Author : Ayjaz Wani

Published on May 31, 2023 Updated 0 Hours ago
श्रीनगर में G20 TWG का आयोजन: शांति की वापसी और दुनिया के स्तर पर कश्मीर की पर्यटन संभावना का प्रदर्शन

दिसंबर 2022 में भारत को G20 की अध्यक्षता मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये देश के लिए “अपनी ताक़त का प्रदर्शन” करने का एक “ख़ास मौक़ा” है. उन्होंने कहा कि भारत की G20 अध्यक्षता पूरी दुनिया में “लोगों की भागीदारी” की एक मिसाल पेश करेगी और देश के राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों (UT) को वैश्विक निवेश और पर्यटन के आकर्षक ठिकानों के रूप में पेश करेगी. 

इसलिए 22 से लेकर 24 मई तक शांत कश्मीर घाटी में तीसरे G20 टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप (TWG) का सम्मेलन न सिर्फ़ इस इलाक़े के टूरिज़्म सेक्टर की बहुतायत को दिखाने के लिए बल्कि भारत की ताक़त का प्रदर्शन करने के लिए लोगों की भागीदारी के हिसाब से भी ख़ास महत्व रखता है.

गुजरात में कच्छ के रण और पश्चिम बंगाल के ख़ूबसूरत सिलिगुड़ी में फरवरी और अप्रैल के महीने में टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की पहली और दूसरी बैठक आयोजित हुई थी. लेकिन TWG की तीसरी बैठक कश्मीर को लेकर भारत के निडर भू-राजनीतिक रुख़ को सामने रखने के अलावा यहां आए G20 के मेहमानों को कश्मीर घाटी की असाधारण पर्यटन संभावना का गवाह बनने का एक मौक़ा मुहैया कराती है. सीधे तौर पर पर्यटन और खेती पर निर्भर हज़ारों घरों के लिए इस बैठक ने स्थानीय परंपराओं जैसे कि कश्मीरी हैंडलूम, पश्मीना, मेवे (ड्राई फ्रूट्स) और दुनिया भर में मशहूर केसर को बढ़ावा देने का एक मंच मुहैया कराया. 

ये सम्मेलन कश्मीरी समाज के सभी वर्गों के लिए हरित, समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन विकास के लिए वैश्विक एजेंडा में शामिल होने का एक अवसर था. कश्मीर की पर्यटन संभावना और पर्यावरण के प्रति कश्मीर घाटी की संवेदनशील प्रकृति (इको-सेंसिटिव नेचर) पर विचार करें तो TWG की बैठक ने स्थानीय प्रशासन को सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने के लिए दुनिया भर की सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को सीखने में सक्षम बनाया. ये सम्मेलन जून में सतत पर्यटन (सस्टेनेबल टूरिज़्म) को लेकर गोवा घोषणापत्र को अंतिम रूप देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण क़दम था. 

