साथ अरब देशों के लिए भी संकेत है.

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