टेररिज़्म से टूरिज़्म तक 

कश्मीर घाटी की क़ुदरती ख़ूबसूरती की वजह से इसे ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है. 1988 में यहां    7,00,000 सैलानी घूमने के लिए आए जिनमें लगभग 75,000 विदेशी पर्यटक भी शामिल थे. लेकिन 1989 में कश्मीर घाटी की शांति उस वक़्त ध्वस्त हो गई जब पाकिस्तान और उसकी खुफ़िया एजेंसी इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (ISI) ने यहां के लोगों को गुमराह किया और ट्रेनिंग देकर हज़ारों आतंकवादियों को हथियारबंद संघर्ष और आतंकवाद शुरू करने के लिए भेजा. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर घाटी के समाज के सामान्य काम-काज को तबाह कर दिया, हज़ारों लोगों की जान ले ली और अर्थव्यवस्था, ख़ास तौर पर टूरिज़्म सेक्टर, को बर्बाद कर दिया. हिंसा में बढ़ोतरी होने, जिस दौरान बम धमाके और गोली-बारी की 1,500 वारदात हुई, की वजह से 1989 में सिर्फ़ 2,00,000 पर्यटक घूमने के लिए घाटी में आए. 1989 के बाद यूरोप, अमेरिका और दुनिया के दूसरे हिस्सों के सैलानियों की संख्या कम होकर नाममात्र की ही रह गई. इससे कश्मीर के लोगों की आर्थिक परेशानी बढ़ गई. अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के द्वारा खड़ी की गई गंभीर सुरक्षा चिंताओं की वजह से कश्मीर को ऐसा क्षेत्र घोषित कर दिया जहां जाना मना था और समय-समय पर ट्रैवल एडवाइज़री भी जारी की. 1990 और 1991 के बीच महज़ 6,287 सैलानी ही कश्मीर घाटी पहुंचे जिनमें से ज़्यादातर घरेलू पर्यटक थे. इस तरह 1989 के मुक़ाबले सैलानियों की संख्या में 98% की कमी आई. टूरिज़्म से जुड़े ज़्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर को या तो आतंकवादियों के द्वारा जला दिया गया या फिर उनका दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने लगा. इससे कश्मीर घाटी गंभीर आर्थिक कठिनाई में फंस गई. 

हालांकि, अनुच्छेद 370 और 35A, जो भारतीय संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को अस्थायी रूप से विशेष दर्जा देते थे, हटाये जाने के बाद कश्मीर घाटी ने सकारात्मक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक बदलाव में बढ़ोतरी का अनुभव किया है. कश्मीर घाटी एक बार फिर से घरेलू और विदेशी सैलानियों के लिए छुट्टी मनाने का पसंदीदा ठिकाना बनकर उभरी है. 2022 में 1.88 करोड़ से ज़्यादा सैलानियों ने कश्मीर घाटी का दौरा किया जो भारत की आज़ादी के बाद 75 साल में सबसे ज़्यादा है. जम्मू-कश्मीर की GDP में पर्यटन का हिस्सा 7-8 प्रतिशत है और हर साल 80 अरब रुपये का राजस्व देता है. टूरिज़्म सेक्टर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ढंग से लगभग 1,00,000 लोगों को रोज़गार मुहैया कराता है. 2020 की व्यापक पर्यटन नीति के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर का लक्ष्य अगले पांच वर्षों के लिए 20 अरब रुपये का निवेश आकर्षित करने का है. इससे स्थानीय स्तर पर और ज़्यादा रोज़गार पैदा करने में योगदान मिलेगा. 

1989 में आतंकवाद की शुरुआत के 33 साल बाद घाटी में आतंकी घटनाओं में कमी आई है और सुरक्षा के माहौल में स्थायी बदलाव आया है. पाकिस्तान के द्वारा फैलाई जाने वाली “हिंसा” जैसे कि पत्थरबाज़ी की घटनाएं और हड़ताल की अपील में व्यापक स्तर पर लोगों की भागीदारी लगभग ख़त्म हो गई है. मिसाल के तौर पर 2017 में पत्थरबाज़ी की 1,412 घटनाएं हुईं जो कि 2018 में बढ़कर 1,488 और 2019 में 1,999 हो गईं. लेकिन 2021 से घाटी में इस तरह की एक भी हिंसक घटना की ख़बर सामने नहीं आई है. शांति की वापसी से प्रेरित होकर जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2022 में गांवों में रहने (होमस्टे) की परियोजना की शुरुआत की. इस परियोजना के तहत हर घर के लिए 50,000 रुपये की विशेष सहायता का प्रावधान किया गया. इस परियोजना को शुरू करने के पीछे सैलानियों की बढ़ती संख्या और सतत विकास लक्ष्य (SDG) का भी ध्यान रखा गया. दिसंबर 2022 तक ओयो के पास कम-से-कम 200 घर मौजूद थे जहां घरेलू और विदेशी सैलानी गर्मजोशी वाली मेज़बानी के साथ ग्रामीण संस्कृति, पकवान और परंपराओं का मज़ा उठा सकते हैं.  

पाकिस्तान का प्रोपगेंडा 

घाटी में विदेशी निवेश का लौटना भी यहां शांति को सुनिश्चित करने में स्थानीय प्रशासन की सफलता का पता लगाने का एक भरोसेमंद तरीक़ा है. शांति की वापसी सैलानियों की सुरक्षा के लिए भी एक ज़रूरी शर्त है. मार्च 2023 में कश्मीर में पहली बार 500 करोड़ रुपये का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) हुआ जब दुबई की कंपनी एमार ने एक शॉपिंग और ऑफिस कॉम्प्लेक्स का निर्माण शुरू किया. इसके अलावा यूनेस्को की सक्रिय मदद से प्रशासन ने राष्ट्रीय स्मार्ट सिटीज़ मिशन के तहत श्रीनगर शहर के कायापलट का अभियान शुरू किया है. इस काम पर 30 अरब रुपये खर्च किए जाएंगे और 2023 तक इसे पूरा किया जाएगा. 

संविधान के अस्थायी अनुच्छेद 370 और 35A को हटाये जाने के बाद कश्मीर के लोगों ने भी महसूस किया कि एक बेहतर भविष्य के लिए आर्थिक बहाली और आर्थिक पुनर्संरचना ही एकमात्र रास्ता है. घाटी के आम लोग टूरिज़्म और दूसरे आर्थिक क्षेत्रों के समावेशी विकास में भागीदार बनना चाहते हैं. उन्हें ये अच्छी तरह पता है कि G20 बैठक आकांक्षापूर्ण, संपूर्ण, हरित, समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन के मॉडल पर आधारित विकास का एक दृष्टिकोण पेश करती है जो स्थानीय हैंडलूम उत्पादों और दूसरे कारीगरों को बढ़ावा देगी. 

पाकिस्तान ने कुछ स्थानीय अलगाववादियों की मदद से अपने संकीर्ण हितों के लिए श्रीनगर में G20 की बैठक को नाकाम करने की लगातार कोशिश की. पाकिस्तान ने अपने इस इरादे को उस वक़्त ज़ाहिर किया जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने सीमावर्ती ज़िले राजौरी में एक आतंकी हमले के दौरान पांच सैनिकों की हत्या कर दी. ये हमला पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट (PAFF) नाम के एक आतंकवादी संगठन ने किया जो जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा हुआ है. PAFF ने खुलेआम श्रीनगर में G20 के आयोजन को अपना अगला निशाना बताया था. पाकिस्तान ने G20 बैठक के ख़िलाफ़ वैश्विक स्तर पर बहिष्कार का अभियान भी चलाया था लेकिन सिर्फ़ चीन और तुर्किए ही इस तरह के प्रोपेगेंडा में फंसे और उन्होंने श्रीनगर में आयोजित बैठक में भाग नहीं लिया. लेकिन इसके बावजूद कश्मीर घाटी के लोग बेहद ख़ुश थे. उनके लिए TWG की बैठक दुनिया के सबसे अमीर देशों को   इस इलाक़े की भरपूर प्राकृतिक संपदा और पर्यटन की संभावना दिखाने का एक ख़ास मौक़ा था. 2019 के बाद से कश्मीर घाटी के टूरिज़्म सेक्टर में नाटकीय ढंग से बहाली हुई है. ट्रैवल एडवाइज़री को वापस लेने के बाद ज़्यादा खर्च करने वाले सैलानियों की संख्या में बढ़ोतरी होना तय है. G20 की बैठक सकारात्मकता के सामान्य माहौल को बढ़ाएगी, बेहद ज़रूरी आर्थिक अवसरों का निर्माण करेगी और देश के बाक़ी हिस्सों के साथ घाटी के नौजवानों के वैचारिक एकीकरण में भी योगदान देगी.


एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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